शायद किसी ने सच ही कहा है की सकारात्मकता की कोई सीमा नहीं होती है ,हम अक्सर जीवन में बहुत जल्द ही हताश हो जाते है मगर जीवन हमें कई मोके देता है ! हमें तब तक हार नहीं मानना चाहिए जब तक तक हमारी आखरी साँस चलती रहे ! अक्सर एसा होता की हम जिस चीज को हमारी हार मान लेते हे उसी से कभी कभी हमारी जिन्दगी बच जाती है ! एसा ही एक वाकया हे –
एक बार समुद्र तट पर रहने वाले कुछ मछवारे मछलिया पकड़ने के लिए समुद्र में बहुत दूर तक निकल गए , उन्हें आते आते शाम होने लगी तभी समुद्र में अचानक एक तूफान आया और मछ्वारो की साँसे ऊपर निचे होने लगी ,भयंकर तूफान में फसे मछ्वारो की नाव रास्ता भटकने लगी सारे लोग तितर-बितर होने लगे ! उधर दूसरी और समुद्र तट पर मछ्वारो का पूरा परिवार उनके बीबी-बच्चे उनके सकुशल आने के लिए रास्ता देखने लगे ,प्रार्थनाये करने लगे ! मगर तूफान अपनी गति को और अधिक बडाये ही जा रहा था !बहुत रात हो चुकी थी और भयंकर बारिश हो रही थी ! मछ्वारो का पूरा परिवार हाथ जोड़ कर इश्वर से प्रार्थना कर रहा था की उनके पति सही सलामत लोट आये !मगर इस तूफानी रात में उनका सकुशल लोटना नामुमकिन था ! मगर तभी इश्वर का चमत्कार हुवा और किनारे पर खड़े परिजनों को एक नाव आती दिखाई दी उनके अन्दर उम्मीद की लहर दोड़ पड़ी और अचानक एक एक करके सारे मछवारे सकुशल लोट आये ! सभी परिवार बहुत खुश थे बीबी बच्चे जश्न मन रहे थे ,तभी एक मछवारे ने उसकी पत्नी के चेहरे पर उदासी देखि तो उसने पूछा क्यों प्रिये क्या मुझे सही सलामत पाकर तुम खुश नहीं हुई !पति के वचन सुनकर उस स्त्री की आँखों से आंसू झलक गए और उसने बिलखते हुए कहा हे प्राणनाथ अब हमारे पास कुछ नहीं बचा हमारी जो एक मात्र झोपडी थी वह कल रात के तूफान में आग लगने की वजह से जलकर राख हो गयी !
पत्नी की बाते सुनकर पति जोर से हँसा और कहा अरे पगली शुकर मना उस ऊपर वाले का, के कल रात हमारी झोपडी में आग लग गई ,क्युकी कल रात रास्ता भटकने के बाद हम उसी जलती हुई झोपडी को अपनी मंजिल समझ कर किनारे पर आ सके अगर कल रात हमारी झोपडी नहीं जलती तो शायद हममे से कोई भी जिन्दा वापस नहीं आ पता ! पति की यह बात सुनकर पत्नी ने उसे अपने गले से लगा लिया और अपना घर खोने के गम को भी भुला दिया !
जरा सोचिये इश्वर हमें हमारी गलती सुधारने के कितने मोके देता है ,और हम उन मोको को समझ नहीं पाते और अंत में इश्वर को दोष देते है और कहते है की हमें पर्याप्त साधन नहीं मिले ! और अपने आप को नकारात्मकता के समंदर में एसा धकेलते है की वापस किनारे पर आना संभव नहीं होता ! इसिलए इस युवा पीडी से अपील हे की नकारात्मक सोच को त्याग कर सकारात्मक सोच को विकसित करे और अपना एवं समाज का विकास करे !
जय धाकड़
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