Wednesday, February 23, 2011

शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं

परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा
मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का
में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़
विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए
कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो
सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया
है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।

रामेश्वरम्‌ में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट
गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि
सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का
त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष
तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही
कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद
इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती।

आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम
सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश
सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के
इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू
परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो
चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज
राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव
पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।

क्रोध की जड़ में काम है,

क्रोध की जड़ में काम है, महत्वाकांक्षा का होना या इच्छा करना मन का
स्वभाव है। मन का कार्य है। मन के अनुकूल कार्य न होने पर ही क्रोध होता
है। क्रोध से पूर्व मोह पैदा होता है और मोह से स्मरण शक्ति का विभ्रम
उत्पन्न होता है। जब स्मरण शक्ति भ्रमित होती है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती
है। बुद्धि न हो तो विवेक कहां से आएगा और विवेक न हो तो व्यक्ति का
विनाश हो जाएगा। मन चंचल है, परिवर्तनशील है। मन की प्रकृति संकल्प-
विकल्प वाली है, इसीलिए मन के ऊपर बुद्धि की लगाम कसना जरूरी है।

विचारणीय यह है कि क्रोध क्यों आता है? यह प्रश्न आत्ममंथन का है। जब
हमारी कामना की पूर्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है तो क्रोध जन्म
लेता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के मनोरथ की सिद्धि
में विघ्न डाले तो उस व्यक्ति पर क्रोध आता है।

जब हमारी आकांक्षा, इच्छा, कामना, विचार के अनुसार कोई कार्य सिद्ध नहीं
होता तब निराशा, तनाव एवं असंतोष जैसे भाव हमारे मन को आंदोलित करते रहते
हैं। ये नकारात्मक विचार कुछ सीमा तक हमारा विवेक नष्ट करते हैं। जब
नियंत्रण नहीं रहता तो क्रोध उबल पड़ता है।

क्रोध और विवेक एक दूसरे के प्रबल विरोधी हैं, जैसे अंधकार और प्रकाश।
प्रकाश की एक किरण के आते ही अंधकार मिट जाता है। उसी प्रकार विवेक
जाग्रत होते ही क्रोध अदृश्य होने लगता है। जब मनुष्य का विवेक नष्ट हो
जाता है तब व्यक्ति उचित-अनुचित का बोध करने में असमर्थ हो जाता है।

जीवन में अनेक बार निराशा से उपजी हीन भावना के कारण भी क्रोध आता है।
अपनी किसी कमी या हीनता को छुपाने के लिए लोग क्रोध का सहारा लेते हैं,
ताकि अपनी श्रेष्ठता बनाए रखें। मनुष्य समझ ही नहीं पाता कि कोई बात कहने
या करने योग्य है भी या नहीं। अनेक बार क्रोध का कारण यह भी होता है कि
हमारे अंदर हिंसा के भाव धीरे-धीरे पनपते रहते हैं। उदाहरण के लिए
प्रतिद्वंद्विता, परस्पर विरोध, कटुता, ईर्ष्या, शत्रुता आदि जैसा कोई
नकारात्मक भाव यदि हमारे मन में जड़ जमाए बैठा है, तो निश्चित है कि वह
किसी स्टेज पर क्रोध का रूप धारण कर लेगा। यह सब बुद्धि की कमी और जलन की
भावना के उदीप्त होने के कारण होगा।

तामसिक तत्वों की उग्रता के कारण बुद्धि भ्रमित हो जाती है और फिर किसी
का अनिष्ट करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती। क्रोध का चरित्र ध्वंसात्मक
है। यदि शत्रुता के स्थान पर प्रेम, द्वेष के स्थान पर सौहार्द और आत्मीय
भाव का सृजन होगा तो हिंसा समाप्त होगी। क्रोध भी खत्म होगा। जब हमारे
अंदर हिंसा की भावना दबी रहेगी तो क्रोध भी किसी ना किसी रूप में जुड़ा
रहेगा। केवल क्रोध को दबाने से क्रोध का अंत नहीं होता।

क्रोध पतनगामी है। इसीलिए यह अक्सर पराभव का कारण बन जाता है। पराभव होगा
तो विनाश भी होगा। इसीलिए क्रोध से सावधान रहना आवश्यक है। मानव जीवन में
अनेक प्रकार के मनोरोग हैं, परंतु क्रोध उनमें सबसे शक्तिशाली मनोविकार
है।

इसलिए जब क्रोध आए, तो आप थोड़ी देर के लिए मन उधर से हटा दें। मनपसंद
गीत सुनने का प्रयास करें या टहलने निकल जाएं। इस तरह क्रोध से अपना बचाव
किया जा सकता है। एक बात का ध्यान और रखना चाहिए। जब कोई अच्छा काम करने
का विचार आए तो उसी समय कर लेना चाहिए और बुरा विचार आए तो उसे टाल देना
चाहिए। परन्तु ऐसे प्रयास तभी सफल होंगे जब हम अपनी इंद्रियों पर काबू
पाने में सक्षम हों, हमारे भीतर इच्छाशक्ति हो।

एक तरीका और है। अनुभव बताता है कि सादगी पूर्ण व्यवहार से भी मन में
प्रेम की भावना बढ़ती है और क्रोध में कमी आती है। और मन- वाणी पर भी
नियंत्रण रहता है। इसीलिए कहा गया है :अक्रोधेन जयेत्क्रोधम्! यानी क्रोध
को अक्रोध से जीतो।

रली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम बाप के पास आये हो अपनी सोई हुई तकदीर जगाने, तकदीर जगना माना विश्व का मालिक बनना''

रली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम बाप के पास आये हो अपनी सोई हुई तकदीर जगाने, तकदीर जगना माना विश्व का मालिक बनना''

प्रश्न: कौन सी खुराक तुम बच्चों को बाप समान बुद्धिवान बना देती है?

उत्तर: यह पढ़ाई है तुम बच्चों के बुद्धि की खुराक। जो रोज़ पढ़ाई पढ़ते हैं अर्थात् इस खुराक को लेते हैं उनकी बुद्धि पारस बन जाती है। पारसनाथ बाप जो बुद्धिवानों की बुद्धि है वह तुम्हें आपसमान पारसबुद्धि बनाते हैं।

गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) बाप से सुख का वर्सा लेकर सुख का देवता बनना है। सबको सुख देना है। राजॠषि बनने के लिए सर्व विकारों का सन्यास करना है।

2) पढ़ाई ही सच्ची खुराक है। सद्गति के लिए सुनी-सुनाई बातों को छोड़ श्रीमत पर चलना है। एक बाप से ही सुनना है। मोहजीत बनना है।

वरदान: निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा कर्मयोगी बनने का वरदान प्राप्त करने वाले मास्टर वरदाता भव

जब कोई भी चीज़ साकार में देखी जाती है तो उसे जल्दी ग्रहण किया जा सकता है इसलिए निमित्त बनी हुई जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों की सर्विस, त्याग, स्नेह, सर्व के सहयोगीपन का प्रैक्टिकल कर्म देखकर जो प्रेरणा मिलती है वही वरदान बन जाता है। जब निमित्त बनी हुई आत्माओं को कर्म करते हुए इन गुणों की धारणा में देखते हो तो सहज कर्मयोगी बनने का जैसे वरदान मिल जाता है। जो ऐसे वरदान प्राप्त करते रहते वह स्वयं भी मास्टर वरदाता बन जाते हैं।

स्लोगन: नाम के आधार पर सेवा करना अर्थात् ऊंच पद में नाम पीछे कर लेना

बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी

बायो --डाटा (परिचय )
ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी

नाम: राजयोगी ब्रह्मा कुमार भगवान भाई
ब्रह्माकुमारी शांतिवन में राजयोगा टीचर
मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत राजस्तान में
रसोई विभाग में ब्रह्मा भोजन में सेवा
लेखक, विभिन्न मगैनेस और समाचार पत्रों में
शैक्षिक योग्यता: 10 वीं और आय .टी .आय .
जन्म तिथि: जून 1, 1965
सेवा स्थान: अबू रोड, शांतिवन
ज्ञान में : 1985
सेवा में समर्पित कब से 1987:
सेवा --- जैसे, ग्राम विकाश कई आध्यात्मिक अभियानों में ,
रैली, शिव सन्देश रथ यात्रा, मूल्य आधारित मीडिया अभियान, मूल्य आधारित शिक्षा
अभियान, युवा पद यात्रा, आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों में, साथ ही में
नेपाल में भी
भाषण विभिन्न विषयों पर पर संबोधित किया है कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
(5000) स्कूल में नीतिक मूल्य बारे में स्कूलों और जेलों (800)
समाज सेवा पुनर्वास शिविर बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं, भूकम्प आदि
कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न क्लास लिया है
यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय के एक बहुत अच्छे लेखक हैं. अपने लेख बहुत बार कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहे हैं
जैसे (हिंदी) ज्ञानामृत , विश्व नवीनीकरण (अंग्रेज़ी) के रूप में,
(मराठी) अमृत्कुम्भ , ज्ञान दर्पण (उडिया), ज्ञानामृत (गुजराती),
(तमिल) संगम्युगम , विश्व एनएवी (कनाडा) निर्माण, (तलगू ) ग्यानाम्रितम , आदि,
तनाव मुक्त जीवन, व्यसन से मुक्त जीवन अन्गेर्लेस जीवन, सकारात्मक सोच, योग की विधि, स्व प्रबंध नेतृत्व की कला,
व्यक्तित्व विकास, प्रबंधन आदि म के विषयों पर व्याख्यान देते है लोटरी क्लब, बार के रूप में विभिन्न स्थानों (परिसर) में व्याख्यान
एसोसिएशन, विश्वविद्यालय परिसर, रेलवे, कालेज परिसर, आईटीआई, आ

बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी

बायो --डाटा (परिचय )
ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी

नाम: राजयोगी ब्रह्मा कुमार भगवान भाई
ब्रह्माकुमारी शांतिवन में राजयोगा टीचर
मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत राजस्तान में
रसोई विभाग में ब्रह्मा भोजन में सेवा
लेखक, विभिन्न मगैनेस और समाचार पत्रों में
शैक्षिक योग्यता: 10 वीं और आय .टी .आय .
जन्म तिथि: जून 1, 1965
सेवा स्थान: अबू रोड, शांतिवन
ज्ञान में : 1985
सेवा में समर्पित कब से 1987:
सेवा --- जैसे, ग्राम विकाश कई आध्यात्मिक अभियानों में ,
रैली, शिव सन्देश रथ यात्रा, मूल्य आधारित मीडिया अभियान, मूल्य आधारित शिक्षा
अभियान, युवा पद यात्रा, आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों में, साथ ही में
नेपाल में भी
भाषण विभिन्न विषयों पर पर संबोधित किया है कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
(5000) स्कूल में नीतिक मूल्य बारे में स्कूलों और जेलों (800)
समाज सेवा पुनर्वास शिविर बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं, भूकम्प आदि
कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न क्लास लिया है
यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय के एक बहुत अच्छे लेखक हैं. अपने लेख बहुत बार कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहे हैं
जैसे (हिंदी) ज्ञानामृत , विश्व नवीनीकरण (अंग्रेज़ी) के रूप में,
(मराठी) अमृत्कुम्भ , ज्ञान दर्पण (उडिया), ज्ञानामृत (गुजराती),
(तमिल) संगम्युगम , विश्व एनएवी (कनाडा) निर्माण, (तलगू ) ग्यानाम्रितम , आदि,
तनाव मुक्त जीवन, व्यसन से मुक्त जीवन अन्गेर्लेस जीवन, सकारात्मक सोच, योग की विधि, स्व प्रबंध नेतृत्व की कला,
व्यक्तित्व विकास, प्रबंधन आदि म के विषयों पर व्याख्यान देते है लोटरी क्लब, बार के रूप में विभिन्न स्थानों (परिसर) में व्याख्यान
एसोसिएशन, विश्वविद्यालय परिसर, रेलवे, कालेज परिसर, आईटीआई, आदि

Tuesday, February 22, 2011

मन, बुद्धि और संस्कार

मन आत्मा की चिंतन शक्ति है जो कि विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न करती है- अच्छे, बुरे, व्यर्थ, साधारण, इत्यादि। कुछ विचार स्वैच्छिक होते हैं, और कुछ अनियंत्रित, जो कि पिछले जन्मों के कर्मों के हिसाब-किताब के कारण उत्पन्न होते हैं। कुछ विचार शब्दों तथा कर्मों में परिवर्तित हो जाते हैं, जबकि कुछ विचार केवल विचार ही रह जाते हैं। विचार बीज की तरह होते हैं- शब्दों और कर्मों रूपी वृक्ष से कहीं अधिक शक्तिशाली। जब शरीर-रहित आत्माएं शांतिधाम या परमधाम में होती हैं तो वे विचार-शून्य होती हैं। ५००० वर्ष के मनुष्य सृष्टि चक्र में पहले दो युगों अर्थात् सतयुग और त्रेतायुग में देवतायें केवल संकल्पशक्ति का सकारात्मक रूप में उपयोग करते थे। इसके परिणामस्वरूप, अधिक ऊर्जा की बचत होती है, जिससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, किन्तु जब हम देह अभिमानी बन जाते हैं, हम अपनी संकल्प शक्ति से अधिक शब्दों और कर्मों का उपयोग करते हैं, वह भी नकारात्मक रूप में। इससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का पतन होता है, और कलियुग के अंत तक यह पतन सबसे अधिक हो जाता है। निराकार भगवान शिव, जो कि जन्म-मरण के चक्र में नहीं आते, के इस पृथ्वी पर दिव्य अवतरण लेने पर ही हम अपने विचारों, वाणी और कर्मों पर नियंत्रण करना सीखते हैं, और पतित मनुष्यों से बदलकर गुणवान देवता बन जाते हैं। मन एक समुद्र या झील की भांति है, जो विभिन्न प्रकार की लहरें उत्पन्न करता है- कभी ऊंची, कभी नीची, और कभी कोई लहरें नहीं होती. केवल शांति होती है। मन की तुलना ब्रह्मा (स्थापनाकर्ता) से की जा सकती है।

बुद्धि आत्मा की निर्णय शक्ति है। कोई आत्मा सारे दिन या सारी रात में विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न कर सकती है, किन्तु केवल बुद्धि द्वारा निर्णय लिये जाने पर ही आत्मा उन विचारों को शब्दों या कर्मों में ढ़ालती है। सकारात्मक, नकारात्मक या व्यर्थ विचारों को उत्पन्न करना या केवल विचार-शून्य अवस्था में रहने का निर्णय भी बुद्धि द्वारा ही लिया जाता है। यह बुद्धि ही है जो कि ८४ जन्मों वाले ५००० वर्षीय मनुष्य सृष्टि चक्र के दौरान आत्मा की यात्रा का मार्ग निर्धारित करती है। बुद्धि उस जौहरी की तरह है, जो कि शुद्धता और मूल्य के लिए रत्नों और हीरों को परखता है। बुद्धि की तुलना शंकर (विनाशकर्ता) से की जा सकती है, जो कि पुरातन संस्कारों, विकारों और पुरातन सृष्टि का विनाश करके नई दुनिया की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

किये हुए अच्छे बुरे कर्मों का जो मन बुद्धि रूपी आत्मा के ऊपर प्रभाव पड़ता है उसको संस्कार शक्ति कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, यदि बुद्धि अपने शरीर का उपयोग बारंबार परिश्रम करने के लिए करती है, तो आत्मा परिश्रमी व्यक्ति के संस्कार धारण कर लेती है। यदि बुद्धि बारंबार सोने और आराम करने का निर्णय लेती है और परिश्रम एवं कसरत से बचती है, तो आत्मा आलस्य का संस्कार धारण कर लेती है। अतः, यह आत्मा पर निर्भर करता है कि वह अच्छे या बुरे संस्कार धारण करे। आत्मा अपनी संकल्प तथा निर्णय शक्ति (अर्थात् मन तथा बुद्धि) के आधार पर जो भी संस्कार प्राप्त करती है, वो आत्मा में उसी प्रकार जमा हो जाते हैं, जिस प्रकार किसी कंम्पयूटर के सी.पी.यू में विभिन्न फाईल या फोल्डर जमा हो जाते हैं। ये संस्कार आत्मा के अगले जन्म में भी उसके साथ रहते हैं, और अगले जन्म में भी कुछ हद तक उसके विचारों, वाणी और कर्मों को प्रभावित करते हैं। किसी आत्मा के अंदर पिछले जन्म में हासिल किये गये बुरे संस्कार होने के बावजूद, वह अच्छी संगत, मार्गदर्शन, भोजन, वातावरण, इत्यादि के द्वारा इन संस्कारों को बदल सकती है। जब ५००० वर्ष के सृष्टि-चक्र के अंतिम जन्म में सभी आत्माओं के संस्कार लगभग पतित बन जाते हैं, तब परमात्मा शिव परमधाम से आकर किसी साधारण मनुष्य तन में अवतरित होते हैं, और सहज राजयोग द्वारा हमें अपने संस्कारों को बदलने की शिक्षा और शक्ति प्रदान करते हैं। आत्मा के संस्कारों की तुलना विष्णु (पालनकर्ता) से की जा सकती है।

ईर्ष्या khani

एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में
आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर
उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो शिष्य
जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आए।

अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए। किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास
छह। गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी
जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को
कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते, गुरु का आदेश था। दो-चार
दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए। जैसे-तैसे
उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे। गुरु ने कहा, ‘यह सब
मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था।

जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन
व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा।
यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके कारण आपके मन में भी
बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को
निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो।
इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।’ यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के
साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।

क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए उपाय क्या-क्या हैं?

मनोविकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए सबसे पहले उनके बारे में पूरी
समझ का होना जरूरी है। बिना गहरी समझ के किसी भी दोष (विकार) पर सम्पूर्ण
विजय प्राप्त करना सहज सम्भव नहीं होता। क्रोध विकार पर सम्पूर्ण विजय
प्राप्त करने के लिए हमें यह जानना होगा कि क्रोध क्या है? क्रोध पर विजय
पाना क्यों जरूरी है? क्रोध के आने के कारण क्या-क्या हैं। क्रोध से होने
वाली हानियां क्या-क्या है,? क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए उपाय
क्या-क्या हैं?
क्रोध क्या है?
क्रोध और कुछ नहीं अपितु एक नकारात्मक भाव है। मानसिक पटल पर उभरी हुई
किसी क्रिया की यह आक्रामक प्रतिक्रिया मात्र है। इस प्रतिक्रिया के कारण
शरीर के समूचे स्नायविक तन्त्र (नर्वस सिस्टम) में आक्रामक भाव की तरंगें
पैदा हो जाती हैं। यह प्रतिक्रिया अपने स्व के अस्तित्व की पूर्णतः
विस्मृति की अवस्था में होती है। यह पूरी तरह बहिर्मुखी चेतना होती है।
बहिर्मुखी वृत्ति ंिहंसात्मक होती है। बहिर्मुखी आत्म से अंहिसा की आशा
नहीं की जा सकती। क्रोध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा ही है। इस
मानसिक अवस्था में आत्मा की बुद्धि किसी घटना, परिस्थिति, व्यक्ति या
विचार से अत्यन्त सम्बन्द्ध हो जाती है। इसलिए बुद्धि की निर्णय शक्ति
समाप्त हो जाती है। शरीर की सभी मुद्राऐं हिंसात्मक अर्थात् आक्रामक हो
जाती हैं। मनोविज्ञान के अनुसार यह प्रतिक्रिया (क्रोध) अपनी तीव्रता या
मंदता की अवस्था की हो सकती है।
क्रोध से हानियां
क्रोध के प्रभाव से शरीर की अन्तःश्रावी प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है।
क्रोध से रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है। हार्ट एटैक, सिर दर्द, कमर
दर्द, मानसिक असन्तुलन जैसी अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
परिवार में कलह-क्लेश मारपीट होने से नारकीय वातावरण हो जाता है। सम्बन्ध
विच्छेद हो जाते हैं। जीवन संघर्षों से भर जाता है। व्यक्ति का
व्यक्तित्व (चरित्र) खराब हो जाता है। क्रोध से शारीरिक व मानसिक रूप से
अनेक प्रकार की हानियां ही हानियां हैं।
क्रोध के कारण
क्रोध के कारण क्या-क्या हो सकते हैं? जैसेः- जब कोई व्यक्ति इच्छा
पूर्ति में बाधा डाले या असहयोग करे, तब होने वाली प्रतिक्रिया ही क्रोध
का रूप होती है। यदि कोई व्यक्ति अधिक समय तक चिन्ताग्रस्त रहे, तब भी वह
मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाता है। इस के कारण छोटी-छोटी बातों में
क्रोध आता है। आहार का हमारे विचारों पर बहुत असर पड़ता है। जैसा आहार,
वैसा विचार। तामसिक और राजसिक आहार का सेवन करने से शारीरिक रासायनों का
सन्तुलन बिगड़ता है। हारमोन्स का प्रभाव असन्तुलित हो जाता है। इसका
मस्तिश्क पर बुरा असर पड़ता है। प्रकृति के नेगेटिव ऊर्जा के प्रभाव के
कारण विचार ज्यादा चलने लगते हैं। अनियंत्रित मानसिक स्थिति में क्रोध के
शीघ्र आने की सम्भावनाएं बढ़ जाती है। नींद कुदरत का वरदान है। नींद से
ऊर्जा के क्षय की पूर्ति होती है। अन्तःश्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले
हारमोन्स संतुलित रहते हैं। शरीर की सभी कोशिकाएं तरोताजा हो जाती हैं।
यदि अनुचित आहार, चिन्ता या अन्य किसी भी कारण से नींद गहरी नहीं होती
है, तब कोशिकाएं ऊर्जा वान नहीं रहती। ऐसी स्थिति में भी क्रोध आने की
सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। किसी भी ज्ञात या अज्ञात कारण से यदि शरीर से
पित्त की वृद्धि हो जाती है, तब भी हारमोन्स असन्तुलित हो जाते हैं। यह
राजसिक आहार के कारण भी हो सकता है। नेगेटिव दृष्टिकोण के कारण भी पित्त
(एसिड) में वृद्धि हो सकती है। पित्त वृद्धि के कारण स्वभाव चिड़चिड़ा
होने या क्रोध आने की सम्भावना बढ़ जाती है। अधिक समय से अस्वस्थ्य रहने
से हाने वाली शारीरिक व मानसिक कमजोरी भी क्रोध आने का एक कारण बनती है।
मैं ही ठीक हूं। मेरी बात ही ठीक है। यह अपनी बात मनवाने की मानसिकता
क्रोध आने का कारण बनती है। जब हम दूसरों को जबरदस्ती कन्ट्रोल करना
चाहते हैं। लेकिन कन्ट्रोल करने में असफल होते हैं तब क्रोध आने की
सम्भावना रहती है। जब कोई झूठ बोलता है। इसने झूठ क्यों बोला? झूठ बोलने
वाले पर गुस्सा आता है। झूठ को सहन नहीं कर सकने पर क्रोध आता है। न्याय
न मिलने पर या अन्याय होने पर गुस्सा आता है। यदि व्यर्थ की टीका-
टिप्पणी पसन्द नहीं है। कोई व्यर्थ ही टीका-टिप्पणी करता है, तब उस पर
क्रोध आता है। कभी-कभी क्रोध ऐसे ही नहीं आता बल्कि हम पहले से ही
अन्दर-अन्दर सोचकर प्रोग्रामिंग कर देते हैं। फलां आदमी ऐसे ऐसे कहेगा,
तो मैं ऐसे ऐसे जवाब दूंगा। क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए
आध्यात्मिक और व्यवहारिक ज्ञान की बौद्धिक समझ के साथ साथ राजयोग के गहन
अभ्यास का द्विआयामी पुरुषार्थ अनिवार्य है। आध्यात्मिक व व्यवहारिक
बौद्धिक समझ:- इस विश्‍व नाटक में हर आत्मा का अपना अपना अविनाशी अभिनय
है। वह अपना पार्ट ड्रामानुसार ठीक प्ले कर रही है। उसका सहयोग देना, न
देना और अवरोध करना, वह इसमें भी स्वतन्त्र नहीं है। परतन्त्र परवश आत्मा
के साथ क्रोध की प्रतिक्रिया का क्या औचित्य? स्वयं की शक्तियों को पहचान
कर आत्मनिर्भरता में विश्‍वास करना चाहिए। अनावश्‍यक अपेक्षाओं को मन में
नहीं पालना चाहिए। अपने चिन्तन को श्रेष्‍ठ बनायें। चिन्ता वे ही करतें
है, जिनके जीवन में कोई परिस्थिति विशेष हो और जिन की गहरी समझ नहीं हो।
आध्यात्मिक व्यक्तित्व की धनी आत्माएं कभी चिन्ता नहीं करती अपितु वे तो
एकाग्र चिन्तन करती हैं। आध्यात्म के सैद्धान्तिक ज्ञान के मनन-मंथन से
मानसिक विक्षिप्तता हो नहीं सकती। शरीर की आयु और कर्मयोगी जीवन की परि
पक्वता के आधार पर नींद की आवश्‍यकता कम-ज्यादा होती है। आवश्‍यकता के
अनुसार नींद का औसतन समय 5 से 6 घंटे हो सकता है। औसतन समय जो भी हो
लेकिन एक बात का ध्यान रखना है कि नींद गहरी होनी चाहिए। इसके लिये काम
और विश्राम (नींद) दोनों का सन्तुलन रखना चाहिए। शरीरिक या बौद्धिक कार्य
की थकान के बाद गहरी नींद आ सकती है। नींद की जितनी गहराई बढ़ती है। उतनी
ही लम्बाई घटती है। सामान्यतः एक कर्मयोगी को सात्विक आहार के सेवन के
महत्व को समझ कर अपने आहार को सात्विक और सन्तुलित रखना चाहिए। ऐसे आहार
का परित्याग कर देना चहिए जो रासायनिक प्रक्रिया के बाद तेजाब (ऐसिड)
ज्यादा बनाता हो। आहार को सात्विक और सन्तुलित रख पित्त को बढ़ने नहीं
देना चाहिए। दृष्टिकोण सदा पाॅजिटिव ही रखना चाहिए। अशुभ (नेगेटिव) शुभ
का शत्रु न मानें। नेगेटिव तो पाॅजिटिव का अवरुद्ध है और कुछ नहीं।
नकारात्कता, सकारात्मकाता की अनुपस्थिति है। समय प्रति समय अपनी शारीरिक
जांच कराते रहना चाहिए। स्वयं की प्रकृति की पूरी समझ होना आवश्‍यक है।
स्वयं को प्रकृति से अलग समझ प्रकृति के साथ सद्भाव सामंजस्य का भाव रखना
चाहिए। व्यायाम आदि के द्वारा स्वयं को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखना
चाहिए। किसी एक ही बात को देखने समझने के अनेक दृष्टिकोण हो सकते हैं।
किसी हद तक हर आदमी अपनी बात को ठीक समझ कर ही अपने दृष्टिकोण बनाता है।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी दृष्टिकोण सदा ही ठीक या मान्य समझें जायें
इसलिए दृश्टिकोण को ठीक ठहराने की जिद्द ना करते हुए स्वयं को शान्त रखना
चाहिए। अपनी दृष्टि का कोण बदल समाधान की भाषा में सोचना चाहिए। यह याद
रखना चाहिए कि झूठ के पैर नहीं होते। झूठ अधिक समय तक चल नहीं सकता।
अन्तिम विजय सत्य की ही होती है। इस विश्‍व नाटक में अन्याय में भी कहीं
ना कहीं न्याय छिपा होता है। वह दिखाई न देने पर भी कहीं न कहीं मौजूद
रहता है। यह याद रखें कि ईश्‍वर के दरबार में देर हो सकती है लेकिन कभी
अन्धेर नहीं होती। सांच को आंच नहीं के सिद्धांत पर अटल रहना चाहिए। किसी
भी परिस्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं करने की आदत बना लेनी चाहिए।
परिस्थिति विशेष में न कोई क्रिया और न प्रतिक्रिया की साक्षीपन की
स्थिति के क्रोध आदि किसी भी मनोविकार पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
व्यवहार में आत्मीयता है, तो क्रोध की स्थिति ही पैदा नहीं होती। अपनेपन
की भावना रख आपस में एक दूसरे को ठीक ठीक समझना चाहिए। अनुमान, शंका,
संदेह से सदा दूर रहना चाहिए। पारस्परिक विचारों और भावनाओं का सम्प्रेशण
सही समय पर सही व्यक्ति के साथ होना चाहिए। व्यर्थ और नकारात्मक भावनाओं
को पनपनें ही नहीं देना चाहिए। किसी भी बात को ज्यादा गम्भीरता से नहीं
लेना चाहिए। बातों को हल्के रूप से लेकर उनका निरा-करण करना चाहिए।राजयोग
के अभ्यास द्वारा अपने चिन्तन को यथार्थ और सकारात्मक बनायें। स्वयं से
स्वयं की बातें करनी चाहिए। मैं कौन हूं? मेरा यथार्थ परिचय क्या है? मैं
किस स्थान पर हूं? मेरे कर्तव्य क्या-क्या हैं? मुझे करना क्या है? अपनी
महानताओं और सम्भावनाओं को याद करना चाहिए। अन्तर्मुखी होकर अपनी
आध्यात्म जगत की महानताओं के चित्रांकन द्वारा उन्हें यथार्थ रूप से
महसूस करना चाहिए। आत्म केन्द्रित हो अपनी आत्म ज्योति को अपने मस्तक
सिंहासक भृकुटि में देखने को अभ्यास करना। इस अभ्यास को प्रातः व सायं कम
से कम 6 महीने तक करना चाहिए। परमात्म ज्योति को देखने और उसके साथ
भावनात्मक रूप से (कम्बाइन्ड) एकाकार होने का अभ्यास करना। यह अभ्यास भी
प्रातः व सायं कम से कम 6 महीने तक करना चाहिए। आत्मा के मूल गुण
पवित्रता का चिन्तन और अनुभूति का लक्ष्य रखकर राजयोग का अभ्यास करना।
बुद्धि रूपी नेत्र से देखना कि पवित्रता की सफेद किरणें मेरे सिर के ऊपर
से उतर रही हैं और मैं आत्मा शीतलता का अनुभव कर रही/रहा हूं। कम से कम 6
महीने दिन में 4 बार अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार यथार्थ बौद्धिक समझ और
राजयोग के विधि पूर्वक अभ्यास के द्वारा क्रोध पर सम्पूर्ण विजय सम्भव
है।
समझ का होना जरूरी है। बिना गहरी समझ के किसी भी दोष (विकार) पर सम्पूर्ण
विजय प्राप्त करना सहज सम्भव नहीं होता। क्रोध विकार पर सम्पूर्ण विजय
प्राप्त करने के लिए हमें यह जानना होगा कि क्रोध क्या है? क्रोध पर विजय
पाना क्यों जरूरी है? क्रोध के आने के कारण क्या-क्या हैं। क्रोध से होने
वाली हानियां क्या-क्या है,? क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए उपाय
क्या-क्या हैं?
क्रोध क्या है?
क्रोध और कुछ नहीं अपितु एक नकारात्मक भाव है। मानसिक पटल पर उभरी हुई
किसी क्रिया की यह आक्रामक प्रतिक्रिया मात्र है। इस प्रतिक्रिया के कारण
शरीर के समूचे स्नायविक तन्त्र (नर्वस सिस्टम) में आक्रामक भाव की तरंगें
पैदा हो जाती हैं। यह प्रतिक्रिया अपने स्व के अस्तित्व की पूर्णतः
विस्मृति की अवस्था में होती है। यह पूरी तरह बहिर्मुखी चेतना होती है।
बहिर्मुखी वृत्ति ंिहंसात्मक होती है। बहिर्मुखी आत्म से अंहिसा की आशा
नहीं की जा सकती। क्रोध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा ही है। इस
मानसिक अवस्था में आत्मा की बुद्धि किसी घटना, परिस्थिति, व्यक्ति या
विचार से अत्यन्त सम्बन्द्ध हो जाती है। इसलिए बुद्धि की निर्णय शक्ति
समाप्त हो जाती है। शरीर की सभी मुद्राऐं हिंसात्मक अर्थात् आक्रामक हो
जाती हैं। मनोविज्ञान के अनुसार यह प्रतिक्रिया (क्रोध) अपनी तीव्रता या
मंदता की अवस्था की हो सकती है।
क्रोध से हानियां
क्रोध के प्रभाव से शरीर की अन्तःश्रावी प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है।
क्रोध से रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है। हार्ट एटैक, सिर दर्द, कमर
दर्द, मानसिक असन्तुलन जैसी अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
परिवार में कलह-क्लेश मारपीट होने से नारकीय वातावरण हो जाता है। सम्बन्ध
विच्छेद हो जाते हैं। जीवन संघर्षों से भर जाता है। व्यक्ति का
व्यक्तित्व (चरित्र) खराब हो जाता है। क्रोध से शारीरिक व मानसिक रूप से
अनेक प्रकार की हानियां ही हानियां हैं।
क्रोध के कारण
क्रोध के कारण क्या-क्या हो सकते हैं? जैसेः- जब कोई व्यक्ति इच्छा
पूर्ति में बाधा डाले या असहयोग करे, तब होने वाली प्रतिक्रिया ही क्रोध
का रूप होती है। यदि कोई व्यक्ति अधिक समय तक चिन्ताग्रस्त रहे, तब भी वह
मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाता है। इस के कारण छोटी-छोटी बातों में
क्रोध आता है। आहार का हमारे विचारों पर बहुत असर पड़ता है। जैसा आहार,
वैसा विचार। तामसिक और राजसिक आहार का सेवन करने से शारीरिक रासायनों का
सन्तुलन बिगड़ता है। हारमोन्स का प्रभाव असन्तुलित हो जाता है। इसका
मस्तिश्क पर बुरा असर पड़ता है। प्रकृति के नेगेटिव ऊर्जा के प्रभाव के
कारण विचार ज्यादा चलने लगते हैं। अनियंत्रित मानसिक स्थिति में क्रोध के
शीघ्र आने की सम्भावनाएं बढ़ जाती है। नींद कुदरत का वरदान है। नींद से
ऊर्जा के क्षय की पूर्ति होती है। अन्तःश्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले
हारमोन्स संतुलित रहते हैं। शरीर की सभी कोशिकाएं तरोताजा हो जाती हैं।
यदि अनुचित आहार, चिन्ता या अन्य किसी भी कारण से नींद गहरी नहीं होती
है, तब कोशिकाएं ऊर्जा वान नहीं रहती। ऐसी स्थिति में भी क्रोध आने की
सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। किसी भी ज्ञात या अज्ञात कारण से यदि शरीर से
पित्त की वृद्धि हो जाती है, तब भी हारमोन्स असन्तुलित हो जाते हैं। यह
राजसिक आहार के कारण भी हो सकता है। नेगेटिव दृष्टिकोण के कारण भी पित्त
(एसिड) में वृद्धि हो सकती है। पित्त वृद्धि के कारण स्वभाव चिड़चिड़ा
होने या क्रोध आने की सम्भावना बढ़ जाती है। अधिक समय से अस्वस्थ्य रहने
से हाने वाली शारीरिक व मानसिक कमजोरी भी क्रोध आने का एक कारण बनती है।
मैं ही ठीक हूं। मेरी बात ही ठीक है। यह अपनी बात मनवाने की मानसिकता
क्रोध आने का कारण बनती है। जब हम दूसरों को जबरदस्ती कन्ट्रोल करना
चाहते हैं। लेकिन कन्ट्रोल करने में असफल होते हैं तब क्रोध आने की
सम्भावना रहती है। जब कोई झूठ बोलता है। इसने झूठ क्यों बोला? झूठ बोलने
वाले पर गुस्सा आता है। झूठ को सहन नहीं कर सकने पर क्रोध आता है। न्याय
न मिलने पर या अन्याय होने पर गुस्सा आता है। यदि व्यर्थ की टीका-
टिप्पणी पसन्द नहीं है। कोई व्यर्थ ही टीका-टिप्पणी करता है, तब उस पर
क्रोध आता है। कभी-कभी क्रोध ऐसे ही नहीं आता बल्कि हम पहले से ही
अन्दर-अन्दर सोचकर प्रोग्रामिंग कर देते हैं। फलां आदमी ऐसे ऐसे कहेगा,
तो मैं ऐसे ऐसे जवाब दूंगा। क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए
आध्यात्मिक और व्यवहारिक ज्ञान की बौद्धिक समझ के साथ साथ राजयोग के गहन
अभ्यास का द्विआयामी पुरुषार्थ अनिवार्य है। आध्यात्मिक व व्यवहारिक
बौद्धिक समझ:- इस विश्‍व नाटक में हर आत्मा का अपना अपना अविनाशी अभिनय
है। वह अपना पार्ट ड्रामानुसार ठीक प्ले कर रही है। उसका सहयोग देना, न
देना और अवरोध करना, वह इसमें भी स्वतन्त्र नहीं है। परतन्त्र परवश आत्मा
के साथ क्रोध की प्रतिक्रिया का क्या औचित्य? स्वयं की शक्तियों को पहचान
कर आत्मनिर्भरता में विश्‍वास करना चाहिए। अनावश्‍यक अपेक्षाओं को मन में
नहीं पालना चाहिए। अपने चिन्तन को श्रेष्‍ठ बनायें। चिन्ता वे ही करतें
है, जिनके जीवन में कोई परिस्थिति विशेष हो और जिन की गहरी समझ नहीं हो।
आध्यात्मिक व्यक्तित्व की धनी आत्माएं कभी चिन्ता नहीं करती अपितु वे तो
एकाग्र चिन्तन करती हैं। आध्यात्म के सैद्धान्तिक ज्ञान के मनन-मंथन से
मानसिक विक्षिप्तता हो नहीं सकती। शरीर की आयु और कर्मयोगी जीवन की परि
पक्वता के आधार पर नींद की आवश्‍यकता कम-ज्यादा होती है। आवश्‍यकता के
अनुसार नींद का औसतन समय 5 से 6 घंटे हो सकता है। औसतन समय जो भी हो
लेकिन एक बात का ध्यान रखना है कि नींद गहरी होनी चाहिए। इसके लिये काम
और विश्राम (नींद) दोनों का सन्तुलन रखना चाहिए। शरीरिक या बौद्धिक कार्य
की थकान के बाद गहरी नींद आ सकती है। नींद की जितनी गहराई बढ़ती है। उतनी
ही लम्बाई घटती है। सामान्यतः एक कर्मयोगी को सात्विक आहार के सेवन के
महत्व को समझ कर अपने आहार को सात्विक और सन्तुलित रखना चाहिए। ऐसे आहार
का परित्याग कर देना चहिए जो रासायनिक प्रक्रिया के बाद तेजाब (ऐसिड)
ज्यादा बनाता हो। आहार को सात्विक और सन्तुलित रख पित्त को बढ़ने नहीं
देना चाहिए। दृष्टिकोण सदा पाॅजिटिव ही रखना चाहिए। अशुभ (नेगेटिव) शुभ
का शत्रु न मानें। नेगेटिव तो पाॅजिटिव का अवरुद्ध है और कुछ नहीं।
नकारात्कता, सकारात्मकाता की अनुपस्थिति है। समय प्रति समय अपनी शारीरिक
जांच कराते रहना चाहिए। स्वयं की प्रकृति की पूरी समझ होना आवश्‍यक है।
स्वयं को प्रकृति से अलग समझ प्रकृति के साथ सद्भाव सामंजस्य का भाव रखना
चाहिए। व्यायाम आदि के द्वारा स्वयं को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखना
चाहिए। किसी एक ही बात को देखने समझने के अनेक दृष्टिकोण हो सकते हैं।
किसी हद तक हर आदमी अपनी बात को ठीक समझ कर ही अपने दृष्टिकोण बनाता है।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी दृष्टिकोण सदा ही ठीक या मान्य समझें जायें
इसलिए दृश्टिकोण को ठीक ठहराने की जिद्द ना करते हुए स्वयं को शान्त रखना
चाहिए। अपनी दृष्टि का कोण बदल समाधान की भाषा में सोचना चाहिए। यह याद
रखना चाहिए कि झूठ के पैर नहीं होते। झूठ अधिक समय तक चल नहीं सकता।
अन्तिम विजय सत्य की ही होती है। इस विश्‍व नाटक में अन्याय में भी कहीं
ना कहीं न्याय छिपा होता है। वह दिखाई न देने पर भी कहीं न कहीं मौजूद
रहता है। यह याद रखें कि ईश्‍वर के दरबार में देर हो सकती है लेकिन कभी
अन्धेर नहीं होती। सांच को आंच नहीं के सिद्धांत पर अटल रहना चाहिए। किसी
भी परिस्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं करने की आदत बना लेनी चाहिए।
परिस्थिति विशेष में न कोई क्रिया और न प्रतिक्रिया की साक्षीपन की
स्थिति के क्रोध आदि किसी भी मनोविकार पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
व्यवहार में आत्मीयता है, तो क्रोध की स्थिति ही पैदा नहीं होती। अपनेपन
की भावना रख आपस में एक दूसरे को ठीक ठीक समझना चाहिए। अनुमान, शंका,
संदेह से सदा दूर रहना चाहिए। पारस्परिक विचारों और भावनाओं का सम्प्रेशण
सही समय पर सही व्यक्ति के साथ होना चाहिए। व्यर्थ और नकारात्मक भावनाओं
को पनपनें ही नहीं देना चाहिए। किसी भी बात को ज्यादा गम्भीरता से नहीं
लेना चाहिए। बातों को हल्के रूप से लेकर उनका निरा-करण करना चाहिए।राजयोग
के अभ्यास द्वारा अपने चिन्तन को यथार्थ और सकारात्मक बनायें। स्वयं से
स्वयं की बातें करनी चाहिए। मैं कौन हूं? मेरा यथार्थ परिचय क्या है? मैं
किस स्थान पर हूं? मेरे कर्तव्य क्या-क्या हैं? मुझे करना क्या है? अपनी
महानताओं और सम्भावनाओं को याद करना चाहिए। अन्तर्मुखी होकर अपनी
आध्यात्म जगत की महानताओं के चित्रांकन द्वारा उन्हें यथार्थ रूप से
महसूस करना चाहिए। आत्म केन्द्रित हो अपनी आत्म ज्योति को अपने मस्तक
सिंहासक भृकुटि में देखने को अभ्यास करना। इस अभ्यास को प्रातः व सायं कम
से कम 6 महीने तक करना चाहिए। परमात्म ज्योति को देखने और उसके साथ
भावनात्मक रूप से (कम्बाइन्ड) एकाकार होने का अभ्यास करना। यह अभ्यास भी
प्रातः व सायं कम से कम 6 महीने तक करना चाहिए। आत्मा के मूल गुण
पवित्रता का चिन्तन और अनुभूति का लक्ष्य रखकर राजयोग का अभ्यास करना।
बुद्धि रूपी नेत्र से देखना कि पवित्रता की सफेद किरणें मेरे सिर के ऊपर
से उतर रही हैं और मैं आत्मा शीतलता का अनुभव कर रही/रहा हूं। कम से कम 6
महीने दिन में 4 बार अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार यथार्थ बौद्धिक समझ और
राजयोग के विधि पूर्वक अभ्यास के द्वारा क्रोध पर सम्पूर्ण विजय सम्भव
है।

Monday, February 21, 2011

परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है

हम परमात्मा को गाली देते हैं!!!

परमात्मा यानी सर्व आत्माओं में परम | जिनको हम कहते है की ये हर जगह और हर जीव में विद्यमान है ! सूअर कुत्ते बिल्ली गाय गधे में सब जगह मौजूद है ! एक दुष्ट आदमी में और एक क्रूर आदमी में भी परमात्मा मौजूद है ! दरअसल ये कहना परमात्मा को सबसे बड़ी गाली देना है ! परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है ! अगर एक क्रूर आदमी के अन्दर परमात्मा है तो वो क्यों क्रूर होता है ?क्या परमात्मा के गुणों में क्रूरता का भी एक गुण है? एक व्यक्ति जो किसी को बेवजह मौत के घाट उतारता है या जघन्य अपराध करता है, तो उसके अन्दर विद्यमान परमात्मा कहाँ सोता है ? परमात्मा के गुण कहाँ रहते हैं! जैसे अगर एक इत्र की शीशी खुली छोड़ दी जाए तो उसकी खुशबु से पता चलेगा की इत्र की खुशबु है ! ठीक वैसे ही परमत्मा के गुण हैं शांति, दया, प्रेम, करुना, ज्ञान,अगर क्रूर व्यक्ति में परमात्मा का वास है तो वो गुण क्यों नहीं ! परमात्मा अगर सबमे विद्यमान है तो अवतरित होने की क्या आवश्यकता है जबकि सबमे पहले से मोजूद हैं? अवतार लेना अर्थात दूसरी जगह से आना, दूसरी जगह से आना अर्थात यहाँ ना होना !

हम परमात्मा की संतान हैं उस नाते उनके गुण हमारे अन्दर हो सकते हैं पर परमात्मा नहीं !शाश्त्रों में हैं "आत्मा सो परमात्मा" जिसका हमने गलत अर्थ लगाया की आत्मा ही परमात्मा है| यहाँ पर आत्मा और परमात्मा के रूप की बात कही गयी है "आत्मा सो परमात्मा" का तात्पर्य है जैसा रूप और आकर आत्मा का है वैसा ही रूप और आकार परमात्मा का है ! अत: परमात्मा को सर्व व्यापी कहना अर्थात गाली देना है!

परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है !

हम परमात्मा को गाली देते हैं!!!

परमात्मा यानी सर्व आत्माओं में परम | जिनको हम कहते है की ये हर जगह और हर जीव में विद्यमान है ! सूअर कुत्ते बिल्ली गाय गधे में सब जगह मौजूद है ! एक दुष्ट आदमी में और एक क्रूर आदमी में भी परमात्मा मौजूद है ! दरअसल ये कहना परमात्मा को सबसे बड़ी गाली देना है ! परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है ! अगर एक क्रूर आदमी के अन्दर परमात्मा है तो वो क्यों क्रूर होता है ?क्या परमात्मा के गुणों में क्रूरता का भी एक गुण है? एक व्यक्ति जो किसी को बेवजह मौत के घाट उतारता है या जघन्य अपराध करता है, तो उसके अन्दर विद्यमान परमात्मा कहाँ सोता है ? परमात्मा के गुण कहाँ रहते हैं! जैसे अगर एक इत्र की शीशी खुली छोड़ दी जाए तो उसकी खुशबु से पता चलेगा की इत्र की खुशबु है ! ठीक वैसे ही परमत्मा के गुण हैं शांति, दया, प्रेम, करुना, ज्ञान,अगर क्रूर व्यक्ति में परमात्मा का वास है तो वो गुण क्यों नहीं ! परमात्मा अगर सबमे विद्यमान है तो अवतरित होने की क्या आवश्यकता है जबकि सबमे पहले से मोजूद हैं? अवतार लेना अर्थात दूसरी जगह से आना, दूसरी जगह से आना अर्थात यहाँ ना होना !

हम परमात्मा की संतान हैं उस नाते उनके गुण हमारे अन्दर हो सकते हैं पर परमात्मा नहीं !शाश्त्रों में हैं "आत्मा सो परमात्मा" जिसका हमने गलत अर्थ लगाया की आत्मा ही परमात्मा है| यहाँ पर आत्मा और परमात्मा के रूप की बात कही गयी है "आत्मा सो परमात्मा" का तात्पर्य है जैसा रूप और आकर आत्मा का है वैसा ही रूप और आकार परमात्मा का है ! अत: परमात्मा को सर्व व्यापी कहना अर्थात गाली देना है!

परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है

“परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान
सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।”
इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय
विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित
कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस
संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं।
यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को
आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक
संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 135 देशों में 4,700 से अधिक शाखाएँ हैं। इन
शाखाओं में 9 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण
करते हैं।--
संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता
ब्रह्मा के नाम से जानते हैं।
दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से
ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के
सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की
सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें
ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद
धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा।
उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी
माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन्
1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में
आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने
एक संस्‍था का रूप धारण किया।
इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार
कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान
हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी
सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था
में केवल महिलाएँ ही थी।
बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग
आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित
सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक
संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया
गया।
इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और
अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।

Saturday, February 19, 2011

प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।

परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़ विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।



रामेश्वरम्‌ में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती।



आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।

Sunday, February 13, 2011

हम आत्मा-अभिमानी फरिश्ते हैं |

१. हम आत्मायें, प्राणेश्वर बाप से प्राण दान लेने वाले सतोप्रधान फरिश्ते हैं |
२. हम आत्मा-अभिमानी फरिश्ते हैं |
३. हम आत्मायें, राज योगी बुद्धि योगी फरिश्ते हैं |
४. हम आत्मायें, पारस बुद्धि मास्टर पारस नाथ हैं |
५. हम आत्मायें, निश्चय बुद्धि सर्व श्रेष्ठ तकदीरवान वर्से के अधिकारी फरिश्ते हैं |
६. हम आत्मायें, ज्ञान स्वरूप, याद स्वरूप, धारणा स्वरूप स्वदर्शनचक्रधारी फरिश्ते हैं |
७. हम आत्मायें, विघ्नों के तूफ़ानों को पार करने वाले निडर फरिश्ते हैं |
८. हम आत्मायें, बेहद बाप के बेहद बच्चे बेहद वर्से के वारिस हैं |
९. हम आत्मायें, अच्छी को धारण करने वाले हैं, नाही अच्छी से प्रभावित होने वाले हैं |

ड्रिल:

मैं मास्टर बीज रूप हूँ…….

स्टडी पॉइंट:

१. प्राण दान मिलना माना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना |
२. बाबा ज्ञान का सागर है, पतित पावन है, प्राणेश्वर है, रूहानी सर्जन है और अविनाशी सर्जन है |
३. टोटल विनाश माना प्रलय माना कोई नही रहे |
४. हंगामा और तूफान के समय उन्नति नही हो सकेगी |

Friday, February 11, 2011

परमात्मा के साथ हमारेसंबंध अटूट कैसेरख सकता है?

हम निरंतर, अटूट है, और unshakeable सुप्रीम साथ हमारे संबंध कैसे रख सकता है? मैं हम सब यकीन भगवान न सिर्फ जानने लेकिन उस रिश्ते को एक गहरे अनुभव कर रही है, और भी खुद को शांतिपूर्ण प्राणी के रूप में अनुभव की खुशी महसूस करते हैं. आध्यात्मिक प्राणी इस भौतिक माध्यम से हमारी भूमिकाएं निभाने के रूप में, हम अपने व्यक्तित्व और खुशी की भावनाओं और क्या हम ज्ञान की समझ की खुशी व्यक्त करते हैं. मुझे यकीन है कि सब कर रहा हूँ की हमें पहचान लिया है जो कि दुनिया में सबसे कठिन बात माना जाता है. यह महान चर्चा का विषय है, लेकिन नहीं, कई और पहचान के उच्चतम पिताजी, हमारे सुप्रीम जनक है, और उसके साथ हमारे रिश्ते का एहसास कर रहे हैं. हम जानते हैं कि आत्मा और परमात्मा अनन्त हैं, और इसलिए उसके साथ हमारे संबंध भी अनन्त. हालांकि, इस जानकारी के लिए हम सबसे भूल जाता है.
भक्ति के पथ पर, भारत या कहीं और में, लोगों को भगवान में विश्वास की एक बहुत कुछ है, लेकिन हम न तो सच है कि हम परमात्मा के साथ हमारे संबंधों के और न ही मानव आत्माओं हैं के प्रति जागरूक कर रहे हैं. इसलिए, हम मुश्किल से लाभ हम उस रिश्ते से प्राप्त कर सकता अनुभव. हम लगातार याद है और सुप्रीम करने के लिए प्रार्थना और भक्ति के रास्ते पर उसके पास से भीख माँगती हूँ. हालांकि, जब हम सीखना हम कौन हैं, जो परमेश्वर है, और गहरा रिश्ता हम एक दूसरे के साथ है, हम भगवान के साथ संवाद और भीख रोकने के लिए शुरू. हम भगवान के वारिस बनने के लिए और सुप्रीम पिता से विरासत के लिए हमारे अधिकार समझते हैं, बस के रूप में हम अपनी शारीरिक माता पिता से एक भाग प्राप्त करते हैं.
सबसे प्यारी पिताजी, सुप्रीम पिता: भारत में, बहुत प्यारी शब्दों को सुप्रीम पता किया जाता है. के रूप में वह सभी आत्माओं के पिता है, वह केवल bestows जो कि वह प्रदान कर सकते हैं. वह सब खजाने के bestower है, जो आत्मा को पाने की आकांक्षा है: निरंतर शांति, सुख निरंतर, निरंतर रचनात्मकता पल तुम्हें पता है कि तुम एक अपने आप को शारीरिक पोशाक के माध्यम से व्यक्त किया जा रहा आध्यात्मिक आदि का अमूल्य खजाना, एक चिराग हो जाता है और रोशनी अंधेरे dispels. आत्मा शरीर से अलग से मौजूद है और यह एक शरीर है यह जीवन में आत्मा 'के रूप में' जीव आत्म 'या जाना जाता है जब पाई. हम और अधिक किया जा रहा भौतिक के प्रति जागरूक हो गए हैं और इस प्रकार हमारे असली आत्म, आध्यात्मिक जा रहा है भूल गए,
जब हम इस ज्ञान प्राप्त करते हैं, हम अपने भौतिक शरीर से detaching में थोड़ी मेहनत, यह प्रयास हमारे लिए नए रूप में हम यह हर दिन है जब हम सोने के लिए जाना नहीं है. जब 'मैं' आत्मा थक गए हो और चाहते हैं कि कार्रवाई करने के नहीं, मैं खुद को अलग कर उस टुकड़ी के लिए सो कहा जा रहा है. वर्तमान वहाँ भी आप अभी भी कर रहे हैं, तुम नींद में प्रेक्षक कर रहे हैं. , या 'मैं एक बहुत कुछ सपना देखा था' जब आप अगली सुबह हो, तो आप अपने अनुभव को साझा "मैं एक बहुत ताज़ा सोना पड़ा. तो जो पर्यवेक्षक था? यह आत्म, आत्मा थी. मेरे अपने सपने और क्रिया 'मैं' को देख रहा था, और अपने कार्यों के परिणाम का अनुभव.
हम अपने जन्मदिन का जश्न मनाने - भौतिक रूप के जन्मदिन - लेकिन इस से पहले जहां 'मैं' था? मन में यह असर है, हम याद दिला रहे हैं कि सभी मनुष्यों इस दुनिया में उतरा. हम के बारे में धार्मिक के लिए अपने संदेश देने के लिए उतरते संस्थापकों सुना करते थे, लेकिन हम इसकी परवाह लगता है कि क्या हम से भी कहीं और कभी नहीं आए. अब हम ज्ञान है कि हम सब मौन की मीठी घर के हैं प्राप्त करते हैं. हम सब जगह से नीचे आ गए हैं जहां हमारी आध्यात्मिक पिता, सुप्रीम पिता - केवल एक है जो हमेशा निराकार है - बसता है. जब हम उसके साथ बातचीत करने की इच्छा वह हमें बताता है आत्मा के प्रति सजग होने के लिए फिर से और उसके साथ हमारे रिश्ते के बारे में सोच.
भारत में गीता की व्याख्या शास्त्र Whilst, सबसे दार्शनिकों, योगियों, और विद्वानों, परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते का उल्लेख. वहाँ एक अद्भुत बोली जहां भगवान को सुप्रीम माँ और पिताजी, भाई, गुरू, और गुरु होने के लिए कहा है. हम सुप्रीम साथ सभी संबंध स्थापित कर सकते प्रदान की है, हम नाम और शारीरिक पोशाक के रूप ऊपर उठ कर रहे हैं. यह तभी संभव है, जैसा कि हम यहाँ मौन में, अभ्यास. हम बाह्य से वापस लेने, हालाँकि हम कंपन के माध्यम से एक दूसरे के साथ संवाद जारी रखने के लिए, यह जानकर कि हम आत्मा आत्मा से संवाद स्थापित कर रहे हैं. यह हमें की अनुमति देता है एक दूसरे की मदद जब हम एक साथ बैठने के लिए सुप्रीम और प्रेम की शक्ति, हमारी निकटता अनुभव है, और वह शांति bestows. इस प्रयास में, हम समझते हैं कि हम भगवान उनके बच्चे होने से इन गुणों का वारिस.
उसके गुण सागर की तरह हैं और हमें लगता है कि हालांकि हम अलग अलग संस्थाओं हैं, हम भी मानव आत्माओं के रूप में हम में है कि देवत्व का एक हिस्सा है शुरू करते हैं. पिता की तरह बेटे की तरह है, - हम खुद को शांतिपूर्ण, प्यार और शांति, प्रेम, और आनन्द के महासागर में बच्चों के रूप में आनंदित होने के रूप में अनुभव. मैं इस चेतना बनाए रखने, यह दिल से सराहना कर सकते हैं, और सुप्रीम होने के नाते के साथ मेरा अनुभव संवाद.
हम सुप्रीम पिता को बाहर बुला किया जाता है. भारत में हम 'बाबा' या पिता के लिए 'पिताजी' कहते हैं. मंदिरों जहां भगवान प्रकाश के रूप में पूजा जाता है, शिव है, लोग उसे शिव बाबा कहते हैं. भारत में बारह विशेष स्थानों, बनारस और गुजरात, जहां भगवान प्रकाश के रूप में पूजा जाता है सहित एक पत्थर छवि या शिवलिंग के रूप में. यहाँ, हम 'शिव बाबा के रूप में भगवान का पता, और यह बहुत मिठास के साथ कहा है: "हे मीठा पिता, हे बाबा! मेरे जीवन में एक अद्भुत बात क्या हो करने के लिए! सबसे पहले अपने आप को समझने के लिए और फिर तुम, और पता है कि मैं निकट तुम से संबंधित हूँ, प्यार, शांति और आनंद के महासागर. अपने बच्चे के रूप में, मैं अपने उत्तराधिकारी हूँ, मैं एक भाग के रूप में इन गुणों को प्राप्त है और बहुत ही शांत, प्यार और आनंदमय हो जाते हैं ".
जैसा कि आप इन शब्दों पर, लगता है कि उन्हें अनुभव कोशिश करते हैं और आपको पता चल जाएगा कि यह अपने सच्चे आत्म और असली स्वभाव है, इन स्वयं के वास्तविक गुण हैं. यह uncovering जो कि अज्ञान से कवर किया गया है की एक प्रक्रिया है. ज्ञान और ज्ञान प्रकाश है, अज्ञान अंधकार है. प्रकाश दीपक और जागरूक हो सकता है, एक जा रहा आध्यात्मिक रूप में खुद के बारे में सोच, तुम सुप्रीम के हैं और आप छवि और पवित्रता, शांति, प्रेम, आनंद और ज्ञान का अवतार हो जाएगा. यदि आप इस जागरूकता बनाए रख सकते हैं, अनुभव की तीव्रता में वृद्धि जारी है और तुम बहुत शक्तिशाली अंदर हो जाएगा. यह कुछ नया, सुंदर, और rediscover सार्थक हो जाएगा. आप इस बनना चाहते हैं जाएगा. आप इसे सराहना करते हैं क्योंकि यह है कि हम पहले क्या थे और हम खो क्या शुरू करते हैं. जब हम उस रूप में थे, यह हमारे लिए स्वर्ग था, जब हम इसे खो दिया है, हम भी स्वर्ग खो दिया है.
यह एक योगी के रूप में 50 वर्षों के अपने अनुभव है. मैं ब्रह्मा बंबई में कुमारियां राज योग केंद्र में आने के लिए ध्यान करना सीखो. 'मैं एक शुद्ध और शांतिपूर्ण आत्मा हूँ और मैं सुप्रीम पिता के हैं:' मेरा एक छात्र के रूप चौथे दिन पर, मैं तो बस होने के विचार से बहुत गहरा अनुभव था. बस यह मेरे मन में दो बार या तीन बार दोहराने से, मैं अनुभव में चला गया. यह आत्म और ईश्वर प्राप्ति का एक बहुत ही सूक्ष्म और दिव्य अनुभव था. मैं इस दुनिया से परे पूरी तरह से किया गया था. वहाँ आनंदित और सकारात्मक होने के रूप में एक पूर्ण, अपने सच्चे आत्म की प्राप्ति के लिए जागरण भीतरी था.
वर्ष 1959 था, और मैं एक ही वर्ष में मधुबन में आने का फैसला किया. जब मैं जुलाई में आया था, मैं बैठक ब्रह्मा बाबा का सौभाग्य मिला. कोई शब्द शुरू में है कि पहली बैठक में बात की थी, मैं सिर्फ उसके सामने चुप्पी में बैठ गया. मैं एक ही अनुभव है कि मैं अपने चौथे दिन इस ज्ञान में पड़ा था. मैं ब्रह्मा बाबा के माथे पर एक प्रकाश के उज्ज्वल चमक को देखा और मुझे लगा कि मैं जा रहा भौतिक wasn'ta, यह था जैसे कि मैं प्रकाश की एक पोशाक थी. वह एक देवदूत की तरह लग रहा था.
यह मेरे जीवन की सबसे मूल्यवान अनुभव था. मैं सुप्रीम उपस्थिति कल्पना कर रहा था. इस आध्यात्मिक आरोप लगाया है कि यह बाहर लाया मुझे में सबसे अच्छा तो पूरे माहौल बना दिया. इसी तरह का अनुभव हो सकता है जब हम एक चर्च, या मंदिर या एक जगह है जहाँ प्रकृति शुद्ध करने के लिए जाओ, अपने स्वयं के वास्तविक स्वरूप उभर रहे हैं और एक बहुत गहरा प्रभाव हो सकता है. मौन के उन क्षणों के दौरान, मेरे दिल गहरी शांति और आनंद महसूस किया. मैं तो तय है कि हर एक मनुष्य की आत्मा इस अनुभव की जरूरत है. अगर हम सब यह अनुभव किया है, जो विश्व की सभी समस्याओं का हल हो सकता है, अगर हम इस अनुभव से रह सकता है, वहाँ कोई विवाद नहीं या दु: ख होगा.
यह मुश्किल के लिए ध्यान नहीं है. शारीरिक ऊपर उठो और सुप्रीम के साथ एक बहुत स्पष्ट संचार किया है. हम सभी के लिए उपयोग किया है कि हमारे मन और बुद्धि, और फिर बाद में हमारे व्यक्तित्व के भावनात्मक भाग जोड़ना है. हम कंपन के माध्यम से संवाद और अंतर्ज्ञान या 'touchings' के माध्यम से इस प्रत्यक्ष मार्गदर्शन के अनुभव है. जब हम उसके साथ संवाद स्थापित करने में रुचि बनाए रखने के लिए, परमेश्वर और लाभ के मान्यता प्राप्त से उसे अपने मन में स्पष्ट हो गया है.
हमारे सांसारिक बातचीत में, हम हमेशा एक व्यक्ति जो हमारी मदद और हमें देने के लिए हम क्या जरूरत है सकते हैं करने के लिए लग रही हो. हालांकि हम सब कुछ था (शारीरिक), वहाँ कोई नहीं है जो हमें दे क्या आध्यात्मिक की जरूरत थी सकता था. केवल सुप्रीम पिता इस जरूरत को पूरा कर सकते हैं. हम समझते हैं कि हम डर में भगवान नहीं करना चाहिए लग रहे हैं, जैसा कि हम हमारे जीवन भर सीखा है. भगवान कहते हैं, अगर आप मुझे डर तुम मेरे पास कभी नहीं आ सकता है. है भगवान के लिए प्यार करता हूँ, अपने आप को प्यार और सभी को प्यार, यह ध्यान का राज है. यह हमारे मन गाइड स्वयं, अन्य आत्माओं के सकारात्मक गुणों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, और सुप्रीम होने के नाते.
ध्यान में, हम से बचने के लिए क्या हम अपनी प्रार्थना में कर रहे थे है. मैं दुनिया के बाकी के बारे में नहीं पता, लेकिन जब हम भारत में प्रार्थना, हम भगवान इतनी प्रशंसा, 'उच्च, यहोवा के यहोवा पर सबसे ज्यादा' लेकिन, के रूप में स्वयं 'कम पापियों के सबसे कम' को देखें . यही कारण है कि हम ईश्वर से दूर बने रहे हैं और हमारे परम पिता के साथ एक निकट संबंध का लाभ लेने में असमर्थ रहा. भगवान के डर के बजाय, हम अपने व्यक्तिगत, आध्यात्मिक रिश्ते के बारे में पता होना चाहिए - शाश्वत रिश्ते - और हमारे भीतर बच्चा उभरेगा.
हर कोई कहता है कि हम हम में बच्चे को भूल नहीं है, लेकिन चाहिए, वयस्कों के रूप में हम ऐसा कर रहे हैं शरीर के प्रति सजग है कि हम मुश्किल से अपने आप को बच्चों के रूप में कल्पना कर सकते हैं. सबसे आसान तरीका है बाहर हम में बच्चे को लाने के लिए रास्ता खुद को परमात्मा के आध्यात्मिक बच्चा होने के लिए विचार है. यह सुप्रीम और हमारे बीच एक अटूट संबंध बना होगा. कैसे एक बच्चे और माता पिता और उपाध्यक्ष का दिल, दिमाग में अनुपस्थित सकते प्रतिकूल रहेगा? भगवान कहते हैं, "यह रिश्ता बशर्ते आप मेरे योग्य संतान होने का अनुभव किया जा सकता", पात्रता उनके मार्गदर्शन का पालन करके आता है.
आप जब भी ध्यान करने के लिए, पहले लगता है कि तुम अपने आप को और दुनिया के लिए बहुत ही सुखद और उपयोगी कुछ करने जा रहे हैं - यह आपके चेहरे पर एक मुस्कान लाना होगा. जब आप कुछ अच्छा करते हैं आप मुस्कान, और मुस्कान अपने सिर पर नकारात्मकता का बोझ हटा, तुम प्रकाश और ताज़ा हो गया है. जब भी आप किसी से मुलाकात की महान, तुम्हें अच्छा लगता है और एक तुम से मिलने जा रहे हैं और सबसे बड़ी उच्चतम किया जा रहा है, भगवान है.
अपने पिता और माँ और तुम दोनों को महानता और निकटता का अनुभव करेंगे के रूप में उसके बारे में सोचो. एक बच्चे को अपने माता पिता के पास होना चाहता है. भगवान कहते हैं, "मेरी प्यारी बच्चों, जबकि इस दुनिया में अपनी भूमिका निभा आप अच्छा काम किया हो सकता है या नहीं इतनी अच्छी बातें. आप भी बुरा काम किया हो सकता है लेकिन चिंता मत करो. . वह तुम्हें अपने बच्चों और कोई बात नहीं तुम क्या कर रहे हो, तुम मेरी हो "के लिए हमें स्वीकार करने के रूप में हम कर रहे हैं चाहता है. हालांकि वह तो कहते हैं, क्या हम यह करने के लिए तैयार "अब से, आत्मा के प्रति सजग रहने और मेरे साथ जुड़ा हुआ है ताकि तुम मुझे पसंद हो गया है. होगा", तो आप यह करना चाहते हैं?
हर माता पिता एक बच्चे में आज्ञाकारिता पसंद है और यह सबसे सरल से जुड़े सुप्रीम साथ धुन में और रहना एक रास्ता है. नतीजतन, हम जीवन में अच्छा अनुभव है बशर्ते हम अपने आप को जो हम वास्तव में कर रहे हैं और एक को स्वीकार जिसे हम सदा हैं के लिए स्वीकार करेंगे. इस स्वीकृति के लिए ज्ञान के आधार पर किया जाना है. हालांकि हम विश्वास पहले था, अब हम विश्वास के साथ साथ ज्ञान है और इसलिए अंधविश्वास के शिकार नहीं हैं. अपने बच्चे के रूप में भगवान को याद नहीं है और के रूप में भक्तों के बाद से अपने भक्तों को कभी नहीं सुधार लाने का प्रयास, वे गलत कार्य करता है प्रतिबद्ध है और फिर चर्च पर जाने के लिए स्वीकार कर रहे हैं. एक योग्य बच्चे को हमेशा लगता है: "धूमिल क्या मैं अपने माता पिता की महिमा क्या कर सकते हैं और उनका नाम नहीं है."
बदलें हमारे विचार, दृष्टिकोण में जगह है, और दृष्टि है, और यह एक दूसरे के प्रति हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन ले जाता है. इस प्राकृतिक आध्यात्मिक प्रेम और एक दूसरे से संबंधित की भावना विकसित करता है; भौतिक रूप को देख के बजाय हम भाई आत्माओं के रूप में एक दूसरे को देख शुरू करते हैं.
हम सभी वाक्यांश सुना है, 'हम मानव जाति के सभी एक परिवार के हैं. मुझे याद है पोप ने कहा कि यह जब वह 1964 में भारत की यात्रा की, मैं मास वह मुंबई में आयोजित में भाग लिया था. हालांकि, लोगों को मुश्किल से सच है कि हम सब करना परमेश्वर के एक परिवार के हैं पहचाना. वहाँ अपनेपन क्योंकि दृष्टिकोण आध्यात्मिक नहीं है नहीं लग रहा है. एक नया आध्यात्मिक दृष्टिकोण सब कुछ परिवर्तनों के साथ और हम एक वैश्विक परिवार का हिस्सा महसूस करने लगते हैं. मन में इस उद्देश्य के साथ, हम परमेश्वर के योग्य हो जाते हैं और बच्चों को एक बेहतर जगह बनाने के लिए इस प्रकार के अंदर सिर्फ हमारी चेतना को बदलने की, रहते हैं, हम परोक्ष रूप से बेहतर है और पूरे वैश्विक वातावरण पर एक जबरदस्त प्रभाव के लिए परिवर्तन के साधन बन जाते हैं.

Saturday, February 5, 2011

कर्म का सिद्धांत बहुत गहरा है----भगवान भाई द्वारi

कर्म का सिद्धांत बहुत गहरा है. प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्म का फल मिलता है. अच्छा कार्य करता है अच्छा परिणाम सहन. दूसरी ओर बुरा कृत्य बुरा परिणाम लायेगा. यह सही है कि न्याय में देरी हो सकती है लेकिन नहीं सभी न्याय से वंचित कहा.

हर कार्य हमेशा समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है. इसलिए हम अपने कार्यों का निरीक्षण करना चाहिए. कभी कभी गलती से हमारे द्वारा जानबूझकर प्रतिबद्ध नहीं हैं, लेकिन नहीं है. कई बार छोटे कीड़े हमारे पैरों के नीचे unknowingl मारे गए हैं. अधिनियमों नहीं किया जा रहा करने के लिए धर्मी सलाह (shrimat.) के अनुसार पापों कहा जाता है. इन पापों के परिणाम उन सभी कार्य करता है, जो हमारे द्वारा किया जाता है का परिणाम के रूप में जहां अनजाने में निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट है उदासी और दुख के रूप में है.

भीष्म पितामह महाभारत के युद्ध के अंत में तीर के बिस्तर पर बिछाने गया था, के रूप में अपने चरित्र बहुत अच्छा है और''पाप''क्या वह तो पीड़ित था के लिए के रूप में अपने कार्य से कोई भी दिखाया गया है? यह सवाल उस ने कहा कि कृष्ण महाराज. कृष्णा ने बताया कि कर्म के सिद्धांत बहुत गहरी थी. तुम पापी कृत्य इस जीवन में नहीं किया है लेकिन यह अपने पिछले जन्म श्री कृष्ण के पापों का परिणाम हो भीष्म पितामह अपने पिछले जन्मों को याद कर सकते हैं और शुरू कर कहा कि वह पता चला एक अपने पिछले जन्म लंबी उम्र की है. जब वह राजा था, वह एक पापी अभिनय किया था. जब वह अपने रथ में जा रहा था वहाँ साँप अपने रथ के सामने सड़क पर पड़ा हुआ था. वह अपने तीर के साथ सर्प को उठा लिया और यह सड़क किनारे पर फेंक दिया. साँप झाड़ियों में नाखून पर गिर गया. वास्तव में वह सर्प की जान बचाने लेकिन अनजाने में वह यह नाखूनों पर फेंक रहा था. तब भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि ... हालांकि उनके इस तरह के कार्य जानबूझकर नहीं किया गया लेकिन वह भी कर्म के सिद्धांत के अनुसार ही इलाज चल रहा तहत किया गया था. यह साबित करता है कि हम निश्चित रूप से जानबूझकर या अनजाने में हमारे द्वारा प्रतिबद्ध दुष्कर्म का नतीजा मिल जाएगा.

इसलिए, हम ध्यान भी हमारे छोटे कृत्यों के लिए भुगतान करना होगा. ऐसा कोई कार्य हमारे द्वारा किया जाना चाहिए, जो Shrimath के सिद्धांत के खिलाफ है. एक चलती ट्रेन में जानकारी दें. दुर्घटना निश्चित है. इसी तरह, हमारा जीवन एक ट्रेन है, जो धर्मी सिद्धांतों पर चलने चाहिए की तरह भी है. हम इन सिद्धांतों का पालन करें और अनुशासन चाहिए चाहिए हमारे खुद. होते हैं जब हम इन नियमों का उल्लंघन नहीं है और नियमों दुर्घटनाओं खुराक. इसका मतलब यह है जब भी हम प्रकृति के खिलाफ जाने और परमेश्वर हमारे जीवन में दुख और सुख समाप्त होता है की अवधि है.

जो कुछ भी हमारे जीवन में हो रहा है इस जन्म या पूर्व जन्म के हमारे कृत्यों का परिणाम है. तो हम अंधेरे की अवधि के दौरान भी दुखी महसूस नहीं होना चाहिए. जब हम भूल जाते हैं sufferingf हम खुशी महसूस होगा की कोशिश कर दुखी क्षण भी है. हम दिन इतना है कि कोई पापी कार्य हमारे द्वारा किया जाता है भर चौकस होना चाहिए. उसके बाद ही दुनिया करेगा हमें हमारी मौत के बाद भी याद है.

योग में 22 EXERCICES

योग में 22 EXERCICES


1. मैं एक आत्मा है, शुद्ध ऊर्जा हूँ. इस शरीर से अलग होने का अनुभव करने के लिए में जाओ. ध्यान लगाओ अपनी बुद्धि और लगता है कि कैसे प्रकाश की किरणों और आत्मा से बाहर फैल रहे हैं हो सकता है.
2. मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ, प्रकाश के इस शरीर में बैठे. शुद्ध कंपन बाहर मेरे शरीर के हर हिस्से से जा रहे हैं. तो कल्पना अपने आप को शरीर छोड़ने और अंतरिक्ष में जा रही है. अंतरिक्ष में रहने के सभी आत्माओं को पवित्रता के कंपन देने के लिए और.
3. मैं इस शरीर का मालिक हूँ. मैं अपने सामने सिर के सिंहासन पर बैठा हूँ. मैं पूरी प्रकृति, सभी तत्वों को शुद्ध किया है. मैं बाबा से शुद्ध कंपन प्राप्त कर रहा हूँ और उन सब दिशाओं में प्रकृति को दे रही है.
4. 5 सेकंड के लिए अपनी आत्मा पर अपनी बुद्धि ध्यान लगाओ. तब बाबा अपने बुद्धि चाल और 5 सेकंड के लिए ध्यान केंद्रित. दोहराएँ इस अभ्यास में 10 बार और फिर अपने बुद्धि शिव बाबा पर तय किया करते हैं.
5. मैं एक swadarshan chakradhari हूँ. सिर्फ 5 मिनट में पूरा चक्र के माध्यम से पारित है और फिर आत्मा दुनिया के लिए जाना है और इस शरीर में वापस आ जाओ.
6. बाबा ज्ञान (ज्ञान का सूरज) सूर्य उसे और अनुभव है कि प्रकाश की किरणें उनके लिए आ रहे हैं आप कल्पना है.
7. मैं अपने आदर्श के रूप में कर रहा हूँ, ग्लोब के शीर्ष पर बैठे बाबा से किरणों को प्राप्त करने और उन्हें पूरी दुनिया के लिए दे रही है.
8. एक आध्यात्मिक ड्रिल का अभ्यास करो. सबसे पहले सभी को लगता है कि आप एक आत्मा हैं. तो अनुभव है कि आप अपने प्रकाश के सूक्ष्म शरीर के साथ भौतिक शरीर छोड़ देते हैं. अंतरिक्ष से बाहर जाओ, प्रकाश को अपने शरीर के साथ, और सूक्ष्म दुनिया में चलते हैं. वहाँ आप Avyakt BAP दादा से मिलने और उनके drishti प्राप्त करते हैं. तो फिर तुम प्रकाश के शरीर को छोड़ कर सिर्फ आत्मा, प्रकाश ऊर्जा के मुद्दे के रूप में खुद के बारे में जानते हो, और तुम आत्मा दुनिया में जाने और शिव बाबा से किरणों प्राप्त करते हैं. कुछ पल के बाद, सूक्ष्म जगत में प्रकाश और भौतिक दुनिया में भौतिक शरीर में अगले वापसी के शरीर में वापस जाओ. इस 10 बार अभ्यास करें.
9. बीज चरण के अनुभव में जाओ. अपने आप को आत्मा दुनिया में बाबा की किरणों के तहत एक सोचा में Stabilise:''मैं उसके पास से''शांति का अनुभव.
10. मैं एक''शांति हाउस''हूँ, मैं बाबा से शांति के कंपन प्राप्त कर रहा हूँ और यह सब शांति कम आत्माओं के लिए वितरण.
11. मैं''मास्टर सर्वशक्तिमान''हूँ, सर्वशक्तिमान से हो सकता है की किरणों प्राप्त. या मैं सभी शक्तियों का रंगीन फव्वारा के तहत बाबा से बैठा हूँ और कमजोर आत्मा को शक्ति दे रही है.
12. इस शरीर में, मैं एक एन्जिल अवतीर्ण हूँ. प्राप्त भौतिक शरीर से अलग किया जाना है, जहां कुछ दुनिया में और सभी के लिए कंपन दे.
13. स्वयं के चरण में रहो - सम्मान है कि''मैं बाप samaan''हूँ और मैं आत्मा दुनिया में उसके साथ बैठा हूँ. मैं प्रकाश दे रहा हूँ और पूरी दुनिया के लिए हो सकता है.
14. भगवान ने मेरी दोस्त है, यह नशा है और लगता है कि वह तुम्हारे लिए नीचे आता है उनकी कंपनी का आनंद लें..
15. अपने आप को एक दृष्टि बनाएँ जा रहा है भगवान से जुड़ा है, और पूरी दुनिया को आप से जुड़ा हुआ है कि. मैं एक पूर्वज आत्मा हूँ. मैं अच्छा कंपन के साथ पूरी दुनिया को बनाए रखने कर रहा हूँ.
16. अनुभव कैसे बाबा नीचे आता है और आप के लिए सुरक्षा के चंदवा हो जाता है.
17. मैं एक शक्तिशाली आत्मा, शिव शक्ति, मैं सर्वशक्तिमान के साथ संयुक्त कर रहा हूँ. इस तरह मैं उसके साथ हूँ.
18. एक सपना अपने खुद अपने हाथ में जीत की माला के साथ आप की बाईं तरफ angelic फार्म खड़े बनाएँ. और सही पक्ष पर अपने देवी या देवता के भविष्य के फार्म उसके हाथ में एक मुकुट के साथ खड़ा है. वे एक के बाद दूसरे ने मुझे में दर्ज करें. इस तरह अपने भविष्य के नशे का अनुभव.
19. आत्म सम्मान या उच्च चेतना के किसी भी बिंदु अभ्यास, का आनंद लें सबसे ऊंचा विचार और तब चिट है - बाबा के साथ चैट.
20. अभ्यास के रूप में सभी आत्माओं को देखने के लिए और हर एक को शुद्ध कंपन दे.
21. कल्पना बाबा, शांति के महासागर. कल्पना कीजिए कि कैसे हरे रंग में कंपन की एक प्रवाह उसके पास से आता है, अपने आप में, आत्मा, और दुनिया में बाहर दर्शाता है. चंगा प्रकृति, सभी जीवित प्राणियों और अपने शांति के इन हरे कंपन के साथ ही शरीर.
22. शिव बाबा, पवित्रता के महासागर की कल्पना कीजिए, और कैसे पवित्रता का शक्तिशाली कंपन, सफेद और प्रकाश, तुम, आत्मा, पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और दुनिया में बाहर को प्रतिबिंबित करने के लिए भी तत्व को शुद्ध

ध्यान की विधि ध्यान की विधि B.K. भगवान bhai Shantivan

ध्यान की विधि
ध्यान की विधि
B.K. भगवान
Shantivan
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वर्तमान समय में, हम दिन बाहर के माध्यम से लगातार और प्राकृतिक योग में शेष अभ्यास किया है. कोई शरीर जानता आपदाओं की किस तरह दुनिया परिवर्तन के पाठ्यक्रम में आ सकता है, या वे आ सकता है जब. करने के लिए अंतिम घंटे में ही बाबा याद करने में सक्षम हो, हम एक लंबे समय के लिए अभ्यास और अनुभव किया है. प्रदर्शन कर कार्रवाई करते हुए yogyukth शेष के लिए, हम उचित तरीके से योग बैठे मौन में जा रहा है और गहरा अनुभव है करना चाहिए. आदेश में योग में बैठने का एक शक्तिशाली सत्र है, हम अपने राज्य पर ध्यान देना है जबकि हमारे कर्तव्यों कर रहा है. इसलिए, यह एक अन्योन्याश्रित प्रक्रिया है. अगर आप एक ठीक से नहीं, अन्य परती स्वाभाविक रूप से होगा. एक ध्यान में बैठे हुए लगता है बोर नहीं करना चाहिए. अगर एक खुराक नहीं बैठे योग के कुछ घंटे करने की आदत है, तो एक प्रदर्शन कार्रवाई करते हुए yogyukth नहीं हो सकता. समय जो कुछ भी ध्यान के लिए आवंटित किए गए हैं, उदाहरण के आधे घंटे के लिए आदि सोने जाने से पहले, हम सतर्क हो सकता है और योग करना चाहिए में करने के लिए सबसे अच्छे परिणाम के लिए उपयोग किया जाना चाहिए
सही तरीका है. हम यहाँ ध्यान कर रही है जबकि बैठने का सही और उचित तरीके से चर्चा करेंगे.
सबसे पहले, हम ध्यान जब हम खाली समय मिलता है या निश्चित घंटों के दौरान करने में दिलचस्पी होना चाहिए. जब हम नीचे बैठने के लिए ध्यान, हम किसी भी व्यक्ति बात है, या कब्जा करने के लिए हमारे विचारों दौरे काम बारी नहीं करना चाहिए. वास्तव में हमारा बुद्धि के माध्यम से ध्यान है. हम मन पर ध्यान केंद्रित नहीं है, लेकिन जांच जहां बुद्धि है और प्रकाश की एक बिंदु के रूप में आत्मा कल्पना, एक मोमबत्ती की लौ की तरह बुद्धि से करना चाहिए.
फिर सोचा कि मैं प्रकाश का कहना है की तरह स्टार रहा हूँ के रूप में. मैं इस शरीर के माध्यम से अपनी भूमिका निभा रही है. अब मैं अपने इस मांस और हड्डियों के ढांचे से स्वयं को अलग कर प्रकाश की एक शरीर में प्रवेश. मैं सूक्ष्म दुनिया जाओ. Avyaktha Bapdada चारों ओर प्रकाश में से एक में भी इस दुनिया में है. मैं यहाँ प्रकाश की एक शरीर में बैठा हूँ. इस तरह से हम अपने आप को इस सीमित दुनिया से अलग, और सूक्ष्म जगत में Bapdada मिलना है. तब प्रकाश के शरीर के बाहर चारों ओर आते हैं. वहाँ शांति और पवित्रता है. प्रकाश, बुद्धि की आँखों के माध्यम से सोने लाल बत्ती में एक चमकता सितारा, के शक्तिशाली बिंदु के रूप में देखें बाबा. हम इस बिंदु फार्म चरण में और अधिक समय के लिए रहता है जब हम एक आत्मा चेतन अवस्था में रहते हुए कार्यों का निष्पादन और जब Paramdham में हमारी बुद्धि है, जबकि काम कर सकते हैं, लोगों को आदि मान लीजिए वहाँ सीमित बातों का विचार कर रहे हैं, तो हम बाबा आनंद नहीं कर सकते कंपनी, न कोई शांति आनंद, या supersensous आनन्द. माहौल और बिगड़ जाएगी ध्यान उबाऊ हो जाएगा.
यह बुद्धि के कैमरे से चित्र फार्म, चित्र जो कुछ भी हम हमारी बुद्धि में है की समारोह है, संबंधित विचार मन में बनते हैं. जब विचार मन में बनते हैं. जब विचारों को बेकार कर रहे हैं, तो बुद्धि सीमित क्षेत्र में है. इसलिए, यदि हम सूक्ष्म दुनिया के कंपन का अनुभव है, तो बुद्धि में सूक्ष्म दुनिया की तस्वीर लाना चाहता हूँ. उज्ज्वल के दृश्य कल्पना है, जबकि प्रकाश और Bapdada प्रकाश की एक संस्था में बैठे. ध्यान Bapdada और ऊंचा विचारों पर बुद्धि के कैमरा मन में पालन करेंगे.
पर जो कुछ वस्तुओं कैमरा ध्यान केंद्रित है, एक ही चित्र टी वी स्क्रीन पर दिखाई देता है.. जब ध्यान बदलाव, यह भी तस्वीर बदल जाता है. इसी प्रकार, संबंधित विचार होते हैं मन में टीवी तस्वीर जो कुछ भी बुद्धि में प्रकट होता है की तरह कार्य करता है, संबंधित विचार मन में होते हैं. इसलिए, हम जो बातें करने के लिए योग में अनुभव करना चाहते हैं पर ध्यान केंद्रित बुद्धि की ओर ध्यान देना चाहिए. तो यह मन का कोई विचार हमें परेशान नहीं करेगा. हम जब तक हम भी इच्छा ध्यान में सक्षम हो जाएगा. हम इस तरह से करने में अपार आनंद का अनुभव कर सकते हैं.
लगता है कि हम करने के लिए बिंदु फार्म का मंच तो Paramdham में एक बिंदु, स्वर्ण लाल बत्ती के साथ घेर अनुभव बनना चाहता हूँ. चमक बिंदु पर बाबा बुद्धि फोकस, और वहाँ एक आसान शक्तिशाली मंच होगा. आप के सामने बाबा को देखो और इस तरह के विचारों को ऊंचा फार्म का, भगवान खुद वह ......... मुझे शक्ति दे रहा है मेरे सामने है जहाँ मैं हूँ ......... ... ... etc.then ध्यान बहुत मज़ा किया जाएगा. लेकिन हम बुद्धि और महसूस की स्थिति फिर से और फिर जाँच कि बाबा हमें सामना करना पड़ रहा है रखना चाहिए. इसी प्रकार, के लिए मंच angelic अनुभव आदेश में, सूक्ष्म angelic दुनिया पर बुद्धि ध्यान केंद्रित. सूक्ष्म जगत में Bapdada के सामने प्रकाश के शरीर में बैठे, के रूप में खुद के बारे में सोचो. अपनी बुद्धि के साथ इस चित्र. जब हम में सीमित परे जा रहा अभ्यास असीमित है, तो हम क्या हमारे आसपास हो रहा है और हम लोगों को बातें, और संपत्ति के प्रति आकर्षित नहीं किया जाएगा के बारे में पता नहीं होगा. इस तरह, हम योग में अच्छा अनुभव हो सकता है. हम किसी विशेष के लिए पूरी तरह यह अनुभव चरण में लंबे समय बनी रहती है और केवल जब हम किसी दूसरे हम अपने स्तर बदलना चाहिए अनुभव है इच्छा चाहिए.
ध्यान करने के लिए केवल विचारों की एक छोटी संख्या उत्पन्न करने की कोशिश जबकि. एक विचार का चयन करें, और उसके अनुभव में चलते हैं. मैं एक आत्मा हूँ, मैं एक शांतिपूर्ण, शुद्ध, इस तरह से हम बहुत जल्द ही कोशिश की हो जाने की संभावना है और हम कुछ भी अनुभव नहीं होगा आदि शक्तिशाली आत्मा, हूँ: क्या आपके मन में चल रहे एक कमेंटरी की तरह कभी नहीं शुरू करते हैं. इसलिए, एक विचार का चयन और इसकी गहराई में जाने. यह भी प्रदर्शन कर कार्रवाई करते हुए एक yogyukth मंच बनाए रखने में मदद मिलेगी. भले ही हम अनुभव एक ही मंच या गुण हैं, अन्य सभी गुण स्वाभाविक रूप से पालन करेंगे. तो एक दिन, माह, या कमज़ोर के लिए एक विशेष मंच अनुभव का प्रयास करें. विचारों को कम, और अधिक शक्तिशाली राज्य हो जाएगा.
इस तरह, अगर हम उचित तरीके से बुद्धि का उपयोग करें, तो वहाँ होगा भी मन और ध्यान में ऊंचा विचार पुरस्कृत और अनुभव में अमीर हो जाएगा. जो कुछ भी बुद्धि जाता है, वहाँ मन भी चला जाता है. उदाहरण के लिए, जो गाय जाता है, बछड़ा यह इस प्रकार है. यदि हम बुद्धि परती मन तो हम बहुत सफल नहीं होगा करने की कोशिश. इसलिए हम अगर हमारी बुद्धि सीमित चीजों पर ध्यान केंद्रित है, एक व्यक्ति के काम, कार्यालय, तो इन विचारों के बाद चला जाएगा ध्यान करना चाहिए. इसलिए, हम उस चीज़ या मंच जो हम खुद को बीच में याद दिलाना चाहता हूँ, कि हम बाबा के सामने बैठे हैं पर ध्यान केंद्रित निर्धारित किया है. कि हम अनुभव करना चाहते हैं. हम खुद को बीच में याद दिलाती है, कि हम कोई दीवारें चारों ओर हैं, नहीं लोग, नहीं, बातें. बार बार लग रहा है इस तरह का अनुभव. जब हम असीमित दुनिया में हमारे मन और बुद्धि सेट, बाबा पर ध्यान दे, तो हमारे पिछले पापों को नष्ट कर रहे हैं, हम Supersensous खुशी और शांति का अनुभव है, और हम या महसूस नहीं करते थक गया ऊब जबकि ध्यान.
आदेश में ध्यान का आनंद लेने के लिए, हम आत्मा प्रदर्शन कार्रवाई करते हुए सचेत होने का अभ्यास करना चाहिए था. इस मदद करता है मन और बुद्धि कार्यों के प्रभाव से मुक्त होने के लिए. हमारे विचार ध्यान जब उन कार्यों के बाद भी नहीं चला जाएगा. हम इस बात से फार्म मंच आसानी से पहुँच है जब हम नीचे बैठने के लिए ध्यान, एक लंबे समय के लिए व्यस्त कर सकते हैं. जब हम बाबा याद करते हुए कार्यों का निष्पादन, हमारे कार्यों उठाया और प्रेरक पिछले पापों रहे हैं, क्योंकि वहाँ गहरा इसमें शामिल एकाग्रता है.
वर्तमान समय में, यह आवश्यक है ध्यान बैठे हुए loukik और aloukik कर्तव्यों का प्रबंध करने में कम से कम चार घंटे है. इसके अलावा, हम लगातार चौकस करने के लिए yogyukth करते हुए कार्यों का निष्पादन किया जाना चाहिए. इसमें प्रति दिन योग के आठ घंटे के लिए जोड़ देगा. वर्तमान में योग के इन कई घंटे के लिए खुद को माया का सूक्ष्म और सकल हमलों से बचाने के लिए आवश्यक हैं. हम उड़ान मंच आसानी से बनाए रखने में सक्षम हो जाएगा. इसलिए, योग anf Karamyoga बैठे दोनों आवश्यक हैं. अगर हम बैठे योग ठीक से नहीं करते हैं, तो yogyukth है जबकि जबकि हमारे काम कर रही है, तो हमारी बैठे योग शक्तिशाली हो जाएगा. हम इन दोनों में संतुलन के साथ योगी जीवन का असली आनंद प्राप्त किया है. इस संतुलन ही हमें ज्ञान inculate करने के लिए सक्षम करने के लिए और हमारे जीवन को ऊपर उठाया जाएगा.
हम कुछ चीजों की मदद ले जब नीचे बैठने के लिए ध्यान, उदाहरण के लिए संगीत, लाल बत्ती आदि, लेकिन अगर हम इन बातों का समर्थन है, फिर भी हमारे योग शक्तिशाली होना चाहिए नहीं मिलता है. अगर हम ऐसे हालात में नहीं ध्यान कर सकते हैं, तो इसका मतलब है कि हम इन चीजों की अधीनता तहत कर रहे हैं
हम इन बातों के समर्थन के बिना योग करने का अभ्यास है, क्योंकि इन बातों को हमें मदद मिलेगी चाहिए. हम एक प्राकृतिक अवस्था को प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए. अगर हम गाने उपयोग करने के लिए बेकार विचार तो अंत योग पल गाने अंत खत्म हो जाएगा. यदि हम अपने विचारों को प्रशिक्षित कर रहे हैं करने के लिए संगीत का पालन करें, को दूर बर्बाद विचार रखते हैं तो यह एक कृत्रिम समर्थन हो जाता है. हम गीतों का पालन नहीं है और फिर हमारे मंच बनाना चाहिए, लेकिन हम संगीत का उपयोग करने के लिए हमारे मंच के पुनर्निर्माण अगर वहाँ विचारों के कारण व्यवधान बेकार कर सकता है. हम स्वयं के प्रयासों के साथ हमारे अपने मंच बनाए रखने में सक्षम है, इसलिए है कि, हम स्वाभाविक रूप से yogayukth जा रहे हैं चाहिए जब भी संगीत बंद हो जाता है. हम चीजों से सेना की टुकड़ी भी अभ्यास किया है, जबकि उन्हें इस्तेमाल करते हैं. केवल तभी हम सक्षम समय में yogayukth रहने के लिए आते हैं, जब इन सभी का समर्थन करता है गायब हो जाएगा.
तो, यह आत्मा के प्रति सजग करते हुए कार्यों का निष्पादन, में आदेश को ध्यान बैठा के बेहतरीन बनाने के लिए आवश्यक है. यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक दिन muruli सुनने के लिए, के लिए ज्ञान chrun, बाबा की याद में शुद्ध भोजन है क्योंकि जब हम 1 / 2 के लिए शक्तिशाली याद में एक घंटे खाने के लिए, हम ऐसी ऊर्जा है, जो हमें आराम बाबा से बेखबर खींचती हो समय की.
भले ही कुछ अप्रिय बातें काम जगह में होता है इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, लेकिन इसे हल्के ढंग से ले और यह भूलने की कोशिश. ऐसी बातें हमें ध्यान में परेशान.
इसलिए, हमें सही दिशा में ध्यान से supersensous खुशी, शांति और आनंद की हर पल, और बाबा के कंपनी के झूले में झूले का आनंद लें, हमें इस हीरे की उम्र के शेष कम समय में अधिक से अधिक लाभ मिलता है. ध्यान की सही विधि के माध्यम से, हम खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए है कि हम खुद की रक्षा करने में सक्षम है और समय है कि करने के लिए आते हैं, समय कठिन परिस्थितियों और विनाश है, अन्य हैं.

Friday, February 4, 2011

मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें रावण राज्य से लिबरेट कर सद्गति देने, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने''

03-02-2011

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें रावण राज्य से लिबरेट कर सद्गति देने, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने''

प्रश्न: बाप ने तुम भारतवासी बच्चों को कौनसी-कौनसी स्मृति दिलाई है?

उत्तर: हे भारतवासी बच्चे! तुम स्वर्गवासी थे। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, हीरे सोने के महल थे। तुम सारे विश्व के मालिक थे। धरती आसमान सब तुम्हारे थे। भारत शिवबाबा का स्थापन किया हुआ शिवालय था। वहाँ पवित्रता थी। अब फिर से ऐसा भारत बनने वाला है।

गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) कांटे से फूल बन फूलों का बगीचा (सतयुग) स्थापन करने की सेवा करनी है। कोई भी बुरा कर्म नहीं करना है।

2) रूहानी ज्ञान जो बाप से सुना है वही सबको सुनाना है। आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। एक बाप को ही याद करना है, किसी देहधारी को नहीं।

वरदान: देह-अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव

देह-अभिमान का त्याग करने अर्थात् देही-अभिमानी बनने से बाप के सर्व संबंध का, सर्व शक्तियों का अनुभव होता है, यह अनुभव ही संगमयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य है। विधाता द्वारा मिली हुई इस विधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियां भी प्राप्त होंगी। देहधारी के संबंध वा स्नेह में तो अपना ताज, तख्त और अपना असली स्वरूप सब छोड़ दिया तो क्या बाप के स्नेह में देह-अभिमान का त्याग नहीं कर सकते! इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे।

स्लोगन: क्रोध मुक्त बनना है तो स्वार्थ के बजाए नि:स्वार्थ बनो, इच्छाओं के रूप का परिवर्तन करो

मीठे बच्चे - खुदा तुम्हारा दोस्त है, रावण दुश्मन है, इसलिए तुम खुदा को प्यार करते और रावण को जलाते हो''

05-02-2011

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - खुदा तुम्हारा दोस्त है, रावण दुश्मन है, इसलिए तुम खुदा को प्यार करते और रावण को जलाते हो''

प्रश्न: किन बच्चों को अनेकों की आशीर्वाद स्वत: मिलती जाती है?

उत्तर: जो बच्चे याद में रह स्वयं भी पवित्र बनते और दूसरों को भी आप समान बनाते हैं। उन्हें अनेकों की आशीर्वाद मिल जाती है। वे बहुत ऊंच पद पाते हैं। बाप तुम बच्चों को श्रेष्ठ बनने की एक ही श्रीमत देते हैं - बच्चे किसी भी देहधारी को याद न कर मुझे याद करो।

गीत:- आखिर वह दिन आया आज........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) श्रीमत पर पवित्र बन, हर कदम बाप की मत पर चल विश्व की बादशाही लेनी है। बाप के समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है।

2) मनुष्य से देवता बनने की यह पढ़ाई सदा पढ़ते रहना है। सबको आप समान बनाने की सेवा करके आशीर्वाद प्राप्त करनी है।

वरदान: अधिकारीपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप भव

यदि बुद्धि का संबंध सदा एक बाप से लगा हुआ रहे तो सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। जो अधिकारी समझकर हर कर्म करते हैं उन्हें कहने वा संकल्प में भी मांगने की आवश्यकता नहीं रहती। यह अधिकारी पन की स्मृति ही सर्व शक्तियों के प्राप्ति का अनुभव कराती है। तो नशा रहे कि सर्व शक्तियां हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं। अधिकारी बन करके चलो तो अधीनता समाप्त हो जायेगी।

स्लोगन: स्वयं के साथ-साथ प्रकृति को भी पावन बनाना है तो सम्पूर्ण लगाव मुक्त बनो

मैं पवित्र, पावन, शुद्ध सतोप्रधान हूँ, यही पवित्रता कि लाइट

स्टार पॉइंट: (सारा दिन प्रेक्टिस किजिये ) : मैं पवित्र, पावन, शुद्ध सतोप्रधान हूँ, यही पवित्रता कि लाइट सारे जड़ और चैतन्य में समाती जा रही है |

विचार मंथनके पॉइंट्स: फ़रवरी ५, २०११:
ॐ शान्ति !
फ़रवरी ५, २०११:
हरेक पॉइंट कम से कम ५ मिनट देही-अभिमानी स्थितिमें विचार मंथन करें:


१. हम आत्मायें, आप समान बनाने वाले आशीर्वाद के पात्र हैं |
२. हम आत्मायें, निराकार रूप में भाई-भाई हैं और साकारी रूप में भाई-बहन हैं |
३. हम आत्मायें, बाप समान दुःख-हरता सुख करता हैं |
४. हम आत्मायें, रेग्युलर और पंक्चुयल पढ़ने और पढ़ाने वाले फरिश्ते हैं |
५. हम आत्मायें, अधिकारी हैं माना सर्व प्राप्ति सम्पन्न हैं |
६. हम आत्म -अभिमानी हैं |

स्टडी पॉइंट:

१. श्रेष्ठ बननेकी एक श्रीमत- देह्धारी को भूलना |
२. जो श्रीमत पर पवित्र रहते हैं, वही बाप की मत पर चल विष्व की बादशाही का वर्सा पाते हैं |
३. अपनेको आत्मा समजकर बाप को याद करना माना सतोप्रधान बनना, माना बाप के पास चले जाना माना बाप के गले की माला और विष्णु की माला बनना |
४. जो माला में पिरोते हैं, वही गद्दी पे बेठते हैं |
५. अच्छी रीति ज्ञान को समजना माना तकदीर को जगाना |
६. चक्र को बुद्धि मे बिठाना माना चक्रवर्ती महाराजा-महारानी बनना |
७. भारत भूमि सबसे उत्तम और महा तीर्थ है |
८. जबरदस्त लड़ाई लगेगी फिर वहाँ के वहाँ रह जाएँगे; ५० -६० लाख भी देंगे तो मुश्किल आ सकेंगे |
९. लिबरेटर एक बाप ही है तो उसकी जयन्ती मनानी है |

Thursday, February 3, 2011

मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें रावण राज्य से लिबरेट कर सद्गति देने, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने'' प्रश्न: बाप ने तुम भारतवासी

03-02-2011

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें रावण राज्य से लिबरेट कर सद्गति देने, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने''

प्रश्न: बाप ने तुम भारतवासी बच्चों को कौनसी-कौनसी स्मृति दिलाई है?

उत्तर: हे भारतवासी बच्चे! तुम स्वर्गवासी थे। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, हीरे सोने के महल थे। तुम सारे विश्व के मालिक थे। धरती आसमान सब तुम्हारे थे। भारत शिवबाबा का स्थापन किया हुआ शिवालय था। वहाँ पवित्रता थी। अब फिर से ऐसा भारत बनने वाला है।

गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) कांटे से फूल बन फूलों का बगीचा (सतयुग) स्थापन करने की सेवा करनी है। कोई भी बुरा कर्म नहीं करना है।

2) रूहानी ज्ञान जो बाप से सुना है वही सबको सुनाना है। आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। एक बाप को ही याद करना है, किसी देहधारी को नहीं।

वरदान: देह-अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव

देह-अभिमान का त्याग करने अर्थात् देही-अभिमानी बनने से बाप के सर्व संबंध का, सर्व शक्तियों का अनुभव होता है, यह अनुभव ही संगमयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य है। विधाता द्वारा मिली हुई इस विधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियां भी प्राप्त होंगी। देहधारी के संबंध वा स्नेह में तो अपना ताज, तख्त और अपना असली स्वरूप सब छोड़ दिया तो क्या बाप के स्नेह में देह-अभिमान का त्याग नहीं कर सकते! इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे।

स्लोगन: क्रोध मुक्त बनना है तो स्वार्थ के बजाए नि:स्वार्थ बनो, इच्छाओं के रूप का परिवर्तन करो

योगअभ्यास के समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती

योग एक कठिन साधना है। इसका अभ्यास किसी गुरु के सानिध्य में रहकर ही किया जाता है। विभिन्न योगाचार्यों अनुसार अभ्यास के समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती हैं, जिससे हठ योग साधना में विघ्न उत्पन्न होता हैं। ये आदतें निम्न हैं:- अधिक आहार, अधिक प्रयास, दिखावा, नियम विरुद्ध, लोक-संपर्क तथा चंचलता।

1.अधिक आहार : अधिक आहार की आदत योग में बाधा उत्पन्न करती है। डटकर भोजन करने वाले आलस्य, निद्रा, मोटापा आदि के शिकार बन जाते हैं। यौगिक आहार नियम को जानकर ही आहार करें। आहार संयम होना आवश्यक है।

2.अधिक प्रयास : कुछ अभ्यास ठीक से नहीं हो पाते तब साधक जोर लगाकर अधिक प्रयास से अभ्यास को साधना चाहता है, यह आदत घातक है। शरीर और मन की क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपनी ओर से कभी अधिक प्रयास नहीं करना चाहिए।

3.दिखावापन : इसे योगाचार्य प्रजल्प भी कहते हैं। कुछ लोग अपने अभ्यासों के संबंध में लोगों के समक्ष बढ़ा-चढ़ाकर बखान करते हैं। बहुत से अपने अभ्यास की थोड़ी बहुत सफलता का प्रदर्शन भी करते हैं। यही दिखावेपन की आदत योगी को योग से दूर कर देती है। अतः जो भी अभ्यास करें, उसकी चर्चा, जहाँ तक हो सके दूसरों से खासकर अनधिकारी व्यक्तियों से कभी न करें।

4.नियम विरुद्ध : योग के नियम के विरुद्ध है मन से नियम बनाना, इसे नियमाग्रह कहते हैं। बहुत से लोग कुछ खास नियम बना लेते हैं और आग्रह रखते हैं कि उसी के अनुसार चलेंगे। एक अर्थ में यह ठीक है और ऐसा करना भी चाहिए। किन्तु कभी-कभी यह विघ्नकारक भी हो जाता है।

उदाहरणार्थ- जैसे खाने के नियम बना लेते हैं कि एक फल ही खाऊँगा या सप्ताह में तीन दिन ही खाऊँगा। अभ्यास के नियम कि स्नान के बाद ही अभ्यास करेंगे या सुबह ही करेंगे या किसी खास स्थान में ही करेंगे। बुखार होगा तब भी अभ्यास नहीं छोड़ेगे। इस तरह मनमाने नियम से शरीर और मन को कष्ट होता है जबकि योग कहता है कि मध्यम मार्ग का अनुसरण करो। नियम हो लेकिन सख्त न हो। नियमों में लचीलापन बना रहना चाहिए।

5.जन-संपर्क : योग का अभ्यास करने वाले को अधिक जन-संपर्क में नहीं रहना चाहिए। उसे बहस, वाद-विवाद, सांसारिक चर्चा से दूर रहना चाहिए। अधिक जन संपर्क या संग से खानपान की बुरी आदतें भी बनने लगती हैं। अतः जहाँ तक संभव हो लोगों से कम संपर्क रखें।

6.चंचलता : कभी यहाँ, कभी वहाँ, कभी कुछ, कभी कुछ, यह शरीर की चंचल प्रवृत्ति ठीक नहीं होती। शारीरिक चंचलता से मन की चंचलता या मन की चंचलता से शारीरिक चंचलता उत्पन्न होती है। अतः शरीर को भी स्थिर रखें, अधिक दौड़धूप न करें और मन को भी शांत व स्थिर रखें। अधिक इधर-उधर की न सोचें।

7.संकल्प और धैर्य : संकल्पवान और धैर्यशील व्यक्ति ही योग में सफल हो सकता। संकल्प और धैर्य के अभाव में योग ही नहीं किसी भी विद्या या कार्य में सफलता अर्जित नहीं की जा सकती। संकल्प और धैर्यशीलता से ही सभी तरह की बाधाओं को पार किया जा सकता है अत: संकल्प और धीरज का होना बहुत जरूरी है।

इस प्रकार उपर्युक्त यह सात विघ्नकारक तत्व हैं, जिनसे योगाभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है। सच्चा साधक इन विघ्नों से सदा दूर रहकर और अपनी आदतों में सुधार कर अपने योगाभ्यास को सफल बनाता है