03-02-2011
मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें रावण राज्य से लिबरेट कर सद्गति देने, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने''
प्रश्न: बाप ने तुम भारतवासी बच्चों को कौनसी-कौनसी स्मृति दिलाई है?
उत्तर: हे भारतवासी बच्चे! तुम स्वर्गवासी थे। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, हीरे सोने के महल थे। तुम सारे विश्व के मालिक थे। धरती आसमान सब तुम्हारे थे। भारत शिवबाबा का स्थापन किया हुआ शिवालय था। वहाँ पवित्रता थी। अब फिर से ऐसा भारत बनने वाला है।
गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू........
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कांटे से फूल बन फूलों का बगीचा (सतयुग) स्थापन करने की सेवा करनी है। कोई भी बुरा कर्म नहीं करना है।
2) रूहानी ज्ञान जो बाप से सुना है वही सबको सुनाना है। आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। एक बाप को ही याद करना है, किसी देहधारी को नहीं।
वरदान: देह-अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव
देह-अभिमान का त्याग करने अर्थात् देही-अभिमानी बनने से बाप के सर्व संबंध का, सर्व शक्तियों का अनुभव होता है, यह अनुभव ही संगमयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य है। विधाता द्वारा मिली हुई इस विधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियां भी प्राप्त होंगी। देहधारी के संबंध वा स्नेह में तो अपना ताज, तख्त और अपना असली स्वरूप सब छोड़ दिया तो क्या बाप के स्नेह में देह-अभिमान का त्याग नहीं कर सकते! इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे।
स्लोगन: क्रोध मुक्त बनना है तो स्वार्थ के बजाए नि:स्वार्थ बनो, इच्छाओं के रूप का परिवर्तन करो
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