मन शक्तियों का पुंज है। महामानवों को गढ़ने और नरपिशाचों को पैदा करने की सामर्थ्य मन में है। इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं मन के उत्थान-पतन की कहानियां है। एकाग्रता के अभाव में मन की शक्तियां नष्ट होती रहती है। प्रचंड शक्ति का स्त्रोत होते हुए भी उसकी क्षमताओं का लाभ नहीं मिल पाता। संकल्प-विकल्प पर ही उत्थान-पतन का क्रम निर्भर करता है। मन की एकाग्रता से ही वैज्ञानिक, कृषि, कलाकार और मनीषी उत्पन्न होते है। मन जब ऊर्ध्वगामी होता है तो मनुष्य महात्मा, संत या देवता बन जाता है। अधोगामी होने पर नर पशु, पिशाच बन जाता है। संकल्प की असीमशक्ति जानकर शास्त्रों में अनेक स्थानों पर उसकी स्तुति की गई है। शिवत्व से युक्त संकल्प की सराहना की गई है। मन का संकल्प शिव हो, रौद्र न हो। कल्याण का सृष्टा हो विनाश का रचयिता नहीं। शास्त्रों में मन की दो प्रकार की शक्तियों का वर्णन मिलता है-नयन व नियमन। शिथिलता को सक्रियता में बदलना नयन, और उद्यत आचरण से बचाए रखना नियमन कहलाता है। मन को समर्थ बनाने में इनसे सहायता मिलती है।
शरीर की इंद्रियां आयु के साथ क्षीण हो जाती है। पर मन आयु के बंधनों से परे होता है। वह सदा युवा बना रहता है। वह कभी बूढ़ा नहीं होता। उसकी गति से तीव्र चलने वाली किसी वस्तु का पता अभी तक नहीं चला। इच्छाशक्ति के अनेक चमत्कार देखने में आते है। वे मानसिक शुद्धि एवं एकाग्रता पर आधारित होते है। जिसका मन जितना पवित्र और शुद्ध होगा, उतना वह बलवान और प्रभावशाली होगा। संत, महात्माओं के शाप और वरदान चमत्कारी घटनाएं उनके मन की पवित्रता के परिणाम हैं। इसी कारण इस तत्व को सभी धर्मशास्त्रों में मन को पवित्र बनाने पर जोर दिया गया है। बिखराव से कमजोरी आती है। मन के बिखराव से चंचलता को रोकने के लिए दृढ़ अवलंबन की आवश्यकता होती है। मन को नियंत्रित करने के लिए उपासना को सर्वश्रेष्ठ अवलंबन बताया गया है। मन असीम सामथ्र्यो का स्त्रोत है। संकल्प शक्ति एवं विचारशक्ति की अनेक संपदाएं उसके अंदर छिपी हुई है। इन्हे जगाकर सही दिशा में नियोजित करने का प्रयास किया जा सके तो मनुष्य असीम शक्ति का स्वामी बन सकता है।
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