आटपाडी सांगली चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
आटपाडी सांगली चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
5000 स्कूलों कॉलेजों में और 800 जेलों कारगृहो में नैतिक मूल्यों का पाठ पढाकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है
Tuesday, October 18, 2011
Saturday, October 15, 2011
आटपाडी सांगली चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
आटपाडी सांगली चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
आटपाडी चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
आटपाडी चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
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आटपाडी चे ब्रह्माकुमार भगवान भाई चे नाव इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स मधे नोंद
Thursday, September 1, 2011
नकारात्मकता को पहचाने बिना उसे सकारात्मकता में नही बदला जा सकता है। नकारात्मकता क्या है ? इसे समझने हम अपने महाकाव्यों में झांकते हैं। रामायण के युद्
नकारात्मकता को पहचाने बिना उसे सकारात्मकता में नही बदला जा सकता है। नकारात्मकता क्या है ? इसे समझने हम अपने महाकाव्यों में झांकते हैं। रामायण के युद्ध के पीछे क्या कारण है ? लक्ष्मण भैया द्वारा शूर्पनखा की नाक काटना है। नाक काटना अर्थात किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा सकारात्मक नहीं हो सकती। सारा जगत रावण को दोष देता है लेकिन लक्ष्मण की नकारात्मकता को हम नहीं देख पाते हैं। आपको अगर कोई महिला शादी का प्रस्ताव रखे या प्रेम का स्वांग रचे तो क्या आप उसकी नाक काट देंगे ?
इसी तरह महाभारत के मूल में भी नकारात्मकता ही है। दुर्योधन द्वारा हस्तिनापुर के पाण्डवों के महलों में फिसलने पर द्रोपदी का हंसना नकारात्मकता है। व्यंग्य मारना कि अन्धे का बेटा अन्धा ही होता है, नकारात्मकता है। क्या दुर्योधन ने साड़ी इसलिये नहीं खींची थी ? हंसने की बजाय द्रोपदी को क्षमा मांगते हुए अपने जेठजी की मदद को दौड़ना था। यह होती सकारात्मकता।
किसी की बुराई करना, आलोचना करना नकारात्मकता है। पर में कमजोरियां खोजना, उसका अहित चाहना, भय, शक, सन्देह करना भी नकारात्मकता की श्रेणी में आते हैं। स्वयं को हीन समझना, स्वयं को धिक्कारना, पछताना, रोना नकारात्मकता है।
अपने जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त करना होगा। नकारात्मकता हमारे विकास में बाधक है। नकारात्मकता की मात्रा ज्यों-ज्यों घटती है त्यों-त्यों सकारात्मकता की मात्रा बढ़ती जाती है। हमारे सोच, बोली एवं व्यवहार में सकारात्मकता झलकनी चाहिये। अपने सोच को रचनात्मक बनायें। अपनी उर्जा को उपयोग की दिशा में लगाएं।
इसी तरह महाभारत के मूल में भी नकारात्मकता ही है। दुर्योधन द्वारा हस्तिनापुर के पाण्डवों के महलों में फिसलने पर द्रोपदी का हंसना नकारात्मकता है। व्यंग्य मारना कि अन्धे का बेटा अन्धा ही होता है, नकारात्मकता है। क्या दुर्योधन ने साड़ी इसलिये नहीं खींची थी ? हंसने की बजाय द्रोपदी को क्षमा मांगते हुए अपने जेठजी की मदद को दौड़ना था। यह होती सकारात्मकता।
किसी की बुराई करना, आलोचना करना नकारात्मकता है। पर में कमजोरियां खोजना, उसका अहित चाहना, भय, शक, सन्देह करना भी नकारात्मकता की श्रेणी में आते हैं। स्वयं को हीन समझना, स्वयं को धिक्कारना, पछताना, रोना नकारात्मकता है।
अपने जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त करना होगा। नकारात्मकता हमारे विकास में बाधक है। नकारात्मकता की मात्रा ज्यों-ज्यों घटती है त्यों-त्यों सकारात्मकता की मात्रा बढ़ती जाती है। हमारे सोच, बोली एवं व्यवहार में सकारात्मकता झलकनी चाहिये। अपने सोच को रचनात्मक बनायें। अपनी उर्जा को उपयोग की दिशा में लगाएं।
सकारात्मकता की कोई सीमा नहीं होती है ,हम अक्सर जीवन में बहुत जल्द ही हताश हो जाते है मगर जीवन हमें कई मोके देता है ! हमें तब तक हार नहीं मानना चाहिए ज
शायद किसी ने सच ही कहा है की सकारात्मकता की कोई सीमा नहीं होती है ,हम अक्सर जीवन में बहुत जल्द ही हताश हो जाते है मगर जीवन हमें कई मोके देता है ! हमें तब तक हार नहीं मानना चाहिए जब तक तक हमारी आखरी साँस चलती रहे ! अक्सर एसा होता की हम जिस चीज को हमारी हार मान लेते हे उसी से कभी कभी हमारी जिन्दगी बच जाती है ! एसा ही एक वाकया हे –
एक बार समुद्र तट पर रहने वाले कुछ मछवारे मछलिया पकड़ने के लिए समुद्र में बहुत दूर तक निकल गए , उन्हें आते आते शाम होने लगी तभी समुद्र में अचानक एक तूफान आया और मछ्वारो की साँसे ऊपर निचे होने लगी ,भयंकर तूफान में फसे मछ्वारो की नाव रास्ता भटकने लगी सारे लोग तितर-बितर होने लगे ! उधर दूसरी और समुद्र तट पर मछ्वारो का पूरा परिवार उनके बीबी-बच्चे उनके सकुशल आने के लिए रास्ता देखने लगे ,प्रार्थनाये करने लगे ! मगर तूफान अपनी गति को और अधिक बडाये ही जा रहा था !बहुत रात हो चुकी थी और भयंकर बारिश हो रही थी ! मछ्वारो का पूरा परिवार हाथ जोड़ कर इश्वर से प्रार्थना कर रहा था की उनके पति सही सलामत लोट आये !मगर इस तूफानी रात में उनका सकुशल लोटना नामुमकिन था ! मगर तभी इश्वर का चमत्कार हुवा और किनारे पर खड़े परिजनों को एक नाव आती दिखाई दी उनके अन्दर उम्मीद की लहर दोड़ पड़ी और अचानक एक एक करके सारे मछवारे सकुशल लोट आये ! सभी परिवार बहुत खुश थे बीबी बच्चे जश्न मन रहे थे ,तभी एक मछवारे ने उसकी पत्नी के चेहरे पर उदासी देखि तो उसने पूछा क्यों प्रिये क्या मुझे सही सलामत पाकर तुम खुश नहीं हुई !पति के वचन सुनकर उस स्त्री की आँखों से आंसू झलक गए और उसने बिलखते हुए कहा हे प्राणनाथ अब हमारे पास कुछ नहीं बचा हमारी जो एक मात्र झोपडी थी वह कल रात के तूफान में आग लगने की वजह से जलकर राख हो गयी !
पत्नी की बाते सुनकर पति जोर से हँसा और कहा अरे पगली शुकर मना उस ऊपर वाले का, के कल रात हमारी झोपडी में आग लग गई ,क्युकी कल रात रास्ता भटकने के बाद हम उसी जलती हुई झोपडी को अपनी मंजिल समझ कर किनारे पर आ सके अगर कल रात हमारी झोपडी नहीं जलती तो शायद हममे से कोई भी जिन्दा वापस नहीं आ पता ! पति की यह बात सुनकर पत्नी ने उसे अपने गले से लगा लिया और अपना घर खोने के गम को भी भुला दिया !
जरा सोचिये इश्वर हमें हमारी गलती सुधारने के कितने मोके देता है ,और हम उन मोको को समझ नहीं पाते और अंत में इश्वर को दोष देते है और कहते है की हमें पर्याप्त साधन नहीं मिले ! और अपने आप को नकारात्मकता के समंदर में एसा धकेलते है की वापस किनारे पर आना संभव नहीं होता ! इसिलए इस युवा पीडी से अपील हे की नकारात्मक सोच को त्याग कर सकारात्मक सोच को विकसित करे और अपना एवं समाज का विकास करे !
जय धाकड़
एक बार समुद्र तट पर रहने वाले कुछ मछवारे मछलिया पकड़ने के लिए समुद्र में बहुत दूर तक निकल गए , उन्हें आते आते शाम होने लगी तभी समुद्र में अचानक एक तूफान आया और मछ्वारो की साँसे ऊपर निचे होने लगी ,भयंकर तूफान में फसे मछ्वारो की नाव रास्ता भटकने लगी सारे लोग तितर-बितर होने लगे ! उधर दूसरी और समुद्र तट पर मछ्वारो का पूरा परिवार उनके बीबी-बच्चे उनके सकुशल आने के लिए रास्ता देखने लगे ,प्रार्थनाये करने लगे ! मगर तूफान अपनी गति को और अधिक बडाये ही जा रहा था !बहुत रात हो चुकी थी और भयंकर बारिश हो रही थी ! मछ्वारो का पूरा परिवार हाथ जोड़ कर इश्वर से प्रार्थना कर रहा था की उनके पति सही सलामत लोट आये !मगर इस तूफानी रात में उनका सकुशल लोटना नामुमकिन था ! मगर तभी इश्वर का चमत्कार हुवा और किनारे पर खड़े परिजनों को एक नाव आती दिखाई दी उनके अन्दर उम्मीद की लहर दोड़ पड़ी और अचानक एक एक करके सारे मछवारे सकुशल लोट आये ! सभी परिवार बहुत खुश थे बीबी बच्चे जश्न मन रहे थे ,तभी एक मछवारे ने उसकी पत्नी के चेहरे पर उदासी देखि तो उसने पूछा क्यों प्रिये क्या मुझे सही सलामत पाकर तुम खुश नहीं हुई !पति के वचन सुनकर उस स्त्री की आँखों से आंसू झलक गए और उसने बिलखते हुए कहा हे प्राणनाथ अब हमारे पास कुछ नहीं बचा हमारी जो एक मात्र झोपडी थी वह कल रात के तूफान में आग लगने की वजह से जलकर राख हो गयी !
पत्नी की बाते सुनकर पति जोर से हँसा और कहा अरे पगली शुकर मना उस ऊपर वाले का, के कल रात हमारी झोपडी में आग लग गई ,क्युकी कल रात रास्ता भटकने के बाद हम उसी जलती हुई झोपडी को अपनी मंजिल समझ कर किनारे पर आ सके अगर कल रात हमारी झोपडी नहीं जलती तो शायद हममे से कोई भी जिन्दा वापस नहीं आ पता ! पति की यह बात सुनकर पत्नी ने उसे अपने गले से लगा लिया और अपना घर खोने के गम को भी भुला दिया !
जरा सोचिये इश्वर हमें हमारी गलती सुधारने के कितने मोके देता है ,और हम उन मोको को समझ नहीं पाते और अंत में इश्वर को दोष देते है और कहते है की हमें पर्याप्त साधन नहीं मिले ! और अपने आप को नकारात्मकता के समंदर में एसा धकेलते है की वापस किनारे पर आना संभव नहीं होता ! इसिलए इस युवा पीडी से अपील हे की नकारात्मक सोच को त्याग कर सकारात्मक सोच को विकसित करे और अपना एवं समाज का विकास करे !
जय धाकड़
Thursday, August 11, 2011
फुल MURLI
Murli Site Har Din 11.00am tak Full Murli Milegi
http://www.bksbrahmastra.com/pointsOfKnowledge
/GodlyVersionsE_july_2011.html
www.jewels.brahmakumaris.org
www.brahmakumariz.com/youtub
www.brahmakumaris.org.in
www.brahmakumaris.com
www.bkvarta.com
www.bkwsu.org
--
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Monday, August 8, 2011
इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई
ब्रह्मकुमार भगवान भाई झाबुआ में
इन्दौर
Wednesday, 06 July 2011 23:03
Written by पीपुल्स संवाददाता
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झाबुआ । पांच हजार स्कूलों में हजारों विद्यार्थियों को मूल्य निष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक एवं आध्यात्मिक पाठ पढ़ाने वाले तथा 800 जेलों में कैदियों को अपनी शिक्षा से अपराध को छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानव को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करने के लिए इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई 8 से 11 जुलाई तक झाबुआ में अपनी सेवाएं देंगे। स्थानीय केंद्र की संचालिका ज्योति बहन ने बताया कि इस दौरान वे शहर की विभिन्न संस्थाओं स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, जेल, बार एसोसिएशन तथा अन्य कार्यालयों में जाकर अपने दिव्य उद्बोधन से शहर के लोगों को लाभांवित करेंगे।
इन्दौर
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झाबुआ । पांच हजार स्कूलों में हजारों विद्यार्थियों को मूल्य निष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक एवं आध्यात्मिक पाठ पढ़ाने वाले तथा 800 जेलों में कैदियों को अपनी शिक्षा से अपराध को छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानव को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करने के लिए इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई 8 से 11 जुलाई तक झाबुआ में अपनी सेवाएं देंगे। स्थानीय केंद्र की संचालिका ज्योति बहन ने बताया कि इस दौरान वे शहर की विभिन्न संस्थाओं स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, जेल, बार एसोसिएशन तथा अन्य कार्यालयों में जाकर अपने दिव्य उद्बोधन से शहर के लोगों को लाभांवित करेंगे।
इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई
झाबुआ । पांच हजार स्कूलों में हजारों विद्यार्थियों को मूल्य निष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक एवं आध्यात्मिक पाठ पढ़ाने वाले तथा 800 जेलों में कैदियों को अपनी शिक्षा से अपराध को छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानव को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करने के लिए इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई 8 से 11 जुलाई तक झाबुआ में अपनी सेवाएं देंगे। स्थानीय केंद्र की संचालिका ज्योति बहन ने बताया कि इस दौरान वे शहर की विभिन्न संस्थाओं स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, जेल, बार एसोसिएशन तथा अन्य कार्यालयों में जाकर अपने दिव्य उद्बोधन से शहर के लोगों को लाभांवित करेंगे।
Friday, August 5, 2011
SHIVA RATRI; A NIGHT OF BLESSING & BLISS
SHIVA RATRI;
A NIGHT OF BLESSING & BLISS.
The world 'shivaratri' means a night of auspicious goodness. The supreme soul, the Father of all souls, the brightest point of light. Shiv paramatma arrives in this world at a time when the world is in grip of total darkness of ignorance and grief and sorrow to play His role of renewing the world. He comes to play his role in the final act of this world drama to wipe out all the elements and set a new order. He is the world Benefactor to promote goodness in everything. That final act where shiva is the Here playing His part of world renewal is called 'shivaratri'. Shiv paramatma is the supreme of all souls. Atma's of different religions call Him by different names, as Amarnath, Badharinath, Mukteswar, etc. Amarnath means one who makes the atma eternal. Badharinath, making one in to flower from thorns and Mukuteswar meaning the Liberator. Muslims adore and kiss, 'sang-a-aswad' a stone in the shape of shivling in Meccha. Jesus and Guru Nanak also believe God as a light. Thus the atma of all religions God, the supreme father is bodiless and farm less but only light. He is the ocean of all divine qualities. God Shiva through Brahma Vishnu and shankara operates His activities of generator, taking care i.e operation and destruction respectively. So He is known Trimurty Shiva. Paramapita Shiva paramatma helps the weak, suffering, un happy, restless souls to become strong, happy and peaceful by giving clean and pure love and companion when man becomes soul conscious he naturally is pure, peaceful and happy. We find (people.) devotees wearing the three parallel of white sacred ash with a Tika in the centre between the eyebrows.
Shiva the supreme soul dose not come in the cycle of birth and death. That is why he is called eternal. He is the Bestower of blessings on benovelence to every one in this world and always. He is light for ever, so people sight lamps which are lit for 24 Hrs.
One has to lead a pure pions life with good manners and right habits to become worthy of this blessings. We usually Shiva's temples at the giver of the best knowledge of the highest order and quality. At present the society has become impovenished because the souls do actions which are bad and negetive. Souls are body conscious now. So now is the time for the souls to discard all negativity and badness and regain their original innate qualities of honesty, purity, happiness, bliss, silence, peace and prosperity. So
that make a promise to learn Raja Yoga from the supreme father, teacher and Guru. Shiva 'Gyan and Raja Yoga' to become good and pure souls of God consciousness. So better late than never! Celebrate shiva ratri to liberate ourself from the shell of darkness by learning Raja yoga from the Supreme father who is the master also.!
SHIV-RATRI.
A NIGHT OF BLESSING & BLISS.
The world 'shivaratri' means a night of auspicious goodness. The supreme soul, the Father of all souls, the brightest point of light. Shiv paramatma arrives in this world at a time when the world is in grip of total darkness of ignorance and grief and sorrow to play His role of renewing the world. He comes to play his role in the final act of this world drama to wipe out all the elements and set a new order. He is the world Benefactor to promote goodness in everything. That final act where shiva is the Here playing His part of world renewal is called 'shivaratri'. Shiv paramatma is the supreme of all souls. Atma's of different religions call Him by different names, as Amarnath, Badharinath, Mukteswar, etc. Amarnath means one who makes the atma eternal. Badharinath, making one in to flower from thorns and Mukuteswar meaning the Liberator. Muslims adore and kiss, 'sang-a-aswad' a stone in the shape of shivling in Meccha. Jesus and Guru Nanak also believe God as a light. Thus the atma of all religions God, the supreme father is bodiless and farm less but only light. He is the ocean of all divine qualities. God Shiva through Brahma Vishnu and shankara operates His activities of generator, taking care i.e operation and destruction respectively. So He is known Trimurty Shiva. Paramapita Shiva paramatma helps the weak, suffering, un happy, restless souls to become strong, happy and peaceful by giving clean and pure love and companion when man becomes soul conscious he naturally is pure, peaceful and happy. We find (people.) devotees wearing the three parallel of white sacred ash with a Tika in the centre between the eyebrows.
Shiva the supreme soul dose not come in the cycle of birth and death. That is why he is called eternal. He is the Bestower of blessings on benovelence to every one in this world and always. He is light for ever, so people sight lamps which are lit for 24 Hrs.
One has to lead a pure pions life with good manners and right habits to become worthy of this blessings. We usually Shiva's temples at the giver of the best knowledge of the highest order and quality. At present the society has become impovenished because the souls do actions which are bad and negetive. Souls are body conscious now. So now is the time for the souls to discard all negativity and badness and regain their original innate qualities of honesty, purity, happiness, bliss, silence, peace and prosperity. So
that make a promise to learn Raja Yoga from the supreme father, teacher and Guru. Shiva 'Gyan and Raja Yoga' to become good and pure souls of God consciousness. So better late than never! Celebrate shiva ratri to liberate ourself from the shell of darkness by learning Raja yoga from the Supreme father who is the master also.!
SHIV-RATRI.
SHIVA RATRI; A NIGHT OF BLESSING & BLISS
SHIVA RATRI;
A NIGHT OF BLESSING & BLISS.
The world 'shivaratri' means a night of auspicious goodness. The supreme soul, the Father of all souls, the brightest point of light. Shiv paramatma arrives in this world at a time when the world is in grip of total darkness of ignorance and grief and sorrow to play His role of renewing the world. He comes to play his role in the final act of this world drama to wipe out all the elements and set a new order. He is the world Benefactor to promote goodness in everything. That final act where shiva is the Here playing His part of world renewal is called 'shivaratri'. Shiv paramatma is the supreme of all souls. Atma's of different religions call Him by different names, as Amarnath, Badharinath, Mukteswar, etc. Amarnath means one who makes the atma eternal. Badharinath, making one in to flower from thorns and Mukuteswar meaning the Liberator. Muslims adore and kiss, 'sang-a-aswad' a stone in the shape of shivling in Meccha. Jesus and Guru Nanak also believe God as a light. Thus the atma of all religions God, the supreme father is bodiless and farm less but only light. He is the ocean of all divine qualities. God Shiva through Brahma Vishnu and shankara operates His activities of generator, taking care i.e operation and destruction respectively. So He is known Trimurty Shiva. Paramapita Shiva paramatma helps the weak, suffering, un happy, restless souls to become strong, happy and peaceful by giving clean and pure love and companion when man becomes soul conscious he naturally is pure, peaceful and happy. We find (people.) devotees wearing the three parallel of white sacred ash with a Tika in the centre between the eyebrows.
Shiva the supreme soul dose not come in the cycle of birth and death. That is why he is called eternal. He is the Bestower of blessings on benovelence to every one in this world and always. He is light for ever, so people sight lamps which are lit for 24 Hrs.
One has to lead a pure pions life with good manners and right habits to become worthy of this blessings. We usually Shiva's temples at the giver of the best knowledge of the highest order and quality. At present the society has become impovenished because the souls do actions which are bad and negetive. Souls are body conscious now. So now is the time for the souls to discard all negativity and badness and regain their original innate qualities of honesty, purity, happiness, bliss, silence, peace and prosperity. So
that make a promise to learn Raja Yoga from the supreme father, teacher and Guru. Shiva 'Gyan and Raja Yoga' to become good and pure souls of God consciousness. So better late than never! Celebrate shiva ratri to liberate ourself from the shell of darkness by learning Raja yoga from the Supreme father who is the master also.!
SHIV-RATRI.
A NIGHT OF BLESSING & BLISS.
The world 'shivaratri' means a night of auspicious goodness. The supreme soul, the Father of all souls, the brightest point of light. Shiv paramatma arrives in this world at a time when the world is in grip of total darkness of ignorance and grief and sorrow to play His role of renewing the world. He comes to play his role in the final act of this world drama to wipe out all the elements and set a new order. He is the world Benefactor to promote goodness in everything. That final act where shiva is the Here playing His part of world renewal is called 'shivaratri'. Shiv paramatma is the supreme of all souls. Atma's of different religions call Him by different names, as Amarnath, Badharinath, Mukteswar, etc. Amarnath means one who makes the atma eternal. Badharinath, making one in to flower from thorns and Mukuteswar meaning the Liberator. Muslims adore and kiss, 'sang-a-aswad' a stone in the shape of shivling in Meccha. Jesus and Guru Nanak also believe God as a light. Thus the atma of all religions God, the supreme father is bodiless and farm less but only light. He is the ocean of all divine qualities. God Shiva through Brahma Vishnu and shankara operates His activities of generator, taking care i.e operation and destruction respectively. So He is known Trimurty Shiva. Paramapita Shiva paramatma helps the weak, suffering, un happy, restless souls to become strong, happy and peaceful by giving clean and pure love and companion when man becomes soul conscious he naturally is pure, peaceful and happy. We find (people.) devotees wearing the three parallel of white sacred ash with a Tika in the centre between the eyebrows.
Shiva the supreme soul dose not come in the cycle of birth and death. That is why he is called eternal. He is the Bestower of blessings on benovelence to every one in this world and always. He is light for ever, so people sight lamps which are lit for 24 Hrs.
One has to lead a pure pions life with good manners and right habits to become worthy of this blessings. We usually Shiva's temples at the giver of the best knowledge of the highest order and quality. At present the society has become impovenished because the souls do actions which are bad and negetive. Souls are body conscious now. So now is the time for the souls to discard all negativity and badness and regain their original innate qualities of honesty, purity, happiness, bliss, silence, peace and prosperity. So
that make a promise to learn Raja Yoga from the supreme father, teacher and Guru. Shiva 'Gyan and Raja Yoga' to become good and pure souls of God consciousness. So better late than never! Celebrate shiva ratri to liberate ourself from the shell of darkness by learning Raja yoga from the Supreme father who is the master also.!
SHIV-RATRI.
REAL INDEPENDENCE (B.K. BHAGWAN BHAI)
REAL INDEPENDENCE
(B.K. BHAGWAN BHAI)
British’s ruled over India for about 200 to 250 years. During their regime Indian’s has to act and conduct according to their dictates and so Indians had to their dictates and so Indians had to suffer a lot on that account. In everybody’s mind, then there was a longing for liberation from foreign yoke. They believed that only there by they could live in peace. During those testing times national leaders like Mahatma Gandhi, Lokmanya Tilak, Pt.Nehru, Subhash Bose, Lala Lajpatrai and others stood up to face the challenge, and gird up their lions to secure freedom from foreign rule, and ventured to launch Freedom Movement which ultimately broke the shackles of foreign rule, and India eventually emerged as a politically Independent Nation. That Historically memorable day goes down in history as 15th August 1947.
When we speak of freedom we naturally mean freedom from all discomforting bondages, freedom from tumult and turmoil, from sorrows and sufferings, from affliction and agony, from panic and peacelessness. Society free from all these negative aspect breathes an air of happiness. Society endowed with real freedom enjoys affluence in all respects. It enjoys health, wealth and happiness in real sense. Mahatma Gandhi’s vision of establishing RamRajya, following Independence, remained a pipe dream. Post Independent India depicts a somber and sorrowful picture of Indian Society Indeed; in as much as we see steep rise in Ideological differences, Linguistic differences and alround discord and discontent. The entire nation is torn with battles and bickering and is in the grip of chaos and disorder. Does RamRajya conceive of such a scenario? It is a sad comment on the nation that Indians could not enjoy the real fruits of Independence. POLITICAL INDEPENDENCE has led to wantonness and greed of the lowest order among those at the helm of affairs. Let us dive deep into the problem and find out the reason for such a paradoxical situation.
Looked at spiritual angle not only Indians but every human soul of the world is under the thralldom of five vices symbolized by Maya ravana. Maya ravana sought entry into human soul because of body consciousness. This is the root cause of sorrow and suffering every body condemns vices but nobody is able to get rid of the viciousinfluences under which he is smarting. Bondages which cause sorrows and sufferings are 1.Bondage of body. 2. Bondage of vices likes sex.list, greed, anger, ego and attachment 3. Bondage of human tendencies and proclivities 4. Bondage of environment 5. Of mind 6. Of body related items and bodily relations 7. Of customs and conventions.
Because of these bondage man does not succeed in getting what he cherishes. Sufferings and sorrows are on the increase due to these bondages. Problem is how to get rid of them. Release from these bondages is real freedom. God Father Supreme Soul does his divine work of bringing real freedom on this earth. Presently he is doing that great work by descending down to this planet. He has reincarnated for releasing human souls from various bondages and thereby to establish RamRajya on this earth again. Incomplete dream of Gandhiji is now emerging into reality. That world will be free from any kind of
bondage. As a king so the subjects will be happy. It will be the world of one religion, one language and one family everybody will be hale and hearty. There will be peace and prosperity. In order to enjoy the benefits of such a RamRajya one has to establish connection and relation with God Father, the Supreme Soul and there by to rid one self of bondages.
On this August day of Independence therefore, let us take a pledge to rid ourselves and the world of these agonizing bondages. This is how we should celebrate Independence Day in true sense.
(B.K. BHAGWAN BHAI)
British’s ruled over India for about 200 to 250 years. During their regime Indian’s has to act and conduct according to their dictates and so Indians had to their dictates and so Indians had to suffer a lot on that account. In everybody’s mind, then there was a longing for liberation from foreign yoke. They believed that only there by they could live in peace. During those testing times national leaders like Mahatma Gandhi, Lokmanya Tilak, Pt.Nehru, Subhash Bose, Lala Lajpatrai and others stood up to face the challenge, and gird up their lions to secure freedom from foreign rule, and ventured to launch Freedom Movement which ultimately broke the shackles of foreign rule, and India eventually emerged as a politically Independent Nation. That Historically memorable day goes down in history as 15th August 1947.
When we speak of freedom we naturally mean freedom from all discomforting bondages, freedom from tumult and turmoil, from sorrows and sufferings, from affliction and agony, from panic and peacelessness. Society free from all these negative aspect breathes an air of happiness. Society endowed with real freedom enjoys affluence in all respects. It enjoys health, wealth and happiness in real sense. Mahatma Gandhi’s vision of establishing RamRajya, following Independence, remained a pipe dream. Post Independent India depicts a somber and sorrowful picture of Indian Society Indeed; in as much as we see steep rise in Ideological differences, Linguistic differences and alround discord and discontent. The entire nation is torn with battles and bickering and is in the grip of chaos and disorder. Does RamRajya conceive of such a scenario? It is a sad comment on the nation that Indians could not enjoy the real fruits of Independence. POLITICAL INDEPENDENCE has led to wantonness and greed of the lowest order among those at the helm of affairs. Let us dive deep into the problem and find out the reason for such a paradoxical situation.
Looked at spiritual angle not only Indians but every human soul of the world is under the thralldom of five vices symbolized by Maya ravana. Maya ravana sought entry into human soul because of body consciousness. This is the root cause of sorrow and suffering every body condemns vices but nobody is able to get rid of the viciousinfluences under which he is smarting. Bondages which cause sorrows and sufferings are 1.Bondage of body. 2. Bondage of vices likes sex.list, greed, anger, ego and attachment 3. Bondage of human tendencies and proclivities 4. Bondage of environment 5. Of mind 6. Of body related items and bodily relations 7. Of customs and conventions.
Because of these bondage man does not succeed in getting what he cherishes. Sufferings and sorrows are on the increase due to these bondages. Problem is how to get rid of them. Release from these bondages is real freedom. God Father Supreme Soul does his divine work of bringing real freedom on this earth. Presently he is doing that great work by descending down to this planet. He has reincarnated for releasing human souls from various bondages and thereby to establish RamRajya on this earth again. Incomplete dream of Gandhiji is now emerging into reality. That world will be free from any kind of
bondage. As a king so the subjects will be happy. It will be the world of one religion, one language and one family everybody will be hale and hearty. There will be peace and prosperity. In order to enjoy the benefits of such a RamRajya one has to establish connection and relation with God Father, the Supreme Soul and there by to rid one self of bondages.
On this August day of Independence therefore, let us take a pledge to rid ourselves and the world of these agonizing bondages. This is how we should celebrate Independence Day in true sense.
1 RAKSHA BANDHAN REMINDS US “PURITY” B.K.BHAGWAN BHAI, SHANTIVAN,ABU ROAD.
1
RAKSHA BANDHAN REMINDS US “PURITY”
B.K.BHAGWAN BHAI,
SHANTIVAN,ABU ROAD.
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___________________________________________________________________________
Raksha Bandhan Festival is a pious, religious and cultural one. If this festival is celebrated from
spiritual prospective, it will bind the mankind as a whole with love and brotherhood and free them
even from subtle vices and save them from outwardly cheats.
Outwardly, this festival is celebrated by tying a sacred thread by a Brahmin to his host (yajman) and by the sister to her brother but spiritual secret (meaning) is quit different. But by understanding its real spiritual purpose ,many problems and difficulties that arise in human relations can be removed. Specially this “Raksha Bandhan” festival is an effort ,by the Brahmin by reciting spiritual verse and tying the sacred thread to his yajman with a view to do away the various types of his poverty and effect off ill -luck . There is a very famous story of tying the sacred thread by the queen of paradise Indrani to Lord “Indra” at a time when he lost his kingdom and treasure to devils forces. At that time Indrani remembered God and in her Divine thoughts she tied the sacred thread, a symbol of Purity and Lord Indra again fought with Devil forces and defeated them, was victorious and won over his kingdom and treasures.
In those days when India was being attacked by Foreign enemies ,Hindu Ladies and sisters devise a way of celebrating the festival of with new brothers by tying sacred thread - a symbol of purity to save themselves from enemy by giving them responsibility to save them and their honour in the time of difficulties.The custom of Rakhi is not just celebrates present within Hinduism, even great Mughal Emperor like Akbar and Humayuan established a pure relation by determing to protect them against impurity. According to the time and situation the festival of Raksha Bandhan has become an ordinary ritual of tying the thread, applying the tilak and sweetening the mouth.This ritual is also being practised less. The spiritual significance of Rakhi is totally different.
The message to all about Raksha Bandhan is :- to make our life elevated, powerful, peaceful, happy and secure for this we need purity of thoughts words and deeds.
It can be seen that it is impossible for a devotee to become happy and peaceful simply by a few words of the priest. If this were so all would have made their lives happy already . According to the story, Indrani tied the Rakhi to Indra, her husband. Therefore this thread of purity is not simply for brother to protect a sister, for, it is impossible for him to be there all the time. Additionally, how can a younger brother protect his elder sister ?
Raksha Bandhan is a festival that spreads the message of Purity in our thoughts, words and deeds. Only when we inculcate purity in our lives in society, in our family can there be real peace and happiness in the world . Because purity is the mother of peace and happiness. By tying a Rakhi to the brother , this life can become pure and will be inspired to follow a principlesof divine life. The brother will have relationship of purity and huminity for all women. In actual fact, Raksha Bandhan is a symbol for one’s Protection . Shiva the supreme father, the Almighty Authority is our over lasting Protector. Through his remembrance our action can easily become pure and elevated. At the time of Raksha Bandhan a tilak of Sandal wood is applied, this tilak is the memorial of the form of the self as a soul filled with virtues and powers.We are all eternal immortal
2
and inperishable souls. All souls are brothers, Our religion is purity, peace, love and bliss.The tilak inspires us to see all souls in this light.
To sweeten ones mouth means to speak, elevated divine worlds.During Rakhi, a brother gives his sister some money for her expenses.The spiritual significianceof this is to donate (money) the 5 vices to God. Only then the eclipse of Peacelessness, sorrow impurity be renowed, This is why there is a saying “ Remove the eclipse by donations” The power to destroy the powerof the vices is with the supreme soul alone.
At this time, God has incarnated on this impure vicious world to protect souls from the enemy of the vices. For this, the supreme soul is giving all souls the message of purity.The memorial of this is ‘Rakhi’. Also this is not just , for one day, but we have to remain pure as long as we live. This festival is celebrated every year in order to maintain our practise of purity.
Purity does not only mean the Practise of celibacy .It means to follow God’s direction in our activities,words, relations, and thoughts. If this is broken it is also impurity. Then there will be the experience of peacelessness sorrow and we cannot be protected by God.
Now, God himself is tying this Rakhi of purity to us. Because many obstacles such as natural calamities, destructive power of sceintific invention i.e nuclear war, are facing us as part of the Transformation of the world. Purity is an essential protection, not only for the self, but for others tooo at this time. Along with this purity is essential in order to become future Deties.
This year, therefore, together we need to tie the thread of subtle purity and make this promise to God.Whatever subtle or gross vices you have, give them to God as a donation. Only then can we be protected from vicious attitudes and can create the kingdom of the Golden Age. There will be peace in our lives, peace in the world and their will be security in all aspects.
It is of this purity that reminds us by this festival of ‘Rakhi’. cc
%%%%%%%%%%%%%%%%%% om shanti%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
RAKSHA BANDHAN REMINDS US “PURITY”
B.K.BHAGWAN BHAI,
SHANTIVAN,ABU ROAD.
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Raksha Bandhan Festival is a pious, religious and cultural one. If this festival is celebrated from
spiritual prospective, it will bind the mankind as a whole with love and brotherhood and free them
even from subtle vices and save them from outwardly cheats.
Outwardly, this festival is celebrated by tying a sacred thread by a Brahmin to his host (yajman) and by the sister to her brother but spiritual secret (meaning) is quit different. But by understanding its real spiritual purpose ,many problems and difficulties that arise in human relations can be removed. Specially this “Raksha Bandhan” festival is an effort ,by the Brahmin by reciting spiritual verse and tying the sacred thread to his yajman with a view to do away the various types of his poverty and effect off ill -luck . There is a very famous story of tying the sacred thread by the queen of paradise Indrani to Lord “Indra” at a time when he lost his kingdom and treasure to devils forces. At that time Indrani remembered God and in her Divine thoughts she tied the sacred thread, a symbol of Purity and Lord Indra again fought with Devil forces and defeated them, was victorious and won over his kingdom and treasures.
In those days when India was being attacked by Foreign enemies ,Hindu Ladies and sisters devise a way of celebrating the festival of with new brothers by tying sacred thread - a symbol of purity to save themselves from enemy by giving them responsibility to save them and their honour in the time of difficulties.The custom of Rakhi is not just celebrates present within Hinduism, even great Mughal Emperor like Akbar and Humayuan established a pure relation by determing to protect them against impurity. According to the time and situation the festival of Raksha Bandhan has become an ordinary ritual of tying the thread, applying the tilak and sweetening the mouth.This ritual is also being practised less. The spiritual significance of Rakhi is totally different.
The message to all about Raksha Bandhan is :- to make our life elevated, powerful, peaceful, happy and secure for this we need purity of thoughts words and deeds.
It can be seen that it is impossible for a devotee to become happy and peaceful simply by a few words of the priest. If this were so all would have made their lives happy already . According to the story, Indrani tied the Rakhi to Indra, her husband. Therefore this thread of purity is not simply for brother to protect a sister, for, it is impossible for him to be there all the time. Additionally, how can a younger brother protect his elder sister ?
Raksha Bandhan is a festival that spreads the message of Purity in our thoughts, words and deeds. Only when we inculcate purity in our lives in society, in our family can there be real peace and happiness in the world . Because purity is the mother of peace and happiness. By tying a Rakhi to the brother , this life can become pure and will be inspired to follow a principlesof divine life. The brother will have relationship of purity and huminity for all women. In actual fact, Raksha Bandhan is a symbol for one’s Protection . Shiva the supreme father, the Almighty Authority is our over lasting Protector. Through his remembrance our action can easily become pure and elevated. At the time of Raksha Bandhan a tilak of Sandal wood is applied, this tilak is the memorial of the form of the self as a soul filled with virtues and powers.We are all eternal immortal
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and inperishable souls. All souls are brothers, Our religion is purity, peace, love and bliss.The tilak inspires us to see all souls in this light.
To sweeten ones mouth means to speak, elevated divine worlds.During Rakhi, a brother gives his sister some money for her expenses.The spiritual significianceof this is to donate (money) the 5 vices to God. Only then the eclipse of Peacelessness, sorrow impurity be renowed, This is why there is a saying “ Remove the eclipse by donations” The power to destroy the powerof the vices is with the supreme soul alone.
At this time, God has incarnated on this impure vicious world to protect souls from the enemy of the vices. For this, the supreme soul is giving all souls the message of purity.The memorial of this is ‘Rakhi’. Also this is not just , for one day, but we have to remain pure as long as we live. This festival is celebrated every year in order to maintain our practise of purity.
Purity does not only mean the Practise of celibacy .It means to follow God’s direction in our activities,words, relations, and thoughts. If this is broken it is also impurity. Then there will be the experience of peacelessness sorrow and we cannot be protected by God.
Now, God himself is tying this Rakhi of purity to us. Because many obstacles such as natural calamities, destructive power of sceintific invention i.e nuclear war, are facing us as part of the Transformation of the world. Purity is an essential protection, not only for the self, but for others tooo at this time. Along with this purity is essential in order to become future Deties.
This year, therefore, together we need to tie the thread of subtle purity and make this promise to God.Whatever subtle or gross vices you have, give them to God as a donation. Only then can we be protected from vicious attitudes and can create the kingdom of the Golden Age. There will be peace in our lives, peace in the world and their will be security in all aspects.
It is of this purity that reminds us by this festival of ‘Rakhi’. cc
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RAKSHA BANDHAN REMINDS US “PURITY”
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SHANTIVAN,ABU ROAD.
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Raksha Bandhan Festival is a pious, religious and cultural one. If this festival is celebrated from
spiritual prospective, it will bind the mankind as a whole with love and brotherhood and free them
even from subtle vices and save them from outwardly cheats.
Outwardly, this festival is celebrated by tying a sacred thread by a Brahmin to his host (yajman) and by the sister to her brother but spiritual secret (meaning) is quit different. But by understanding its real spiritual purpose ,many problems and difficulties that arise in human relations can be removed. Specially this “Raksha Bandhan” festival is an effort ,by the Brahmin by reciting spiritual verse and tying the sacred thread to his yajman with a view to do away the various types of his poverty and effect off ill -luck . There is a very famous story of tying the sacred thread by the queen of paradise Indrani to Lord “Indra” at a time when he lost his kingdom and treasure to devils forces. At that time Indrani remembered God and in her Divine thoughts she tied the sacred thread, a symbol of Purity and Lord Indra again fought with Devil forces and defeated them, was victorious and won over his kingdom and treasures.
In those days when India was being attacked by Foreign enemies ,Hindu Ladies and sisters devise a way of celebrating the festival of with new brothers by tying sacred thread - a symbol of purity to save themselves from enemy by giving them responsibility to save them and their honour in the time of difficulties.The custom of Rakhi is not just celebrates present within Hinduism, even great Mughal Emperor like Akbar and Humayuan established a pure relation by determing to protect them against impurity. According to the time and situation the festival of Raksha Bandhan has become an ordinary ritual of tying the thread, applying the tilak and sweetening the mouth.This ritual is also being practised less. The spiritual significance of Rakhi is totally different.
The message to all about Raksha Bandhan is :- to make our life elevated, powerful, peaceful, happy and secure for this we need purity of thoughts words and deeds.
It can be seen that it is impossible for a devotee to become happy and peaceful simply by a few words of the priest. If this were so all would have made their lives happy already . According to the story, Indrani tied the Rakhi to Indra, her husband. Therefore this thread of purity is not simply for brother to protect a sister, for, it is impossible for him to be there all the time. Additionally, how can a younger brother protect his elder sister ?
Raksha Bandhan is a festival that spreads the message of Purity in our thoughts, words and deeds. Only when we inculcate purity in our lives in society, in our family can there be real peace and happiness in the world . Because purity is the mother of peace and happiness. By tying a Rakhi to the brother , this life can become pure and will be inspired to follow a principlesof divine life. The brother will have relationship of purity and huminity for all women. In actual fact, Raksha Bandhan is a symbol for one’s Protection . Shiva the supreme father, the Almighty Authority is our over lasting Protector. Through his remembrance our action can easily become pure and elevated. At the time of Raksha Bandhan a tilak of Sandal wood is applied, this tilak is the memorial of the form of the self as a soul filled with virtues and powers.We are all eternal immortal
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and inperishable souls. All souls are brothers, Our religion is purity, peace, love and bliss.The tilak inspires us to see all souls in this light.
To sweeten ones mouth means to speak, elevated divine worlds.During Rakhi, a brother gives his sister some money for her expenses.The spiritual significianceof this is to donate (money) the 5 vices to God. Only then the eclipse of Peacelessness, sorrow impurity be renowed, This is why there is a saying “ Remove the eclipse by donations” The power to destroy the powerof the vices is with the supreme soul alone.
At this time, God has incarnated on this impure vicious world to protect souls from the enemy of the vices. For this, the supreme soul is giving all souls the message of purity.The memorial of this is ‘Rakhi’. Also this is not just , for one day, but we have to remain pure as long as we live. This festival is celebrated every year in order to maintain our practise of purity.
Purity does not only mean the Practise of celibacy .It means to follow God’s direction in our activities,words, relations, and thoughts. If this is broken it is also impurity. Then there will be the experience of peacelessness sorrow and we cannot be protected by God.
Now, God himself is tying this Rakhi of purity to us. Because many obstacles such as natural calamities, destructive power of sceintific invention i.e nuclear war, are facing us as part of the Transformation of the world. Purity is an essential protection, not only for the self, but for others tooo at this time. Along with this purity is essential in order to become future Deties.
This year, therefore, together we need to tie the thread of subtle purity and make this promise to God.Whatever subtle or gross vices you have, give them to God as a donation. Only then can we be protected from vicious attitudes and can create the kingdom of the Golden Age. There will be peace in our lives, peace in the world and their will be security in all aspects.
It is of this purity that reminds us by this festival of ‘Rakhi’. cc
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RAKSHA BANDHAN REMINDS US “PURITY”
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SHANTIVAN,ABU ROAD.
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Raksha Bandhan Festival is a pious, religious and cultural one. If this festival is celebrated from
spiritual prospective, it will bind the mankind as a whole with love and brotherhood and free them
even from subtle vices and save them from outwardly cheats.
Outwardly, this festival is celebrated by tying a sacred thread by a Brahmin to his host (yajman) and by the sister to her brother but spiritual secret (meaning) is quit different. But by understanding its real spiritual purpose ,many problems and difficulties that arise in human relations can be removed. Specially this “Raksha Bandhan” festival is an effort ,by the Brahmin by reciting spiritual verse and tying the sacred thread to his yajman with a view to do away the various types of his poverty and effect off ill -luck . There is a very famous story of tying the sacred thread by the queen of paradise Indrani to Lord “Indra” at a time when he lost his kingdom and treasure to devils forces. At that time Indrani remembered God and in her Divine thoughts she tied the sacred thread, a symbol of Purity and Lord Indra again fought with Devil forces and defeated them, was victorious and won over his kingdom and treasures.
In those days when India was being attacked by Foreign enemies ,Hindu Ladies and sisters devise a way of celebrating the festival of with new brothers by tying sacred thread - a symbol of purity to save themselves from enemy by giving them responsibility to save them and their honour in the time of difficulties.The custom of Rakhi is not just celebrates present within Hinduism, even great Mughal Emperor like Akbar and Humayuan established a pure relation by determing to protect them against impurity. According to the time and situation the festival of Raksha Bandhan has become an ordinary ritual of tying the thread, applying the tilak and sweetening the mouth.This ritual is also being practised less. The spiritual significance of Rakhi is totally different.
The message to all about Raksha Bandhan is :- to make our life elevated, powerful, peaceful, happy and secure for this we need purity of thoughts words and deeds.
It can be seen that it is impossible for a devotee to become happy and peaceful simply by a few words of the priest. If this were so all would have made their lives happy already . According to the story, Indrani tied the Rakhi to Indra, her husband. Therefore this thread of purity is not simply for brother to protect a sister, for, it is impossible for him to be there all the time. Additionally, how can a younger brother protect his elder sister ?
Raksha Bandhan is a festival that spreads the message of Purity in our thoughts, words and deeds. Only when we inculcate purity in our lives in society, in our family can there be real peace and happiness in the world . Because purity is the mother of peace and happiness. By tying a Rakhi to the brother , this life can become pure and will be inspired to follow a principlesof divine life. The brother will have relationship of purity and huminity for all women. In actual fact, Raksha Bandhan is a symbol for one’s Protection . Shiva the supreme father, the Almighty Authority is our over lasting Protector. Through his remembrance our action can easily become pure and elevated. At the time of Raksha Bandhan a tilak of Sandal wood is applied, this tilak is the memorial of the form of the self as a soul filled with virtues and powers.We are all eternal immortal
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and inperishable souls. All souls are brothers, Our religion is purity, peace, love and bliss.The tilak inspires us to see all souls in this light.
To sweeten ones mouth means to speak, elevated divine worlds.During Rakhi, a brother gives his sister some money for her expenses.The spiritual significianceof this is to donate (money) the 5 vices to God. Only then the eclipse of Peacelessness, sorrow impurity be renowed, This is why there is a saying “ Remove the eclipse by donations” The power to destroy the powerof the vices is with the supreme soul alone.
At this time, God has incarnated on this impure vicious world to protect souls from the enemy of the vices. For this, the supreme soul is giving all souls the message of purity.The memorial of this is ‘Rakhi’. Also this is not just , for one day, but we have to remain pure as long as we live. This festival is celebrated every year in order to maintain our practise of purity.
Purity does not only mean the Practise of celibacy .It means to follow God’s direction in our activities,words, relations, and thoughts. If this is broken it is also impurity. Then there will be the experience of peacelessness sorrow and we cannot be protected by God.
Now, God himself is tying this Rakhi of purity to us. Because many obstacles such as natural calamities, destructive power of sceintific invention i.e nuclear war, are facing us as part of the Transformation of the world. Purity is an essential protection, not only for the self, but for others tooo at this time. Along with this purity is essential in order to become future Deties.
This year, therefore, together we need to tie the thread of subtle purity and make this promise to God.Whatever subtle or gross vices you have, give them to God as a donation. Only then can we be protected from vicious attitudes and can create the kingdom of the Golden Age. There will be peace in our lives, peace in the world and their will be security in all aspects.
It is of this purity that reminds us by this festival of ‘Rakhi’. cc
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THE MYSTERY OF SHRI KRISHNA जन्माष्टमी bk bhagwan
THE MYSTERY OF SHRI KRISHNA JANMASHTAMI
We celebrate the birth anniversaries of great men like Nehru, Vivekanand, Ramtirth etc, Their birthdays are observed because they had led an uncommon life, dedicated to a national, religions or social cause.
Few of the great men worked for a political cause, some for social and some for spiritual cause. But there has been no person in the human history that has excelled in all fields of human activity. Neither have there been persons who are worshipped. There are a few men who are known as ('Mahatma') great Soul. But Sri Krishna had excelled in all three fields of activity. He is not only praise worthy
But also worship worthy. This is because he was totally vice less possessed 16 celestial arts and was 'Maryada Purshottam'.
Very few persons lead a pure life even then they don' t did not attain a completely pure stage, nor do they have p pure birth. Hence, they don't become worship worthy. They are not remembered for their births but for the deeds they have done in the course of their lives. But Sri Krishna is praised and worshipped right from his birth. Hence Infect Krishna is shown as being rocked in a cradle affectionately by mothers. Sri Krishna was pure by birth hence; his mother saw a vision of the four-armed Vishnu. Sri Krishna 'a childhood pictures also show a halo around his head, which is a symbol of purity. The peacock feather in his crown is also symbol of purity, as peacocks are considered pure. All this shows that Sri Krishna was completely pure.
Each part of Sri Krishna 's body is compared to a lotus. Lotus is also a symbol of purity hence, it is said, lotus like eyes, lotus like hands, lotus like mouth, lotus like feet etc. Sri Krishna had all the virtues. He had all the celestial arts like the full moon. These arts symbolize perfection. It is said of his birth, that he was born in the prison of Kansa when every body was asleep. His mother had a vision of Vishnu who himself took the form of body Krishna. In fact, this is the tale of the final phase of Kalyuga (Iron age) when this world represents a huge prison, wherein each being is under the influence of 5 vices and so unhappy. The whole world is ruled by wicked Kansa, i. e. the vices. Everywhere, there is chaos and pain. Small children, young people are killing themselves with Kansa’ s sickle of sex – lust, Every- body is surrounded with the five vices. At such time supreme Father comes on this earth in an incognito form and liberates the souls from the prison of Kansa i. e. the vices. He comes as the boatman who librates us across the poisonous river of Hell to Heaven.
Actually, Sir Krishna was the first prince of Heaven. He was born in heaven (paradise). Sri Krishna is the childhood form Sri Narayan, Hence it is sung:
‘Sri Krishna Govind Here Murare
He Naath Narayan Vasudeva’
This shows that Sri Krishna grows up to become Sri Narayan. Neither Sri Narayan’ s birthday celebrated nor his childhood ever described. Sri Krishna was in the Golden Age because he is known as ‘Vaikuntha Naath ‘i.e. the Lord of paradise. We cannot call him the copper Age paradise. Sri Krishna was born in the Golden Age, the age of happiness. So, how did Krishna, whom we worship, become so great? Certainly, he must ‘ve done great deeds in his previous birth. That ‘s why he is praised right from his birth. He is as Yogiraj, so he must’ve practised yoga some time. Yoga is practised to achieve what desire to achieve. So he must have practiced yoga in his previous birth so he could become the prince of Golden Age, where one lacks nothing, one has everything one desires. So in the Golden Age, there is no need to practice of Yoga.
It was Heaven in Bharat at the time of Golden Age, which was called as the Golden of bird, and all were happy. It was then Sri Krishna and Sri Radha take births. It is called as the satyuga and King domes are there in the satyuga taking place one by one where the rulers the rulers are all known as Shree Lakshmi and shree Narayan.
Hence the name Janmashtami to the birthday of Sri Krishna who is the childhood of Narayana.
After that the same soul of Sri Krishna is taking births in different names and different forms. In the Tretayuga (silver age) there are 12 rebirths and 2 degree less.
Golden age and silver Age are of 1250yeara each and these are tow ages called Heaven. Then the soul of Sri Krishna was voiceless. It is in the copper age (Dwaparyuga) all become possessed with vices changes to a worshiper from the worshiped. It is the starting of the age of Bhakti. All are taking 21 births there and come to kalyug to take a 42 more. It is the same Great soul of Sri Krishna in Dwaparyuga becomes the impure black one from the pure beautiful. The soul of Sri Krishna is shown as black in kaliyuga and Dwapar Yuga, wahich means there are vices of the sex (lust) greed, anger, ego, attachment was in every soul. Then in order to transform from the black to the beautiful the supreme soul comes and teaches them spiritual knowledge and RajYoga. By this power of yoga he is again becoming white i.e. pure and the owner of Heaven.
The supreme soul in order to give this knowledge enters into the final birth’s body of Sri Krishna who had taken births in different forms and names. The final birth in which supreme soul enters is called the Praja Pita Brahma. It is said that the Sri Krishna is stealing butter but he is the prince of Satyug where there is no want of nothing. Actually it is symbol to show that the soul of Sri Krishna through
secretes Purusharth attaining the butter of world’s pre. It is also shown that Sri Krishna stealthily takes away the dress of Gopies. It is the most less beautiful corruption happened in Sastras. It is to show that the supreme soul by giving us knowledge at the end of iron age by which we are becoming soul conscious i.e. being free from the ‘dress’ of the soul called body.
Sri Krishna is known as ‘Shyam Sunder’ i.e. half dark and handsome, handsome means vice less shyam means vicious. It is said that once Sri Krishna jumped into a black river to retrieve a ball when a serpent bit him and he turned dark.
In fact it stands for the fair, worship worthy deities who plunged into vices during Copper Age and became black i.e. vicious. The meaning of Sri Krishna killing the serpent and bringing black the ball is that when God came and purified his soul through knowledge and yoga then he got back the sovereignty of Paradise.’
There are stories about the flute music of Sri Krishna and dance of Gopa Gopies. It is not the case of a flute made of bamboo but it is the symbol of supreme soul through the final birth’s body of Sri Krishna’s soul gibing us the ‘Flute music’ – Spiritual Knowledge. By hearing this flute music we gopa gopies forget everything, dot detached from the body to the original soul form and enjoys real happiness.
This is the mystery of Janmashtamy.
Hence, now we have to look inside ourselves and check whether we are becoming like Sri Krishna. We have to not just see the tabloids of Sri Krishna but also check ourselves inside. We have to not just light colorful bulbs but also light up our souls. We should celebrate Janmashtami in this way, and become like Sri Krishna.
The soul o Sri Krishna after doing the purusharth and becoming Sri Krishna is coming again into this earth, where all will be new, New world, New sky and Golden building…. All life filled with the eternal bless and everything gives happiness. Each and everyone will have clear healthy mind, body and pure soul to go there we should also have 16 degree completely vice less. Divine, mannered, non-violent for that you can contact the Prajapita Brahma Kumaris World Spiritual University which is established Golden age (Haven) by Supreme Soul where the Sri Krishna’s soul is also becoming pure beautiful from the black impure, from the worshiper to worshiped. You can also go there and become identical to the Sri Krishna and gain happiness of the coming Golden Age (Heaven). This is our Good wish for you on the day of Sri Krishna Janmashtami.
We celebrate the birth anniversaries of great men like Nehru, Vivekanand, Ramtirth etc, Their birthdays are observed because they had led an uncommon life, dedicated to a national, religions or social cause.
Few of the great men worked for a political cause, some for social and some for spiritual cause. But there has been no person in the human history that has excelled in all fields of human activity. Neither have there been persons who are worshipped. There are a few men who are known as ('Mahatma') great Soul. But Sri Krishna had excelled in all three fields of activity. He is not only praise worthy
But also worship worthy. This is because he was totally vice less possessed 16 celestial arts and was 'Maryada Purshottam'.
Very few persons lead a pure life even then they don' t did not attain a completely pure stage, nor do they have p pure birth. Hence, they don't become worship worthy. They are not remembered for their births but for the deeds they have done in the course of their lives. But Sri Krishna is praised and worshipped right from his birth. Hence Infect Krishna is shown as being rocked in a cradle affectionately by mothers. Sri Krishna was pure by birth hence; his mother saw a vision of the four-armed Vishnu. Sri Krishna 'a childhood pictures also show a halo around his head, which is a symbol of purity. The peacock feather in his crown is also symbol of purity, as peacocks are considered pure. All this shows that Sri Krishna was completely pure.
Each part of Sri Krishna 's body is compared to a lotus. Lotus is also a symbol of purity hence, it is said, lotus like eyes, lotus like hands, lotus like mouth, lotus like feet etc. Sri Krishna had all the virtues. He had all the celestial arts like the full moon. These arts symbolize perfection. It is said of his birth, that he was born in the prison of Kansa when every body was asleep. His mother had a vision of Vishnu who himself took the form of body Krishna. In fact, this is the tale of the final phase of Kalyuga (Iron age) when this world represents a huge prison, wherein each being is under the influence of 5 vices and so unhappy. The whole world is ruled by wicked Kansa, i. e. the vices. Everywhere, there is chaos and pain. Small children, young people are killing themselves with Kansa’ s sickle of sex – lust, Every- body is surrounded with the five vices. At such time supreme Father comes on this earth in an incognito form and liberates the souls from the prison of Kansa i. e. the vices. He comes as the boatman who librates us across the poisonous river of Hell to Heaven.
Actually, Sir Krishna was the first prince of Heaven. He was born in heaven (paradise). Sri Krishna is the childhood form Sri Narayan, Hence it is sung:
‘Sri Krishna Govind Here Murare
He Naath Narayan Vasudeva’
This shows that Sri Krishna grows up to become Sri Narayan. Neither Sri Narayan’ s birthday celebrated nor his childhood ever described. Sri Krishna was in the Golden Age because he is known as ‘Vaikuntha Naath ‘i.e. the Lord of paradise. We cannot call him the copper Age paradise. Sri Krishna was born in the Golden Age, the age of happiness. So, how did Krishna, whom we worship, become so great? Certainly, he must ‘ve done great deeds in his previous birth. That ‘s why he is praised right from his birth. He is as Yogiraj, so he must’ve practised yoga some time. Yoga is practised to achieve what desire to achieve. So he must have practiced yoga in his previous birth so he could become the prince of Golden Age, where one lacks nothing, one has everything one desires. So in the Golden Age, there is no need to practice of Yoga.
It was Heaven in Bharat at the time of Golden Age, which was called as the Golden of bird, and all were happy. It was then Sri Krishna and Sri Radha take births. It is called as the satyuga and King domes are there in the satyuga taking place one by one where the rulers the rulers are all known as Shree Lakshmi and shree Narayan.
Hence the name Janmashtami to the birthday of Sri Krishna who is the childhood of Narayana.
After that the same soul of Sri Krishna is taking births in different names and different forms. In the Tretayuga (silver age) there are 12 rebirths and 2 degree less.
Golden age and silver Age are of 1250yeara each and these are tow ages called Heaven. Then the soul of Sri Krishna was voiceless. It is in the copper age (Dwaparyuga) all become possessed with vices changes to a worshiper from the worshiped. It is the starting of the age of Bhakti. All are taking 21 births there and come to kalyug to take a 42 more. It is the same Great soul of Sri Krishna in Dwaparyuga becomes the impure black one from the pure beautiful. The soul of Sri Krishna is shown as black in kaliyuga and Dwapar Yuga, wahich means there are vices of the sex (lust) greed, anger, ego, attachment was in every soul. Then in order to transform from the black to the beautiful the supreme soul comes and teaches them spiritual knowledge and RajYoga. By this power of yoga he is again becoming white i.e. pure and the owner of Heaven.
The supreme soul in order to give this knowledge enters into the final birth’s body of Sri Krishna who had taken births in different forms and names. The final birth in which supreme soul enters is called the Praja Pita Brahma. It is said that the Sri Krishna is stealing butter but he is the prince of Satyug where there is no want of nothing. Actually it is symbol to show that the soul of Sri Krishna through
secretes Purusharth attaining the butter of world’s pre. It is also shown that Sri Krishna stealthily takes away the dress of Gopies. It is the most less beautiful corruption happened in Sastras. It is to show that the supreme soul by giving us knowledge at the end of iron age by which we are becoming soul conscious i.e. being free from the ‘dress’ of the soul called body.
Sri Krishna is known as ‘Shyam Sunder’ i.e. half dark and handsome, handsome means vice less shyam means vicious. It is said that once Sri Krishna jumped into a black river to retrieve a ball when a serpent bit him and he turned dark.
In fact it stands for the fair, worship worthy deities who plunged into vices during Copper Age and became black i.e. vicious. The meaning of Sri Krishna killing the serpent and bringing black the ball is that when God came and purified his soul through knowledge and yoga then he got back the sovereignty of Paradise.’
There are stories about the flute music of Sri Krishna and dance of Gopa Gopies. It is not the case of a flute made of bamboo but it is the symbol of supreme soul through the final birth’s body of Sri Krishna’s soul gibing us the ‘Flute music’ – Spiritual Knowledge. By hearing this flute music we gopa gopies forget everything, dot detached from the body to the original soul form and enjoys real happiness.
This is the mystery of Janmashtamy.
Hence, now we have to look inside ourselves and check whether we are becoming like Sri Krishna. We have to not just see the tabloids of Sri Krishna but also check ourselves inside. We have to not just light colorful bulbs but also light up our souls. We should celebrate Janmashtami in this way, and become like Sri Krishna.
The soul o Sri Krishna after doing the purusharth and becoming Sri Krishna is coming again into this earth, where all will be new, New world, New sky and Golden building…. All life filled with the eternal bless and everything gives happiness. Each and everyone will have clear healthy mind, body and pure soul to go there we should also have 16 degree completely vice less. Divine, mannered, non-violent for that you can contact the Prajapita Brahma Kumaris World Spiritual University which is established Golden age (Haven) by Supreme Soul where the Sri Krishna’s soul is also becoming pure beautiful from the black impure, from the worshiper to worshiped. You can also go there and become identical to the Sri Krishna and gain happiness of the coming Golden Age (Heaven). This is our Good wish for you on the day of Sri Krishna Janmashtami.
FREEDOM FROM THE BONDAGES OF VICES MEANS REAL ‘SWARAJY’ OR RAM RAJYA BK. BHAGWAN,SHANTIVAN.
FREEDOM FROM THE BONDAGES OF VICES MEANS REAL ‘SWARAJY’ OR RAM RAJYA
BK. BHAGWAN,SHANTIVAN.
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India was ruled by Britishers for over 150 years. During that period, we the Indians had to live on their mercy as they liked and had to bear a lot of troubles. All were having one thought that we can lead peaceful and contented life only in free india after getting freedom of India from british rule.Great leaders like Mahatma Gandhi, Lala lajpat rai Bal Gangadhar Tilak, Bipinchandra Pal, Pt. Nehru , Subhash Chander Bose, Smt. Sarojani Naidu made serious efforts. At last India become Independent on 15th August, 1947 and thus Indians became free from the clutches of Britishers.
Real freedom means where there is no bondage of any kind. No trouble, no peacelessness. When there shall be one Language, prosperity and all should have perfect health wealth and hapiness in true sense in the whole world. Mahatma Gandhi was having the dream of Ram Rajya. But today what we are witnessing even after 50 years attaining freedom, in India ? There are more differences among ourselves on the basis of language, caste, creed and religion.People are more in trouble peaceless condition Prices are rising, There is a lot of unrest around. Is it a Ram Rajya !! then why has such situation arrived?
Today not only in India but every human being in world has become a slave, Everyone is in the grip of five vices viz he is slave of Ravan or maya and non is able to free himself. All are under the influence of the bondages which are different in nature for each. viz:-
* Body Consciousness and its bondage.
* Bondage of five vices - sex lust, Anger, Greed, attachment
and ego.
* Bondage of his own thoughts.
* Bondage of his own nature and sanskars.
* Bondage of Nature.
* Bondage of luxuries of the body or bodily relations.
* Bondage of traditions of the society or family. and
* Even many other bondages.
Due to the above bondage’s, the result is always against the wishes of the people, Therefore they feel peaceless and disharmony in thoughts, words and deeds. Every one wants liberation from these bondage’s, and this is the real freedom. This work is only done by the Almighty incorporeal Supreme God father. Who has descended from his Supreme abode on this earth, when we realise ourselves as soul and establish our true relation mentally with that Incorporeal Supreme Soul (God Father) that is remember him with intense love. And while living in worldly life we will be leading a life like lotus to which we can say frution viz, a life free from all bondages. Really it’s a true peaceful life. At present all are leading life full of bondages i.e, Jeevan bandh’ stage and lfie is full of misery. To get ourselves free form all
bondage’s, we have to establish our true relation with the Supreme Soul. To get rid from all the five vices from within is the real freedom. It is the only basis to establish real Ram Rajya or swarajya and thus vision of the father of the nation Mahatma Gandhi will be realised by this people in the practise.
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om shanti
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BK. BHAGWAN,SHANTIVAN.
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India was ruled by Britishers for over 150 years. During that period, we the Indians had to live on their mercy as they liked and had to bear a lot of troubles. All were having one thought that we can lead peaceful and contented life only in free india after getting freedom of India from british rule.Great leaders like Mahatma Gandhi, Lala lajpat rai Bal Gangadhar Tilak, Bipinchandra Pal, Pt. Nehru , Subhash Chander Bose, Smt. Sarojani Naidu made serious efforts. At last India become Independent on 15th August, 1947 and thus Indians became free from the clutches of Britishers.
Real freedom means where there is no bondage of any kind. No trouble, no peacelessness. When there shall be one Language, prosperity and all should have perfect health wealth and hapiness in true sense in the whole world. Mahatma Gandhi was having the dream of Ram Rajya. But today what we are witnessing even after 50 years attaining freedom, in India ? There are more differences among ourselves on the basis of language, caste, creed and religion.People are more in trouble peaceless condition Prices are rising, There is a lot of unrest around. Is it a Ram Rajya !! then why has such situation arrived?
Today not only in India but every human being in world has become a slave, Everyone is in the grip of five vices viz he is slave of Ravan or maya and non is able to free himself. All are under the influence of the bondages which are different in nature for each. viz:-
* Body Consciousness and its bondage.
* Bondage of five vices - sex lust, Anger, Greed, attachment
and ego.
* Bondage of his own thoughts.
* Bondage of his own nature and sanskars.
* Bondage of Nature.
* Bondage of luxuries of the body or bodily relations.
* Bondage of traditions of the society or family. and
* Even many other bondages.
Due to the above bondage’s, the result is always against the wishes of the people, Therefore they feel peaceless and disharmony in thoughts, words and deeds. Every one wants liberation from these bondage’s, and this is the real freedom. This work is only done by the Almighty incorporeal Supreme God father. Who has descended from his Supreme abode on this earth, when we realise ourselves as soul and establish our true relation mentally with that Incorporeal Supreme Soul (God Father) that is remember him with intense love. And while living in worldly life we will be leading a life like lotus to which we can say frution viz, a life free from all bondages. Really it’s a true peaceful life. At present all are leading life full of bondages i.e, Jeevan bandh’ stage and lfie is full of misery. To get ourselves free form all
bondage’s, we have to establish our true relation with the Supreme Soul. To get rid from all the five vices from within is the real freedom. It is the only basis to establish real Ram Rajya or swarajya and thus vision of the father of the nation Mahatma Gandhi will be realised by this people in the practise.
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om shanti
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Thursday, August 4, 2011
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
mpm - 15 days ago
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झाबुआ (एमपी मिरर)। एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मांउट आबु से पधारे हुए राजयोगी ब्रम्हकुमार भगवान भाई ने कहे। वे शारदा विद्या निकेतन और सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा लालच भ्रम, बेईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरूद्घ आचरण करने के लिए उकराता है। उन्होने बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोडकर नैतिकता के तरफ जाना है। जीवन में नैतिक शिक्षा आचरण में लाना ही शिक्षा का मुल उददेश्य है। नैतिक मूल्यों की धारण से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल, मनोबल बढता है। उन्होने कहा कि नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सदगुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पान बन सकते है। उन्होने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुदंरता और वरदान है। जीवन में धारण किये हुए मूल्य ही हमारे श्रैष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है।
भगवान भाई ने कहा कि मूल्य ही हमारे जीवन की अनमोल निधि है। मूल्यों के आधार से हम अपने जीवन में खुशी प्रदान कर सकते है। मूल्य ही हमारे सच्चे मित्र है। उन्होने आगे बताया कि शिक्षा उददेश्य बंधनों से मुक्ति के तरफ से जाना रही है नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों के आधार से ही हम निर्वधंन तथा स्वालंबी बन सकत है। मूल्यों के आधार से ही यह चलता है। उन्होने बताया कि अगर मूल्यों का हास होगा तो यह संसार विरान हो जायेगा।
राक्षसी प्रवृत्ति द्वारा जीवन दिन प्रति दिन दुखी अशांत बनता जायेगा। उन्होने बताया कि अगर जीवन मूल्यों को नष्टï करोगे तो हमारा जीवन भी ऐसा ही व्यर्थ नष्टï हो जायेगा। जो मूल्यों की रक्षा करेगा उसकी ही रक्षा मूल्य करेंगे अर्थात वह व्यक्ति अमरत्वा को प्राप्त करेगा। उन्होने बताया कि अमर बनना ही शिक्षा का मूल उददेश्य है। स्थानीय ब्रम्हकुमारीय की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का परिचय दिया उन्होने बताया कि आधयात्मीकता नही अपनाने का मतलब जीवन में मानवीय नैतिक मुल्य नही अपनाना है।
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
mpm - 15 days ago
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झाबुआ (एमपी मिरर)। एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मांउट आबु से पधारे हुए राजयोगी ब्रम्हकुमार भगवान भाई ने कहे। वे शारदा विद्या निकेतन और सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा लालच भ्रम, बेईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरूद्घ आचरण करने के लिए उकराता है। उन्होने बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोडकर नैतिकता के तरफ जाना है। जीवन में नैतिक शिक्षा आचरण में लाना ही शिक्षा का मुल उददेश्य है। नैतिक मूल्यों की धारण से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल, मनोबल बढता है। उन्होने कहा कि नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सदगुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पान बन सकते है। उन्होने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुदंरता और वरदान है। जीवन में धारण किये हुए मूल्य ही हमारे श्रैष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है।
भगवान भाई ने कहा कि मूल्य ही हमारे जीवन की अनमोल निधि है। मूल्यों के आधार से हम अपने जीवन में खुशी प्रदान कर सकते है। मूल्य ही हमारे सच्चे मित्र है। उन्होने आगे बताया कि शिक्षा उददेश्य बंधनों से मुक्ति के तरफ से जाना रही है नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों के आधार से ही हम निर्वधंन तथा स्वालंबी बन सकत है। मूल्यों के आधार से ही यह चलता है। उन्होने बताया कि अगर मूल्यों का हास होगा तो यह संसार विरान हो जायेगा।
राक्षसी प्रवृत्ति द्वारा जीवन दिन प्रति दिन दुखी अशांत बनता जायेगा। उन्होने बताया कि अगर जीवन मूल्यों को नष्टï करोगे तो हमारा जीवन भी ऐसा ही व्यर्थ नष्टï हो जायेगा। जो मूल्यों की रक्षा करेगा उसकी ही रक्षा मूल्य करेंगे अर्थात वह व्यक्ति अमरत्वा को प्राप्त करेगा। उन्होने बताया कि अमर बनना ही शिक्षा का मूल उददेश्य है। स्थानीय ब्रम्हकुमारीय की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का परिचय दिया उन्होने बताया कि आधयात्मीकता नही अपनाने का मतलब जीवन में मानवीय नैतिक मुल्य नही अपनाना है।
महाराष्ट्र मानपत्र : रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नो
महाराष्ट्र मानपत्र : महाराष्ट्राच्या शिरपेचातील मानाचा तूरा : नवरत्नांची खाण असणाया महाराष्ट्राच्या मातीत जन्मलेल्या रत्नांची महिमा सांगणारे स्वतंत्र व्यासपिठ :
रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई
इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी.
12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम. ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव
महाराष्ट्र मानपत्र : महाराष्ट्राच्या शिरपेचातील मानाचा तूरा : नवरत्नांची खाण असणाया महाराष्ट्राच्या मातीत जन्मलेल्या रत्नांची महिमा सांगणारे स्वतंत्र व्यासपिठ :
रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई
इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी.
12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम. ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव
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इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी.
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इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है।
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इसके बगैर मनुष्य का काम नहीं चल सकता। ये विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विवि माउंट आबू के भगवान भाई ने व्यक्त किए। वे उमियाधाम पाटीदार कन्या छात्रावास में विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों की कमी से ही समस्याएं बढ़ रही है। ज्ञान की व्याख्या में उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। समाज अमूर्त है, वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता, मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। प्रगतिशील एवं श्रेष्ठ समाज इन्हीं मूल्यों से परिभाषित होता है। उन्होंने शिक्षा को ऐसा बीज बताया, जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। ओमशांति भवन के राजयोगी प्रकाश भाई ने कहा कि कुसंग व फैशन से युवा भटक रहा है, इससे बच्चों की दूरी आवश्यक है। प्राचार्य बबीता हार्डिया ने बताया कि मूल शिक्षा से ही व्यक्ति महान बनता है, सद्गुणों से ही व्यक्तित्व निखरता
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इसके बगैर मनुष्य का काम नहीं चल सकता। ये विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विवि माउंट आबू के भगवान भाई ने व्यक्त किए। वे उमियाधाम पाटीदार कन्या छात्रावास में विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों की कमी से ही समस्याएं बढ़ रही है। ज्ञान की व्याख्या में उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। समाज अमूर्त है, वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता, मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। प्रगतिशील एवं श्रेष्ठ समाज इन्हीं मूल्यों से परिभाषित होता है। उन्होंने शिक्षा को ऐसा बीज बताया, जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। ओमशांति भवन के राजयोगी प्रकाश भाई ने कहा कि कुसंग व फैशन से युवा भटक रहा है, इससे बच्चों की दूरी आवश्यक है। प्राचार्य बबीता हार्डिया ने बताया कि मूल शिक्षा से ही व्यक्ति महान बनता है, सद्गुणों से ही व्यक्तित्व निखरता
Monday, August 1, 2011
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है।
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इसके बगैर मनुष्य का काम नहीं चल सकता। ये विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विवि माउंट आबू के भगवान भाई ने व्यक्त किए। वे उमियाधाम पाटीदार कन्या छात्रावास में विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों की कमी से ही समस्याएं बढ़ रही है। ज्ञान की व्याख्या में उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। समाज अमूर्त है, वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता, मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। प्रगतिशील एवं श्रेष्ठ समाज इन्हीं मूल्यों से परिभाषित होता है। उन्होंने शिक्षा को ऐसा बीज बताया, जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। ओमशांति भवन के राजयोगी प्रकाश भाई ने कहा कि कुसंग व फैशन से युवा भटक रहा है, इससे बच्चों की दूरी आवश्यक है। प्राचार्य बबीता हार्डिया ने बताया कि मूल शिक्षा से ही व्यक्ति महान बनता है, सद्गुणों से ही व्यक्तित्व निखरता है।
20 जुलाई (झाबुआ) परचिन्तन वाला कभी सुखी नही रह सकता - ब्र.कु.भगवान भाई.
20 जुलाई (झाबुआ) परचिन्तन वाला कभी सुखी नही रह सकता - ब्र.कु.भगवान भाई.20 जुलाई (झाबुआ) परचिन्तन वाला कभी सुखी नही रह सकता - ब्र.कु.भगवान भाई.
बालोतरा --कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता ब्रह्मकुमार भगवान भाई ।
बालोतरा & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा बालोतरा की ओर से शुक्रवार को बालोतरा उप कारागृह में संस्कार परिवर्तनबालोतरा & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा बालोतरा की ओर से शुक्रवार को बालोतरा उप कारागृह में संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहा कि कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के कर्म से ही वात्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति समान माने जाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है, उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्यों की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। केवल हमें उसकी गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलना है। भगवानभाई ने कहा कि यह कारागृह बंदियों के लिए तपस्थली है। इसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचना है कि मै इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। उन्होंने बंदियों को इन बातों पर चिंतन कर बदला लेने की भावना की बजाय स्वयं को बदलने की पे्ररणा दी। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके उमाबहन ने कहा कि हमें परमात्मा ने ये इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ, लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में ये इंद्रियां अधूरे रूप में होंगी। जेल अधीक्षक सुरेंद्रसिंह ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम अपने आप को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। मनोबल कमजोर होने से शांति, एकाग्रता भंग हो जाती है। कार्यक्रम में बीके भलाराम ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी दी एवं व्यवबालोतरा & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा बालोतरा की ओर से शुक्रवार को बालोतरा उप कारागृह में संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहा कि कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के कर्म से ही वात्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति समान माने जाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है, उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्यों की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। केवल हमें उसकी गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलना है। भगवानभाई ने कहा कि यह कारागृह बंदियों के लिए तपस्थली है। इसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचना है कि मै इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। उन्होंने बंदियों को इन बातों पर चिंतन कर बदला लेने की भावना की बजाय स्वयं को बदलने की पे्ररणा दी। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके उमाबहन ने कहा कि हमें परमात्मा ने ये इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ, लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में ये इंद्रियां अधूरे रूप में होंगी। जेल अधीक्षक सुरेंद्रसिंह ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम अपने आप को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। मनोबल कमजोर होने से शांति, एकाग्रता भंग हो जाती है। कार्यक्रम में बीके भलाराम ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी दीहार शुद्धि पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहा कि कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के कबालोतरा & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा बालोतरा की ओर से शुक्रवार को बालोतरा उप कारागृह में संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहा कि कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के कर्म से ही वात्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति समान माने जाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है, उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्यों की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। केवल हमें उसकी गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलना है। भगवानभाई ने कहा कि यह कारागृह बंदियों के लिए तपस्थली है। इसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचना है कि मै इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। उन्होंने बंदियों को इन बातों पर चिंतन कर बदला लेने की भावनाBk ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके उमाबहन ने कहा कि हमें परमात्मा ने ये इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ, लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में ये इंद्रियां अधूरे रूप में होंगी। जेल अधीक्षक सुरेंद्रसिंह ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम अपने आप को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। मनोबल कमजोर होने से शांति, एकाग्रता भंग हो जाती है। कार्यक्रम में बीके भलाराम ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी दीर्म से ही वात्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति समान माने जाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है, उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्यों की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। केवल हमें उसकी गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलना है। भगवानभाई ने कहा कि यह कारागृह बंदियों के लिए तपस्थली है। इसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचना है कि मै इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। उन्होंने बंदियों को इन बातों पर चिंतन कर बदला लेने की भावना की बजाय स्वयं को बदलने की पे्ररणा दी। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके उमाबहन ने कहा कि हमें परमात्मा ने ये इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ, लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में ये इंद्रियां अधूरे रूप में होंगी। जेल अधीक्षक सुरेंद्रसिंह ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम अपने आप को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। मनोबल कमजोर होने से शांति, एकाग्रता भंग हो जाती है। कार्यक्रम में बीके भलाराम ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी दी
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
mpm - 15 days ago
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झाबुआ (एमपी मिरर)। एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मांउट आबु से पधारे हुए राजयोगी ब्रम्हकुमार भगवान भाई ने कहे। वे शारदा विद्या निकेतन और सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा लालच भ्रम, बेईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरूद्घ आचरण करने के लिए उकराता है। उन्होने बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोडकर नैतिकता के तरफ जाना है। जीवन में नैतिक शिक्षा आचरण में लाना ही शिक्षा का मुल उददेश्य है। नैतिक मूल्यों की धारण से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल, मनोबल बढता है। उन्होने कहा कि नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सदगुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पान बन सकते है। उन्होने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुदंरता और वरदान है। जीवन में धारण किये हुए मूल्य ही हमारे श्रैष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है।
भगवान भाई ने कहा कि मूल्य ही हमारे जीवन की अनमोल निधि है। मूल्यों के आधार से हम अपने जीवन में खुशी प्रदान कर सकते है। मूल्य ही हमारे सच्चे मित्र है। उन्होने आगे बताया कि शिक्षा उददेश्य बंधनों से मुक्ति के तरफ से जाना रही है नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों के आधार से ही हम निर्वधंन तथा स्वालंबी बन सकत है। मूल्यों के आधार से ही यह चलता है। उन्होने बताया कि अगर मूल्यों का हास होगा तो यह संसार विरान हो जायेगा।
राक्षसी प्रवृत्ति द्वारा जीवन दिन प्रति दिन दुखी अशांत बनता जायेगा। उन्होने बताया कि अगर जीवन मूल्यों को नष्टï करोगे तो हमारा जीवन भी ऐसा ही व्यर्थ नष्टï हो जायेगा। जो मूल्यों की रक्षा करेगा उसकी ही रक्षा मूल्य करेंगे अर्थात वह व्यक्ति अमरत्वा को प्राप्त करेगा। उन्होने बताया कि अमर बनना ही शिक्षा का मूल उददेश्य है। स्थानीय ब्रम्हकुमारीय की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का परिचय दिया उन्होने बताया कि आधयात्मीकता नही अपनाने का मतलब जीवन में मानवीय नैतिक मुल्य नही अपनाना है।
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झाबुआ (एमपी मिरर)। एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मांउट आबु से पधारे हुए राजयोगी ब्रम्हकुमार भगवान भाई ने कहे। वे शारदा विद्या निकेतन और सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा लालच भ्रम, बेईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरूद्घ आचरण करने के लिए उकराता है। उन्होने बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोडकर नैतिकता के तरफ जाना है। जीवन में नैतिक शिक्षा आचरण में लाना ही शिक्षा का मुल उददेश्य है। नैतिक मूल्यों की धारण से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल, मनोबल बढता है। उन्होने कहा कि नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सदगुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पान बन सकते है। उन्होने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुदंरता और वरदान है। जीवन में धारण किये हुए मूल्य ही हमारे श्रैष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है।
भगवान भाई ने कहा कि मूल्य ही हमारे जीवन की अनमोल निधि है। मूल्यों के आधार से हम अपने जीवन में खुशी प्रदान कर सकते है। मूल्य ही हमारे सच्चे मित्र है। उन्होने आगे बताया कि शिक्षा उददेश्य बंधनों से मुक्ति के तरफ से जाना रही है नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों के आधार से ही हम निर्वधंन तथा स्वालंबी बन सकत है। मूल्यों के आधार से ही यह चलता है। उन्होने बताया कि अगर मूल्यों का हास होगा तो यह संसार विरान हो जायेगा।
राक्षसी प्रवृत्ति द्वारा जीवन दिन प्रति दिन दुखी अशांत बनता जायेगा। उन्होने बताया कि अगर जीवन मूल्यों को नष्टï करोगे तो हमारा जीवन भी ऐसा ही व्यर्थ नष्टï हो जायेगा। जो मूल्यों की रक्षा करेगा उसकी ही रक्षा मूल्य करेंगे अर्थात वह व्यक्ति अमरत्वा को प्राप्त करेगा। उन्होने बताया कि अमर बनना ही शिक्षा का मूल उददेश्य है। स्थानीय ब्रम्हकुमारीय की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का परिचय दिया उन्होने बताया कि आधयात्मीकता नही अपनाने का मतलब जीवन में मानवीय नैतिक मुल्य नही अपनाना है।
महाराष्ट्र मानपत्र : रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नो
महाराष्ट्र मानपत्र : महाराष्ट्राच्या शिरपेचातील मानाचा तूरा : नवरत्नांची खाण असणाया महाराष्ट्राच्या मातीत जन्मलेल्या रत्नांची महिमा सांगणारे स्वतंत्र व्यासपिठ :
रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई
इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी.
12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम.
रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई
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12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम.
रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई
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12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम.
किसी भी व्यक्ति से मिलते समय आपका व्यक्तित्व ही सामने वाले व्यक्ति पर अच्छा-बुरा प्रभाव डालता है
किसी भी व्यक्ति से मिलते समय आपका व्यक्तित्व ही सामने वाले व्यक्ति पर अच्छा-बुरा प्रभाव डालता है। इसी वजह से आज सभी आकर्षक व्यक्तित्व बनाने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं। अष्टांग योग के विद्वानों के अनुसार ध्यान से हम खुद को निखार सकते हैं। सुबह के समय हमारा शरीर और मन दोनों स्फूर्ति भरे होते हैं। ताजगी का एहसास होता है और दिमाग में किसी प्रकार का दबाव नहीं होता। सुबह ध्यान करने से किसी तरह की बातें और विचार हमारे दिमाग में दिनभर नहीं चलते हैं, जिससे हमारे स्वास्थ्य और व्यवहार दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पूजन के बाद या सवेरे जल्दी उठकर ध्यान करने का बड़ा महत्व है। मंदिर में दर्शन के बाद थोड़ी देर बैठने का जो नियम है वह ध्यान के लिए ही होता है।ध्यान अपनी-अपनी रुचि के अनुसार किसी का भी किया जा सकता है। जैसे दीपक की लौ, कोई बिंदू, ईश्वर के रूप आदि। महत्व - सभी धर्मों की पूजा पद्धतियों और धर्म ग्रंथों में ध्यान को बहुत महत्व दिया गया है। ध्यान से मन, बुद्धि, चित्त, स्थिर होता है, तथा शरीर में ऊर्जा का निर्माण होता है। दिमाग की सारी शक्ति एक लक्ष्य पर केंद्रित हो जाती है, तथा दिनभर ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने लक्ष्य से नहीं भटकता। योग साधना में भी ध्यान का सातवां स्थान है। ध्यान का वैज्ञानिक महत्व - विचार शक्ति मनुष्य के पास एक अत्यंत महत्वपूर्ण शक्ति है। यदि मनुष्य अपने विचारों पर नियंत्रण कर सके तो वह असंभव को भी संभव में बदल सकता है। मनुष्य अपनी विचार शक्ति का अधिकांश भाग व्यर्थ की अनावश्यक कल्पनाओं में खर्च करता रहता है।
यदि मनुष्य ध्यान के माध्यम से विचारों पर नियंत्रण कर उसे अपने सार्थक और निश्चित लक्ष्य पर लगाए तो उसका हर कार्य सुगमता पूर्वक संपन्न हो जाता है। अत: ध्यान एक ऐसी अद्भूत वैज्ञानिक विधा है। जो मनुष्य को विचार शक्ति का सदुपयोग करना एवं एकाग्रता सिखाता है। वहीं अगर हम दिन या शाम के वक्त ध्यान करते हैं तो वैसा प्रभाव नहीं बना पाती, इसका मुख्य कारण है कि दिन में हम कामकाज में व्यस्त रहते हैं और इसी चिंता और कई तरह की बातें हमारे दिमाग में चलती रहती हैं, इस कारण ध्यान का हमको वैसा लाभ नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए।
पूजन के बाद या सवेरे जल्दी उठकर ध्यान करने का बड़ा महत्व है। मंदिर में दर्शन के बाद थोड़ी देर बैठने का जो नियम है वह ध्यान के लिए ही होता है।ध्यान अपनी-अपनी रुचि के अनुसार किसी का भी किया जा सकता है। जैसे दीपक की लौ, कोई बिंदू, ईश्वर के रूप आदि। महत्व - सभी धर्मों की पूजा पद्धतियों और धर्म ग्रंथों में ध्यान को बहुत महत्व दिया गया है। ध्यान से मन, बुद्धि, चित्त, स्थिर होता है, तथा शरीर में ऊर्जा का निर्माण होता है। दिमाग की सारी शक्ति एक लक्ष्य पर केंद्रित हो जाती है, तथा दिनभर ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने लक्ष्य से नहीं भटकता। योग साधना में भी ध्यान का सातवां स्थान है। ध्यान का वैज्ञानिक महत्व - विचार शक्ति मनुष्य के पास एक अत्यंत महत्वपूर्ण शक्ति है। यदि मनुष्य अपने विचारों पर नियंत्रण कर सके तो वह असंभव को भी संभव में बदल सकता है। मनुष्य अपनी विचार शक्ति का अधिकांश भाग व्यर्थ की अनावश्यक कल्पनाओं में खर्च करता रहता है।
यदि मनुष्य ध्यान के माध्यम से विचारों पर नियंत्रण कर उसे अपने सार्थक और निश्चित लक्ष्य पर लगाए तो उसका हर कार्य सुगमता पूर्वक संपन्न हो जाता है। अत: ध्यान एक ऐसी अद्भूत वैज्ञानिक विधा है। जो मनुष्य को विचार शक्ति का सदुपयोग करना एवं एकाग्रता सिखाता है। वहीं अगर हम दिन या शाम के वक्त ध्यान करते हैं तो वैसा प्रभाव नहीं बना पाती, इसका मुख्य कारण है कि दिन में हम कामकाज में व्यस्त रहते हैं और इसी चिंता और कई तरह की बातें हमारे दिमाग में चलती रहती हैं, इस कारण ध्यान का हमको वैसा लाभ नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए।
एकाग्रता के अभाव में मन की शक्तियां नष्ट होती रहती है।
मन शक्तियों का पुंज है। महामानवों को गढ़ने और नरपिशाचों को पैदा करने की सामर्थ्य मन में है। इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं मन के उत्थान-पतन की कहानियां है। एकाग्रता के अभाव में मन की शक्तियां नष्ट होती रहती है। प्रचंड शक्ति का स्त्रोत होते हुए भी उसकी क्षमताओं का लाभ नहीं मिल पाता। संकल्प-विकल्प पर ही उत्थान-पतन का क्रम निर्भर करता है। मन की एकाग्रता से ही वैज्ञानिक, कृषि, कलाकार और मनीषी उत्पन्न होते है। मन जब ऊर्ध्वगामी होता है तो मनुष्य महात्मा, संत या देवता बन जाता है। अधोगामी होने पर नर पशु, पिशाच बन जाता है। संकल्प की असीमशक्ति जानकर शास्त्रों में अनेक स्थानों पर उसकी स्तुति की गई है। शिवत्व से युक्त संकल्प की सराहना की गई है। मन का संकल्प शिव हो, रौद्र न हो। कल्याण का सृष्टा हो विनाश का रचयिता नहीं। शास्त्रों में मन की दो प्रकार की शक्तियों का वर्णन मिलता है-नयन व नियमन। शिथिलता को सक्रियता में बदलना नयन, और उद्यत आचरण से बचाए रखना नियमन कहलाता है। मन को समर्थ बनाने में इनसे सहायता मिलती है।
शरीर की इंद्रियां आयु के साथ क्षीण हो जाती है। पर मन आयु के बंधनों से परे होता है। वह सदा युवा बना रहता है। वह कभी बूढ़ा नहीं होता। उसकी गति से तीव्र चलने वाली किसी वस्तु का पता अभी तक नहीं चला। इच्छाशक्ति के अनेक चमत्कार देखने में आते है। वे मानसिक शुद्धि एवं एकाग्रता पर आधारित होते है। जिसका मन जितना पवित्र और शुद्ध होगा, उतना वह बलवान और प्रभावशाली होगा। संत, महात्माओं के शाप और वरदान चमत्कारी घटनाएं उनके मन की पवित्रता के परिणाम हैं। इसी कारण इस तत्व को सभी धर्मशास्त्रों में मन को पवित्र बनाने पर जोर दिया गया है। बिखराव से कमजोरी आती है। मन के बिखराव से चंचलता को रोकने के लिए दृढ़ अवलंबन की आवश्यकता होती है। मन को नियंत्रित करने के लिए उपासना को सर्वश्रेष्ठ अवलंबन बताया गया है। मन असीम सामथ्र्यो का स्त्रोत है। संकल्प शक्ति एवं विचारशक्ति की अनेक संपदाएं उसके अंदर छिपी हुई है। इन्हे जगाकर सही दिशा में नियोजित करने का प्रयास किया जा सके तो मनुष्य असीम शक्ति का स्वामी बन सकता है।
शरीर की इंद्रियां आयु के साथ क्षीण हो जाती है। पर मन आयु के बंधनों से परे होता है। वह सदा युवा बना रहता है। वह कभी बूढ़ा नहीं होता। उसकी गति से तीव्र चलने वाली किसी वस्तु का पता अभी तक नहीं चला। इच्छाशक्ति के अनेक चमत्कार देखने में आते है। वे मानसिक शुद्धि एवं एकाग्रता पर आधारित होते है। जिसका मन जितना पवित्र और शुद्ध होगा, उतना वह बलवान और प्रभावशाली होगा। संत, महात्माओं के शाप और वरदान चमत्कारी घटनाएं उनके मन की पवित्रता के परिणाम हैं। इसी कारण इस तत्व को सभी धर्मशास्त्रों में मन को पवित्र बनाने पर जोर दिया गया है। बिखराव से कमजोरी आती है। मन के बिखराव से चंचलता को रोकने के लिए दृढ़ अवलंबन की आवश्यकता होती है। मन को नियंत्रित करने के लिए उपासना को सर्वश्रेष्ठ अवलंबन बताया गया है। मन असीम सामथ्र्यो का स्त्रोत है। संकल्प शक्ति एवं विचारशक्ति की अनेक संपदाएं उसके अंदर छिपी हुई है। इन्हे जगाकर सही दिशा में नियोजित करने का प्रयास किया जा सके तो मनुष्य असीम शक्ति का स्वामी बन सकता है।
Saturday, July 30, 2011
ब्रह्माकुमार भगवान प्रजापिता ब्रह्मकुमारी इश्वरीय विश्वविद्यालय BK BHAGWAN BRAHMA KUMARIS
इंदौर जोने स्कूल जेल योग भट्टी सेवा विडियो बी के भगवान भाई शांतिवन लिंक विडियो
http://www.youtube.com/watch?v=cDInpvOq8_M
http://www.youtube.com/watch?v=K7N2Plk3sJI
http://www.youtube.com/watch?v=i34KZ__xYfM
http://www.youtube.com/watch?v=kOpJMrkI2JQ
http://www.youtube.com/watch?v=ValQRaR4MT8
http://www.youtube.com/watch?v=npv1dwnLlLk
http://www.youtube.com/watch?v=1uZQiFNtHGs
http://www.youtube.com/watch?v=5A6pQHg-vRc
http://www.youtube.com/watch?v=Pgz7ZaV4__k
B. K. BHAGWAN, SHANTIVAN, +919414534517, +919414008991
http://www.youtube.com/watch?v=cDInpvOq8_M
http://www.youtube.com/watch?v=K7N2Plk3sJI
http://www.youtube.com/watch?v=i34KZ__xYfM
http://www.youtube.com/watch?v=kOpJMrkI2JQ
http://www.youtube.com/watch?v=ValQRaR4MT8
http://www.youtube.com/watch?v=npv1dwnLlLk
http://www.youtube.com/watch?v=1uZQiFNtHGs
http://www.youtube.com/watch?v=5A6pQHg-vRc
http://www.youtube.com/watch?v=Pgz7ZaV4__k
B. K. BHAGWAN, SHANTIVAN, +919414534517, +919414008991
Friday, July 29, 2011
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ
‘चिंता है चिता की जड़’
स्र46 भास्कर न्यूज & बिलासपुर
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास करने पर बल देते हुए कहा कि दूसरों को देखकर चिंतित होना, नकारात्मकता से घिर जाना पतन की जड़ है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता।
उसलापुर स्थित ब्रह्माकुमारी शांति सरोवर में राजयोग साधना से संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम के दौरान भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। भगवान भाई ने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है। आध्यात्मिकता की व्याख्या करते हुए भगवान भाई ने कहा कि जब तक हम खुद को नहीं पहचानते तब तक परमात्मा से संबंध स्थापित नहीं कर सकते। इस मौके पर मुंगेली, जांजगीर, बिल्हा, राहौद, खरौद, तखतपुर, रतनपुर सहित शहर से करीब 500 सदस्य उपस्थित थे।
नैतिकता से ही सर्वांगीण विकास संभव : देवकीनंदन गल्र्स स्कूल में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में नैतिक शिक्षा के महत्व पर भगवान भाई ने कहा कि इससे ही वे अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर जाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे की कल के भविष्य हैं। अगर कल के समाज को बेहतर देखना चाहते हैं तो वर्तमान के विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा देकर संस्कारित किया जा सकता है।
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Thursday, July 21, 2011
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव
बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ
स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान के माध्यम से इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कर चुके बीके भगवान भाई गुरुवार को शहर के रेलवे स्कूल पहुंचे।
स्कूल में बीके भगवान ने कहा कि स्कूल ही शिक्षा का वो समुदाय है जहां हर वर्ग, धर्म, जाति के बच्चे पढऩे आते हैं। इन्हीं में से आगे चलकर विद्यार्थी इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, वकील बनते हैं। बाल्यावस्था में ही यदि नैतिक शिक्षा से अच्छे संस्कारों के बीज रोपें तो विद्यार्थियों के साथ समाज, देश का भविष्य भी सुनहरा होगा। वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में नैतिकता, धैर्यता, ईमानदारी गुणों की कमी हो रही है। बचपन में ही सही शिक्षा व संस्कार देना जरूरी है।
एसईसी रेलवे मिक्स्ड हायर सेकंडरी इंग्लिश मीडियम की छात्र-छात्राओं को सकारात्मक चिंतन का महत्व समझाते हुए भगवान भाई ने कहा कि इससे समाज में मूल्यों की खुशबू फैलती है। इसी से जीवन कीं हर समस्या का समाधान हो सकता है।
सिन-मा यानी सिनेमा है पाप की मां
भगवान भाई ने कहा कि बच्चे व युवा कुसंगति, सिनेमा, व्यसन, फैशन सहित 4 के फेर में पड़े हैं। इंटरनेट, मोबाइल का गलत उपयोग करते हुए दोस्तों की संगत में न चाहते हुए भी कई बार वे गलत राह पर चल देते हैं। धीरे-धीरे गलत कामों के संस्कार उनमें पड़ जाते हैं। नकारात्मक सोच होगी तो नकारात्मक जीवन बनेगा। आजकल युवा फैशन से आउटर पर्सनालिटी को निखारने में लगे रहते हैं।
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Wednesday, July 20, 2011
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
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व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुरा
Published on 21 Jul-2011
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व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
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Labels: बीके भगवान भाई
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर
भास्कर न्यूज & बिलासपुर
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।
बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।
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Labels: ब्रह्मकुमार भगवान
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंत
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियां और सद्गुणों को उभारकर जीवन में निखार ला सकते हैं।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय में कही। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता, अंतर्मुखताऐसे अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सकते हैं। राजयोग द्वारा ही मन की शांति भी संभव है। उन्होंने बताया राजयोग के अभ्यास से सुख की प्राप्ति होती है। भगवान भाई ने कहा अपने अनुभव के आधार पर राजयोग के अभ्यास द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक चिंतन के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश तनावपूर्ण परिस्थितियों में मन को एकाग्र और शांत रखने के लिए राजयोग संजीवनी बूटी की तरह काम आता है। राजयोग के अभ्यास से तनाव मुक्त बन हम अनेक बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं। मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचने का राजयोग एक कवच कुंडल है। उन्होंने कहा राजयोग द्वारा मन को सही दिशा निर्देशन मिलती है जिससे मन का भटकना खत्म हो जाता है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारांगण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को याद करना, मन, बुद्धि द्वारा उसे देखना, गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है।
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Sunday, July 17, 2011
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई भास्कर संवाददाता. झाबुआ नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना है तो नारी जाति को सशक्त करना होगा।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने कही। वे भारतीय स्त्री शक्ति संगठन में महिला सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिक की आवश्यकता विषय पर बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा नारी सबसे पहली गुरु है। प्राचीन भारत में महान पुरुषों को जन्म देने वाली नारी भी महान थी। इसलिए ऐसे महान पुरुषों का जन्म हुआ, नारी के संस्कार बच्चों में आते हैं।
उन्होंने कहा नारी जब सदगुणों से पूर्ण थी तब देवत्व रूप में थी। लेकिन अब अनेक प्रकार के दुर्गुणों से आज वही नारी दुर्बल और कमजोर बन चुकी है। भगवान भाई ने कहा नारी जाति को स्वयं जाग्रत होना होगा, स्वयं के कत्र्तव्य को पहचानना होगा।
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Saturday, July 16, 2011
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
ब्रह्मकुमारी संस्था
प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने कहा- तनाव पूर्ण रहेगी 2१वीं सदी
भास्कर संवाददाता & सेंधवा
समस्याओं के वर्तमान युग में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति मानसिक, शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। जबकि नकारात्मक सोच अनेक समस्याओं व बीमारी का कारण है।
१९वीं सदी तर्क की थी, २०वीं सदी प्रगति की रही लेकिन २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। इन परिस्थितियों में खुद को तनावमुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। जो व्यक्ति हर बात में सकारात्मक सोच रखता है वही जीवन में सुखी रह सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। सहन शुरू में कड़वा है लेकिन उसका अंत मीठा है। महापुरुषों ने अपनी सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। सहनशक्ति की कमी के कारण ही तनाव उत्पन्न होता है। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने यह उद्गार व्यक्त किए। वे स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा गुरुवार सुबह सत्संग भवन में आयोजित कार्यक्रम तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे।
चिंता या तनाव में क्यों रहें?: भगवानभाई ने गीता के महावाक्यों का उदाहरण देते हुए कहा जीवन की हर घटना कल्याणकारी है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। फिर चिंता या तनाव में रहने की आवश्यकता क्यों? उन्होंने कहा जो व्यक्ति दूसरों का अहित सोचता है वह जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता। न्यूटन के गतिरोधक नियम को बताते हुए कहा यदि कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी कभी उसके साथ भी ऐसा व्यवहार किया होगा। संसार में लागे खुद के दु:खों से तो दु:खी होते हैं लेकिन दूसरों के सुखों के कारण भी दु:खी हो जाते हैं।
मानवीय मूल्यों की कमी समस्याओं का मूल: मानवीय मूल्यों की कमी सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, पर्यावरणीय आदि सभी समस्याओं का मूल है। भविष्य के नाजुक समय में खुद को सुखी बनाने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही हमारी असली संपत्ति है।
राजयोग से रख सकते हैं इंद्रियों पर संयम: स्थानीय सेवा केंद्र की संचालक आशा बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। राजयोग की विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा परमशक्ति, परमात्मा को मन से याद करना व उनका गुणगान करना ही राजयोग है। इंदौर से आए प्रकाश भाई ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया यह कार्यक्रम ब्रह्मकुमारी संस्था के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रखा गया है। इस अवसर पर शहर सहित, वरला, जुलवानिया, ठीकरी, राजपुर आदि स्थानों से लोग शामिल हुए। कृष्णाबहन, काया बहन व अंजू बहन ने सहयोग दिया।
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जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट & ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी।यह बात ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्लेटिनम जुबली पर स्थानीय अगाल धर्मशाला में रोजयोग प्रशिक्षण कार्यक्रम में भगवान भाई ने कही। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है। भगवान भाई ने कहा जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसमें कोई विकास नहीं होता, किंतु कर्मों की गति से काम, क्रोध, मोह, अहंकार उत्पन्न होते हैं। ऐसे विकार हमारे शत्रु हैं। मुख्य अतिथि पूर्व विधायक माधौसिंह डावर ने तनावमुक्त जीवन के लिए एक बुराई त्यागने की बात शिविर में उपस्थित लोगों से की। श्री डावर ने जोबट में भी ध्यान केंद्र स्थापित करने में सहयोग देने की अपील की। अध्यक्षता कर रहे पं. नटवर श्यामा शर्मा ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व उपजेल जोबट में भी बंदियों को सद्मार्ग अपनाने के लिए व्याख्यान भगवान भाई ने दिए। अतिथियों का स्वागत यशपाल शर्मा ने किया।
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Labels: भगवान भाई
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से
ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से होता है और अंत पश्चाताप से, क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है, जिस कारण जीवन अशांत बन जाता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर ईश्वरप्रेमी भाई बहनों को क्रोधमुक्त जीवन विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। क्रोध की अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। यही मनुष्य से पाप कराता है। भगवान भाई ने क्रोध पर काबू पाने के भी उपाय बताए। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। आत्मनिश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। राजयोग द्वारा ही हम अपने कर्म इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा राजयोग द्वारा ही मन को सच्ची शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम के अंत में भगवानभाई ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया।
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Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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Labels: प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा
नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
शिक्षा का मूल उद्देश्य है मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना, स्वस्थ जीवन बनाना। इसके लिए मूल्य शिक्षा की अति आवश्यकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के अंतर्गत पटेल पब्लिक स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा शिक्षा ही जीवन को सशक्त, सकारात्मक और विकसित बना सकती है। जीवन में कर्मकुशलता, व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक विकास एवं विभिन्न विषयों के साथ आपसी स्नेह, सत्यता, पवित्रता, अंहिसा, करुणा, दया आदि मानवीय मूल्यों के पाठ भी विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी है।
उन्होंने कहा मानवीय मूल्यों के ह्रास के कारण समाज में हिंसक वृत्ति बढ़ती जा रही है। मूल्यों की शिक्षा के ह्रास के कारण मानव संबंधों में तनाव, अविश्वास, अशांति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण सामाजिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है।
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Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीयब्रह्माकुमार भगवानभाई
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कहा
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि वे ही समाज शिल्पी हैं। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणा से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणा से विद्यार्थियों में बल भरता है, आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था में शिक्षक-प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श शिक्षक विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। उन्होंने कहा शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे हैं तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षक के अंदर के जो संस्कार हैं, उनका विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार से नैतिक पाठ भी अवश्य पढ़ाएं।
सेवाभाव की आचरण की शिक्षा जुबान से
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है तो क्या पूरे जिले को मूलनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित हम सब मिलकर नहीं कर सकतें। अब आश्यकता है सेवाभाव की। आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। व्याख्याता कैलाशचंद्र सिसौदिया ने
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Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
Published on 19 Jun-2011
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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Labels: प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही
१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अब यह २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकार
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अब यह २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विवि माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा सहयोग गार्डन में रखे गए कार्यक्रम में तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने वर्तमान समय को समस्याओं का युग बताया और स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच रखने की बात कही। श्री भगवान भाई ने कहा विपरीत परिस्थितियों में समस्या में हर बातों में सकारात्मक सोचने की कला को बढ़ाता है। सकारात्मक सोचने वाला मानसिक, शारीरिक रूप से सदा स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच अनेक समस्या और बीमारियों का कारण है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते हैं। जीवन की मुश्किलों में यही पुण्य कर्म हमारी मदद करते हैं।१९ वीं सदी त
ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख तनाव मुक्त रह सकते हैं। उन्होंनें राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारागण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को मन बुद्धि से याद करना उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है। कार्यक्रम में विशेष राजयोग का अभ्यास व जीवन में आने वाली विभिन्न समस्या पर समाधान हो क्लासेस भी हुई। इस अवसर पर जोबट व खट्टाली आदि के भाई बहन उपस्थित थे।१९ वीं सदी त
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जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे > जीवन जीने की कला विषय पर राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने दिए व्याख्यान
जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे
> जीवन जीने की कला विषय पर राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने दिए व्याख्यान
भास्कर संवाददाता & खंडवा
सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने के लिए एवं स्वयं को को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचे। यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मुख्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने गुरुवार को ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवाकेंद्र रामनगर में ‘जीवन जीने की कला’ विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा हम अपने घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन अपने मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं। जिसमें मन अवाछंनीय खरपतवार रूपी अशुद्ध विचार उग आते हैं। इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दु:खों का सृजन होता है। शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चैतन्य शक्ति के रूप में आत्म विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हैं, अविनाशी हैं। इस विस्म्रति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। कार्यक्रम को बीके चंद्राबहनजी ने भी संबोधित किया। इस दौरान घाटाखेड़ी, सिंगोट, कालंका आदि गांव के लोग शामिल थे।
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भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
खरगोन & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शांतिवन के ब्रह्मकुमार भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में दर्ज हुआ है। विवि की खरगोन शाखा संचालक ब्रह्मकुमारी किरण बहन ने बताया उन्हें यह सम्मान समाज सुधार व शिक्षा की दिशा में किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिये संदेश देने के अथक प्रयासों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के कनॉट प्लेस में हुए कार्यक्रम में ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ के चीफ एडीटर विश्वरूप राय चौधरी द्वारा दिया गया।
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ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन क्रोध पर नियंत्रण सिखाता है राजयोग भास्कर संवाददाता. खरगोन
ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन
क्रोध पर नियंत्रण सिखाता है राजयोग
भास्कर संवाददाता. खरगोन
क्रोध मनुष्य के विवेक को नष्टï करता है। क्षणिक आवेश में मनुष्य न सुधरने वाली भूलें करता है। राजयोग इसी क्रोध पर नियंत्रण की कला सिखाता है। इसके माध्यम से हम आसुरी वृत्तियों को मोड़ कर जीवन में पुण्य संचय कर सकते हैं।
उक्त बातें राजयोग साधक भगवानभाई ने अन्नपूर्णा नगर स्थित ब्रह्मïकुमारी केंद्र पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते कही। क्रोध के प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा इससे शरीर की अंत:स्रावी प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है। जब मनुष्य दूसरों के अवगुणों का चिंतन, वर्णन करता है तो उसके दिमाग में भी घृणा, द्वेश के बीज बनते हैं। इसी का परिणाम क्रोध है। इससे मन की शांति, एकाग्रता और सहनशीलता जैसे सद्गुण नष्टï हो जाते हैं। उन्होंने बताया सकारात्मक चिंतन और राजयोग के निरंतर अभ्यास से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।
आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को आत्मा समझकर मन और बुद्धि से परमपिता का गुणगान करना ही राजयोग है। यह मानसिक बीमारियों से मुक्ति की संजीवनी है। इस दौरान केंद्र की ब्रह्मïकुमारी किरण ने कहा परमात्मा से मिली शक्तियां और ईश्वरीय ज्ञान ही हमारे सच्चे पथप्रदर्शक हैं। बाद में ब्रह्मïकुमार प्रभाकर ने सभी का आभार जताया।
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हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें
कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सीचें। हम घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते, जिससे मन में अवांछनीय खरपतवार रूपी विशुद्ध विचार उग आते हैं, इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दुखों का सृजन होता है
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कृषि विभाग में कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। वे जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा रोज अपनी आंतरिक स्थिति को सकारात्मक विचारों से भरपूर करें, जिससे मन और तन का बोझ समाप्त हो जाएगा। मन भारी होने से हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं। भगवान भाई ने कहा जो आंतरिक रूप से खुश होगा वही बाह्य जगत में भी खुश रह सकता है। जो खुश रहता है उनके साथ विपरीत परिस्थिति भी साथ देगी। उन्होंने कहा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चेतन्य शक्ति के रूप में आत्मा विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हंै, अविनाशी हैं। इस विस्मृति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। उन्होंने बताया कलियुग में मनुष्य स्वयं की असली पहचान भूल गया है। जिस कारण जीवन में अनेक दुख, तनाव, परेशानियां, विघ्न, समस्या चारों ओर दिखाई देती हैं।
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा मनुष्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के पीछे दौड़ रहा है। जिस कारण पारिवारिक स्नेह लुप्त हो चुका है। उन्होंने बताया जीवन को यदि अभिमान, अशांति, अनाचार, दुराचार, पापाचार रूपी राक्षसी प्रवृत्ति से बचाना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता ज्ञान का सहारा लेने की आवश्यकता है। सहायक संचालक कृषि जीएस त्रिवेदी ने भगवान भाई का आभार
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हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें
कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सीचें। हम घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते, जिससे मन में अवांछनीय खरपतवार रूपी विशुद्ध विचार उग आते हैं, इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दुखों का सृजन होता है
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कृषि विभाग में कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। वे जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा रोज अपनी आंतरिक स्थिति को सकारात्मक विचारों से भरपूर करें, जिससे मन और तन का बोझ समाप्त हो जाएगा। मन भारी होने से हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं। भगवान भाई ने कहा जो आंतरिक रूप से खुश होगा वही बाह्य जगत में भी खुश रह सकता है। जो खुश रहता है उनके साथ विपरीत परिस्थिति भी साथ देगी। उन्होंने कहा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चेतन्य शक्ति के रूप में आत्मा विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हंै, अविनाशी हैं। इस विस्मृति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। उन्होंने बताया कलियुग में मनुष्य स्वयं की असली पहचान भूल गया है। जिस कारण जीवन में अनेक दुख, तनाव, परेशानियां, विघ्न, समस्या चारों ओर दिखाई देती हैं।
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा मनुष्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के पीछे दौड़ रहा है। जिस कारण पारिवारिक स्नेह लुप्त हो चुका है। उन्होंने बताया जीवन को यदि अभिमान, अशांति, अनाचार, दुराचार, पापाचार रूपी राक्षसी प्रवृत्ति से बचाना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता ज्ञान का सहारा लेने की आवश्यकता है। सहायक संचालक कृषि जीएस त्रिवेदी ने भगवान भाई का आभार
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श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूली बच्चों से कहा भास्कर संवाददाता & झाबुआ
श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र
ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूली बच्चों से कहा
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
कोई भी राष्ट्र धन और शांति के बल से महान नहीं बन सकता। बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्यों से चरित्र बनता है, मूल्यों का व्यक्तिगत जीवन, समाज और राष्ट्र में बहुत बड़ा महत्व है। मूल्यों का स्त्रोत अध्यात्मिकता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्थानीय शासकीय उमावि रातीतलाई और न्यू पलाश हाईस्कूल के विद्याथर््िायों को संबोधित करते हुए कही। भगवान भाई ने कहा मूल्य शिक्षा प्रचीनकाल से ही चली आ रही है। मून्य शिक्षा के कारण ही भारत महान था उसकी विश्व में अपनी शान और पहचान थी। उन्होंने कहा कि मानव मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य है। भगवान भाई ने कहा मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर, दुख से सुख की ओर मरण से अमरत्व की ओर ले जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्द
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
कोई भी राष्ट्र धन और शांति के बल से महान नहीं बन सकता। बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्यों से चरित्र बनता है, मूल्यों का व्यक्तिगत जीवन, समाज और राष्ट्र में बहुत बड़ा महत्व है। मूल्यों का स्त्रोत अध्यात्मिकता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्थानीय शासकीय उमावि रातीतलाई और न्यू पलाश हाईस्कूल के विद्याथर््िायों को संबोधित करते हुए कही। भगवान भाई ने कहा मूल्य शिक्षा प्रचीनकाल से ही चली आ रही है। मून्य शिक्षा के कारण ही भारत महान था उसकी विश्व में अपनी शान और पहचान थी। उन्होंने कहा कि मानव मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य है। भगवान भाई ने कहा मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर, दुख से सुख की ओर मरण से अमरत्व की ओर ले जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य है। मानव मन के आंतरिक सद्गुणों और शक्तियों को जागृत करने वाली शिक्षा वर्तमान की आवश्यकता है। जीवन को महान बनाने के लिए भौतिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से जीवन परिपूर्ण होना जरूरी है। भगवान भाई ने कहा जीवन एक वृक्ष है इस जीवन
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‘अभिमान ही पतन की जड़ है’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ
‘अभिमान ही पतन की जड़ है’
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
स्वयं के गुणों की विशेषता, कला, धन और पद का अभिमान ही मनुष्य के पतन का कारण बनता है। अभिमान वाला व्यक्ति सदा तनाव में रहता है जिसके कारण वह अनेक गलतियां कर बैठता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र पर आत्म उन्नति का आधार आध्यात्मिकता विषय पर कही। उन्होंने कहा वर्तमान समय में मनुष्य स्वयं के सच्चे अस्तित्व को भूलने के कारण सदा देह अभिमान में रहता है। देह अभिमान के कारण ही वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों के वश में हो गया है। उन्होंने बताया वास्तव में हम सभी का असली स्वरूप आत्मा है। भगवान भाई ने कहा राजयोग द्वारा इंद्रियों पर काबू पाया जा सकता है। राजयोग से अति इंद्रिय सुख की प्राप्ति होती है, जिससे संसार के वस्तु, वैभव का भौतिक सुख फीका लगने लगता है तो इंद्रियों पर संयम पाना सहज हो जाता है।
जब मनुष्य के अंदर अभिमान पनपने लगता है तो उसके विचारों में नकारात्मकता आने लगती है। अभिमान करने से एकाग्रता भंग हो जाती है। जिस कारण तनाव पैदा हो जाता है। राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा वर्तमान परिस्थितियों का सामना करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की बहुत आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग के अभ्यास से हम अपने व्यवहार में निखार ला सकते हैं।
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सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव
बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याएं पैदा होती है, जिससे जीवन में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक नजरिया रखें, तो तनाव से मुक्त हो सकेंगे।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने बार एसोसिएशन में उपस्थित जज और वकीलों से कही। वे तनाव मुक्ति और जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा विचारों से स्मृति, दृष्टि, वृत्ति और दृष्टिकोण बनता है। विचार नकारात्मक है तो व्यवहार भी नकारात्मक होगा। उन्होंने कहा विचार को सकारात्मक बनाने से जीवन की सभी समस्या समाप्त हो जाएगी। सकारात्मक विचारों से व्यवहार भी सकारात्मक होगा। आत्म बल और मनोबल बढ़ेगा, जिससे व्यवहार में निखार आ जाएगा।
भगवान भाई ने कहा सकारात्मक विचारों से आंतरिक मन में स्थिरता आती है। मन एकाग्र हो जाता है, मन में सशक्तिकरण आ जाता है। एकाग्र मन शांति और सुख का आधार बन जाता है। उन्होंने कहा तनाव मुक्त होने के लिए जीवन के हर क्षण को सकारात्मक विचारों से सींचने का प्रयास करें। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्त्रोत बताते हुए कहा जब तक हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को नहीं अपनाते तब तक अपने विचारों में बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए कहा स्वयं के बारे में जानना, कर्म गति को जानना, सृष्टि रचयिता को जानना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है।
उन्होंने कहा आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण जीवन के नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन हो चुका है। वर्तमान परिवेश में तनाव, मानसिक, शारीरिक पीड़ाओं और बुरी आदतों से मुक्त होने के लिए जीवन में मूल्यों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जयंती बहन ने कहा हम सभी आत्मा भाई-भाई हैं। एक निराकार शिव परमात्मा के बच्चे हैं। चांद, सूर्य, तारांगण से पार सुनहरी लाल प्रकाशमय दुनिया रंगमंच पर पार्ट बजाने आए हैं।
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Wednesday, July 13, 2011
परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है।
ईश्वर ही सच्चा साथी
रतलाम। परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है। इसलिए परमात्मा को कभी नहीं भूलना चाहिए, हमेशा स्मरण में रखना चाहिए। यह विचार माऊंटआबू में स्थित ब्रह्मकुमारी शांति वन के ब्रह्मकुमार भगवान भाई शास्त्री नगर केंद्र पर मंगलवार को व्यक्त किए। वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय विशेष योग अनुभूति शिविर भाग लेने रतलाम आए थे। इनके साथ आए वल्लभभाई ने भी शिविर से जुड़ी ज्ञानवर्धक बाते ंशिविरार्थियों को बताई। शिविर प्रतिदिन सुबह 7 से 8 बजे तक आयोजित किया जा रहा है।
शास्त्री नगर केंद्र पर आयोजित चार दिवसीय शिविर के लिए बिलासपुर से आई मंजु बहन ने ध्यान-योग की गहरी अनुभूति कराई। उन्होंने कहा कि अगर दिल से हमने भगवान को अपना कहा तो हर खजाना अपना हो जाता है। हमारी स्थिति ऎसी हो जो हम भगवान की शक्ति ले सकें एवं भगवान की प्रेरणाओं को ग्रहण कर सकें। हमें ध्यान-योग में अपने आपको ऎसा ढाल कर तैयार कर लेना है, ताकि दु:खी, अशांत आत्माओं की सेवा कर सको। आलस्य व अलमेले पन का त्याग कर देना है। इंदौर जोन की हेमा दीदी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थी। कार्यक्रम में भिलाई की माधुरी बहन, ब्रह्माकुमारी की प्रभारी सरला बहन, संगीता बहन, कीरण बहन आदि उपस्थित थी।
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स्वर्णिम युग के नवनिर्माण के लिए विश्व रचयिता शिव भगवान का अवतरण हो चुका है
प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवा केंद्र पर स्वर्णिम युग के लिए परमात्म अवतरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने उपस्थित भाई-बहनों को संबोधित करते हुए कहा कि। लगभग 75 वर्षों से परमात्मा यह दिव्य कत्र्तव्य ब्रह्मकुमार व ब्रह्माकुमारियों से करवा रहे हैं। कुछ ही समय में परमात्मा अपना कत्र्तव्य पूर्ण कर परमधाम लौट जाएंगे। नियमित ईश्वरीय ज्ञान-योग करने वाले स्वर्णिम युग में पुन: देव रूप में जन्म लेंगे। सभी आत्माएं शांतिधाम में विश्राम कर पुन: अपने-अपने समय विश्व नाटक में आएगी। आज विश्व की स्थिति तेजी से बिगडऩा शुरू हो गई है। यह सारे लक्षण विश्व परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
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सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को भी आवश्यक बताया।
गुंडरदेही & अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के कार्यक्रम के तहत प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई स्थानीय शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों के बीच पहुंचे। उन्होंने सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को भी आवश्यक बताया। माता कर्मा महाविद्यालय एवं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना आज की आवश्यकता है। उन्होंने आगे बताया कि नैतिक मूल्यों की कमी व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है। विद्यार्थियों का मूल्यांकन आचरण, अनुसरण, लेखन, व्यवहारिक ज्ञान एवं अन्य बातों की तरफ प्रेरणा देने की आवश्यकता है।
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बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
जालोर। कर्मो की गति बड़ी गुहय है। कर्मो के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान् बनता है। ये उद््गार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउण्ट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहे। वे गुरूवार को जिला कारागृह में कैदियों को संस्कार परिवर्तन और व्यवहार शुद्धि विषय पर संबोधित कर रहे थे। भगवान भाई ने कहा कि मनुष्य के कर्म ही उसे वाल्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति के समान बनाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है। उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। उन्होंने कहा कि यह कारागृह आपके लिए तप स्थली है जिसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में टटोलना है, सोचना है कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से भेजा है। मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। वास्तव में मुझे क्या करना चाहिए, ऐसा चिंतन कर अब अपने व्यवहार और संस्कारों में परिवर्तन करना है। बी.के. रंजू बहन ने कहा कि स्वयं का मनोबल मजबूत रखो स्वयं को असहाय, अकेले, थके हुए महसूस नहीं करो।
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संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
Jun 04, 12:45 am
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बहादुरगढ़, जागरण संवाद केंद्र :
शहर के नाहरा-नाहरी रोड स्थित ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में बृहस्पतिवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें ब्रह्मकुमार भगवान भाई मुख्य रूप से मौजूद रहे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि संतोष जीवन का सर्वोत्तम धन है। संतोष को अपनाकर ही हम जीवन में सच्ची शांति की अनुभूति कर सकते है।
उन्होंने कहा कि बीती बातों को याद कर हम अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाते है। इससे उनकी सेहत पर भी कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें बीती बातों पर विराम लगाना सीखना चाहिए। संकल्प एक निधि है। इसे हर पल बचाना है। कारणों का निवारण ढूंढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या-क्यूं करके हम समस्या में ही उलझे रहते है। संकल्पों को बचाकर ही हम मनोबल बढ़ा सकते है। हर परिस्थिति का समाधान है ग्रह गति का ज्ञान। उन्होंने कहा कि गीता ज्ञान अनुसार हमें याद रखना चाहिए कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। बीती घटनाओं से सबक सीखकर हमें आगे बढ़ना चाहिए और क्रोध रूपी अक का फूल शिव पिता पर स्वाहा कर देना चाहिए।
पावन धाम की संचालिका ब्रह्मकुमारी अंजलि ने कहा कि इस दिव्य सत्संग का लाभ लेने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने बताया कि भगवान भाई पिछले तीस वर्षो से राजयोगी जीवन व्यतीत कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने पीडीएम कालेज में ईश्वरीय सेवाएं प्रदान कीं।
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जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है
उत्थान का दिया संदेश
खरगोन। जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है।
उक्त विचार प्रजापति ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी भगवानभाई ने राजयोग का जीवन में महत्व विष्ाय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। भगवान भाई ने सोमवार सुबह स्थानीय केंद्र के सदस्यों को प्रवचन दिए। इसके पश्चात उन्होंने जेल पहुंचकर कैदियों के बीच अपनी बात रखी। यहां उन्होंने कर्म की प्रधानता पर अपना उद्बोधन दिया। भगवानभाई मंगलवार सुबह केंद्र पर सदस्यों को प्रवचन देने के बाद दोपहर बोरांवा स्थित इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों को संबोधित करेंगे। केंद्र के सदस्य प्रभाकर कुलकर्णी ने बताया राजयोगी भगवानभाई विवि के सभी आश्रमों नैतिक मूल्यों के उत्थान के लिए प्रवचन देते हैं। साथ ही जेल, विद्यालय, महाविद्यालय में भी अपने विचारों को प्रबुद्धजनों के बीच रखते हैं।
दिया कर्म संदेश
राजयोगी भगवानभाई दोपहर जेल में पहुंचे, जहां उन्होंने कैदियों को कर्म की प्रधानता पर उद्बोधित किया। उन्होंने कर्म की महत्ता बताते हुए कहा कर्म से ही व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ और भ्रष्ट होता है। कलियुग में कर्म की प्रधानता है, इसलिए कर्मो के माध्यम से अपने जीवन को सुखी और खुशहाल बनाए।
नैतिक गुणों का उत्थान
संस्कारों में परिवर्तन और निरंतर नैतिक मूल्य के ह्रास पर राजयोगी ने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार इन विकारों पर राजयोग से विजय पाने के सूत्र बताए। उन्होंने व्यक्ति के सुखमय और खुशहाल जीवन के लिए नैतिक मूल्यों व गुणों के उत्थान पर जोर दिया
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वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। यह विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू
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पीथमपुर। वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। यह विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने रखे। वे यहां इंडोरामा में तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि 19 वीं सदी तर्क की थी,जबकि 20वीं सदी प्रगति की रही है,परन्तु अब यह 21 वीं सदी तनाव पूर्ण रहेगी। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में स्वयं को तनाव से दूर रखना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में,हर बातों में सकारात्मक सोच की कला को बढ़ावा दिया जा रहा है। सोचने वाला मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याओं और बीमारियों का कारण है। सत्संग के माध्यम से हमारी असली सम्पत्ति जीवन को मुश्किलों से बचाया जा सकता है। यही भगवान को पाने में मददगार भी साबित होता है। अत: प्रतिदिन सत्संग में भाग लेकर जीवन का धन्य बनाया जाए। इस अवसर पर इंदौर, महू, धार व पीथमपुर से सैकड़ों ब्रह्मकुमार भाई-बहन उपस्थित थे।
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Sunday, June 5, 2011
परमपिता परमात्मा शिव बाबा ब्रह्माकुमारी
शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं
परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा
मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का
में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़
विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए
कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो
सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया
है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।
रामेश्वरम् में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट
गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि
सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का
त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष
तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही
कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद
इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती।
आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम
सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश
सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के
इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू
परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो
चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज
राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव
पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।
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Saturday, June 4, 2011
योग का अति सरल अर्थ है -
योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है, उसी के साथ उस आत्मा का योग है. फिर वह चाहे व्यक्ति, वस्तु, वौभव या परिस्थिति हो या परमात्मा ही क्यों न हो. अब मन कहाँ-कहाँ जा सकता है, मन का कहीं भी जाने का आधार क्या हैं ? संसार में करोड़ो मनुष्य है लेकिन मन सभी के विषय में नहीं सोचता है. मन उसी के बारें में सोचेगा, जिसका उसे परिचय हो तो पहला आधार है परिचय. फिर जिसके साथ सम्बन्ध तीसरा आधार है स्नेह. जिससे स्नेह होता है उसके पास मन अपने आप चला जाता है. चौथा आधार है प्राप्ति. जहाँ से किसी को प्राप्ति होगी वहाँ से वह अपना मन हटाना ही नही चाहेंगा. तो किसी की भी याद के लिए मुख्य चार आधार है - परिचय, सम्बधन्ध, स्नेह और प्रापित. इनहीं चा आधारों के कारण मनुष्य की याद सदा बदलती ही रहती है
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Labels: BK BHAGWAN BHAI BRAHMA KUMARIS MOUNT ABU प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्सं
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन् ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।
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परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु
परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
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कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । होश ही धर्म है । होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।
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Wednesday, June 1, 2011
कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । महावीर ने कहा : होश ही
कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । महावीर ने कहा : होश ही धर्म है । महावीर कहते हैं : होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।
महावीर की देशना एकदम सीधी-सादी है लेकिन आज हमने उसे जटिल बना दिया है । इतना जटिल की अब लोग उससे पीछे हटने लगे हैं । महावीर एक दम सरल हैं, उनके उपदेश और भी सरल हैं लेकिन उनके तथाकथित अनुयायी बडे कठिन हैं और उन कठिन अनुयायियों ने महावीर और उनके धर्म को भी कठिन और जटिल बना दिया है । जैन धर्म के पिछडेपन का यही एक कारण है । जिस धर्म में अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह जैसे शाश्वत स्वर हों और वही धर्म सिकुड जाये बात समझ में नहीं आती है । जैन धर्म के पिछडेपन का कारण यही है कि जैन धर्म के सिद्धान्त तो अच्छे हैं लेकिन उनकी पैकिंग अच्छी नहीं है, प्रस्तुति अच्छी नहीं है । जमाना विज्ञापन और पैकिंग का है । किसी दुकान का माल कितना ही अच्छा क्यों ना हो, यदि उसकी पैकिंग अच्छी ना हो तो पैकिंग आकर्षक न हो तो दुकान चलती नहीं है । जैन धर्म के पास यही वजह है कि जैनियों की अच्छी चीज भी धूल-धूसरित हो रही है । अटाले में पडी धूल खा रही है । समय की नजाकत को पहचानिए और समय के साथ चलने की आदत डालिए । और हॉं, हो सके तो खुद भी सरल बनिए । क्योंकि महावीर कहते हैं चित्त की सरलता ही धर्म है, चरित्र की सरलता ही जीवन है । सरलता कैसी होती है, इसे गांधीजी के एक उदाहरण से समझें ।
कहते हैं एक बार गांधी जी लोकल गाडी में चंपारण से बतिया गॉंव जा रहे थे । वहॉं उनकी एक सार्वजनिक सभा थी । जिसे उन्हें सम्बोधित करना था । गांधी जी तीसरे दर्जे के डिब्बे में सवार थे । जगह मिल गई तो थोडा-सा पैर फैलाकर के लेट गये । किसी स्टेशन पर गाडी रुकी तो एक ग्रामीण युवक भी उसी डिब्बे में चढ आया । गांधी जी तो अभी सो रहे थे और उस युवक को बैठने के लिए जगह चाहिए थी । गांधी जी को सोता देखकर उस युवक ने गांधी को धक्का लगाते हुए कहा ऐ बुढ्ढे ! तेरे बाप की गाडी है क्या ? जो लम्बे पैर पसारकर सो रहा है, चल उठ, सीधा होकर बैठ । महात्मा गांधी तुरन्त उठ गये और चुपचाप शांत भाव से बैठ गये । इसको कहते हैं "सरलता' गांधी उत्तेजित नहीं हुए, शांत रहे । कुछ बोले भी नहीं, चुप रहे । वह युवक भी गांधी जी के पास ही पैर पसार कर बैठ गया ।
थोडी देर बाद उसने भजन गाना शुरु किया । भजन के बोल थे - "धन-धन गांधी तेरा अवतार, दुखियों के दु:ख काटन हार ।' धन-धन गांधी तेरा अवतार । गांधी जी भी यह भजन सुन रहे थे । दरअसल वह युवक भी गांधी के दर्शन करने और उन्हें सुनने के लिए बतिया गॉंव जा रहा था । युवक का भजन पूरा हुआ । गांधी जी ने भी भजन का पूरा आनंद लिया । वह बोले कुछ नहीं । यह है सरलता । अब तक युवक का भजन पूरा हो चुका था, उधर गाडी भी अपनी रफ्तार से भाग रही थी । बतिया गॉंव के करीब गाडी पहुँची तो युवक ने गांधी जी से पूछा "ए बुड्ढे ! तूने महात्मा गांधी कानाम सुना है ? मैं उनका दर्शन और प्रवचन सुनने जा रहा हूँ, वो बहूत अच्छे इंसान हैं ।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 11:06 AM 0 comments
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संत दर्शन के लिए उठा एक-एक कदम एक-एक यज्ञ के बराबर होता है । संत बडे करुणाशील होते हैं । संत बडे दयालु होते हैं । वे तुम्हारे कल्याण के लिए ही तपस्याएं करते हैं । जैसे अहिल्या उद्धार के लिए श्रीराम स्वयं अहिल्या के द्वार पर गये थे वैसे ही तुम्हारे उद्धार के लिए संत तुम्हारे द्वार आते हैं । तुम ही अहिल्या हो और संत राम के अवतार हैं । संत तो हरिद्वार है । और सत्संग गंगा-स्नान है, हर की पेडी है । सत्संग का फल तो बैकुंठ है ।
संत हरिद्वार : सत्संग गंगा स्नान
एक महिला ने प्रवचन-कथा में सुना कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है, क्योंकि संत हरिद्वार है और सत्संग गंगा स्नान है । दूसरे दिन जाकर उसने अपपने पति से कहा- देखो, एक बहुत बडे संत आये हैं और उनका सत्संग चल रहा है । सारा गांव सत्संग का लाभ ले रहा है । बडा आनंद बरस रहा है, तुम भी सत्संग का लाभ लो क्योंकि सत्संग का फल बैकुण्ठ है । पत्नी के विशेष आग्रह पर वह दूसरे दिन सत्संग में गया । वहॉं जाकर सत्संग में बैठा और 10-15 मिनट बाद बार-बार इधर-उधर देखने लगा कि बैकुण्ठ ले जाने वाला कोई विमान आया या नहीं । घंटा भर वह बैठा रहा वहॉं । विमान कहॉं से आना था ? जब उसे लगा कि अब कोई विमान आने वाला नहीं है, कोई बैकुण्ठ मिलने वाला नहीं है तो गुस्से से उठा और संत को भला-बुरा कहते-कहते सत्संग केबाहर निकल गया ।
घर जा रहा था । गुस्से में तो था ही । रास्ते में नारदजी मिल गये । नारद ने पूछा- भाई ! क्या बात है ? किसे गाली दे रहे हो ? बोला- ये संत लोग बडे धोखेबाज होते हैं । जनता को गुमराह करते हैं कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । अरे ! मैं वहॉं घंटा भर बैठा, पर वहॉं बैकुण्ठ तो क्या एक कप चाय भी नहीं मिली । उस आदमी ने नारद से पूछा कि आप ही बताइये सत्संग का क्या महत्व है ? क्या सत्संग से वाकई में बैकुण्ठ मिलता है । नारद ने कहा : भाई ! सत्संग तो मैं भी करता हूँ लेकिन सत्संग का महत्व मुझे भी नहीं मालूम । नारद ने कहा- अच्छा ऐसा करते हैं शंकरजी से चलकर पूछते हैं, वे ही बतायेंगे कि सत्संग का क्या महत्व है ? नारद उस व्यक्ति को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे । शंकरजी से नारद ने पूछा : महाराज सत्संग का महत्व बताइये- यह व्यक्ति जानना चाहता है । शंकर जी बोले : भाई सत्संग का महत्व मैं भी नहींे जानता । अच्छा ! हम ब्रह्मा जी के पास चलते हैं । वे ही सत्संग का महत्व बतायेंगे । शंकरजी, नारद और वह व्यक्ति तीनों चलकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे भी यही प्रश्न किया । सत्संग का क्या महत्व है ? यह बताइये । ब्रह्मा जी तो मुश्किल में पड गये । बोले - भाई, मुझे तो मालूम नहीं । इसका उत्तर तो विष्णुजी ही दे सकते हैं । अपन विष्णु के पास चलते हैं ।
ये सभी बैकुण्ठधाम पहूंचे तो वहॉं विष्णुजी विराजमान थे । विष्णुजी ने देखा कि आज तो बडे-बडे महापुरुष एक साथ आये हैं । कारण पूछा तो नारद ने कहा- भगवन ! यह व्यक्ति सत्संगक का महत्व जानना चाहता है और हममें से किसी को सत्संग का महत्व मालूम नहीं है इसलिए आपके पास आये हैं । कृपया, आप सत्संग का महत्व समझायें । विष्णु जी ने उसी व्यक्ति से पूछा - बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकुण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसी व्यक्ति से पूछा- बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसके कान पकडकर कहा- अरे भोले प्राणी ! साक्षात ब्रह्मा, विष्णु, महेश तेरे सामने खडे हैं - तो यह बैकुण्ठ नहीं तो क्या तेरा घर है ? अगर तू घंटे भर का सत्संग नही करता तो तू क्या यहॉं तक आ सकता था ? देख घंटे भर के सत्संग का फल कि तीन-तीन देव तेरे सामने खडे हैं । श्रद्धा बडी चीज है । श्रद्धा ही फल देती है ।
तो, सत्संग का जीवन में बडा गहरा महत्व है । संतों की अंगुली थामकर रखो । जैसे बन्दर का बालक अपनी मॉं से चिपका रहता है, वैसे ही तुम संतों से चिपके रहो, जुडे रहो । बस तुम्हारा इसी में कल्याण है । भीड भरे मेले में जब तक बच्चे की अंगुली मॉं के हाथ में होती है तब तक बालक का जीवन सुरक्षित होता है लेकिन ज्यों ही मॉं की अंगुली छूटती है तो बालक भीड के संकट में खो जाता है । जब तक तुम्हारी जीवन की अंगुली किसी संतने शाम ने थाम रखी है, तब तक संसार का कोई थपेडा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड सकता और अगर अंगुली छूट गई तो फि रोना ही रोना शेष रह जायेगा ।
तो, उस युवक ने सोचा - गलत जगह आ गये । यह आदमी तो गडबड है ही, लगता है इसकी पत्नी भी बडी बुद्धू है । उसने यह भी नहीं पूछा कि धूप में बैठे हो तो लालटेन की क्या जरुरत पड गई ? ऊपर वाले ने भी क्या जोडी बिठाई है । दोन्हों ही एक से हैं । वह मन ही मन कबीर को कोस रहा था । युवक कबीर से कहता है, मेरी समस्या का समाधान करें । मुझे देर हो रही है, मुझे जल्दी जाना है, कबीर ने कहा- करुंगा, थोडी प्रतीक्षा करो । कबीर ने अपनी पत्नी को निर्देश दिया किवह दो कटोरे दूध लेकर आये । पत्नी रसोई में गई- दूध में चीनी डाली, और दो कटोरे दूध से भरकर कबीर के सामने
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परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु
परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
प्रभु के प्रभाव और संतों की संभावना को प्रणाम
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन् ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।
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लोभ का गड्ढा दुष्पूर है । लोभ के गड्ढे में पडा सम्पूर्ण विश्र्व क अणु के समान मालूम पडता है । इच्छाएं अनंत हैं । आकांक्षाओं को छूना आकाश को छूने से भी
महात्मा बुद्ध ने कहा- संसार में नाना दु:ख हैं । मनुष्य तृष्णा को त्यागे तो दु:ख से बचे । भगवान महावीर ने कहा- लोभ का गड्ढा दुष्पूर है । लोभ के गड्ढे में पडा सम्पूर्ण विश्र्व क अणु के समान मालूम पडता है । इच्छाएं अनंत हैं । आकांक्षाओं को छूना आकाश को छूने से भी दुष्कर है । जब तक हम कामनाओं व वासनाओं के जाल से मुक्त नहीं होंगे, अतृप्त ही बने रहेंगे ।
परिवार नियोजन अधिकारी एक सेठ के पास गये । अपना परिचय देते हुए पूछा - सेठ साहब, आपकी कितनी संतान हैं ? सेठ ने कहा- सात । अधिकारी ने कहा- अब तो आपको परिवार नियोजन करा लेना चाहिए । सेठ ने कहा कि नहीं, यह फिलहाल संभव नहीं है । अधिकारियों ने आश्र्चर्य करते हुऐ पूछा - क्यों ? सेठ बोला - क्योंकि ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की है कि तुम्हारा तेरहवां पुत्र मंत्री बनेगा ।
सेठ इस आशा-विश्र्वास पर जी रहा है कि उसका तेरहवा पुत्र मंत्री बनेगा, भले ही तेरहवां पुत्र होने से ही पूर्व ही उसकी तेरई मन जाए । मनुष्य बहिर्मुखी हो गया है । सुख का अनंत सागर स्वयं में हिलोरे मार रहा है परन्तु जैसे चम्मच कडाही में रहकर भी मिठाई का स्वाद नहीं जानता वैसे ही यह आत्मा अपने आत्मिक आनंद का अनुभव नहीं करता । बाह्य में खोजता है आनंद को, यही तो भूल है मानव की । सेठ तेरहवें पुत्र का सपना देख रहा है । कितना बडा लोभ पाल रहा है जीवन में । मनुष्य को चाहिए कि वह असीम इच्छाओं को नियंत्रित करते हुए, जन-जन के कल्याण व प्राणी मात्र के अभ्युदय हेतु संकल्पित हो । स्वार्थवृत्ति को छोडकर औरों के लिए जीना व मरना सीखे । यही मानवता की कसौटी है । इस सम्बन्ध में मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां कितनी प्रेरणास्पद है -
विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी ।
मरो, परन्तु योें मरो की याद जो करें सभी ।।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए ।
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए ।।
यही पशु प्रकृति है कि आप आप ही चरे ।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
चले अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति विघ्न जो पडे उन्हें ढकेलते हुए ।।
घटे न हेल-मेल हां बढे न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के, सतर्क पान्थ हो सभी ।।
यही समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे ।
वही मनुष्य कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
हर मनुष्य अपने कर्तव्य व दायित्व को पहचाने और दूसरे के दु:ख दर्द में सहभागी बने, दीन दु:खी, पीडित, दलित व उपेक्षित व्यक्तियों की सेवा करने वाला देवमानव माना जाता है जबकि औरों को कष्टग्रस्त देखकर आनंद की अनुभूति करने वाला वनमानुष । जब पृथ्वी पर देवमानुष की संख्या बढती है तब स्वर्गोपम को धारण करती है और वनमानव से नरकोपम को । दीन-दुखियों की उपेक्षा करके कोई भी व्यक्ती धर्म की आत्मा को नहीं समझ सकता । दीनों की सेवा विश्र्व का सर्वोपरि धर्म है ।
चेतना-पुंज मानव का यह परम कर्तव्य है कि अपने सुख के साथ-साथ औरों के सुख में भी कारण बने और इसके लिए वह निहायत जरुरी है कि मनुष्य सिर्फ आकृति से ही नहीं, प्रत्युत प्रकृति से भी मनुष्य बने और मानवता का परिचय दे । ईश्र्वर का प्रिय पुत्र होने का गौरव जो उसे मिला है, उसे अपने दुष्कर्मों से लांछित न करे ।
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ब्रह्मकुमारिज भगवान भाई आबू रोड
जब हम किसी की सेवा करते हैं, चरण-वंदना करते हैं, चरण दबाते हैं, तो इससे हमारा अहंकार टूटता है । ध्यान रखना- अहंकारी व्यक्ति ने तो किसी को प्रणाम करता है और न ही किसी व्यक्ति की सेवा । सेवा से अहंकार टूटता है । किसी को नमन करने का अर्थ है- अहंकार से मुक्ति पाना । तुम किसी के हाथ तभी जोड सकते हो, जब थोडा-सा अहंकार छोड दो । किसी को साष्टांग प्रणाम तभी कर सकते हो जब इससे भी ज्यादा अहंकार छोड दिया हो, और चरण धोकर गंधोदक, चरणामृत तभी ले सकते हो जब पूर्णतया अहंकार से मुक्त हो गये हो । धर्म की यात्रा अहंकार बहुत सख्त है । एक बार की चोट से नहीं टूटता है । इसे तोडने के लिए कई चोटों की जरुरत है । इसलिए णमोकार मंत्र में पांच चोटों के माध्यम से अहंकार को तोडने की प्रक्रिया अपनाई गई है । नारियल तो एक-दो चोट से ही टूट जाता है लेकिन अहंकार का नारियल बडा मजबूत है - इस पर कई चोट लगानी पडती है । । जहॉं अहंकार होगा, वहॉं णमोकार नहीं हो सकता और जहॉं णमोकार नहीं होगा और यदि वह अहंकारी है, तो णमझना अभी उसने णमोकार के महत्व और मूल्य को समझा नहीं है । अभी णमोकार मंत्र उसके हृदय तक पहूँचा नहीं है ।
अहंकार बाधा है । परमात्मा और तुम्हारे बीच एकमात्र अहंकार बाधा है । तुम्हारे और प्रभु के बीच अहंकार की दीवार है । अगर अहंकार की दीवार ढह जाये तो तुम्हारे लिए प्रभु के द्वार खुल जायेंगे । अहंकार दीवार है और समर्पण द्वार है । समर्पण के द्वार से ही ईश्र्वरीय दृष्टि मिलती है । अगर अपना सच्चा समर्पण प्रभु को कर दो तो प्रभु प्रकट होने के लिए बाध्य हो जाता है ।
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ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्मकुमारिसज आबू रोड
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Tuesday, May 31, 2011
स्कूल सेवा नैतिक मूल्य ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी
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स्कूल सेवा नैतिक मूल्य ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी
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Sunday, May 29, 2011
Value Education in the Age of Globalism
Value Education in the Age of Globalism
Globalism today is being accepted as synonym for progress, scientific breakthroughs and technological revolution. With its long strides, it is being taken as a model prescription of the new utilitarian thrust in our approach to education. But in the sheer romantic indulgence of this new pursuit, it is not being realized that when the sole purpose of education becomes acquisition of higher and higher level of commercialism, and when education is allowed to drift along this wave and it consequently reduces to a coveted agency of material advancement, the symphonic order within the human soul becomes the natural casualty causing deformity in human emotions and perceptions. Such a development can endanger the peace and happiness of the mankind. With all its excitation tunes, it is devoid of our essential human music. The human face of education is, thus, missing in the wake of technological onslaughts on the value-based concept of education. The equilibrium has been considerably damaged causing a sense of tragic waste and futility, and this can be restored by identifying the role of value education in this age of globalism.
The traditional approach to education has been to see its utility and purpose in terms of social and moral awareness, to impart beauty and dignity to life and also to provide with a code of conduct for a good social and moral order. Character building is the key phrase in the Gandhian philosophy of education. Another recurring note that we trace in the writing of our philosophers is that education provides us with a faculty for positive discrimination between the right and the wrong and between the virtue and the vice. That knowledge which purifies the mind and the heart is the only true knowledge, all else are only negation of knowledge, says sri Ramkrishna Paramhans. And according to //Seneca, the object of education is inward development. Long ago, the great philosopher plato said “The main aim of education is all round development of the personality”. According to Herbert Spencer, the aim of education is to enable one to lead a complete and successful life. The same idea has been incorporated in the philosophy of the great German educationist John Fredric Herbert who opined that the one and the whole task of education may be summed up in the concept of morality. In this context our former president Dr. S. Radhkrishanan also observed that the troubles of the whole world including India are due to the fact that education has become a mere intellectual exercise and not the acquisition of moral and spiritual values. With the advent of industrial society and its aspirations, the educational scene has undergone a phenomenal change giving rise to new powers and new thrusts in educational management. The primary function of education is no longer the building of character or the promotion of moral order, but the emphasis has shifted to the promotion of skill, technical know-how and technology for material progress. The mass base of higher education in India has encouraged courses for utility skill; promotion of careerism ecomomic good and social prosperity. Education, today is no longer confined to the development of intellectual power or knowledge of the abstract kind, but to development and promotion of skills and know-how for industrial productivity and the production of goods, skills and services.
Education is still engaged in its primary function to generate and disseminate knowledge but cannot stop at this: it has to promote know-how, skills and technologies to make it respectable and comfortable in the changing situations. Higher education in India has, therefore, an obligatory duty to create technical and managerial human resource in all development sectors. It has to keep the vision of India becoming the fourth largest economy in the world by 2020 in mind and for this pace of growth it has to promote skills and technologies which will be required of Indians by that time. It has to keep communication revolution in mind, and must be prepared to create a well equipped generation of human power, a generation of producers and innovators, in other words, education is to act not as a moral reformer, but as an agent of social transformation and promoter of the desired change.
This change has, however, encouraged promotion of careerism without human values and ends in view. What is more unfortunate is the unmistakable trend of a mad rush for amoral and valueless desire for status and power in terms of commercialism and consumerism. To be in tune with the big development taking place in the world is good and desirable; but to achieve the educational power without human values in view, is fraught with dangerous possibilities.
The need of the hour is to temper the utilitarian pursuit of education with integrated vision of a happy order of life on earth and also with spiritual, cultural and aesthetic values of the modern age. productivity must not suffer and education must prove to be a powerful agent and promoter of productivity. Productivity can even be accepted as a new value of education but the Sciences and technological streams should also promote scientific approach to problems and a rational and human outlook on life. A meaningful promotion of a rational and human outlook on life. Would necessarily require education of human rights and fundamental freedoms. This will have a focus on environmental. Cultural, Social, political, economic and developmental rights with quality concerns in the matter of the related issues.
Catholicity of mind is another important value which must be promoted by the post modernist education. Established as a component of education and a cherished value, it can ensure broad based understanding, spirit of good mixing, perseverance, tolerance, receptivity and sensibility for appreciation of imaginative powers, cultural slants and angularities of varied social groups of the world. An educated person is after all supposed to be able to come out of his narrow walls and boundaries of ideas and creeds, and to have respect for the point of view of others in our pluralistic society.
The power of modern education can be better realised by achieving a happy integration of utility and value, integration of body and mind, emotions and ideas, individual and society, society and the world. The vision of progress must not be devoid of human element the aspects of vision which make the progress meaningful and purposeful. The progress that is aimed at and desired is an assertion of the power of human imagination and so the fruits of this progress must be realized with the ends of humanity in minds. The tools of change are powerful, but their application must be humane and they must be employed for pious purposes.
So in the wake of the phenomenal and dimensional developments on the educational front, reorientation of value in the post modernist education assumes special significance. Here are certain concrete recommendations for tempering utilitarian pursuit of higher education with desirable ideals and visions of human happiness.
A) Education must promote rational outlook on life and scientific approach to issues confronting the real life situations.
B) An imaginatively framed course in fundamental freedoms and human rights must constitute a component of our Degree level curriculum.
C) Power that education generates must be employed for constructive human purposes.
D) Education must develop sensitivity to environment and must foster human ethos for the enjoyment of the fruits of progress.
E) Humanism should be the motto of education in all circumstances, and it must promote quality concern for corporate behavior and corporate life.
F) Education must be able to develop a working mechanism to fight the evil of consumerism and acquisitive culture so that environment may be protected and development may remain sustainable.
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योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है,
राजयोग का आधार और विधी
योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है, उसी के साथ उस आत्मा का योग है. फिर वह चाहे व्यक्ति, वस्तु, वौभव या परिस्थिति हो या परमात्मा ही क्यों न हो. अब मन कहाँ-कहाँ जा सकता है, मन का कहीं भी जाने का आधार क्या हैं ? संसार में करोड़ो मनुष्य है लेकिन मन सभी के विषय में नहीं सोचता है. मन उसी के बारें में सोचेगा, जिसका उसे परिचय हो तो पहला आधार है परिचय. फिर जिसके साथ सम्बन्ध तीसरा आधार है स्नेह. जिससे स्नेह होता है उसके पास मन अपने आप चला जाता है. चौथा आधार है प्राप्ति. जहाँ से किसी को प्राप्ति होगी वहाँ से वह अपना मन हटाना ही नही चाहेंगा. तो किसी की भी याद के लिए मुख्य चार आधार है - परिचय, सम्बधन्ध, स्नेह और प्रापित. इनहीं चा आधारों के कारण मनुष्य की याद सदा बदलती ही रहती है या परिवर्तनशील होती है. एक बालक का योग अपनी माता के साथ है क्योंकि उसको केवल माँ का परिचय है. माँ से ही उसे स्नेह मिलता है, भोजन मिलता है. माँ को न देखने पर वह रोता है और माँ के उसे उठाने पर वह चुप हो जाता है. इससे सिध्द है कि उसका योग अपनी माता के साथ है. बालक थोड़ा बड़ा होने पर खेलकूद में रस लेने लगता है तब उसका योग माँ से परिवर्तित होकर अपने दोस्तों और खेल में जुट जाता है और माँ का बुलावा भी वह टालने की कोशिश करता है. विद्यार्थी जीवन में बच्चे का योग अपनी पढ़ाई, पाठशाला और शिखक से हो जाता है. व्यावहारिक जीवन में आने के बाद उसका योग - धन, सम्पत्ति, मर्तबा, इज्जत, अन्य सम्पर्क मंे आने वाले व्यक्तियों के साथ हो जाता है, विवाह होने पर कुछ समय के लिए उसका योग पत्नी के साथ हो जाता है. सन्तान होने पर पत्नी से भी योग हटकर सन्तान से हो जाता है. बीमारी के दिनों में पूरा ही योग डॉक्टर के साथ होता है. क्योंकि उससे ही इलाज होना है. इस प्रकार योग परिवर्तनशील है तो फिर देहधारियोंे से योग हटाकर परमात्मा से योग लगाना कठिन क्यों होना चाहिए, जहाँ परिचय, सम्बध, स्नेह और प्राप्ति है वहाँ योग लगाना बड़ा ही सहज है, अब ये चारों ही आधार परमात्मा से जोड़े जाएँ तो राजयोग कोई कठिन विधि नहीं है.
सबसे पहले राजयोग के लिए स्वयं का और परमात्मा का परिचय होना आवश्यक है. मौ कोन हॅूं और मुझे किसके साथ योग लगाना है ? अगर हम अपने-आपको देह समझेंगे तो हम परमात्मा के साथ कभी भी योगयुक्त नहीं हो सकेंगे. देह अभिमान समझने से यही संकल्प आयेगे - `मौ पिता हँू` तो बच्चे याद आयेंगे, ``मौ शिक्षक हँू`` तो विद्यार्थी याद आयेगें ``मौ व्यापारी हँू`` तो ग्राहक याद आयेंगे. लेकिन जब स्वयं को आत्मा निश्चय करेंगे तब ही परमात्मा याद आयेगा. इस प्रकार राजयोग की पहली सीढ़ी है - आत्मा और परमात्मा के पूर्ण परिचय के आधार पर दोनों मे निश्चय. दोनों का परिचय तो दूसरे और तीसरे सत्र मं मिला है,
अब परमात्मा के साथ आत्मा का किस प्रकार के सम्बन्ध और उसको याद करने की विधी क्या है इस पर विचार करेंेंगें -
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Labels: ब्रह्माकुमार भगवान भाई प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय ब्रह्मा कुमारी
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू
बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी नाम: राजयोगी ब्रह्मा कुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी शांतिवन में राजयोगा टीचर मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत राजस्तान में रसोई विभाग में ब्रह्मा भोजन में सेवा लेखक, विभिन्न मगैनेस और समाचार पत्रों में शैक्षिक योग्यता: 10 वीं और आय .टी .आय . जन्म तिथि: जून 1, 1965 सेवा स्थान: अबू रोड, शांतिवन ज्ञान में : 1985 सेवा में समर्पित कब से 1987: सेवा --- जैसे, ग्राम विकाश कई आध्यात्मिक अभियानों में , रैली, शिव सन्देश रथ यात्रा, मूल्य आधारित मीडिया अभियान, मूल्य आधारित शिक्षा अभियान, युवा पद यात्रा, आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों में, साथ ही में नेपाल में भी भाषण विभिन्न विषयों पर पर संबोधित किया है कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय (5000) स्कूल में नीतिक मूल्य बारे में स्कूलों और जेलों (800) समाज सेवा पुनर्वास शिविर बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं, भूकम्प आदि कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न क्लास लिया है यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय के एक बहुत अच्छे लेखक हैं. अपने लेख बहुत बार कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहे हैं जैसे (हिंदी) ज्ञानामृत , विश्व नवीनीकरण (अंग्रेज़ी) के रूप में,
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शांतिवन के भगवान भाई का
नाम इंडिया बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया। यह सम्मान उन्हें
पांच हजार स्कूलों के हजारों बच्चों को मूल्यनिष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक
एवं आध्यात्मिक विकास के लिए लगातार पढ़ाए जाने तथा आठ सौ जेलों के
हजारों कैदियों से अपराध छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानवता
को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिए
संदेश देने के अथक प्रयास के कारण मिला है।दिल्ली के कनॉट प्लेस में 22
अप्रैल को यह सर्टिफिकेट इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडिटर विश्वरूप
राय चौधरी की तरफ से आयोजित एक समारोह में दिया गया।
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बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई
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सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई कटनी। बदलने से विपरीत परिस्थिति भी सहज दिखने लगती है। अपनी समस्या को समाप्त करने एवं सफल जीवन जीने के लिए विचारों को सकारात्मक बनाने...
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
कटनी। बदलने से विपरीत परिस्थिति भी सहज दिखने लगती है। अपनी समस्या को समाप्त करने एवं सफल जीवन जीने के लिए विचारों को सकारात्मक बनाने की बहुत आवश्यकता है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने कहे। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारीज राजयोग सेवा केन्द्र पर तनावमुक्त विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समस्याओं का कारण ढूढने की बजाए निवारण ढंूढ़े। उन्होंने कहा कि समस्या का चिंतन करने से तनाव की उत्पत्ति होती है। मन के विचारों का प्रभाव वातावरण पेड़-पौधों तथा दूसरों व स्वयं पर पड़ता है। यदि हमारे विचार सकारात्म है तो उसकासकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि जीवन को रोगमुक्त,दीर्घायु, शांत व सफल बनाने के लिएहमें सबसे पहले विचारों को सकारात्मक बनाना चाहिए। राजयोगी भगवान भाई ने कहा कि सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है। एक दूसरों के प्रति सकारातमक विचार रखने से आपसीभाई चारा बना रहता है। उन्होंने सत्संग एवं आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक सोच के लिए जस्री बताते हुए कहा कि हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है। सत्संग के द्वारा प्राप्त ज्ञान और शक्तियां ही हमारी असली पूंजी हैं। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केन्द्र की भगवती बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर अभ्यास के द्वारा हम अपने कर्म इद्रियों को संयमित कर अपने आंतरिकसद्गुणों का विकास कर
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Friday, May 27, 2011
शिव बाबा याद है ? ब्रह्मकुमारिज ॐ शांति BRAHMAKUMARIS
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बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी नाम: राजयोगी ब्रह्मा कुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी शांतिवन में राजयोगा टीचर मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत राजस्तान में रसोई विभाग में ब्रह्मा भोजन में सेवा लेखक, विभिन्न मगैनेस और समाचार पत्रों में शैक्षिक योग्यता: 10 वीं और आय .टी .आय . जन्म तिथि: जून 1, 1965 सेवा स्थान: अबू रोड, शांतिवन ज्ञान में : 1985 सेवा में समर्पित कब से 1987: सेवा --- जैसे, ग्राम विकाश कई आध्यात्मिक अभियानों में , रैली, शिव सन्देश रथ यात्रा, मूल्य आधारित मीडिया अभियान, मूल्य आधारित शिक्षा अभियान, युवा पद यात्रा, आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों में, साथ ही में नेपाल में भी भाषण विभिन्न विषयों पर पर संबोधित किया है कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय (5000) स्कूल में नीतिक मूल्य बारे में स्कूलों और जेलों (800) समाज सेवा पुनर्वास शिविर बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं, भूकम्प आदि कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न क्लास लिया है यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय के एक बहुत अच्छे लेखक हैं. अपने लेख बहुत बार कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहे हैं जैसे (हिंदी) ज्ञानामृत , विश्व नवीनीकरण (अंग्रेज़ी) के रूप में,
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▼ 2011 (245)
▼ July (31)
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्...
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव बीके ...
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र...
व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु दैनिक भास्कर से खास मुल...
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने...
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’ भास्कर संवाददाता...
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई भा...
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का क...
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से ब्र...
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं...
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य श...
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अ...
जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे > जीवन जीन...
भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन...
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भ...
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भ...
श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र ब्रह्मा...
‘अभिमान ही पतन की जड़ है’ भास्कर संवाददाता & झाबु...
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक...
परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा क...
स्वर्णिम युग के नवनिर्माण के लिए विश्व रचयिता शिव ...
सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैत...
बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए ...
वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए...
► June (11)
► May (95)
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► March (17)
► February (22)
► January (66)
► 2010 (186)
‘चिंता है चिता की जड़’
स्र46 भास्कर न्यूज & बिलासपुर
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास करने पर बल देते हुए कहा कि दूसरों को देखकर चिंतित होना, नकारात्मकता से घिर जाना पतन की जड़ है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता।
उसलापुर स्थित ब्रह्माकुमारी शांति सरोवर में राजयोग साधना से संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम के दौरान भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। भगवान भाई ने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है। आध्यात्मिकता की व्याख्या करते हुए भगवान भाई ने कहा कि जब तक हम खुद को नहीं पहचानते तब तक परमात्मा से संबंध स्थापित नहीं कर सकते। इस मौके पर मुंगेली, जांजगीर, बिल्हा, राहौद, खरौद, तखतपुर, रतनपुर सहित शहर से करीब 500 सदस्य उपस्थित थे।
नैतिकता से ही सर्वांगीण विकास संभव : देवकीनंदन गल्र्स स्कूल में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में नैतिक शिक्षा के महत्व पर भगवान भाई ने कहा कि इससे ही वे अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर जाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे की कल के भविष्य हैं। अगर कल के समाज को बेहतर देखना चाहते हैं तो वर्तमान के विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा देकर संस्कारित किया जा सकता है।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 5:49 PM 0 comments
Labels: राजयोगी भगवान भाई
Thursday, July 21, 2011
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव
बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ
स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान के माध्यम से इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कर चुके बीके भगवान भाई गुरुवार को शहर के रेलवे स्कूल पहुंचे।
स्कूल में बीके भगवान ने कहा कि स्कूल ही शिक्षा का वो समुदाय है जहां हर वर्ग, धर्म, जाति के बच्चे पढऩे आते हैं। इन्हीं में से आगे चलकर विद्यार्थी इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, वकील बनते हैं। बाल्यावस्था में ही यदि नैतिक शिक्षा से अच्छे संस्कारों के बीज रोपें तो विद्यार्थियों के साथ समाज, देश का भविष्य भी सुनहरा होगा। वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में नैतिकता, धैर्यता, ईमानदारी गुणों की कमी हो रही है। बचपन में ही सही शिक्षा व संस्कार देना जरूरी है।
एसईसी रेलवे मिक्स्ड हायर सेकंडरी इंग्लिश मीडियम की छात्र-छात्राओं को सकारात्मक चिंतन का महत्व समझाते हुए भगवान भाई ने कहा कि इससे समाज में मूल्यों की खुशबू फैलती है। इसी से जीवन कीं हर समस्या का समाधान हो सकता है।
सिन-मा यानी सिनेमा है पाप की मां
भगवान भाई ने कहा कि बच्चे व युवा कुसंगति, सिनेमा, व्यसन, फैशन सहित 4 के फेर में पड़े हैं। इंटरनेट, मोबाइल का गलत उपयोग करते हुए दोस्तों की संगत में न चाहते हुए भी कई बार वे गलत राह पर चल देते हैं। धीरे-धीरे गलत कामों के संस्कार उनमें पड़ जाते हैं। नकारात्मक सोच होगी तो नकारात्मक जीवन बनेगा। आजकल युवा फैशन से आउटर पर्सनालिटी को निखारने में लगे रहते हैं।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 5:19 PM 0 comments
Labels: बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ
Wednesday, July 20, 2011
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 5:39 PM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी
व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुरा
Published on 21 Jul-2011
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व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
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Labels: बीके भगवान भाई
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर
भास्कर न्यूज & बिलासपुर
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।
बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 5:18 PM 0 comments
Labels: ब्रह्मकुमार भगवान
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंत
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियां और सद्गुणों को उभारकर जीवन में निखार ला सकते हैं।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय में कही। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता, अंतर्मुखताऐसे अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सकते हैं। राजयोग द्वारा ही मन की शांति भी संभव है। उन्होंने बताया राजयोग के अभ्यास से सुख की प्राप्ति होती है। भगवान भाई ने कहा अपने अनुभव के आधार पर राजयोग के अभ्यास द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक चिंतन के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश तनावपूर्ण परिस्थितियों में मन को एकाग्र और शांत रखने के लिए राजयोग संजीवनी बूटी की तरह काम आता है। राजयोग के अभ्यास से तनाव मुक्त बन हम अनेक बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं। मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचने का राजयोग एक कवच कुंडल है। उन्होंने कहा राजयोग द्वारा मन को सही दिशा निर्देशन मिलती है जिससे मन का भटकना खत्म हो जाता है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारांगण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को याद करना, मन, बुद्धि द्वारा उसे देखना, गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 10:23 AM 0 comments
Labels: ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय
Sunday, July 17, 2011
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई भास्कर संवाददाता. झाबुआ नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना है तो नारी जाति को सशक्त करना होगा।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने कही। वे भारतीय स्त्री शक्ति संगठन में महिला सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिक की आवश्यकता विषय पर बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा नारी सबसे पहली गुरु है। प्राचीन भारत में महान पुरुषों को जन्म देने वाली नारी भी महान थी। इसलिए ऐसे महान पुरुषों का जन्म हुआ, नारी के संस्कार बच्चों में आते हैं।
उन्होंने कहा नारी जब सदगुणों से पूर्ण थी तब देवत्व रूप में थी। लेकिन अब अनेक प्रकार के दुर्गुणों से आज वही नारी दुर्बल और कमजोर बन चुकी है। भगवान भाई ने कहा नारी जाति को स्वयं जाग्रत होना होगा, स्वयं के कत्र्तव्य को पहचानना होगा।
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Saturday, July 16, 2011
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
ब्रह्मकुमारी संस्था
प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने कहा- तनाव पूर्ण रहेगी 2१वीं सदी
भास्कर संवाददाता & सेंधवा
समस्याओं के वर्तमान युग में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति मानसिक, शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। जबकि नकारात्मक सोच अनेक समस्याओं व बीमारी का कारण है।
१९वीं सदी तर्क की थी, २०वीं सदी प्रगति की रही लेकिन २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। इन परिस्थितियों में खुद को तनावमुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। जो व्यक्ति हर बात में सकारात्मक सोच रखता है वही जीवन में सुखी रह सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। सहन शुरू में कड़वा है लेकिन उसका अंत मीठा है। महापुरुषों ने अपनी सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। सहनशक्ति की कमी के कारण ही तनाव उत्पन्न होता है। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने यह उद्गार व्यक्त किए। वे स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा गुरुवार सुबह सत्संग भवन में आयोजित कार्यक्रम तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे।
चिंता या तनाव में क्यों रहें?: भगवानभाई ने गीता के महावाक्यों का उदाहरण देते हुए कहा जीवन की हर घटना कल्याणकारी है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। फिर चिंता या तनाव में रहने की आवश्यकता क्यों? उन्होंने कहा जो व्यक्ति दूसरों का अहित सोचता है वह जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता। न्यूटन के गतिरोधक नियम को बताते हुए कहा यदि कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी कभी उसके साथ भी ऐसा व्यवहार किया होगा। संसार में लागे खुद के दु:खों से तो दु:खी होते हैं लेकिन दूसरों के सुखों के कारण भी दु:खी हो जाते हैं।
मानवीय मूल्यों की कमी समस्याओं का मूल: मानवीय मूल्यों की कमी सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, पर्यावरणीय आदि सभी समस्याओं का मूल है। भविष्य के नाजुक समय में खुद को सुखी बनाने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही हमारी असली संपत्ति है।
राजयोग से रख सकते हैं इंद्रियों पर संयम: स्थानीय सेवा केंद्र की संचालक आशा बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। राजयोग की विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा परमशक्ति, परमात्मा को मन से याद करना व उनका गुणगान करना ही राजयोग है। इंदौर से आए प्रकाश भाई ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया यह कार्यक्रम ब्रह्मकुमारी संस्था के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रखा गया है। इस अवसर पर शहर सहित, वरला, जुलवानिया, ठीकरी, राजपुर आदि स्थानों से लोग शामिल हुए। कृष्णाबहन, काया बहन व अंजू बहन ने सहयोग दिया।
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Labels: प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट & ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी।यह बात ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्लेटिनम जुबली पर स्थानीय अगाल धर्मशाला में रोजयोग प्रशिक्षण कार्यक्रम में भगवान भाई ने कही। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है। भगवान भाई ने कहा जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसमें कोई विकास नहीं होता, किंतु कर्मों की गति से काम, क्रोध, मोह, अहंकार उत्पन्न होते हैं। ऐसे विकार हमारे शत्रु हैं। मुख्य अतिथि पूर्व विधायक माधौसिंह डावर ने तनावमुक्त जीवन के लिए एक बुराई त्यागने की बात शिविर में उपस्थित लोगों से की। श्री डावर ने जोबट में भी ध्यान केंद्र स्थापित करने में सहयोग देने की अपील की। अध्यक्षता कर रहे पं. नटवर श्यामा शर्मा ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व उपजेल जोबट में भी बंदियों को सद्मार्ग अपनाने के लिए व्याख्यान भगवान भाई ने दिए। अतिथियों का स्वागत यशपाल शर्मा ने किया।
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क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से
ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से होता है और अंत पश्चाताप से, क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है, जिस कारण जीवन अशांत बन जाता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर ईश्वरप्रेमी भाई बहनों को क्रोधमुक्त जीवन विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। क्रोध की अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। यही मनुष्य से पाप कराता है। भगवान भाई ने क्रोध पर काबू पाने के भी उपाय बताए। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। आत्मनिश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। राजयोग द्वारा ही हम अपने कर्म इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा राजयोग द्वारा ही मन को सच्ची शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम के अंत में भगवानभाई ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया।
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यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा
नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
शिक्षा का मूल उद्देश्य है मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना, स्वस्थ जीवन बनाना। इसके लिए मूल्य शिक्षा की अति आवश्यकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के अंतर्गत पटेल पब्लिक स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा शिक्षा ही जीवन को सशक्त, सकारात्मक और विकसित बना सकती है। जीवन में कर्मकुशलता, व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक विकास एवं विभिन्न विषयों के साथ आपसी स्नेह, सत्यता, पवित्रता, अंहिसा, करुणा, दया आदि मानवीय मूल्यों के पाठ भी विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी है।
उन्होंने कहा मानवीय मूल्यों के ह्रास के कारण समाज में हिंसक वृत्ति बढ़ती जा रही है। मूल्यों की शिक्षा के ह्रास के कारण मानव संबंधों में तनाव, अविश्वास, अशांति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण सामाजिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है।
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आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कहा
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि वे ही समाज शिल्पी हैं। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणा से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणा से विद्यार्थियों में बल भरता है, आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था में शिक्षक-प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श शिक्षक विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। उन्होंने कहा शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे हैं तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षक के अंदर के जो संस्कार हैं, उनका विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार से नैतिक पाठ भी अवश्य पढ़ाएं।
सेवाभाव की आचरण की शिक्षा जुबान से
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है तो क्या पूरे जिले को मूलनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित हम सब मिलकर नहीं कर सकतें। अब आश्यकता है सेवाभाव की। आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। व्याख्याता कैलाशचंद्र सिसौदिया ने
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
Published on 19 Jun-2011
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
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यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अब यह २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकार
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अब यह २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विवि माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा सहयोग गार्डन में रखे गए कार्यक्रम में तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने वर्तमान समय को समस्याओं का युग बताया और स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच रखने की बात कही। श्री भगवान भाई ने कहा विपरीत परिस्थितियों में समस्या में हर बातों में सकारात्मक सोचने की कला को बढ़ाता है। सकारात्मक सोचने वाला मानसिक, शारीरिक रूप से सदा स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच अनेक समस्या और बीमारियों का कारण है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते हैं। जीवन की मुश्किलों में यही पुण्य कर्म हमारी मदद करते हैं।१९ वीं सदी त
ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख तनाव मुक्त रह सकते हैं। उन्होंनें राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारागण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को मन बुद्धि से याद करना उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है। कार्यक्रम में विशेष राजयोग का अभ्यास व जीवन में आने वाली विभिन्न समस्या पर समाधान हो क्लासेस भी हुई। इस अवसर पर जोबट व खट्टाली आदि के भाई बहन उपस्थित थे।१९ वीं सदी त
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जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे > जीवन जीने की कला विषय पर राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने दिए व्याख्यान
जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे
> जीवन जीने की कला विषय पर राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने दिए व्याख्यान
भास्कर संवाददाता & खंडवा
सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने के लिए एवं स्वयं को को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचे। यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मुख्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने गुरुवार को ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवाकेंद्र रामनगर में ‘जीवन जीने की कला’ विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा हम अपने घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन अपने मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं। जिसमें मन अवाछंनीय खरपतवार रूपी अशुद्ध विचार उग आते हैं। इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दु:खों का सृजन होता है। शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चैतन्य शक्ति के रूप में आत्म विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हैं, अविनाशी हैं। इस विस्म्रति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। कार्यक्रम को बीके चंद्राबहनजी ने भी संबोधित किया। इस दौरान घाटाखेड़ी, सिंगोट, कालंका आदि गांव के लोग शामिल थे।
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भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
खरगोन & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शांतिवन के ब्रह्मकुमार भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में दर्ज हुआ है। विवि की खरगोन शाखा संचालक ब्रह्मकुमारी किरण बहन ने बताया उन्हें यह सम्मान समाज सुधार व शिक्षा की दिशा में किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिये संदेश देने के अथक प्रयासों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के कनॉट प्लेस में हुए कार्यक्रम में ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ के चीफ एडीटर विश्वरूप राय चौधरी द्वारा दिया गया।
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ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन क्रोध पर नियंत्रण सिखाता है राजयोग भास्कर संवाददाता. खरगोन
ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन
क्रोध पर नियंत्रण सिखाता है राजयोग
भास्कर संवाददाता. खरगोन
क्रोध मनुष्य के विवेक को नष्टï करता है। क्षणिक आवेश में मनुष्य न सुधरने वाली भूलें करता है। राजयोग इसी क्रोध पर नियंत्रण की कला सिखाता है। इसके माध्यम से हम आसुरी वृत्तियों को मोड़ कर जीवन में पुण्य संचय कर सकते हैं।
उक्त बातें राजयोग साधक भगवानभाई ने अन्नपूर्णा नगर स्थित ब्रह्मïकुमारी केंद्र पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते कही। क्रोध के प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा इससे शरीर की अंत:स्रावी प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है। जब मनुष्य दूसरों के अवगुणों का चिंतन, वर्णन करता है तो उसके दिमाग में भी घृणा, द्वेश के बीज बनते हैं। इसी का परिणाम क्रोध है। इससे मन की शांति, एकाग्रता और सहनशीलता जैसे सद्गुण नष्टï हो जाते हैं। उन्होंने बताया सकारात्मक चिंतन और राजयोग के निरंतर अभ्यास से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।
आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को आत्मा समझकर मन और बुद्धि से परमपिता का गुणगान करना ही राजयोग है। यह मानसिक बीमारियों से मुक्ति की संजीवनी है। इस दौरान केंद्र की ब्रह्मïकुमारी किरण ने कहा परमात्मा से मिली शक्तियां और ईश्वरीय ज्ञान ही हमारे सच्चे पथप्रदर्शक हैं। बाद में ब्रह्मïकुमार प्रभाकर ने सभी का आभार जताया।
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हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें
कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सीचें। हम घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते, जिससे मन में अवांछनीय खरपतवार रूपी विशुद्ध विचार उग आते हैं, इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दुखों का सृजन होता है
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कृषि विभाग में कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। वे जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा रोज अपनी आंतरिक स्थिति को सकारात्मक विचारों से भरपूर करें, जिससे मन और तन का बोझ समाप्त हो जाएगा। मन भारी होने से हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं। भगवान भाई ने कहा जो आंतरिक रूप से खुश होगा वही बाह्य जगत में भी खुश रह सकता है। जो खुश रहता है उनके साथ विपरीत परिस्थिति भी साथ देगी। उन्होंने कहा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चेतन्य शक्ति के रूप में आत्मा विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हंै, अविनाशी हैं। इस विस्मृति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। उन्होंने बताया कलियुग में मनुष्य स्वयं की असली पहचान भूल गया है। जिस कारण जीवन में अनेक दुख, तनाव, परेशानियां, विघ्न, समस्या चारों ओर दिखाई देती हैं।
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा मनुष्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के पीछे दौड़ रहा है। जिस कारण पारिवारिक स्नेह लुप्त हो चुका है। उन्होंने बताया जीवन को यदि अभिमान, अशांति, अनाचार, दुराचार, पापाचार रूपी राक्षसी प्रवृत्ति से बचाना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता ज्ञान का सहारा लेने की आवश्यकता है। सहायक संचालक कृषि जीएस त्रिवेदी ने भगवान भाई का आभार
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हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें
कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सीचें। हम घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते, जिससे मन में अवांछनीय खरपतवार रूपी विशुद्ध विचार उग आते हैं, इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दुखों का सृजन होता है
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कृषि विभाग में कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। वे जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा रोज अपनी आंतरिक स्थिति को सकारात्मक विचारों से भरपूर करें, जिससे मन और तन का बोझ समाप्त हो जाएगा। मन भारी होने से हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं। भगवान भाई ने कहा जो आंतरिक रूप से खुश होगा वही बाह्य जगत में भी खुश रह सकता है। जो खुश रहता है उनके साथ विपरीत परिस्थिति भी साथ देगी। उन्होंने कहा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चेतन्य शक्ति के रूप में आत्मा विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हंै, अविनाशी हैं। इस विस्मृति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। उन्होंने बताया कलियुग में मनुष्य स्वयं की असली पहचान भूल गया है। जिस कारण जीवन में अनेक दुख, तनाव, परेशानियां, विघ्न, समस्या चारों ओर दिखाई देती हैं।
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा मनुष्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के पीछे दौड़ रहा है। जिस कारण पारिवारिक स्नेह लुप्त हो चुका है। उन्होंने बताया जीवन को यदि अभिमान, अशांति, अनाचार, दुराचार, पापाचार रूपी राक्षसी प्रवृत्ति से बचाना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता ज्ञान का सहारा लेने की आवश्यकता है। सहायक संचालक कृषि जीएस त्रिवेदी ने भगवान भाई का आभार
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श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूली बच्चों से कहा भास्कर संवाददाता & झाबुआ
श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र
ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूली बच्चों से कहा
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
कोई भी राष्ट्र धन और शांति के बल से महान नहीं बन सकता। बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्यों से चरित्र बनता है, मूल्यों का व्यक्तिगत जीवन, समाज और राष्ट्र में बहुत बड़ा महत्व है। मूल्यों का स्त्रोत अध्यात्मिकता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्थानीय शासकीय उमावि रातीतलाई और न्यू पलाश हाईस्कूल के विद्याथर््िायों को संबोधित करते हुए कही। भगवान भाई ने कहा मूल्य शिक्षा प्रचीनकाल से ही चली आ रही है। मून्य शिक्षा के कारण ही भारत महान था उसकी विश्व में अपनी शान और पहचान थी। उन्होंने कहा कि मानव मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य है। भगवान भाई ने कहा मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर, दुख से सुख की ओर मरण से अमरत्व की ओर ले जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्द
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
कोई भी राष्ट्र धन और शांति के बल से महान नहीं बन सकता। बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्यों से चरित्र बनता है, मूल्यों का व्यक्तिगत जीवन, समाज और राष्ट्र में बहुत बड़ा महत्व है। मूल्यों का स्त्रोत अध्यात्मिकता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्थानीय शासकीय उमावि रातीतलाई और न्यू पलाश हाईस्कूल के विद्याथर््िायों को संबोधित करते हुए कही। भगवान भाई ने कहा मूल्य शिक्षा प्रचीनकाल से ही चली आ रही है। मून्य शिक्षा के कारण ही भारत महान था उसकी विश्व में अपनी शान और पहचान थी। उन्होंने कहा कि मानव मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य है। भगवान भाई ने कहा मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर, दुख से सुख की ओर मरण से अमरत्व की ओर ले जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य है। मानव मन के आंतरिक सद्गुणों और शक्तियों को जागृत करने वाली शिक्षा वर्तमान की आवश्यकता है। जीवन को महान बनाने के लिए भौतिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से जीवन परिपूर्ण होना जरूरी है। भगवान भाई ने कहा जीवन एक वृक्ष है इस जीवन
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‘अभिमान ही पतन की जड़ है’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ
‘अभिमान ही पतन की जड़ है’
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
स्वयं के गुणों की विशेषता, कला, धन और पद का अभिमान ही मनुष्य के पतन का कारण बनता है। अभिमान वाला व्यक्ति सदा तनाव में रहता है जिसके कारण वह अनेक गलतियां कर बैठता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र पर आत्म उन्नति का आधार आध्यात्मिकता विषय पर कही। उन्होंने कहा वर्तमान समय में मनुष्य स्वयं के सच्चे अस्तित्व को भूलने के कारण सदा देह अभिमान में रहता है। देह अभिमान के कारण ही वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों के वश में हो गया है। उन्होंने बताया वास्तव में हम सभी का असली स्वरूप आत्मा है। भगवान भाई ने कहा राजयोग द्वारा इंद्रियों पर काबू पाया जा सकता है। राजयोग से अति इंद्रिय सुख की प्राप्ति होती है, जिससे संसार के वस्तु, वैभव का भौतिक सुख फीका लगने लगता है तो इंद्रियों पर संयम पाना सहज हो जाता है।
जब मनुष्य के अंदर अभिमान पनपने लगता है तो उसके विचारों में नकारात्मकता आने लगती है। अभिमान करने से एकाग्रता भंग हो जाती है। जिस कारण तनाव पैदा हो जाता है। राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा वर्तमान परिस्थितियों का सामना करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की बहुत आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग के अभ्यास से हम अपने व्यवहार में निखार ला सकते हैं।
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सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव
बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याएं पैदा होती है, जिससे जीवन में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक नजरिया रखें, तो तनाव से मुक्त हो सकेंगे।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने बार एसोसिएशन में उपस्थित जज और वकीलों से कही। वे तनाव मुक्ति और जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा विचारों से स्मृति, दृष्टि, वृत्ति और दृष्टिकोण बनता है। विचार नकारात्मक है तो व्यवहार भी नकारात्मक होगा। उन्होंने कहा विचार को सकारात्मक बनाने से जीवन की सभी समस्या समाप्त हो जाएगी। सकारात्मक विचारों से व्यवहार भी सकारात्मक होगा। आत्म बल और मनोबल बढ़ेगा, जिससे व्यवहार में निखार आ जाएगा।
भगवान भाई ने कहा सकारात्मक विचारों से आंतरिक मन में स्थिरता आती है। मन एकाग्र हो जाता है, मन में सशक्तिकरण आ जाता है। एकाग्र मन शांति और सुख का आधार बन जाता है। उन्होंने कहा तनाव मुक्त होने के लिए जीवन के हर क्षण को सकारात्मक विचारों से सींचने का प्रयास करें। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्त्रोत बताते हुए कहा जब तक हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को नहीं अपनाते तब तक अपने विचारों में बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए कहा स्वयं के बारे में जानना, कर्म गति को जानना, सृष्टि रचयिता को जानना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है।
उन्होंने कहा आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण जीवन के नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन हो चुका है। वर्तमान परिवेश में तनाव, मानसिक, शारीरिक पीड़ाओं और बुरी आदतों से मुक्त होने के लिए जीवन में मूल्यों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जयंती बहन ने कहा हम सभी आत्मा भाई-भाई हैं। एक निराकार शिव परमात्मा के बच्चे हैं। चांद, सूर्य, तारांगण से पार सुनहरी लाल प्रकाशमय दुनिया रंगमंच पर पार्ट बजाने आए हैं।
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Wednesday, July 13, 2011
परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है।
ईश्वर ही सच्चा साथी
रतलाम। परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है। इसलिए परमात्मा को कभी नहीं भूलना चाहिए, हमेशा स्मरण में रखना चाहिए। यह विचार माऊंटआबू में स्थित ब्रह्मकुमारी शांति वन के ब्रह्मकुमार भगवान भाई शास्त्री नगर केंद्र पर मंगलवार को व्यक्त किए। वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय विशेष योग अनुभूति शिविर भाग लेने रतलाम आए थे। इनके साथ आए वल्लभभाई ने भी शिविर से जुड़ी ज्ञानवर्धक बाते ंशिविरार्थियों को बताई। शिविर प्रतिदिन सुबह 7 से 8 बजे तक आयोजित किया जा रहा है।
शास्त्री नगर केंद्र पर आयोजित चार दिवसीय शिविर के लिए बिलासपुर से आई मंजु बहन ने ध्यान-योग की गहरी अनुभूति कराई। उन्होंने कहा कि अगर दिल से हमने भगवान को अपना कहा तो हर खजाना अपना हो जाता है। हमारी स्थिति ऎसी हो जो हम भगवान की शक्ति ले सकें एवं भगवान की प्रेरणाओं को ग्रहण कर सकें। हमें ध्यान-योग में अपने आपको ऎसा ढाल कर तैयार कर लेना है, ताकि दु:खी, अशांत आत्माओं की सेवा कर सको। आलस्य व अलमेले पन का त्याग कर देना है। इंदौर जोन की हेमा दीदी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थी। कार्यक्रम में भिलाई की माधुरी बहन, ब्रह्माकुमारी की प्रभारी सरला बहन, संगीता बहन, कीरण बहन आदि उपस्थित थी।
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Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ब्रह्मकुमार भगवान भाई
स्वर्णिम युग के नवनिर्माण के लिए विश्व रचयिता शिव भगवान का अवतरण हो चुका है
प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवा केंद्र पर स्वर्णिम युग के लिए परमात्म अवतरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने उपस्थित भाई-बहनों को संबोधित करते हुए कहा कि। लगभग 75 वर्षों से परमात्मा यह दिव्य कत्र्तव्य ब्रह्मकुमार व ब्रह्माकुमारियों से करवा रहे हैं। कुछ ही समय में परमात्मा अपना कत्र्तव्य पूर्ण कर परमधाम लौट जाएंगे। नियमित ईश्वरीय ज्ञान-योग करने वाले स्वर्णिम युग में पुन: देव रूप में जन्म लेंगे। सभी आत्माएं शांतिधाम में विश्राम कर पुन: अपने-अपने समय विश्व नाटक में आएगी। आज विश्व की स्थिति तेजी से बिगडऩा शुरू हो गई है। यह सारे लक्षण विश्व परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 8:14 AM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय ब्रह्मकुमार भगवान भाई
सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को भी आवश्यक बताया।
गुंडरदेही & अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के कार्यक्रम के तहत प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई स्थानीय शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों के बीच पहुंचे। उन्होंने सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को भी आवश्यक बताया। माता कर्मा महाविद्यालय एवं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना आज की आवश्यकता है। उन्होंने आगे बताया कि नैतिक मूल्यों की कमी व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है। विद्यार्थियों का मूल्यांकन आचरण, अनुसरण, लेखन, व्यवहारिक ज्ञान एवं अन्य बातों की तरफ प्रेरणा देने की आवश्यकता है।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 8:04 AM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ब्रह्मकुमार भगवान भाई
बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
जालोर। कर्मो की गति बड़ी गुहय है। कर्मो के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान् बनता है। ये उद््गार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउण्ट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहे। वे गुरूवार को जिला कारागृह में कैदियों को संस्कार परिवर्तन और व्यवहार शुद्धि विषय पर संबोधित कर रहे थे। भगवान भाई ने कहा कि मनुष्य के कर्म ही उसे वाल्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति के समान बनाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है। उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। उन्होंने कहा कि यह कारागृह आपके लिए तप स्थली है जिसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में टटोलना है, सोचना है कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से भेजा है। मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। वास्तव में मुझे क्या करना चाहिए, ऐसा चिंतन कर अब अपने व्यवहार और संस्कारों में परिवर्तन करना है। बी.के. रंजू बहन ने कहा कि स्वयं का मनोबल मजबूत रखो स्वयं को असहाय, अकेले, थके हुए महसूस नहीं करो।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 7:58 AM 0 comments
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संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
Jun 04, 12:45 am
बताएं
बहादुरगढ़, जागरण संवाद केंद्र :
शहर के नाहरा-नाहरी रोड स्थित ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में बृहस्पतिवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें ब्रह्मकुमार भगवान भाई मुख्य रूप से मौजूद रहे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि संतोष जीवन का सर्वोत्तम धन है। संतोष को अपनाकर ही हम जीवन में सच्ची शांति की अनुभूति कर सकते है।
उन्होंने कहा कि बीती बातों को याद कर हम अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाते है। इससे उनकी सेहत पर भी कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें बीती बातों पर विराम लगाना सीखना चाहिए। संकल्प एक निधि है। इसे हर पल बचाना है। कारणों का निवारण ढूंढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या-क्यूं करके हम समस्या में ही उलझे रहते है। संकल्पों को बचाकर ही हम मनोबल बढ़ा सकते है। हर परिस्थिति का समाधान है ग्रह गति का ज्ञान। उन्होंने कहा कि गीता ज्ञान अनुसार हमें याद रखना चाहिए कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। बीती घटनाओं से सबक सीखकर हमें आगे बढ़ना चाहिए और क्रोध रूपी अक का फूल शिव पिता पर स्वाहा कर देना चाहिए।
पावन धाम की संचालिका ब्रह्मकुमारी अंजलि ने कहा कि इस दिव्य सत्संग का लाभ लेने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने बताया कि भगवान भाई पिछले तीस वर्षो से राजयोगी जीवन व्यतीत कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने पीडीएम कालेज में ईश्वरीय सेवाएं प्रदान कीं।
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जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है
उत्थान का दिया संदेश
खरगोन। जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है।
उक्त विचार प्रजापति ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी भगवानभाई ने राजयोग का जीवन में महत्व विष्ाय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। भगवान भाई ने सोमवार सुबह स्थानीय केंद्र के सदस्यों को प्रवचन दिए। इसके पश्चात उन्होंने जेल पहुंचकर कैदियों के बीच अपनी बात रखी। यहां उन्होंने कर्म की प्रधानता पर अपना उद्बोधन दिया। भगवानभाई मंगलवार सुबह केंद्र पर सदस्यों को प्रवचन देने के बाद दोपहर बोरांवा स्थित इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों को संबोधित करेंगे। केंद्र के सदस्य प्रभाकर कुलकर्णी ने बताया राजयोगी भगवानभाई विवि के सभी आश्रमों नैतिक मूल्यों के उत्थान के लिए प्रवचन देते हैं। साथ ही जेल, विद्यालय, महाविद्यालय में भी अपने विचारों को प्रबुद्धजनों के बीच रखते हैं।
दिया कर्म संदेश
राजयोगी भगवानभाई दोपहर जेल में पहुंचे, जहां उन्होंने कैदियों को कर्म की प्रधानता पर उद्बोधित किया। उन्होंने कर्म की महत्ता बताते हुए कहा कर्म से ही व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ और भ्रष्ट होता है। कलियुग में कर्म की प्रधानता है, इसलिए कर्मो के माध्यम से अपने जीवन को सुखी और खुशहाल बनाए।
नैतिक गुणों का उत्थान
संस्कारों में परिवर्तन और निरंतर नैतिक मूल्य के ह्रास पर राजयोगी ने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार इन विकारों पर राजयोग से विजय पाने के सूत्र बताए। उन्होंने व्यक्ति के सुखमय और खुशहाल जीवन के लिए नैतिक मूल्यों व गुणों के उत्थान पर जोर दिया
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 7:51 AM 0 comments
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वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। यह विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू
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पीथमपुर। वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। यह विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने रखे। वे यहां इंडोरामा में तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि 19 वीं सदी तर्क की थी,जबकि 20वीं सदी प्रगति की रही है,परन्तु अब यह 21 वीं सदी तनाव पूर्ण रहेगी। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में स्वयं को तनाव से दूर रखना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में,हर बातों में सकारात्मक सोच की कला को बढ़ावा दिया जा रहा है। सोचने वाला मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याओं और बीमारियों का कारण है। सत्संग के माध्यम से हमारी असली सम्पत्ति जीवन को मुश्किलों से बचाया जा सकता है। यही भगवान को पाने में मददगार भी साबित होता है। अत: प्रतिदिन सत्संग में भाग लेकर जीवन का धन्य बनाया जाए। इस अवसर पर इंदौर, महू, धार व पीथमपुर से सैकड़ों ब्रह्मकुमार भाई-बहन उपस्थित थे।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 7:48 AM 0 comments
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Sunday, June 5, 2011
परमपिता परमात्मा शिव बाबा ब्रह्माकुमारी
शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं
परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा
मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का
में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़
विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए
कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो
सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया
है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।
रामेश्वरम् में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट
गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि
सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का
त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष
तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही
कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद
इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती।
आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम
सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश
सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के
इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू
परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो
चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज
राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव
पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।
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Saturday, June 4, 2011
योग का अति सरल अर्थ है -
योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है, उसी के साथ उस आत्मा का योग है. फिर वह चाहे व्यक्ति, वस्तु, वौभव या परिस्थिति हो या परमात्मा ही क्यों न हो. अब मन कहाँ-कहाँ जा सकता है, मन का कहीं भी जाने का आधार क्या हैं ? संसार में करोड़ो मनुष्य है लेकिन मन सभी के विषय में नहीं सोचता है. मन उसी के बारें में सोचेगा, जिसका उसे परिचय हो तो पहला आधार है परिचय. फिर जिसके साथ सम्बन्ध तीसरा आधार है स्नेह. जिससे स्नेह होता है उसके पास मन अपने आप चला जाता है. चौथा आधार है प्राप्ति. जहाँ से किसी को प्राप्ति होगी वहाँ से वह अपना मन हटाना ही नही चाहेंगा. तो किसी की भी याद के लिए मुख्य चार आधार है - परिचय, सम्बधन्ध, स्नेह और प्रापित. इनहीं चा आधारों के कारण मनुष्य की याद सदा बदलती ही रहती है
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Labels: BK BHAGWAN BHAI BRAHMA KUMARIS MOUNT ABU प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्सं
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन् ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।
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परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु
परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
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कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । होश ही धर्म है । होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।
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Wednesday, June 1, 2011
कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । महावीर ने कहा : होश ही
कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । महावीर ने कहा : होश ही धर्म है । महावीर कहते हैं : होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।
महावीर की देशना एकदम सीधी-सादी है लेकिन आज हमने उसे जटिल बना दिया है । इतना जटिल की अब लोग उससे पीछे हटने लगे हैं । महावीर एक दम सरल हैं, उनके उपदेश और भी सरल हैं लेकिन उनके तथाकथित अनुयायी बडे कठिन हैं और उन कठिन अनुयायियों ने महावीर और उनके धर्म को भी कठिन और जटिल बना दिया है । जैन धर्म के पिछडेपन का यही एक कारण है । जिस धर्म में अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह जैसे शाश्वत स्वर हों और वही धर्म सिकुड जाये बात समझ में नहीं आती है । जैन धर्म के पिछडेपन का कारण यही है कि जैन धर्म के सिद्धान्त तो अच्छे हैं लेकिन उनकी पैकिंग अच्छी नहीं है, प्रस्तुति अच्छी नहीं है । जमाना विज्ञापन और पैकिंग का है । किसी दुकान का माल कितना ही अच्छा क्यों ना हो, यदि उसकी पैकिंग अच्छी ना हो तो पैकिंग आकर्षक न हो तो दुकान चलती नहीं है । जैन धर्म के पास यही वजह है कि जैनियों की अच्छी चीज भी धूल-धूसरित हो रही है । अटाले में पडी धूल खा रही है । समय की नजाकत को पहचानिए और समय के साथ चलने की आदत डालिए । और हॉं, हो सके तो खुद भी सरल बनिए । क्योंकि महावीर कहते हैं चित्त की सरलता ही धर्म है, चरित्र की सरलता ही जीवन है । सरलता कैसी होती है, इसे गांधीजी के एक उदाहरण से समझें ।
कहते हैं एक बार गांधी जी लोकल गाडी में चंपारण से बतिया गॉंव जा रहे थे । वहॉं उनकी एक सार्वजनिक सभा थी । जिसे उन्हें सम्बोधित करना था । गांधी जी तीसरे दर्जे के डिब्बे में सवार थे । जगह मिल गई तो थोडा-सा पैर फैलाकर के लेट गये । किसी स्टेशन पर गाडी रुकी तो एक ग्रामीण युवक भी उसी डिब्बे में चढ आया । गांधी जी तो अभी सो रहे थे और उस युवक को बैठने के लिए जगह चाहिए थी । गांधी जी को सोता देखकर उस युवक ने गांधी को धक्का लगाते हुए कहा ऐ बुढ्ढे ! तेरे बाप की गाडी है क्या ? जो लम्बे पैर पसारकर सो रहा है, चल उठ, सीधा होकर बैठ । महात्मा गांधी तुरन्त उठ गये और चुपचाप शांत भाव से बैठ गये । इसको कहते हैं "सरलता' गांधी उत्तेजित नहीं हुए, शांत रहे । कुछ बोले भी नहीं, चुप रहे । वह युवक भी गांधी जी के पास ही पैर पसार कर बैठ गया ।
थोडी देर बाद उसने भजन गाना शुरु किया । भजन के बोल थे - "धन-धन गांधी तेरा अवतार, दुखियों के दु:ख काटन हार ।' धन-धन गांधी तेरा अवतार । गांधी जी भी यह भजन सुन रहे थे । दरअसल वह युवक भी गांधी के दर्शन करने और उन्हें सुनने के लिए बतिया गॉंव जा रहा था । युवक का भजन पूरा हुआ । गांधी जी ने भी भजन का पूरा आनंद लिया । वह बोले कुछ नहीं । यह है सरलता । अब तक युवक का भजन पूरा हो चुका था, उधर गाडी भी अपनी रफ्तार से भाग रही थी । बतिया गॉंव के करीब गाडी पहुँची तो युवक ने गांधी जी से पूछा "ए बुड्ढे ! तूने महात्मा गांधी कानाम सुना है ? मैं उनका दर्शन और प्रवचन सुनने जा रहा हूँ, वो बहूत अच्छे इंसान हैं ।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 11:06 AM 0 comments
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संत दर्शन के लिए उठा एक-एक कदम एक-एक यज्ञ के बराबर होता है । संत बडे करुणाशील होते हैं । संत बडे दयालु होते हैं । वे तुम्हारे कल्याण के लिए ही तपस्याएं करते हैं । जैसे अहिल्या उद्धार के लिए श्रीराम स्वयं अहिल्या के द्वार पर गये थे वैसे ही तुम्हारे उद्धार के लिए संत तुम्हारे द्वार आते हैं । तुम ही अहिल्या हो और संत राम के अवतार हैं । संत तो हरिद्वार है । और सत्संग गंगा-स्नान है, हर की पेडी है । सत्संग का फल तो बैकुंठ है ।
संत हरिद्वार : सत्संग गंगा स्नान
एक महिला ने प्रवचन-कथा में सुना कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है, क्योंकि संत हरिद्वार है और सत्संग गंगा स्नान है । दूसरे दिन जाकर उसने अपपने पति से कहा- देखो, एक बहुत बडे संत आये हैं और उनका सत्संग चल रहा है । सारा गांव सत्संग का लाभ ले रहा है । बडा आनंद बरस रहा है, तुम भी सत्संग का लाभ लो क्योंकि सत्संग का फल बैकुण्ठ है । पत्नी के विशेष आग्रह पर वह दूसरे दिन सत्संग में गया । वहॉं जाकर सत्संग में बैठा और 10-15 मिनट बाद बार-बार इधर-उधर देखने लगा कि बैकुण्ठ ले जाने वाला कोई विमान आया या नहीं । घंटा भर वह बैठा रहा वहॉं । विमान कहॉं से आना था ? जब उसे लगा कि अब कोई विमान आने वाला नहीं है, कोई बैकुण्ठ मिलने वाला नहीं है तो गुस्से से उठा और संत को भला-बुरा कहते-कहते सत्संग केबाहर निकल गया ।
घर जा रहा था । गुस्से में तो था ही । रास्ते में नारदजी मिल गये । नारद ने पूछा- भाई ! क्या बात है ? किसे गाली दे रहे हो ? बोला- ये संत लोग बडे धोखेबाज होते हैं । जनता को गुमराह करते हैं कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । अरे ! मैं वहॉं घंटा भर बैठा, पर वहॉं बैकुण्ठ तो क्या एक कप चाय भी नहीं मिली । उस आदमी ने नारद से पूछा कि आप ही बताइये सत्संग का क्या महत्व है ? क्या सत्संग से वाकई में बैकुण्ठ मिलता है । नारद ने कहा : भाई ! सत्संग तो मैं भी करता हूँ लेकिन सत्संग का महत्व मुझे भी नहीं मालूम । नारद ने कहा- अच्छा ऐसा करते हैं शंकरजी से चलकर पूछते हैं, वे ही बतायेंगे कि सत्संग का क्या महत्व है ? नारद उस व्यक्ति को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे । शंकरजी से नारद ने पूछा : महाराज सत्संग का महत्व बताइये- यह व्यक्ति जानना चाहता है । शंकर जी बोले : भाई सत्संग का महत्व मैं भी नहींे जानता । अच्छा ! हम ब्रह्मा जी के पास चलते हैं । वे ही सत्संग का महत्व बतायेंगे । शंकरजी, नारद और वह व्यक्ति तीनों चलकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे भी यही प्रश्न किया । सत्संग का क्या महत्व है ? यह बताइये । ब्रह्मा जी तो मुश्किल में पड गये । बोले - भाई, मुझे तो मालूम नहीं । इसका उत्तर तो विष्णुजी ही दे सकते हैं । अपन विष्णु के पास चलते हैं ।
ये सभी बैकुण्ठधाम पहूंचे तो वहॉं विष्णुजी विराजमान थे । विष्णुजी ने देखा कि आज तो बडे-बडे महापुरुष एक साथ आये हैं । कारण पूछा तो नारद ने कहा- भगवन ! यह व्यक्ति सत्संगक का महत्व जानना चाहता है और हममें से किसी को सत्संग का महत्व मालूम नहीं है इसलिए आपके पास आये हैं । कृपया, आप सत्संग का महत्व समझायें । विष्णु जी ने उसी व्यक्ति से पूछा - बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकुण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसी व्यक्ति से पूछा- बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसके कान पकडकर कहा- अरे भोले प्राणी ! साक्षात ब्रह्मा, विष्णु, महेश तेरे सामने खडे हैं - तो यह बैकुण्ठ नहीं तो क्या तेरा घर है ? अगर तू घंटे भर का सत्संग नही करता तो तू क्या यहॉं तक आ सकता था ? देख घंटे भर के सत्संग का फल कि तीन-तीन देव तेरे सामने खडे हैं । श्रद्धा बडी चीज है । श्रद्धा ही फल देती है ।
तो, सत्संग का जीवन में बडा गहरा महत्व है । संतों की अंगुली थामकर रखो । जैसे बन्दर का बालक अपनी मॉं से चिपका रहता है, वैसे ही तुम संतों से चिपके रहो, जुडे रहो । बस तुम्हारा इसी में कल्याण है । भीड भरे मेले में जब तक बच्चे की अंगुली मॉं के हाथ में होती है तब तक बालक का जीवन सुरक्षित होता है लेकिन ज्यों ही मॉं की अंगुली छूटती है तो बालक भीड के संकट में खो जाता है । जब तक तुम्हारी जीवन की अंगुली किसी संतने शाम ने थाम रखी है, तब तक संसार का कोई थपेडा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड सकता और अगर अंगुली छूट गई तो फि रोना ही रोना शेष रह जायेगा ।
तो, उस युवक ने सोचा - गलत जगह आ गये । यह आदमी तो गडबड है ही, लगता है इसकी पत्नी भी बडी बुद्धू है । उसने यह भी नहीं पूछा कि धूप में बैठे हो तो लालटेन की क्या जरुरत पड गई ? ऊपर वाले ने भी क्या जोडी बिठाई है । दोन्हों ही एक से हैं । वह मन ही मन कबीर को कोस रहा था । युवक कबीर से कहता है, मेरी समस्या का समाधान करें । मुझे देर हो रही है, मुझे जल्दी जाना है, कबीर ने कहा- करुंगा, थोडी प्रतीक्षा करो । कबीर ने अपनी पत्नी को निर्देश दिया किवह दो कटोरे दूध लेकर आये । पत्नी रसोई में गई- दूध में चीनी डाली, और दो कटोरे दूध से भरकर कबीर के सामने
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 11:05 AM 0 comments
परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु
परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
प्रभु के प्रभाव और संतों की संभावना को प्रणाम
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन् ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 10:55 AM 0 comments
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लोभ का गड्ढा दुष्पूर है । लोभ के गड्ढे में पडा सम्पूर्ण विश्र्व क अणु के समान मालूम पडता है । इच्छाएं अनंत हैं । आकांक्षाओं को छूना आकाश को छूने से भी
महात्मा बुद्ध ने कहा- संसार में नाना दु:ख हैं । मनुष्य तृष्णा को त्यागे तो दु:ख से बचे । भगवान महावीर ने कहा- लोभ का गड्ढा दुष्पूर है । लोभ के गड्ढे में पडा सम्पूर्ण विश्र्व क अणु के समान मालूम पडता है । इच्छाएं अनंत हैं । आकांक्षाओं को छूना आकाश को छूने से भी दुष्कर है । जब तक हम कामनाओं व वासनाओं के जाल से मुक्त नहीं होंगे, अतृप्त ही बने रहेंगे ।
परिवार नियोजन अधिकारी एक सेठ के पास गये । अपना परिचय देते हुए पूछा - सेठ साहब, आपकी कितनी संतान हैं ? सेठ ने कहा- सात । अधिकारी ने कहा- अब तो आपको परिवार नियोजन करा लेना चाहिए । सेठ ने कहा कि नहीं, यह फिलहाल संभव नहीं है । अधिकारियों ने आश्र्चर्य करते हुऐ पूछा - क्यों ? सेठ बोला - क्योंकि ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की है कि तुम्हारा तेरहवां पुत्र मंत्री बनेगा ।
सेठ इस आशा-विश्र्वास पर जी रहा है कि उसका तेरहवा पुत्र मंत्री बनेगा, भले ही तेरहवां पुत्र होने से ही पूर्व ही उसकी तेरई मन जाए । मनुष्य बहिर्मुखी हो गया है । सुख का अनंत सागर स्वयं में हिलोरे मार रहा है परन्तु जैसे चम्मच कडाही में रहकर भी मिठाई का स्वाद नहीं जानता वैसे ही यह आत्मा अपने आत्मिक आनंद का अनुभव नहीं करता । बाह्य में खोजता है आनंद को, यही तो भूल है मानव की । सेठ तेरहवें पुत्र का सपना देख रहा है । कितना बडा लोभ पाल रहा है जीवन में । मनुष्य को चाहिए कि वह असीम इच्छाओं को नियंत्रित करते हुए, जन-जन के कल्याण व प्राणी मात्र के अभ्युदय हेतु संकल्पित हो । स्वार्थवृत्ति को छोडकर औरों के लिए जीना व मरना सीखे । यही मानवता की कसौटी है । इस सम्बन्ध में मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां कितनी प्रेरणास्पद है -
विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी ।
मरो, परन्तु योें मरो की याद जो करें सभी ।।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए ।
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए ।।
यही पशु प्रकृति है कि आप आप ही चरे ।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
चले अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति विघ्न जो पडे उन्हें ढकेलते हुए ।।
घटे न हेल-मेल हां बढे न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के, सतर्क पान्थ हो सभी ।।
यही समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे ।
वही मनुष्य कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
हर मनुष्य अपने कर्तव्य व दायित्व को पहचाने और दूसरे के दु:ख दर्द में सहभागी बने, दीन दु:खी, पीडित, दलित व उपेक्षित व्यक्तियों की सेवा करने वाला देवमानव माना जाता है जबकि औरों को कष्टग्रस्त देखकर आनंद की अनुभूति करने वाला वनमानुष । जब पृथ्वी पर देवमानुष की संख्या बढती है तब स्वर्गोपम को धारण करती है और वनमानव से नरकोपम को । दीन-दुखियों की उपेक्षा करके कोई भी व्यक्ती धर्म की आत्मा को नहीं समझ सकता । दीनों की सेवा विश्र्व का सर्वोपरि धर्म है ।
चेतना-पुंज मानव का यह परम कर्तव्य है कि अपने सुख के साथ-साथ औरों के सुख में भी कारण बने और इसके लिए वह निहायत जरुरी है कि मनुष्य सिर्फ आकृति से ही नहीं, प्रत्युत प्रकृति से भी मनुष्य बने और मानवता का परिचय दे । ईश्र्वर का प्रिय पुत्र होने का गौरव जो उसे मिला है, उसे अपने दुष्कर्मों से लांछित न करे ।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 10:43 AM 0 comments
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ब्रह्मकुमारिज भगवान भाई आबू रोड
जब हम किसी की सेवा करते हैं, चरण-वंदना करते हैं, चरण दबाते हैं, तो इससे हमारा अहंकार टूटता है । ध्यान रखना- अहंकारी व्यक्ति ने तो किसी को प्रणाम करता है और न ही किसी व्यक्ति की सेवा । सेवा से अहंकार टूटता है । किसी को नमन करने का अर्थ है- अहंकार से मुक्ति पाना । तुम किसी के हाथ तभी जोड सकते हो, जब थोडा-सा अहंकार छोड दो । किसी को साष्टांग प्रणाम तभी कर सकते हो जब इससे भी ज्यादा अहंकार छोड दिया हो, और चरण धोकर गंधोदक, चरणामृत तभी ले सकते हो जब पूर्णतया अहंकार से मुक्त हो गये हो । धर्म की यात्रा अहंकार बहुत सख्त है । एक बार की चोट से नहीं टूटता है । इसे तोडने के लिए कई चोटों की जरुरत है । इसलिए णमोकार मंत्र में पांच चोटों के माध्यम से अहंकार को तोडने की प्रक्रिया अपनाई गई है । नारियल तो एक-दो चोट से ही टूट जाता है लेकिन अहंकार का नारियल बडा मजबूत है - इस पर कई चोट लगानी पडती है । । जहॉं अहंकार होगा, वहॉं णमोकार नहीं हो सकता और जहॉं णमोकार नहीं होगा और यदि वह अहंकारी है, तो णमझना अभी उसने णमोकार के महत्व और मूल्य को समझा नहीं है । अभी णमोकार मंत्र उसके हृदय तक पहूँचा नहीं है ।
अहंकार बाधा है । परमात्मा और तुम्हारे बीच एकमात्र अहंकार बाधा है । तुम्हारे और प्रभु के बीच अहंकार की दीवार है । अगर अहंकार की दीवार ढह जाये तो तुम्हारे लिए प्रभु के द्वार खुल जायेंगे । अहंकार दीवार है और समर्पण द्वार है । समर्पण के द्वार से ही ईश्र्वरीय दृष्टि मिलती है । अगर अपना सच्चा समर्पण प्रभु को कर दो तो प्रभु प्रकट होने के लिए बाध्य हो जाता है ।
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ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्मकुमारिसज आबू रोड
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Tuesday, May 31, 2011
स्कूल सेवा नैतिक मूल्य ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी
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स्कूल सेवा नैतिक मूल्य ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी
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Sunday, May 29, 2011
Value Education in the Age of Globalism
Value Education in the Age of Globalism
Globalism today is being accepted as synonym for progress, scientific breakthroughs and technological revolution. With its long strides, it is being taken as a model prescription of the new utilitarian thrust in our approach to education. But in the sheer romantic indulgence of this new pursuit, it is not being realized that when the sole purpose of education becomes acquisition of higher and higher level of commercialism, and when education is allowed to drift along this wave and it consequently reduces to a coveted agency of material advancement, the symphonic order within the human soul becomes the natural casualty causing deformity in human emotions and perceptions. Such a development can endanger the peace and happiness of the mankind. With all its excitation tunes, it is devoid of our essential human music. The human face of education is, thus, missing in the wake of technological onslaughts on the value-based concept of education. The equilibrium has been considerably damaged causing a sense of tragic waste and futility, and this can be restored by identifying the role of value education in this age of globalism.
The traditional approach to education has been to see its utility and purpose in terms of social and moral awareness, to impart beauty and dignity to life and also to provide with a code of conduct for a good social and moral order. Character building is the key phrase in the Gandhian philosophy of education. Another recurring note that we trace in the writing of our philosophers is that education provides us with a faculty for positive discrimination between the right and the wrong and between the virtue and the vice. That knowledge which purifies the mind and the heart is the only true knowledge, all else are only negation of knowledge, says sri Ramkrishna Paramhans. And according to //Seneca, the object of education is inward development. Long ago, the great philosopher plato said “The main aim of education is all round development of the personality”. According to Herbert Spencer, the aim of education is to enable one to lead a complete and successful life. The same idea has been incorporated in the philosophy of the great German educationist John Fredric Herbert who opined that the one and the whole task of education may be summed up in the concept of morality. In this context our former president Dr. S. Radhkrishanan also observed that the troubles of the whole world including India are due to the fact that education has become a mere intellectual exercise and not the acquisition of moral and spiritual values. With the advent of industrial society and its aspirations, the educational scene has undergone a phenomenal change giving rise to new powers and new thrusts in educational management. The primary function of education is no longer the building of character or the promotion of moral order, but the emphasis has shifted to the promotion of skill, technical know-how and technology for material progress. The mass base of higher education in India has encouraged courses for utility skill; promotion of careerism ecomomic good and social prosperity. Education, today is no longer confined to the development of intellectual power or knowledge of the abstract kind, but to development and promotion of skills and know-how for industrial productivity and the production of goods, skills and services.
Education is still engaged in its primary function to generate and disseminate knowledge but cannot stop at this: it has to promote know-how, skills and technologies to make it respectable and comfortable in the changing situations. Higher education in India has, therefore, an obligatory duty to create technical and managerial human resource in all development sectors. It has to keep the vision of India becoming the fourth largest economy in the world by 2020 in mind and for this pace of growth it has to promote skills and technologies which will be required of Indians by that time. It has to keep communication revolution in mind, and must be prepared to create a well equipped generation of human power, a generation of producers and innovators, in other words, education is to act not as a moral reformer, but as an agent of social transformation and promoter of the desired change.
This change has, however, encouraged promotion of careerism without human values and ends in view. What is more unfortunate is the unmistakable trend of a mad rush for amoral and valueless desire for status and power in terms of commercialism and consumerism. To be in tune with the big development taking place in the world is good and desirable; but to achieve the educational power without human values in view, is fraught with dangerous possibilities.
The need of the hour is to temper the utilitarian pursuit of education with integrated vision of a happy order of life on earth and also with spiritual, cultural and aesthetic values of the modern age. productivity must not suffer and education must prove to be a powerful agent and promoter of productivity. Productivity can even be accepted as a new value of education but the Sciences and technological streams should also promote scientific approach to problems and a rational and human outlook on life. A meaningful promotion of a rational and human outlook on life. Would necessarily require education of human rights and fundamental freedoms. This will have a focus on environmental. Cultural, Social, political, economic and developmental rights with quality concerns in the matter of the related issues.
Catholicity of mind is another important value which must be promoted by the post modernist education. Established as a component of education and a cherished value, it can ensure broad based understanding, spirit of good mixing, perseverance, tolerance, receptivity and sensibility for appreciation of imaginative powers, cultural slants and angularities of varied social groups of the world. An educated person is after all supposed to be able to come out of his narrow walls and boundaries of ideas and creeds, and to have respect for the point of view of others in our pluralistic society.
The power of modern education can be better realised by achieving a happy integration of utility and value, integration of body and mind, emotions and ideas, individual and society, society and the world. The vision of progress must not be devoid of human element the aspects of vision which make the progress meaningful and purposeful. The progress that is aimed at and desired is an assertion of the power of human imagination and so the fruits of this progress must be realized with the ends of humanity in minds. The tools of change are powerful, but their application must be humane and they must be employed for pious purposes.
So in the wake of the phenomenal and dimensional developments on the educational front, reorientation of value in the post modernist education assumes special significance. Here are certain concrete recommendations for tempering utilitarian pursuit of higher education with desirable ideals and visions of human happiness.
A) Education must promote rational outlook on life and scientific approach to issues confronting the real life situations.
B) An imaginatively framed course in fundamental freedoms and human rights must constitute a component of our Degree level curriculum.
C) Power that education generates must be employed for constructive human purposes.
D) Education must develop sensitivity to environment and must foster human ethos for the enjoyment of the fruits of progress.
E) Humanism should be the motto of education in all circumstances, and it must promote quality concern for corporate behavior and corporate life.
F) Education must be able to develop a working mechanism to fight the evil of consumerism and acquisitive culture so that environment may be protected and development may remain sustainable.
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 10:09 AM 0 comments
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योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है,
राजयोग का आधार और विधी
योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है, उसी के साथ उस आत्मा का योग है. फिर वह चाहे व्यक्ति, वस्तु, वौभव या परिस्थिति हो या परमात्मा ही क्यों न हो. अब मन कहाँ-कहाँ जा सकता है, मन का कहीं भी जाने का आधार क्या हैं ? संसार में करोड़ो मनुष्य है लेकिन मन सभी के विषय में नहीं सोचता है. मन उसी के बारें में सोचेगा, जिसका उसे परिचय हो तो पहला आधार है परिचय. फिर जिसके साथ सम्बन्ध तीसरा आधार है स्नेह. जिससे स्नेह होता है उसके पास मन अपने आप चला जाता है. चौथा आधार है प्राप्ति. जहाँ से किसी को प्राप्ति होगी वहाँ से वह अपना मन हटाना ही नही चाहेंगा. तो किसी की भी याद के लिए मुख्य चार आधार है - परिचय, सम्बधन्ध, स्नेह और प्रापित. इनहीं चा आधारों के कारण मनुष्य की याद सदा बदलती ही रहती है या परिवर्तनशील होती है. एक बालक का योग अपनी माता के साथ है क्योंकि उसको केवल माँ का परिचय है. माँ से ही उसे स्नेह मिलता है, भोजन मिलता है. माँ को न देखने पर वह रोता है और माँ के उसे उठाने पर वह चुप हो जाता है. इससे सिध्द है कि उसका योग अपनी माता के साथ है. बालक थोड़ा बड़ा होने पर खेलकूद में रस लेने लगता है तब उसका योग माँ से परिवर्तित होकर अपने दोस्तों और खेल में जुट जाता है और माँ का बुलावा भी वह टालने की कोशिश करता है. विद्यार्थी जीवन में बच्चे का योग अपनी पढ़ाई, पाठशाला और शिखक से हो जाता है. व्यावहारिक जीवन में आने के बाद उसका योग - धन, सम्पत्ति, मर्तबा, इज्जत, अन्य सम्पर्क मंे आने वाले व्यक्तियों के साथ हो जाता है, विवाह होने पर कुछ समय के लिए उसका योग पत्नी के साथ हो जाता है. सन्तान होने पर पत्नी से भी योग हटकर सन्तान से हो जाता है. बीमारी के दिनों में पूरा ही योग डॉक्टर के साथ होता है. क्योंकि उससे ही इलाज होना है. इस प्रकार योग परिवर्तनशील है तो फिर देहधारियोंे से योग हटाकर परमात्मा से योग लगाना कठिन क्यों होना चाहिए, जहाँ परिचय, सम्बध, स्नेह और प्राप्ति है वहाँ योग लगाना बड़ा ही सहज है, अब ये चारों ही आधार परमात्मा से जोड़े जाएँ तो राजयोग कोई कठिन विधि नहीं है.
सबसे पहले राजयोग के लिए स्वयं का और परमात्मा का परिचय होना आवश्यक है. मौ कोन हॅूं और मुझे किसके साथ योग लगाना है ? अगर हम अपने-आपको देह समझेंगे तो हम परमात्मा के साथ कभी भी योगयुक्त नहीं हो सकेंगे. देह अभिमान समझने से यही संकल्प आयेगे - `मौ पिता हँू` तो बच्चे याद आयेंगे, ``मौ शिक्षक हँू`` तो विद्यार्थी याद आयेगें ``मौ व्यापारी हँू`` तो ग्राहक याद आयेंगे. लेकिन जब स्वयं को आत्मा निश्चय करेंगे तब ही परमात्मा याद आयेगा. इस प्रकार राजयोग की पहली सीढ़ी है - आत्मा और परमात्मा के पूर्ण परिचय के आधार पर दोनों मे निश्चय. दोनों का परिचय तो दूसरे और तीसरे सत्र मं मिला है,
अब परमात्मा के साथ आत्मा का किस प्रकार के सम्बन्ध और उसको याद करने की विधी क्या है इस पर विचार करेंेंगें -
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Labels: ब्रह्माकुमार भगवान भाई प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय ब्रह्मा कुमारी
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू
बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी नाम: राजयोगी ब्रह्मा कुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी शांतिवन में राजयोगा टीचर मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत राजस्तान में रसोई विभाग में ब्रह्मा भोजन में सेवा लेखक, विभिन्न मगैनेस और समाचार पत्रों में शैक्षिक योग्यता: 10 वीं और आय .टी .आय . जन्म तिथि: जून 1, 1965 सेवा स्थान: अबू रोड, शांतिवन ज्ञान में : 1985 सेवा में समर्पित कब से 1987: सेवा --- जैसे, ग्राम विकाश कई आध्यात्मिक अभियानों में , रैली, शिव सन्देश रथ यात्रा, मूल्य आधारित मीडिया अभियान, मूल्य आधारित शिक्षा अभियान, युवा पद यात्रा, आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों में, साथ ही में नेपाल में भी भाषण विभिन्न विषयों पर पर संबोधित किया है कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय (5000) स्कूल में नीतिक मूल्य बारे में स्कूलों और जेलों (800) समाज सेवा पुनर्वास शिविर बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं, भूकम्प आदि कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न क्लास लिया है यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय के एक बहुत अच्छे लेखक हैं. अपने लेख बहुत बार कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहे हैं जैसे (हिंदी) ज्ञानामृत , विश्व नवीनीकरण (अंग्रेज़ी) के रूप में,
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शांतिवन के भगवान भाई का
नाम इंडिया बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया। यह सम्मान उन्हें
पांच हजार स्कूलों के हजारों बच्चों को मूल्यनिष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक
एवं आध्यात्मिक विकास के लिए लगातार पढ़ाए जाने तथा आठ सौ जेलों के
हजारों कैदियों से अपराध छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानवता
को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिए
संदेश देने के अथक प्रयास के कारण मिला है।दिल्ली के कनॉट प्लेस में 22
अप्रैल को यह सर्टिफिकेट इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडिटर विश्वरूप
राय चौधरी की तरफ से आयोजित एक समारोह में दिया गया।
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बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई
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सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई कटनी। बदलने से विपरीत परिस्थिति भी सहज दिखने लगती है। अपनी समस्या को समाप्त करने एवं सफल जीवन जीने के लिए विचारों को सकारात्मक बनाने...
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
कटनी। बदलने से विपरीत परिस्थिति भी सहज दिखने लगती है। अपनी समस्या को समाप्त करने एवं सफल जीवन जीने के लिए विचारों को सकारात्मक बनाने की बहुत आवश्यकता है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने कहे। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारीज राजयोग सेवा केन्द्र पर तनावमुक्त विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समस्याओं का कारण ढूढने की बजाए निवारण ढंूढ़े। उन्होंने कहा कि समस्या का चिंतन करने से तनाव की उत्पत्ति होती है। मन के विचारों का प्रभाव वातावरण पेड़-पौधों तथा दूसरों व स्वयं पर पड़ता है। यदि हमारे विचार सकारात्म है तो उसकासकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि जीवन को रोगमुक्त,दीर्घायु, शांत व सफल बनाने के लिएहमें सबसे पहले विचारों को सकारात्मक बनाना चाहिए। राजयोगी भगवान भाई ने कहा कि सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है। एक दूसरों के प्रति सकारातमक विचार रखने से आपसीभाई चारा बना रहता है। उन्होंने सत्संग एवं आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक सोच के लिए जस्री बताते हुए कहा कि हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है। सत्संग के द्वारा प्राप्त ज्ञान और शक्तियां ही हमारी असली पूंजी हैं। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केन्द्र की भगवती बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर अभ्यास के द्वारा हम अपने कर्म इद्रियों को संयमित कर अपने आंतरिकसद्गुणों का विकास कर
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Friday, May 27, 2011
शिव बाबा याद है ? ब्रह्मकुमारिज ॐ शांति BRAHMAKUMARIS
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