Friday, July 29, 2011

राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ

राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ
‘चिंता है चिता की जड़’
स्र46 भास्कर न्यूज & बिलासपुर

राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास करने पर बल देते हुए कहा कि दूसरों को देखकर चिंतित होना, नकारात्मकता से घिर जाना पतन की जड़ है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता।

उसलापुर स्थित ब्रह्माकुमारी शांति सरोवर में राजयोग साधना से संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम के दौरान भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। भगवान भाई ने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है। आध्यात्मिकता की व्याख्या करते हुए भगवान भाई ने कहा कि जब तक हम खुद को नहीं पहचानते तब तक परमात्मा से संबंध स्थापित नहीं कर सकते। इस मौके पर मुंगेली, जांजगीर, बिल्हा, राहौद, खरौद, तखतपुर, रतनपुर सहित शहर से करीब 500 सदस्य उपस्थित थे।

नैतिकता से ही सर्वांगीण विकास संभव : देवकीनंदन गल्र्स स्कूल में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में नैतिक शिक्षा के महत्व पर भगवान भाई ने कहा कि इससे ही वे अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर जाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे की कल के भविष्य हैं। अगर कल के समाज को बेहतर देखना चाहते हैं तो वर्तमान के विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा देकर संस्कारित किया जा सकता है।
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Thursday, July 21, 2011
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव

बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ
स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान के माध्यम से इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कर चुके बीके भगवान भाई गुरुवार को शहर के रेलवे स्कूल पहुंचे।

स्कूल में बीके भगवान ने कहा कि स्कूल ही शिक्षा का वो समुदाय है जहां हर वर्ग, धर्म, जाति के बच्चे पढऩे आते हैं। इन्हीं में से आगे चलकर विद्यार्थी इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, वकील बनते हैं। बाल्यावस्था में ही यदि नैतिक शिक्षा से अच्छे संस्कारों के बीज रोपें तो विद्यार्थियों के साथ समाज, देश का भविष्य भी सुनहरा होगा। वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में नैतिकता, धैर्यता, ईमानदारी गुणों की कमी हो रही है। बचपन में ही सही शिक्षा व संस्कार देना जरूरी है।

एसईसी रेलवे मिक्स्ड हायर सेकंडरी इंग्लिश मीडियम की छात्र-छात्राओं को सकारात्मक चिंतन का महत्व समझाते हुए भगवान भाई ने कहा कि इससे समाज में मूल्यों की खुशबू फैलती है। इसी से जीवन कीं हर समस्या का समाधान हो सकता है।

सिन-मा यानी सिनेमा है पाप की मां

भगवान भाई ने कहा कि बच्चे व युवा कुसंगति, सिनेमा, व्यसन, फैशन सहित 4 के फेर में पड़े हैं। इंटरनेट, मोबाइल का गलत उपयोग करते हुए दोस्तों की संगत में न चाहते हुए भी कई बार वे गलत राह पर चल देते हैं। धीरे-धीरे गलत कामों के संस्कार उनमें पड़ जाते हैं। नकारात्मक सोच होगी तो नकारात्मक जीवन बनेगा। आजकल युवा फैशन से आउटर पर्सनालिटी को निखारने में लगे रहते हैं।
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Wednesday, July 20, 2011
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन

केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
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व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुरा
Published on 21 Jul-2011

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व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन

केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
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स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर
भास्कर न्यूज & बिलासपुर

स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।

बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।
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Labels: ब्रह्मकुमार भगवान
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंत
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’

भास्कर संवाददाता & झाबुआ
राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियां और सद्गुणों को उभारकर जीवन में निखार ला सकते हैं।

यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय में कही। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता, अंतर्मुखताऐसे अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सकते हैं। राजयोग द्वारा ही मन की शांति भी संभव है। उन्होंने बताया राजयोग के अभ्यास से सुख की प्राप्ति होती है। भगवान भाई ने कहा अपने अनुभव के आधार पर राजयोग के अभ्यास द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक चिंतन के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश तनावपूर्ण परिस्थितियों में मन को एकाग्र और शांत रखने के लिए राजयोग संजीवनी बूटी की तरह काम आता है। राजयोग के अभ्यास से तनाव मुक्त बन हम अनेक बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं। मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचने का राजयोग एक कवच कुंडल है। उन्होंने कहा राजयोग द्वारा मन को सही दिशा निर्देशन मिलती है जिससे मन का भटकना खत्म हो जाता है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारांगण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को याद करना, मन, बुद्धि द्वारा उसे देखना, गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है।
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Labels: ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय
Sunday, July 17, 2011
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई भास्कर संवाददाता. झाबुआ नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई

भास्कर संवाददाता. झाबुआ

नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना है तो नारी जाति को सशक्त करना होगा।

यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने कही। वे भारतीय स्त्री शक्ति संगठन में महिला सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिक की आवश्यकता विषय पर बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा नारी सबसे पहली गुरु है। प्राचीन भारत में महान पुरुषों को जन्म देने वाली नारी भी महान थी। इसलिए ऐसे महान पुरुषों का जन्म हुआ, नारी के संस्कार बच्चों में आते हैं।

उन्होंने कहा नारी जब सदगुणों से पूर्ण थी तब देवत्व रूप में थी। लेकिन अब अनेक प्रकार के दुर्गुणों से आज वही नारी दुर्बल और कमजोर बन चुकी है। भगवान भाई ने कहा नारी जाति को स्वयं जाग्रत होना होगा, स्वयं के कत्र्तव्य को पहचानना होगा।
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Saturday, July 16, 2011
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण

ब्रह्मकुमारी संस्था

प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने कहा- तनाव पूर्ण रहेगी 2१वीं सदी

भास्कर संवाददाता & सेंधवा
समस्याओं के वर्तमान युग में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति मानसिक, शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। जबकि नकारात्मक सोच अनेक समस्याओं व बीमारी का कारण है।

१९वीं सदी तर्क की थी, २०वीं सदी प्रगति की रही लेकिन २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। इन परिस्थितियों में खुद को तनावमुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। जो व्यक्ति हर बात में सकारात्मक सोच रखता है वही जीवन में सुखी रह सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। सहन शुरू में कड़वा है लेकिन उसका अंत मीठा है। महापुरुषों ने अपनी सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। सहनशक्ति की कमी के कारण ही तनाव उत्पन्न होता है। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने यह उद्गार व्यक्त किए। वे स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा गुरुवार सुबह सत्संग भवन में आयोजित कार्यक्रम तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे।

चिंता या तनाव में क्यों रहें?: भगवानभाई ने गीता के महावाक्यों का उदाहरण देते हुए कहा जीवन की हर घटना कल्याणकारी है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। फिर चिंता या तनाव में रहने की आवश्यकता क्यों? उन्होंने कहा जो व्यक्ति दूसरों का अहित सोचता है वह जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता। न्यूटन के गतिरोधक नियम को बताते हुए कहा यदि कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी कभी उसके साथ भी ऐसा व्यवहार किया होगा। संसार में लागे खुद के दु:खों से तो दु:खी होते हैं लेकिन दूसरों के सुखों के कारण भी दु:खी हो जाते हैं।

मानवीय मूल्यों की कमी समस्याओं का मूल: मानवीय मूल्यों की कमी सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, पर्यावरणीय आदि सभी समस्याओं का मूल है। भविष्य के नाजुक समय में खुद को सुखी बनाने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही हमारी असली संपत्ति है।

राजयोग से रख सकते हैं इंद्रियों पर संयम: स्थानीय सेवा केंद्र की संचालक आशा बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। राजयोग की विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा परमशक्ति, परमात्मा को मन से याद करना व उनका गुणगान करना ही राजयोग है। इंदौर से आए प्रकाश भाई ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया यह कार्यक्रम ब्रह्मकुमारी संस्था के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रखा गया है। इस अवसर पर शहर सहित, वरला, जुलवानिया, ठीकरी, राजपुर आदि स्थानों से लोग शामिल हुए। कृष्णाबहन, काया बहन व अंजू बहन ने सहयोग दिया।
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जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट & ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी।यह बात ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्लेटिनम जुबली पर स्थानीय अगाल धर्मशाला में रोजयोग प्रशिक्षण कार्यक्रम में भगवान भाई ने कही। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है। भगवान भाई ने कहा जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसमें कोई विकास नहीं होता, किंतु कर्मों की गति से काम, क्रोध, मोह, अहंकार उत्पन्न होते हैं। ऐसे विकार हमारे शत्रु हैं। मुख्य अतिथि पूर्व विधायक माधौसिंह डावर ने तनावमुक्त जीवन के लिए एक बुराई त्यागने की बात शिविर में उपस्थित लोगों से की। श्री डावर ने जोबट में भी ध्यान केंद्र स्थापित करने में सहयोग देने की अपील की। अध्यक्षता कर रहे पं. नटवर श्यामा शर्मा ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व उपजेल जोबट में भी बंदियों को सद्मार्ग अपनाने के लिए व्याख्यान भगवान भाई ने दिए। अतिथियों का स्वागत यशपाल शर्मा ने किया।
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Labels: भगवान भाई
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से

ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर

क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से होता है और अंत पश्चाताप से, क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है, जिस कारण जीवन अशांत बन जाता है।

यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर ईश्वरप्रेमी भाई बहनों को क्रोधमुक्त जीवन विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। क्रोध की अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। यही मनुष्य से पाप कराता है। भगवान भाई ने क्रोध पर काबू पाने के भी उपाय बताए। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। आत्मनिश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। राजयोग द्वारा ही हम अपने कर्म इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा राजयोग द्वारा ही मन को सच्ची शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम के अंत में भगवानभाई ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया।
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Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान

साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।

भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।

यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा

नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव

भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर

शिक्षा का मूल उद्देश्य है मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना, स्वस्थ जीवन बनाना। इसके लिए मूल्य शिक्षा की अति आवश्यकता है।

यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के अंतर्गत पटेल पब्लिक स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा शिक्षा ही जीवन को सशक्त, सकारात्मक और विकसित बना सकती है। जीवन में कर्मकुशलता, व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक विकास एवं विभिन्न विषयों के साथ आपसी स्नेह, सत्यता, पवित्रता, अंहिसा, करुणा, दया आदि मानवीय मूल्यों के पाठ भी विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी है।

उन्होंने कहा मानवीय मूल्यों के ह्रास के कारण समाज में हिंसक वृत्ति बढ़ती जा रही है। मूल्यों की शिक्षा के ह्रास के कारण मानव संबंधों में तनाव, अविश्वास, अशांति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण सामाजिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है।
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आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कहा

आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है

भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर

समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि वे ही समाज शिल्पी हैं। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणा से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणा से विद्यार्थियों में बल भरता है, आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है।

यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था में शिक्षक-प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श शिक्षक विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। उन्होंने कहा शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे हैं तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षक के अंदर के जो संस्कार हैं, उनका विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार से नैतिक पाठ भी अवश्य पढ़ाएं।

सेवाभाव की आचरण की शिक्षा जुबान से

ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है तो क्या पूरे जिले को मूलनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित हम सब मिलकर नहीं कर सकतें। अब आश्यकता है सेवाभाव की। आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। व्याख्याता कैलाशचंद्र सिसौदिया ने
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
Published on 19 Jun-2011

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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान

साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।

भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।

यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान

साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।

भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।

यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
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१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अब यह २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकार
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर

१९ वीं सदी तर्क की थी, २० वीं सदी प्रगति की रही। अब यह २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है।

यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विवि माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा सहयोग गार्डन में रखे गए कार्यक्रम में तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने वर्तमान समय को समस्याओं का युग बताया और स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच रखने की बात कही। श्री भगवान भाई ने कहा विपरीत परिस्थितियों में समस्या में हर बातों में सकारात्मक सोचने की कला को बढ़ाता है। सकारात्मक सोचने वाला मानसिक, शारीरिक रूप से सदा स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच अनेक समस्या और बीमारियों का कारण है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते हैं। जीवन की मुश्किलों में यही पुण्य कर्म हमारी मदद करते हैं।१९ वीं सदी त

ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख तनाव मुक्त रह सकते हैं। उन्होंनें राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारागण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को मन बुद्धि से याद करना उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है। कार्यक्रम में विशेष राजयोग का अभ्यास व जीवन में आने वाली विभिन्न समस्या पर समाधान हो क्लासेस भी हुई। इस अवसर पर जोबट व खट्टाली आदि के भाई बहन उपस्थित थे।१९ वीं सदी त
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जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे > जीवन जीने की कला विषय पर राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने दिए व्याख्यान
जीवन का हर क्षण सकारात्मक भाव से सींचे

> जीवन जीने की कला विषय पर राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने दिए व्याख्यान
भास्कर संवाददाता & खंडवा

सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने के लिए एवं स्वयं को को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचे। यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मुख्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने गुरुवार को ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवाकेंद्र रामनगर में ‘जीवन जीने की कला’ विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा हम अपने घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन अपने मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं। जिसमें मन अवाछंनीय खरपतवार रूपी अशुद्ध विचार उग आते हैं। इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दु:खों का सृजन होता है। शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चैतन्य शक्ति के रूप में आत्म विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हैं, अविनाशी हैं। इस विस्म्रति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। कार्यक्रम को बीके चंद्राबहनजी ने भी संबोधित किया। इस दौरान घाटाखेड़ी, सिंगोट, कालंका आदि गांव के लोग शामिल थे।
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भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में
खरगोन & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शांतिवन के ब्रह्मकुमार भगवानभाई का नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में दर्ज हुआ है। विवि की खरगोन शाखा संचालक ब्रह्मकुमारी किरण बहन ने बताया उन्हें यह सम्मान समाज सुधार व शिक्षा की दिशा में किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिये संदेश देने के अथक प्रयासों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के कनॉट प्लेस में हुए कार्यक्रम में ‘इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ के चीफ एडीटर विश्वरूप राय चौधरी द्वारा दिया गया।
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ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन क्रोध पर नियंत्रण सिखाता है राजयोग भास्कर संवाददाता. खरगोन
ब्रह्मïकुमारी केंद्र में क्रोधमुक्त जीवन पर प्रवचन

क्रोध पर नियंत्रण सिखाता है राजयोग

भास्कर संवाददाता. खरगोन
क्रोध मनुष्य के विवेक को नष्टï करता है। क्षणिक आवेश में मनुष्य न सुधरने वाली भूलें करता है। राजयोग इसी क्रोध पर नियंत्रण की कला सिखाता है। इसके माध्यम से हम आसुरी वृत्तियों को मोड़ कर जीवन में पुण्य संचय कर सकते हैं।

उक्त बातें राजयोग साधक भगवानभाई ने अन्नपूर्णा नगर स्थित ब्रह्मïकुमारी केंद्र पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते कही। क्रोध के प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा इससे शरीर की अंत:स्रावी प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है। जब मनुष्य दूसरों के अवगुणों का चिंतन, वर्णन करता है तो उसके दिमाग में भी घृणा, द्वेश के बीज बनते हैं। इसी का परिणाम क्रोध है। इससे मन की शांति, एकाग्रता और सहनशीलता जैसे सद्गुण नष्टï हो जाते हैं। उन्होंने बताया सकारात्मक चिंतन और राजयोग के निरंतर अभ्यास से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।

आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को आत्मा समझकर मन और बुद्धि से परमपिता का गुणगान करना ही राजयोग है। यह मानसिक बीमारियों से मुक्ति की संजीवनी है। इस दौरान केंद्र की ब्रह्मïकुमारी किरण ने कहा परमात्मा से मिली शक्तियां और ईश्वरीय ज्ञान ही हमारे सच्चे पथप्रदर्शक हैं। बाद में ब्रह्मïकुमार प्रभाकर ने सभी का आभार जताया।
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हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें
कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा

भास्कर संवाददाता & झाबुआ

सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सीचें। हम घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते, जिससे मन में अवांछनीय खरपतवार रूपी विशुद्ध विचार उग आते हैं, इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दुखों का सृजन होता है

यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कृषि विभाग में कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। वे जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा रोज अपनी आंतरिक स्थिति को सकारात्मक विचारों से भरपूर करें, जिससे मन और तन का बोझ समाप्त हो जाएगा। मन भारी होने से हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं। भगवान भाई ने कहा जो आंतरिक रूप से खुश होगा वही बाह्य जगत में भी खुश रह सकता है। जो खुश रहता है उनके साथ विपरीत परिस्थिति भी साथ देगी। उन्होंने कहा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चेतन्य शक्ति के रूप में आत्मा विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हंै, अविनाशी हैं। इस विस्मृति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। उन्होंने बताया कलियुग में मनुष्य स्वयं की असली पहचान भूल गया है। जिस कारण जीवन में अनेक दुख, तनाव, परेशानियां, विघ्न, समस्या चारों ओर दिखाई देती हैं।

ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा मनुष्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के पीछे दौड़ रहा है। जिस कारण पारिवारिक स्नेह लुप्त हो चुका है। उन्होंने बताया जीवन को यदि अभिमान, अशांति, अनाचार, दुराचार, पापाचार रूपी राक्षसी प्रवृत्ति से बचाना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता ज्ञान का सहारा लेने की आवश्यकता है। सहायक संचालक कृषि जीएस त्रिवेदी ने भगवान भाई का आभार
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हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा
हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचें
कृषि विभाग में भगवान भाई ने कहा

भास्कर संवाददाता & झाबुआ

सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सीचें। हम घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते, जिससे मन में अवांछनीय खरपतवार रूपी विशुद्ध विचार उग आते हैं, इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दुखों का सृजन होता है

यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कृषि विभाग में कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। वे जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा रोज अपनी आंतरिक स्थिति को सकारात्मक विचारों से भरपूर करें, जिससे मन और तन का बोझ समाप्त हो जाएगा। मन भारी होने से हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं। भगवान भाई ने कहा जो आंतरिक रूप से खुश होगा वही बाह्य जगत में भी खुश रह सकता है। जो खुश रहता है उनके साथ विपरीत परिस्थिति भी साथ देगी। उन्होंने कहा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चेतन्य शक्ति के रूप में आत्मा विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हंै, अविनाशी हैं। इस विस्मृति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़ गई। उन्होंने बताया कलियुग में मनुष्य स्वयं की असली पहचान भूल गया है। जिस कारण जीवन में अनेक दुख, तनाव, परेशानियां, विघ्न, समस्या चारों ओर दिखाई देती हैं।

ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा मनुष्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के पीछे दौड़ रहा है। जिस कारण पारिवारिक स्नेह लुप्त हो चुका है। उन्होंने बताया जीवन को यदि अभिमान, अशांति, अनाचार, दुराचार, पापाचार रूपी राक्षसी प्रवृत्ति से बचाना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता ज्ञान का सहारा लेने की आवश्यकता है। सहायक संचालक कृषि जीएस त्रिवेदी ने भगवान भाई का आभार
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श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूली बच्चों से कहा भास्कर संवाददाता & झाबुआ
श्रेष्ठ चरित्रवान से बनता है महान राष्ट्र

ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूली बच्चों से कहा

भास्कर संवाददाता & झाबुआ
कोई भी राष्ट्र धन और शांति के बल से महान नहीं बन सकता। बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्यों से चरित्र बनता है, मूल्यों का व्यक्तिगत जीवन, समाज और राष्ट्र में बहुत बड़ा महत्व है। मूल्यों का स्त्रोत अध्यात्मिकता है।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्थानीय शासकीय उमावि रातीतलाई और न्यू पलाश हाईस्कूल के विद्याथर््िायों को संबोधित करते हुए कही। भगवान भाई ने कहा मूल्य शिक्षा प्रचीनकाल से ही चली आ रही है। मून्य शिक्षा के कारण ही भारत महान था उसकी विश्व में अपनी शान और पहचान थी। उन्होंने कहा कि मानव मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य है। भगवान भाई ने कहा मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर, दुख से सुख की ओर मरण से अमरत्व की ओर ले जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्द

भास्कर संवाददाता & झाबुआ
कोई भी राष्ट्र धन और शांति के बल से महान नहीं बन सकता। बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्यों से चरित्र बनता है, मूल्यों का व्यक्तिगत जीवन, समाज और राष्ट्र में बहुत बड़ा महत्व है। मूल्यों का स्त्रोत अध्यात्मिकता है।

यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्थानीय शासकीय उमावि रातीतलाई और न्यू पलाश हाईस्कूल के विद्याथर््िायों को संबोधित करते हुए कही। भगवान भाई ने कहा मूल्य शिक्षा प्रचीनकाल से ही चली आ रही है। मून्य शिक्षा के कारण ही भारत महान था उसकी विश्व में अपनी शान और पहचान थी। उन्होंने कहा कि मानव मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य है। भगवान भाई ने कहा मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर, दुख से सुख की ओर मरण से अमरत्व की ओर ले जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य है। मानव मन के आंतरिक सद्गुणों और शक्तियों को जागृत करने वाली शिक्षा वर्तमान की आवश्यकता है। जीवन को महान बनाने के लिए भौतिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से जीवन परिपूर्ण होना जरूरी है। भगवान भाई ने कहा जीवन एक वृक्ष है इस जीवन
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‘अभिमान ही पतन की जड़ है’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ
‘अभिमान ही पतन की जड़ है’

भास्कर संवाददाता & झाबुआ
स्वयं के गुणों की विशेषता, कला, धन और पद का अभिमान ही मनुष्य के पतन का कारण बनता है। अभिमान वाला व्यक्ति सदा तनाव में रहता है जिसके कारण वह अनेक गलतियां कर बैठता है।

यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र पर आत्म उन्नति का आधार आध्यात्मिकता विषय पर कही। उन्होंने कहा वर्तमान समय में मनुष्य स्वयं के सच्चे अस्तित्व को भूलने के कारण सदा देह अभिमान में रहता है। देह अभिमान के कारण ही वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों के वश में हो गया है। उन्होंने बताया वास्तव में हम सभी का असली स्वरूप आत्मा है। भगवान भाई ने कहा राजयोग द्वारा इंद्रियों पर काबू पाया जा सकता है। राजयोग से अति इंद्रिय सुख की प्राप्ति होती है, जिससे संसार के वस्तु, वैभव का भौतिक सुख फीका लगने लगता है तो इंद्रियों पर संयम पाना सहज हो जाता है।

जब मनुष्य के अंदर अभिमान पनपने लगता है तो उसके विचारों में नकारात्मकता आने लगती है। अभिमान करने से एकाग्रता भंग हो जाती है। जिस कारण तनाव पैदा हो जाता है। राजयोग सेवा केंद्र की ज्योति बहन ने कहा वर्तमान परिस्थितियों का सामना करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की बहुत आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग के अभ्यास से हम अपने व्यवहार में निखार ला सकते हैं।
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सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव

बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा

भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याएं पैदा होती है, जिससे जीवन में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक नजरिया रखें, तो तनाव से मुक्त हो सकेंगे।

यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने बार एसोसिएशन में उपस्थित जज और वकीलों से कही। वे तनाव मुक्ति और जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा विचारों से स्मृति, दृष्टि, वृत्ति और दृष्टिकोण बनता है। विचार नकारात्मक है तो व्यवहार भी नकारात्मक होगा। उन्होंने कहा विचार को सकारात्मक बनाने से जीवन की सभी समस्या समाप्त हो जाएगी। सकारात्मक विचारों से व्यवहार भी सकारात्मक होगा। आत्म बल और मनोबल बढ़ेगा, जिससे व्यवहार में निखार आ जाएगा।

भगवान भाई ने कहा सकारात्मक विचारों से आंतरिक मन में स्थिरता आती है। मन एकाग्र हो जाता है, मन में सशक्तिकरण आ जाता है। एकाग्र मन शांति और सुख का आधार बन जाता है। उन्होंने कहा तनाव मुक्त होने के लिए जीवन के हर क्षण को सकारात्मक विचारों से सींचने का प्रयास करें। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्त्रोत बताते हुए कहा जब तक हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को नहीं अपनाते तब तक अपने विचारों में बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए कहा स्वयं के बारे में जानना, कर्म गति को जानना, सृष्टि रचयिता को जानना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है।

उन्होंने कहा आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण जीवन के नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन हो चुका है। वर्तमान परिवेश में तनाव, मानसिक, शारीरिक पीड़ाओं और बुरी आदतों से मुक्त होने के लिए जीवन में मूल्यों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जयंती बहन ने कहा हम सभी आत्मा भाई-भाई हैं। एक निराकार शिव परमात्मा के बच्चे हैं। चांद, सूर्य, तारांगण से पार सुनहरी लाल प्रकाशमय दुनिया रंगमंच पर पार्ट बजाने आए हैं।
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Wednesday, July 13, 2011
परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है।
ईश्वर ही सच्चा साथी

रतलाम। परमात्मा हमारा सच्चा साथी व मदद्गार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है। इसलिए परमात्मा को कभी नहीं भूलना चाहिए, हमेशा स्मरण में रखना चाहिए। यह विचार माऊंटआबू में स्थित ब्रह्मकुमारी शांति वन के ब्रह्मकुमार भगवान भाई शास्त्री नगर केंद्र पर मंगलवार को व्यक्त किए। वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय विशेष योग अनुभूति शिविर भाग लेने रतलाम आए थे। इनके साथ आए वल्लभभाई ने भी शिविर से जुड़ी ज्ञानवर्धक बाते ंशिविरार्थियों को बताई। शिविर प्रतिदिन सुबह 7 से 8 बजे तक आयोजित किया जा रहा है।
शास्त्री नगर केंद्र पर आयोजित चार दिवसीय शिविर के लिए बिलासपुर से आई मंजु बहन ने ध्यान-योग की गहरी अनुभूति कराई। उन्होंने कहा कि अगर दिल से हमने भगवान को अपना कहा तो हर खजाना अपना हो जाता है। हमारी स्थिति ऎसी हो जो हम भगवान की शक्ति ले सकें एवं भगवान की प्रेरणाओं को ग्रहण कर सकें। हमें ध्यान-योग में अपने आपको ऎसा ढाल कर तैयार कर लेना है, ताकि दु:खी, अशांत आत्माओं की सेवा कर सको। आलस्य व अलमेले पन का त्याग कर देना है। इंदौर जोन की हेमा दीदी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थी। कार्यक्रम में भिलाई की माधुरी बहन, ब्रह्माकुमारी की प्रभारी सरला बहन, संगीता बहन, कीरण बहन आदि उपस्थित थी।
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स्वर्णिम युग के नवनिर्माण के लिए विश्व रचयिता शिव भगवान का अवतरण हो चुका है
प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवा केंद्र पर स्वर्णिम युग के लिए परमात्म अवतरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने उपस्थित भाई-बहनों को संबोधित करते हुए कहा कि। लगभग 75 वर्षों से परमात्मा यह दिव्य कत्र्तव्य ब्रह्मकुमार व ब्रह्माकुमारियों से करवा रहे हैं। कुछ ही समय में परमात्मा अपना कत्र्तव्य पूर्ण कर परमधाम लौट जाएंगे। नियमित ईश्वरीय ज्ञान-योग करने वाले स्वर्णिम युग में पुन: देव रूप में जन्म लेंगे। सभी आत्माएं शांतिधाम में विश्राम कर पुन: अपने-अपने समय विश्व नाटक में आएगी। आज विश्व की स्थिति तेजी से बिगडऩा शुरू हो गई है। यह सारे लक्षण विश्व परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
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सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को भी आवश्यक बताया।
गुंडरदेही & अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के कार्यक्रम के तहत प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई स्थानीय शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों के बीच पहुंचे। उन्होंने सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को भी आवश्यक बताया। माता कर्मा महाविद्यालय एवं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना आज की आवश्यकता है। उन्होंने आगे बताया कि नैतिक मूल्यों की कमी व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है। विद्यार्थियों का मूल्यांकन आचरण, अनुसरण, लेखन, व्यवहारिक ज्ञान एवं अन्य बातों की तरफ प्रेरणा देने की आवश्यकता है।
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बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
बदला मत लो बदलकर दिखाओ’
जालोर। कर्मो की गति बड़ी गुहय है। कर्मो के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान् बनता है। ये उद््गार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउण्ट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहे। वे गुरूवार को जिला कारागृह में कैदियों को संस्कार परिवर्तन और व्यवहार शुद्धि विषय पर संबोधित कर रहे थे। भगवान भाई ने कहा कि मनुष्य के कर्म ही उसे वाल्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति के समान बनाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है। उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। उन्होंने कहा कि यह कारागृह आपके लिए तप स्थली है जिसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में टटोलना है, सोचना है कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से भेजा है। मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। वास्तव में मुझे क्या करना चाहिए, ऐसा चिंतन कर अब अपने व्यवहार और संस्कारों में परिवर्तन करना है। बी.के. रंजू बहन ने कहा कि स्वयं का मनोबल मजबूत रखो स्वयं को असहाय, अकेले, थके हुए महसूस नहीं करो।
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संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
संतोष ही जीवन का सर्वोत्तम धन
Jun 04, 12:45 am
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बहादुरगढ़, जागरण संवाद केंद्र :

शहर के नाहरा-नाहरी रोड स्थित ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में बृहस्पतिवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें ब्रह्मकुमार भगवान भाई मुख्य रूप से मौजूद रहे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि संतोष जीवन का सर्वोत्तम धन है। संतोष को अपनाकर ही हम जीवन में सच्ची शांति की अनुभूति कर सकते है।

उन्होंने कहा कि बीती बातों को याद कर हम अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाते है। इससे उनकी सेहत पर भी कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें बीती बातों पर विराम लगाना सीखना चाहिए। संकल्प एक निधि है। इसे हर पल बचाना है। कारणों का निवारण ढूंढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या-क्यूं करके हम समस्या में ही उलझे रहते है। संकल्पों को बचाकर ही हम मनोबल बढ़ा सकते है। हर परिस्थिति का समाधान है ग्रह गति का ज्ञान। उन्होंने कहा कि गीता ज्ञान अनुसार हमें याद रखना चाहिए कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। बीती घटनाओं से सबक सीखकर हमें आगे बढ़ना चाहिए और क्रोध रूपी अक का फूल शिव पिता पर स्वाहा कर देना चाहिए।

पावन धाम की संचालिका ब्रह्मकुमारी अंजलि ने कहा कि इस दिव्य सत्संग का लाभ लेने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने बताया कि भगवान भाई पिछले तीस वर्षो से राजयोगी जीवन व्यतीत कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने पीडीएम कालेज में ईश्वरीय सेवाएं प्रदान कीं।
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जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है
उत्थान का दिया संदेश

खरगोन। जीवन में सदा स्वस्थ, संपत्तिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है।

उक्त विचार प्रजापति ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी भगवानभाई ने राजयोग का जीवन में महत्व विष्ाय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। भगवान भाई ने सोमवार सुबह स्थानीय केंद्र के सदस्यों को प्रवचन दिए। इसके पश्चात उन्होंने जेल पहुंचकर कैदियों के बीच अपनी बात रखी। यहां उन्होंने कर्म की प्रधानता पर अपना उद्बोधन दिया। भगवानभाई मंगलवार सुबह केंद्र पर सदस्यों को प्रवचन देने के बाद दोपहर बोरांवा स्थित इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों को संबोधित करेंगे। केंद्र के सदस्य प्रभाकर कुलकर्णी ने बताया राजयोगी भगवानभाई विवि के सभी आश्रमों नैतिक मूल्यों के उत्थान के लिए प्रवचन देते हैं। साथ ही जेल, विद्यालय, महाविद्यालय में भी अपने विचारों को प्रबुद्धजनों के बीच रखते हैं।

दिया कर्म संदेश

राजयोगी भगवानभाई दोपहर जेल में पहुंचे, जहां उन्होंने कैदियों को कर्म की प्रधानता पर उद्बोधित किया। उन्होंने कर्म की महत्ता बताते हुए कहा कर्म से ही व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ और भ्रष्ट होता है। कलियुग में कर्म की प्रधानता है, इसलिए कर्मो के माध्यम से अपने जीवन को सुखी और खुशहाल बनाए।

नैतिक गुणों का उत्थान

संस्कारों में परिवर्तन और निरंतर नैतिक मूल्य के ह्रास पर राजयोगी ने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार इन विकारों पर राजयोग से विजय पाने के सूत्र बताए। उन्होंने व्यक्ति के सुखमय और खुशहाल जीवन के लिए नैतिक मूल्यों व गुणों के उत्थान पर जोर दिया
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वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। यह विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू
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पीथमपुर। वर्तमान समय में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। यह विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने रखे। वे यहां इंडोरामा में तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि 19 वीं सदी तर्क की थी,जबकि 20वीं सदी प्रगति की रही है,परन्तु अब यह 21 वीं सदी तनाव पूर्ण रहेगी। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में स्वयं को तनाव से दूर रखना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में,हर बातों में सकारात्मक सोच की कला को बढ़ावा दिया जा रहा है। सोचने वाला मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याओं और बीमारियों का कारण है। सत्संग के माध्यम से हमारी असली सम्पत्ति जीवन को मुश्किलों से बचाया जा सकता है। यही भगवान को पाने में मददगार भी साबित होता है। अत: प्रतिदिन सत्संग में भाग लेकर जीवन का धन्य बनाया जाए। इस अवसर पर इंदौर, महू, धार व पीथमपुर से सैकड़ों ब्रह्मकुमार भाई-बहन उपस्थित थे।
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Sunday, June 5, 2011
परमपिता परमात्मा शिव बाबा ब्रह्माकुमारी




शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं
परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा
मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का
में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़
विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए
कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो
सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया
है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।

रामेश्वरम्‌ में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट
गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि
सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का
त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष
तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही
कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद
इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती।

आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम
सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश
सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के
इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू
परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो
चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज
राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव
पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।
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Saturday, June 4, 2011
योग का अति सरल अर्थ है -




योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है, उसी के साथ उस आत्मा का योग है. फिर वह चाहे व्यक्ति, वस्तु, वौभव या परिस्थिति हो या परमात्मा ही क्यों न हो. अब मन कहाँ-कहाँ जा सकता है, मन का कहीं भी जाने का आधार क्या हैं ? संसार में करोड़ो मनुष्य है लेकिन मन सभी के विषय में नहीं सोचता है. मन उसी के बारें में सोचेगा, जिसका उसे परिचय हो तो पहला आधार है परिचय. फिर जिसके साथ सम्बन्ध तीसरा आधार है स्नेह. जिससे स्नेह होता है उसके पास मन अपने आप चला जाता है. चौथा आधार है प्राप्ति. जहाँ से किसी को प्राप्ति होगी वहाँ से वह अपना मन हटाना ही नही चाहेंगा. तो किसी की भी याद के लिए मुख्य चार आधार है - परिचय, सम्बधन्ध, स्नेह और प्रापित. इनहीं चा आधारों के कारण मनुष्य की याद सदा बदलती ही रहती है
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Labels: BK BHAGWAN BHAI BRAHMA KUMARIS MOUNT ABU प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्‌भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्सं

तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्‌भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन्‌ ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।
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परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु




परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
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कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । होश ही धर्म है । होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।
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Wednesday, June 1, 2011
कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । महावीर ने कहा : होश ही


कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । महावीर ने कहा : होश ही धर्म है । महावीर कहते हैं : होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।
महावीर की देशना एकदम सीधी-सादी है लेकिन आज हमने उसे जटिल बना दिया है । इतना जटिल की अब लोग उससे पीछे हटने लगे हैं । महावीर एक दम सरल हैं, उनके उपदेश और भी सरल हैं लेकिन उनके तथाकथित अनुयायी बडे कठिन हैं और उन कठिन अनुयायियों ने महावीर और उनके धर्म को भी कठिन और जटिल बना दिया है । जैन धर्म के पिछडेपन का यही एक कारण है । जिस धर्म में अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह जैसे शाश्वत स्वर हों और वही धर्म सिकुड जाये बात समझ में नहीं आती है । जैन धर्म के पिछडेपन का कारण यही है कि जैन धर्म के सिद्धान्त तो अच्छे हैं लेकिन उनकी पैकिंग अच्छी नहीं है, प्रस्तुति अच्छी नहीं है । जमाना विज्ञापन और पैकिंग का है । किसी दुकान का माल कितना ही अच्छा क्यों ना हो, यदि उसकी पैकिंग अच्छी ना हो तो पैकिंग आकर्षक न हो तो दुकान चलती नहीं है । जैन धर्म के पास यही वजह है कि जैनियों की अच्छी चीज भी धूल-धूसरित हो रही है । अटाले में पडी धूल खा रही है । समय की नजाकत को पहचानिए और समय के साथ चलने की आदत डालिए । और हॉं, हो सके तो खुद भी सरल बनिए । क्योंकि महावीर कहते हैं चित्त की सरलता ही धर्म है, चरित्र की सरलता ही जीवन है । सरलता कैसी होती है, इसे गांधीजी के एक उदाहरण से समझें ।
कहते हैं एक बार गांधी जी लोकल गाडी में चंपारण से बतिया गॉंव जा रहे थे । वहॉं उनकी एक सार्वजनिक सभा थी । जिसे उन्हें सम्बोधित करना था । गांधी जी तीसरे दर्जे के डिब्बे में सवार थे । जगह मिल गई तो थोडा-सा पैर फैलाकर के लेट गये । किसी स्टेशन पर गाडी रुकी तो एक ग्रामीण युवक भी उसी डिब्बे में चढ आया । गांधी जी तो अभी सो रहे थे और उस युवक को बैठने के लिए जगह चाहिए थी । गांधी जी को सोता देखकर उस युवक ने गांधी को धक्का लगाते हुए कहा ऐ बुढ्ढे ! तेरे बाप की गाडी है क्या ? जो लम्बे पैर पसारकर सो रहा है, चल उठ, सीधा होकर बैठ । महात्मा गांधी तुरन्त उठ गये और चुपचाप शांत भाव से बैठ गये । इसको कहते हैं "सरलता' गांधी उत्तेजित नहीं हुए, शांत रहे । कुछ बोले भी नहीं, चुप रहे । वह युवक भी गांधी जी के पास ही पैर पसार कर बैठ गया ।
थोडी देर बाद उसने भजन गाना शुरु किया । भजन के बोल थे - "धन-धन गांधी तेरा अवतार, दुखियों के दु:ख काटन हार ।' धन-धन गांधी तेरा अवतार । गांधी जी भी यह भजन सुन रहे थे । दरअसल वह युवक भी गांधी के दर्शन करने और उन्हें सुनने के लिए बतिया गॉंव जा रहा था । युवक का भजन पूरा हुआ । गांधी जी ने भी भजन का पूरा आनंद लिया । वह बोले कुछ नहीं । यह है सरलता । अब तक युवक का भजन पूरा हो चुका था, उधर गाडी भी अपनी रफ्तार से भाग रही थी । बतिया गॉंव के करीब गाडी पहुँची तो युवक ने गांधी जी से पूछा "ए बुड्ढे ! तूने महात्मा गांधी कानाम सुना है ? मैं उनका दर्शन और प्रवचन सुनने जा रहा हूँ, वो बहूत अच्छे इंसान हैं ।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 11:06 AM 0 comments
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संत दर्शन के लिए उठा एक-एक कदम एक-एक यज्ञ के बराबर होता है । संत बडे करुणाशील होते हैं । संत बडे दयालु होते हैं । वे तुम्हारे कल्याण के लिए ही तपस्याएं करते हैं । जैसे अहिल्या उद्धार के लिए श्रीराम स्वयं अहिल्या के द्वार पर गये थे वैसे ही तुम्हारे उद्धार के लिए संत तुम्हारे द्वार आते हैं । तुम ही अहिल्या हो और संत राम के अवतार हैं । संत तो हरिद्वार है । और सत्संग गंगा-स्नान है, हर की पेडी है । सत्संग का फल तो बैकुंठ है ।
संत हरिद्वार : सत्संग गंगा स्नान
एक महिला ने प्रवचन-कथा में सुना कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है, क्योंकि संत हरिद्वार है और सत्संग गंगा स्नान है । दूसरे दिन जाकर उसने अपपने पति से कहा- देखो, एक बहुत बडे संत आये हैं और उनका सत्संग चल रहा है । सारा गांव सत्संग का लाभ ले रहा है । बडा आनंद बरस रहा है, तुम भी सत्संग का लाभ लो क्योंकि सत्संग का फल बैकुण्ठ है । पत्नी के विशेष आग्रह पर वह दूसरे दिन सत्संग में गया । वहॉं जाकर सत्संग में बैठा और 10-15 मिनट बाद बार-बार इधर-उधर देखने लगा कि बैकुण्ठ ले जाने वाला कोई विमान आया या नहीं । घंटा भर वह बैठा रहा वहॉं । विमान कहॉं से आना था ? जब उसे लगा कि अब कोई विमान आने वाला नहीं है, कोई बैकुण्ठ मिलने वाला नहीं है तो गुस्से से उठा और संत को भला-बुरा कहते-कहते सत्संग केबाहर निकल गया ।
घर जा रहा था । गुस्से में तो था ही । रास्ते में नारदजी मिल गये । नारद ने पूछा- भाई ! क्या बात है ? किसे गाली दे रहे हो ? बोला- ये संत लोग बडे धोखेबाज होते हैं । जनता को गुमराह करते हैं कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । अरे ! मैं वहॉं घंटा भर बैठा, पर वहॉं बैकुण्ठ तो क्या एक कप चाय भी नहीं मिली । उस आदमी ने नारद से पूछा कि आप ही बताइये सत्संग का क्या महत्व है ? क्या सत्संग से वाकई में बैकुण्ठ मिलता है । नारद ने कहा : भाई ! सत्संग तो मैं भी करता हूँ लेकिन सत्संग का महत्व मुझे भी नहीं मालूम । नारद ने कहा- अच्छा ऐसा करते हैं शंकरजी से चलकर पूछते हैं, वे ही बतायेंगे कि सत्संग का क्या महत्व है ? नारद उस व्यक्ति को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे । शंकरजी से नारद ने पूछा : महाराज सत्संग का महत्व बताइये- यह व्यक्ति जानना चाहता है । शंकर जी बोले : भाई सत्संग का महत्व मैं भी नहींे जानता । अच्छा ! हम ब्रह्मा जी के पास चलते हैं । वे ही सत्संग का महत्व बतायेंगे । शंकरजी, नारद और वह व्यक्ति तीनों चलकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे भी यही प्रश्न किया । सत्संग का क्या महत्व है ? यह बताइये । ब्रह्मा जी तो मुश्किल में पड गये । बोले - भाई, मुझे तो मालूम नहीं । इसका उत्तर तो विष्णुजी ही दे सकते हैं । अपन विष्णु के पास चलते हैं ।
ये सभी बैकुण्ठधाम पहूंचे तो वहॉं विष्णुजी विराजमान थे । विष्णुजी ने देखा कि आज तो बडे-बडे महापुरुष एक साथ आये हैं । कारण पूछा तो नारद ने कहा- भगवन ! यह व्यक्ति सत्संगक का महत्व जानना चाहता है और हममें से किसी को सत्संग का महत्व मालूम नहीं है इसलिए आपके पास आये हैं । कृपया, आप सत्संग का महत्व समझायें । विष्णु जी ने उसी व्यक्ति से पूछा - बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकुण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसी व्यक्ति से पूछा- बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसके कान पकडकर कहा- अरे भोले प्राणी ! साक्षात ब्रह्मा, विष्णु, महेश तेरे सामने खडे हैं - तो यह बैकुण्ठ नहीं तो क्या तेरा घर है ? अगर तू घंटे भर का सत्संग नही करता तो तू क्या यहॉं तक आ सकता था ? देख घंटे भर के सत्संग का फल कि तीन-तीन देव तेरे सामने खडे हैं । श्रद्धा बडी चीज है । श्रद्धा ही फल देती है ।
तो, सत्संग का जीवन में बडा गहरा महत्व है । संतों की अंगुली थामकर रखो । जैसे बन्दर का बालक अपनी मॉं से चिपका रहता है, वैसे ही तुम संतों से चिपके रहो, जुडे रहो । बस तुम्हारा इसी में कल्याण है । भीड भरे मेले में जब तक बच्चे की अंगुली मॉं के हाथ में होती है तब तक बालक का जीवन सुरक्षित होता है लेकिन ज्यों ही मॉं की अंगुली छूटती है तो बालक भीड के संकट में खो जाता है । जब तक तुम्हारी जीवन की अंगुली किसी संतने शाम ने थाम रखी है, तब तक संसार का कोई थपेडा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड सकता और अगर अंगुली छूट गई तो फि रोना ही रोना शेष रह जायेगा ।
तो, उस युवक ने सोचा - गलत जगह आ गये । यह आदमी तो गडबड है ही, लगता है इसकी पत्नी भी बडी बुद्धू है । उसने यह भी नहीं पूछा कि धूप में बैठे हो तो लालटेन की क्या जरुरत पड गई ? ऊपर वाले ने भी क्या जोडी बिठाई है । दोन्हों ही एक से हैं । वह मन ही मन कबीर को कोस रहा था । युवक कबीर से कहता है, मेरी समस्या का समाधान करें । मुझे देर हो रही है, मुझे जल्दी जाना है, कबीर ने कहा- करुंगा, थोडी प्रतीक्षा करो । कबीर ने अपनी पत्नी को निर्देश दिया किवह दो कटोरे दूध लेकर आये । पत्नी रसोई में गई- दूध में चीनी डाली, और दो कटोरे दूध से भरकर कबीर के सामने
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परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु

परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
प्रभु के प्रभाव और संतों की संभावना को प्रणाम
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्‌भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन्‌ ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।
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लोभ का गड्ढा दुष्पूर है । लोभ के गड्ढे में पडा सम्पूर्ण विश्र्व क अणु के समान मालूम पडता है । इच्छाएं अनंत हैं । आकांक्षाओं को छूना आकाश को छूने से भी


महात्मा बुद्ध ने कहा- संसार में नाना दु:ख हैं । मनुष्य तृष्णा को त्यागे तो दु:ख से बचे । भगवान महावीर ने कहा- लोभ का गड्ढा दुष्पूर है । लोभ के गड्ढे में पडा सम्पूर्ण विश्र्व क अणु के समान मालूम पडता है । इच्छाएं अनंत हैं । आकांक्षाओं को छूना आकाश को छूने से भी दुष्कर है । जब तक हम कामनाओं व वासनाओं के जाल से मुक्त नहीं होंगे, अतृप्त ही बने रहेंगे ।
परिवार नियोजन अधिकारी एक सेठ के पास गये । अपना परिचय देते हुए पूछा - सेठ साहब, आपकी कितनी संतान हैं ? सेठ ने कहा- सात । अधिकारी ने कहा- अब तो आपको परिवार नियोजन करा लेना चाहिए । सेठ ने कहा कि नहीं, यह फिलहाल संभव नहीं है । अधिकारियों ने आश्र्चर्य करते हुऐ पूछा - क्यों ? सेठ बोला - क्योंकि ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की है कि तुम्हारा तेरहवां पुत्र मंत्री बनेगा ।
सेठ इस आशा-विश्र्वास पर जी रहा है कि उसका तेरहवा पुत्र मंत्री बनेगा, भले ही तेरहवां पुत्र होने से ही पूर्व ही उसकी तेरई मन जाए । मनुष्य बहिर्मुखी हो गया है । सुख का अनंत सागर स्वयं में हिलोरे मार रहा है परन्तु जैसे चम्मच कडाही में रहकर भी मिठाई का स्वाद नहीं जानता वैसे ही यह आत्मा अपने आत्मिक आनंद का अनुभव नहीं करता । बाह्य में खोजता है आनंद को, यही तो भूल है मानव की । सेठ तेरहवें पुत्र का सपना देख रहा है । कितना बडा लोभ पाल रहा है जीवन में । मनुष्य को चाहिए कि वह असीम इच्छाओं को नियंत्रित करते हुए, जन-जन के कल्याण व प्राणी मात्र के अभ्युदय हेतु संकल्पित हो । स्वार्थवृत्ति को छोडकर औरों के लिए जीना व मरना सीखे । यही मानवता की कसौटी है । इस सम्बन्ध में मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां कितनी प्रेरणास्पद है -
विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी ।
मरो, परन्तु योें मरो की याद जो करें सभी ।।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए ।
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए ।।
यही पशु प्रकृति है कि आप आप ही चरे ।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
चले अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति विघ्न जो पडे उन्हें ढकेलते हुए ।।
घटे न हेल-मेल हां बढे न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के, सतर्क पान्थ हो सभी ।।
यही समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे ।
वही मनुष्य कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
हर मनुष्य अपने कर्तव्य व दायित्व को पहचाने और दूसरे के दु:ख दर्द में सहभागी बने, दीन दु:खी, पीडित, दलित व उपेक्षित व्यक्तियों की सेवा करने वाला देवमानव माना जाता है जबकि औरों को कष्टग्रस्त देखकर आनंद की अनुभूति करने वाला वनमानुष । जब पृथ्वी पर देवमानुष की संख्या बढती है तब स्वर्गोपम को धारण करती है और वनमानव से नरकोपम को । दीन-दुखियों की उपेक्षा करके कोई भी व्यक्ती धर्म की आत्मा को नहीं समझ सकता । दीनों की सेवा विश्र्व का सर्वोपरि धर्म है ।
चेतना-पुंज मानव का यह परम कर्तव्य है कि अपने सुख के साथ-साथ औरों के सुख में भी कारण बने और इसके लिए वह निहायत जरुरी है कि मनुष्य सिर्फ आकृति से ही नहीं, प्रत्युत प्रकृति से भी मनुष्य बने और मानवता का परिचय दे । ईश्र्वर का प्रिय पुत्र होने का गौरव जो उसे मिला है, उसे अपने दुष्कर्मों से लांछित न करे ।
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ब्रह्मकुमारिज भगवान भाई आबू रोड


जब हम किसी की सेवा करते हैं, चरण-वंदना करते हैं, चरण दबाते हैं, तो इससे हमारा अहंकार टूटता है । ध्यान रखना- अहंकारी व्यक्ति ने तो किसी को प्रणाम करता है और न ही किसी व्यक्ति की सेवा । सेवा से अहंकार टूटता है । किसी को नमन करने का अर्थ है- अहंकार से मुक्ति पाना । तुम किसी के हाथ तभी जोड सकते हो, जब थोडा-सा अहंकार छोड दो । किसी को साष्टांग प्रणाम तभी कर सकते हो जब इससे भी ज्यादा अहंकार छोड दिया हो, और चरण धोकर गंधोदक, चरणामृत तभी ले सकते हो जब पूर्णतया अहंकार से मुक्त हो गये हो । धर्म की यात्रा अहंकार बहुत सख्त है । एक बार की चोट से नहीं टूटता है । इसे तोडने के लिए कई चोटों की जरुरत है । इसलिए णमोकार मंत्र में पांच चोटों के माध्यम से अहंकार को तोडने की प्रक्रिया अपनाई गई है । नारियल तो एक-दो चोट से ही टूट जाता है लेकिन अहंकार का नारियल बडा मजबूत है - इस पर कई चोट लगानी पडती है । । जहॉं अहंकार होगा, वहॉं णमोकार नहीं हो सकता और जहॉं णमोकार नहीं होगा और यदि वह अहंकारी है, तो णमझना अभी उसने णमोकार के महत्व और मूल्य को समझा नहीं है । अभी णमोकार मंत्र उसके हृदय तक पहूँचा नहीं है ।
अहंकार बाधा है । परमात्मा और तुम्हारे बीच एकमात्र अहंकार बाधा है । तुम्हारे और प्रभु के बीच अहंकार की दीवार है । अगर अहंकार की दीवार ढह जाये तो तुम्हारे लिए प्रभु के द्वार खुल जायेंगे । अहंकार दीवार है और समर्पण द्वार है । समर्पण के द्वार से ही ईश्र्वरीय दृष्टि मिलती है । अगर अपना सच्चा समर्पण प्रभु को कर दो तो प्रभु प्रकट होने के लिए बाध्य हो जाता है ।
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ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्मकुमारिसज आबू रोड
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Tuesday, May 31, 2011
स्कूल सेवा नैतिक मूल्य ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी
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स्कूल सेवा नैतिक मूल्य ब्रह्मकुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी
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Sunday, May 29, 2011
Value Education in the Age of Globalism







Value Education in the Age of Globalism
Globalism today is being accepted as synonym for progress, scientific breakthroughs and technological revolution. With its long strides, it is being taken as a model prescription of the new utilitarian thrust in our approach to education. But in the sheer romantic indulgence of this new pursuit, it is not being realized that when the sole purpose of education becomes acquisition of higher and higher level of commercialism, and when education is allowed to drift along this wave and it consequently reduces to a coveted agency of material advancement, the symphonic order within the human soul becomes the natural casualty causing deformity in human emotions and perceptions. Such a development can endanger the peace and happiness of the mankind. With all its excitation tunes, it is devoid of our essential human music. The human face of education is, thus, missing in the wake of technological onslaughts on the value-based concept of education. The equilibrium has been considerably damaged causing a sense of tragic waste and futility, and this can be restored by identifying the role of value education in this age of globalism.
The traditional approach to education has been to see its utility and purpose in terms of social and moral awareness, to impart beauty and dignity to life and also to provide with a code of conduct for a good social and moral order. Character building is the key phrase in the Gandhian philosophy of education. Another recurring note that we trace in the writing of our philosophers is that education provides us with a faculty for positive discrimination between the right and the wrong and between the virtue and the vice. That knowledge which purifies the mind and the heart is the only true knowledge, all else are only negation of knowledge, says sri Ramkrishna Paramhans. And according to //Seneca, the object of education is inward development. Long ago, the great philosopher plato said “The main aim of education is all round development of the personality”. According to Herbert Spencer, the aim of education is to enable one to lead a complete and successful life. The same idea has been incorporated in the philosophy of the great German educationist John Fredric Herbert who opined that the one and the whole task of education may be summed up in the concept of morality. In this context our former president Dr. S. Radhkrishanan also observed that the troubles of the whole world including India are due to the fact that education has become a mere intellectual exercise and not the acquisition of moral and spiritual values. With the advent of industrial society and its aspirations, the educational scene has undergone a phenomenal change giving rise to new powers and new thrusts in educational management. The primary function of education is no longer the building of character or the promotion of moral order, but the emphasis has shifted to the promotion of skill, technical know-how and technology for material progress. The mass base of higher education in India has encouraged courses for utility skill; promotion of careerism ecomomic good and social prosperity. Education, today is no longer confined to the development of intellectual power or knowledge of the abstract kind, but to development and promotion of skills and know-how for industrial productivity and the production of goods, skills and services.
Education is still engaged in its primary function to generate and disseminate knowledge but cannot stop at this: it has to promote know-how, skills and technologies to make it respectable and comfortable in the changing situations. Higher education in India has, therefore, an obligatory duty to create technical and managerial human resource in all development sectors. It has to keep the vision of India becoming the fourth largest economy in the world by 2020 in mind and for this pace of growth it has to promote skills and technologies which will be required of Indians by that time. It has to keep communication revolution in mind, and must be prepared to create a well equipped generation of human power, a generation of producers and innovators, in other words, education is to act not as a moral reformer, but as an agent of social transformation and promoter of the desired change.
This change has, however, encouraged promotion of careerism without human values and ends in view. What is more unfortunate is the unmistakable trend of a mad rush for amoral and valueless desire for status and power in terms of commercialism and consumerism. To be in tune with the big development taking place in the world is good and desirable; but to achieve the educational power without human values in view, is fraught with dangerous possibilities.
The need of the hour is to temper the utilitarian pursuit of education with integrated vision of a happy order of life on earth and also with spiritual, cultural and aesthetic values of the modern age. productivity must not suffer and education must prove to be a powerful agent and promoter of productivity. Productivity can even be accepted as a new value of education but the Sciences and technological streams should also promote scientific approach to problems and a rational and human outlook on life. A meaningful promotion of a rational and human outlook on life. Would necessarily require education of human rights and fundamental freedoms. This will have a focus on environmental. Cultural, Social, political, economic and developmental rights with quality concerns in the matter of the related issues.
Catholicity of mind is another important value which must be promoted by the post modernist education. Established as a component of education and a cherished value, it can ensure broad based understanding, spirit of good mixing, perseverance, tolerance, receptivity and sensibility for appreciation of imaginative powers, cultural slants and angularities of varied social groups of the world. An educated person is after all supposed to be able to come out of his narrow walls and boundaries of ideas and creeds, and to have respect for the point of view of others in our pluralistic society.
The power of modern education can be better realised by achieving a happy integration of utility and value, integration of body and mind, emotions and ideas, individual and society, society and the world. The vision of progress must not be devoid of human element the aspects of vision which make the progress meaningful and purposeful. The progress that is aimed at and desired is an assertion of the power of human imagination and so the fruits of this progress must be realized with the ends of humanity in minds. The tools of change are powerful, but their application must be humane and they must be employed for pious purposes.
So in the wake of the phenomenal and dimensional developments on the educational front, reorientation of value in the post modernist education assumes special significance. Here are certain concrete recommendations for tempering utilitarian pursuit of higher education with desirable ideals and visions of human happiness.
A) Education must promote rational outlook on life and scientific approach to issues confronting the real life situations.
B) An imaginatively framed course in fundamental freedoms and human rights must constitute a component of our Degree level curriculum.
C) Power that education generates must be employed for constructive human purposes.
D) Education must develop sensitivity to environment and must foster human ethos for the enjoyment of the fruits of progress.
E) Humanism should be the motto of education in all circumstances, and it must promote quality concern for corporate behavior and corporate life.
F) Education must be able to develop a working mechanism to fight the evil of consumerism and acquisitive culture so that environment may be protected and development may remain sustainable.
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योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है,


राजयोग का आधार और विधी

योग का अति सरल अर्थ है - किसी की याद. किसी भी याद आना या किसी को याद करना - यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है. मन जिस विषय पर सोचता है, उसी के साथ उस आत्मा का योग है. फिर वह चाहे व्यक्ति, वस्तु, वौभव या परिस्थिति हो या परमात्मा ही क्यों न हो. अब मन कहाँ-कहाँ जा सकता है, मन का कहीं भी जाने का आधार क्या हैं ? संसार में करोड़ो मनुष्य है लेकिन मन सभी के विषय में नहीं सोचता है. मन उसी के बारें में सोचेगा, जिसका उसे परिचय हो तो पहला आधार है परिचय. फिर जिसके साथ सम्बन्ध तीसरा आधार है स्नेह. जिससे स्नेह होता है उसके पास मन अपने आप चला जाता है. चौथा आधार है प्राप्ति. जहाँ से किसी को प्राप्ति होगी वहाँ से वह अपना मन हटाना ही नही चाहेंगा. तो किसी की भी याद के लिए मुख्य चार आधार है - परिचय, सम्बधन्ध, स्नेह और प्रापित. इनहीं चा आधारों के कारण मनुष्य की याद सदा बदलती ही रहती है या परिवर्तनशील होती है. एक बालक का योग अपनी माता के साथ है क्योंकि उसको केवल माँ का परिचय है. माँ से ही उसे स्नेह मिलता है, भोजन मिलता है. माँ को न देखने पर वह रोता है और माँ के उसे उठाने पर वह चुप हो जाता है. इससे सिध्द है कि उसका योग अपनी माता के साथ है. बालक थोड़ा बड़ा होने पर खेलकूद में रस लेने लगता है तब उसका योग माँ से परिवर्तित होकर अपने दोस्तों और खेल में जुट जाता है और माँ का बुलावा भी वह टालने की कोशिश करता है. विद्यार्थी जीवन में बच्चे का योग अपनी पढ़ाई, पाठशाला और शिखक से हो जाता है. व्यावहारिक जीवन में आने के बाद उसका योग - धन, सम्पत्ति, मर्तबा, इज्जत, अन्य सम्पर्क मंे आने वाले व्यक्तियों के साथ हो जाता है, विवाह होने पर कुछ समय के लिए उसका योग पत्नी के साथ हो जाता है. सन्तान होने पर पत्नी से भी योग हटकर सन्तान से हो जाता है. बीमारी के दिनों में पूरा ही योग डॉक्टर के साथ होता है. क्योंकि उससे ही इलाज होना है. इस प्रकार योग परिवर्तनशील है तो फिर देहधारियोंे से योग हटाकर परमात्मा से योग लगाना कठिन क्यों होना चाहिए, जहाँ परिचय, सम्बध, स्नेह और प्राप्ति है वहाँ योग लगाना बड़ा ही सहज है, अब ये चारों ही आधार परमात्मा से जोड़े जाएँ तो राजयोग कोई कठिन विधि नहीं है.

सबसे पहले राजयोग के लिए स्वयं का और परमात्मा का परिचय होना आवश्यक है. मौ कोन हॅूं और मुझे किसके साथ योग लगाना है ? अगर हम अपने-आपको देह समझेंगे तो हम परमात्मा के साथ कभी भी योगयुक्त नहीं हो सकेंगे. देह अभिमान समझने से यही संकल्प आयेगे - `मौ पिता हँू` तो बच्चे याद आयेंगे, ``मौ शिक्षक हँू`` तो विद्यार्थी याद आयेगें ``मौ व्यापारी हँू`` तो ग्राहक याद आयेंगे. लेकिन जब स्वयं को आत्मा निश्चय करेंगे तब ही परमात्मा याद आयेगा. इस प्रकार राजयोग की पहली सीढ़ी है - आत्मा और परमात्मा के पूर्ण परिचय के आधार पर दोनों मे निश्चय. दोनों का परिचय तो दूसरे और तीसरे सत्र मं मिला है,
अब परमात्मा के साथ आत्मा का किस प्रकार के सम्बन्ध और उसको याद करने की विधी क्या है इस पर विचार करेंेंगें -
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Labels: ब्रह्माकुमार भगवान भाई प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय ब्रह्मा कुमारी
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू



बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई आबू पर्वत ब्रह्माकुमारी नाम: राजयोगी ब्रह्मा कुमार भगवान भाई ब्रह्माकुमारी शांतिवन में राजयोगा टीचर मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय विश्व आबू पर्वत राजस्तान में रसोई विभाग में ब्रह्मा भोजन में सेवा लेखक, विभिन्न मगैनेस और समाचार पत्रों में शैक्षिक योग्यता: 10 वीं और आय .टी .आय . जन्म तिथि: जून 1, 1965 सेवा स्थान: अबू रोड, शांतिवन ज्ञान में : 1985 सेवा में समर्पित कब से 1987: सेवा --- जैसे, ग्राम विकाश कई आध्यात्मिक अभियानों में , रैली, शिव सन्देश रथ यात्रा, मूल्य आधारित मीडिया अभियान, मूल्य आधारित शिक्षा अभियान, युवा पद यात्रा, आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों में, साथ ही में नेपाल में भी भाषण विभिन्न विषयों पर पर संबोधित किया है कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय (5000) स्कूल में नीतिक मूल्य बारे में स्कूलों और जेलों (800) समाज सेवा पुनर्वास शिविर बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं, भूकम्प आदि कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न क्लास लिया है यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय के एक बहुत अच्छे लेखक हैं. अपने लेख बहुत बार कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहे हैं जैसे (हिंदी) ज्ञानामृत , विश्व नवीनीकरण (अंग्रेज़ी) के रूप में,


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शांतिवन के भगवान भाई का
नाम इंडिया बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया। यह सम्मान उन्हें
पांच हजार स्कूलों के हजारों बच्चों को मूल्यनिष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक
एवं आध्यात्मिक विकास के लिए लगातार पढ़ाए जाने तथा आठ सौ जेलों के
हजारों कैदियों से अपराध छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानवता
को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिए
संदेश देने के अथक प्रयास के कारण मिला है।दिल्ली के कनॉट प्लेस में 22
अप्रैल को यह सर्टिफिकेट इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडिटर विश्वरूप
राय चौधरी की तरफ से आयोजित एक समारोह में दिया गया।
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बायो --डाटा (परिचय ) ब्रह्मा कुमार भगवान भाई

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सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई






सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई कटनी। बदलने से विपरीत परिस्थिति भी सहज दिखने लगती है। अपनी समस्या को समाप्त करने एवं सफल जीवन जीने के लिए विचारों को सकारात्मक बनाने...
सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है राजयोगी भगवान भाई
कटनी। बदलने से विपरीत परिस्थिति भी सहज दिखने लगती है। अपनी समस्या को समाप्त करने एवं सफल जीवन जीने के लिए विचारों को सकारात्मक बनाने की बहुत आवश्यकता है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने कहे। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारीज राजयोग सेवा केन्द्र पर तनावमुक्त विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समस्याओं का कारण ढूढने की बजाए निवारण ढंूढ़े। उन्होंने कहा कि समस्या का चिंतन करने से तनाव की उत्पत्ति होती है। मन के विचारों का प्रभाव वातावरण पेड़-पौधों तथा दूसरों व स्वयं पर पड़ता है। यदि हमारे विचार सकारात्म है तो उसकासकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि जीवन को रोगमुक्त,दीर्घायु, शांत व सफल बनाने के लिएहमें सबसे पहले विचारों को सकारात्मक बनाना चाहिए। राजयोगी भगवान भाई ने कहा कि सकारात्मक विचार से समस्या समाधान में बदल जाती है। एक दूसरों के प्रति सकारातमक विचार रखने से आपसीभाई चारा बना रहता है। उन्होंने सत्संग एवं आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक सोच के लिए जस्री बताते हुए कहा कि हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है। सत्संग के द्वारा प्राप्त ज्ञान और शक्तियां ही हमारी असली पूंजी हैं। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केन्द्र की भगवती बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर अभ्यास के द्वारा हम अपने कर्म इद्रियों को संयमित कर अपने आंतरिकसद्गुणों का विकास कर
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Friday, May 27, 2011
शिव बाबा याद है ? ब्रह्मकुमारिज ॐ शांति BRAHMAKUMARIS








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