क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से
ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से होता है और अंत पश्चाताप से, क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है, जिस कारण जीवन अशांत बन जाता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर ईश्वरप्रेमी भाई बहनों को क्रोधमुक्त जीवन विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। क्रोध की अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। यही मनुष्य से पाप कराता है। भगवान भाई ने क्रोध पर काबू पाने के भी उपाय बताए। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। आत्मनिश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। राजयोग द्वारा ही हम अपने कर्म इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा राजयोग द्वारा ही मन को सच्ची शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम के अंत में भगवानभाई ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया।
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