Wednesday, June 1, 2011

संत दर्शन के लिए उठा एक-एक कदम एक-एक यज्ञ के बराबर होता है । संत बडे करुणाशील होते हैं । संत बडे दयालु होते हैं । वे तुम्हारे कल्याण के लिए ही तपस्याएं करते हैं । जैसे अहिल्या उद्धार के लिए श्रीराम स्वयं अहिल्या के द्वार पर गये थे वैसे ही तुम्हारे उद्धार के लिए संत तुम्हारे द्वार आते हैं । तुम ही अहिल्या हो और संत राम के अवतार हैं । संत तो हरिद्वार है । और सत्संग गंगा-स्नान है, हर की पेडी है । सत्संग का फल तो बैकुंठ है ।
संत हरिद्वार : सत्संग गंगा स्नान
एक महिला ने प्रवचन-कथा में सुना कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है, क्योंकि संत हरिद्वार है और सत्संग गंगा स्नान है । दूसरे दिन जाकर उसने अपपने पति से कहा- देखो, एक बहुत बडे संत आये हैं और उनका सत्संग चल रहा है । सारा गांव सत्संग का लाभ ले रहा है । बडा आनंद बरस रहा है, तुम भी सत्संग का लाभ लो क्योंकि सत्संग का फल बैकुण्ठ है । पत्नी के विशेष आग्रह पर वह दूसरे दिन सत्संग में गया । वहॉं जाकर सत्संग में बैठा और 10-15 मिनट बाद बार-बार इधर-उधर देखने लगा कि बैकुण्ठ ले जाने वाला कोई विमान आया या नहीं । घंटा भर वह बैठा रहा वहॉं । विमान कहॉं से आना था ? जब उसे लगा कि अब कोई विमान आने वाला नहीं है, कोई बैकुण्ठ मिलने वाला नहीं है तो गुस्से से उठा और संत को भला-बुरा कहते-कहते सत्संग केबाहर निकल गया ।
घर जा रहा था । गुस्से में तो था ही । रास्ते में नारदजी मिल गये । नारद ने पूछा- भाई ! क्या बात है ? किसे गाली दे रहे हो ? बोला- ये संत लोग बडे धोखेबाज होते हैं । जनता को गुमराह करते हैं कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । अरे ! मैं वहॉं घंटा भर बैठा, पर वहॉं बैकुण्ठ तो क्या एक कप चाय भी नहीं मिली । उस आदमी ने नारद से पूछा कि आप ही बताइये सत्संग का क्या महत्व है ? क्या सत्संग से वाकई में बैकुण्ठ मिलता है । नारद ने कहा : भाई ! सत्संग तो मैं भी करता हूँ लेकिन सत्संग का महत्व मुझे भी नहीं मालूम । नारद ने कहा- अच्छा ऐसा करते हैं शंकरजी से चलकर पूछते हैं, वे ही बतायेंगे कि सत्संग का क्या महत्व है ? नारद उस व्यक्ति को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे । शंकरजी से नारद ने पूछा : महाराज सत्संग का महत्व बताइये- यह व्यक्ति जानना चाहता है । शंकर जी बोले : भाई सत्संग का महत्व मैं भी नहींे जानता । अच्छा ! हम ब्रह्मा जी के पास चलते हैं । वे ही सत्संग का महत्व बतायेंगे । शंकरजी, नारद और वह व्यक्ति तीनों चलकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे भी यही प्रश्न किया । सत्संग का क्या महत्व है ? यह बताइये । ब्रह्मा जी तो मुश्किल में पड गये । बोले - भाई, मुझे तो मालूम नहीं । इसका उत्तर तो विष्णुजी ही दे सकते हैं । अपन विष्णु के पास चलते हैं ।
ये सभी बैकुण्ठधाम पहूंचे तो वहॉं विष्णुजी विराजमान थे । विष्णुजी ने देखा कि आज तो बडे-बडे महापुरुष एक साथ आये हैं । कारण पूछा तो नारद ने कहा- भगवन ! यह व्यक्ति सत्संगक का महत्व जानना चाहता है और हममें से किसी को सत्संग का महत्व मालूम नहीं है इसलिए आपके पास आये हैं । कृपया, आप सत्संग का महत्व समझायें । विष्णु जी ने उसी व्यक्ति से पूछा - बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकुण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसी व्यक्ति से पूछा- बोल भाई ! तूने अभी तक सत्संग का क्या महत्व सुना था ? उस व्यक्ति ने कहा- मैंने सुना था कि सत्संग से बैकुण्ठ मिलता है । मैंने घंटे भर का सत्संग किया, पर मुझे तो कोई बैकण्ठ नहीं मिला । विष्णुजी ने उसके कान पकडकर कहा- अरे भोले प्राणी ! साक्षात ब्रह्मा, विष्णु, महेश तेरे सामने खडे हैं - तो यह बैकुण्ठ नहीं तो क्या तेरा घर है ? अगर तू घंटे भर का सत्संग नही करता तो तू क्या यहॉं तक आ सकता था ? देख घंटे भर के सत्संग का फल कि तीन-तीन देव तेरे सामने खडे हैं । श्रद्धा बडी चीज है । श्रद्धा ही फल देती है ।
तो, सत्संग का जीवन में बडा गहरा महत्व है । संतों की अंगुली थामकर रखो । जैसे बन्दर का बालक अपनी मॉं से चिपका रहता है, वैसे ही तुम संतों से चिपके रहो, जुडे रहो । बस तुम्हारा इसी में कल्याण है । भीड भरे मेले में जब तक बच्चे की अंगुली मॉं के हाथ में होती है तब तक बालक का जीवन सुरक्षित होता है लेकिन ज्यों ही मॉं की अंगुली छूटती है तो बालक भीड के संकट में खो जाता है । जब तक तुम्हारी जीवन की अंगुली किसी संतने शाम ने थाम रखी है, तब तक संसार का कोई थपेडा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड सकता और अगर अंगुली छूट गई तो फि रोना ही रोना शेष रह जायेगा ।
तो, उस युवक ने सोचा - गलत जगह आ गये । यह आदमी तो गडबड है ही, लगता है इसकी पत्नी भी बडी बुद्धू है । उसने यह भी नहीं पूछा कि धूप में बैठे हो तो लालटेन की क्या जरुरत पड गई ? ऊपर वाले ने भी क्या जोडी बिठाई है । दोन्हों ही एक से हैं । वह मन ही मन कबीर को कोस रहा था । युवक कबीर से कहता है, मेरी समस्या का समाधान करें । मुझे देर हो रही है, मुझे जल्दी जाना है, कबीर ने कहा- करुंगा, थोडी प्रतीक्षा करो । कबीर ने अपनी पत्नी को निर्देश दिया किवह दो कटोरे दूध लेकर आये । पत्नी रसोई में गई- दूध में चीनी डाली, और दो कटोरे दूध से भरकर कबीर के सामने

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