Saturday, June 4, 2011




कथनी और करनी की एकरुपता ही धर्म है । धर्म दुकान पर बेचने और खरीदने की वस्तु नहीं है । धर्म अपने को मिटा देने की प्रक्रिया हैं । होश ही धर्म है । होश में किया गया हर कर्म पूजा बन जाता है । होश में चलना प्रभु की परिक्रमा लगाने जैसा है । होश में सोना प्रभु को दण्डवत करने जैसा है । होश में बोलना प्रभु का कीर्तन करने जैसा है, होश में कुछ भी सुनना कथा श्रवण जैसा है । होश में खुली आँखों से कुछ भी देखना प्रभु दर्शन जैसा है । होश में जीने वाला कोई पाप नहीं करता है । दुनिया में जितने पाप हो रहे हैं वे सब बेहोशी में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं, मूर्च्छा में जीने वालों के द्वारा हो रहे हैं । होश में तुम किसी को गाली नहीं दे सकते, होश में तुम किसी की हत्या नहीं कर सकते । गाली और हत्या बेहोशी की देन है ।

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