Wednesday, June 1, 2011

परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तु


परमात्मा तो तुम्हारे द्वार पर ही खडा है लेकिन तुम इतने अहंकारी, अभिमानी हो कि उसके स्वागत में, उसकी अगवानी में चार कदम भी नहीं चल रहे हो । परमात्मा तुमसे बहूत दूर नहीं है । वह तो तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हारे पास-पडौस में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । अहंकार के महल से बाहर निकलकर जरा एक बार झांककर देखो तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा है । तुम्हें तो सिर्फ चार कदम ही चलना है । प्रभु बडा दयालु है । तुम चार कदम उसकी तरफ चलोगे, वह हजार कदम तुम्हारी तरफ चलेगा । तुम मंदिर क्यों जाते हो ? मंदिर जाने का अर्थ क्या है ? मंदिर जाने का इतना ही अर्थ है- प्रभु कहते है, तुम घर से निकलकर मंदिर तक आओ तो मैं सिद्धालय से उतरकर मंदिर तक आ जाऊंगा । यही तो चार और हजार कदम का गणित है । तुम्हारा घर मंदिर से कितनी ही दूर क्यों न हो, वह सिद्धालय के सामने चार कदम से ज्यादा दूर नहीं हो सकता । तो तुम चार कदम चलने की ईमानदारी, साहस तो दिखाओ, फिर यदि वह हजार कदम चलकर तुम्हारी तरफ न आये तो कहना । तुम घर से निकलकर मंदिर तक तो आओ फिर यदि वह सिद्धालय से उतरकर तुम तक न आए तो कहना ।
तुम ही परमात्मा तक नहीं पहुँचते हो, परमात्मा भी तुम तक पहूँचता है । तुम ही उसे नहीं पुकारते हो, वह भी तुम्हें पुकारता है । तुम ही उसके पीछे-पीछे नहीं भागते हो, वह भी तुम्हारे पीछे-पीछे भागता है । मनुष्य ही परमात्मा तक नहीं पहूँचता । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । जब भी मनुष्य तैयार होता है, खुद परमात्मा ही मनुष्य तक पहूँच आता है । तुम क्या जाओगे उस तक । तुममें हिम्मत ही कहॉं है इतनी ? वो ही तुम तक आता है ।
तुम्हें तो सिर्फ एक भक्ति समर्पण की माला तैयार करनी है और जिस दिन तुम्हारी यह जीवन समर्पण की माला तैयार हो जायेगी, प्रभु खुद ही तुम्हारे सामने गर्दन कर देंगे । तुम प्रभु की गर्दन में माला नहीं डालोगे अपितु प्रभू ही माला में गर्दन डाल देंगे । तुम तो बहूत बौने लोग हो, तुम तो बहुत छोटे-छोटे लोग हो, प्रभु तो बडे विराट है, महान है, ऊंचे हैं । एवरेस्ट की चोट पर भी खडे होकर यदि तुम उनकी गर्दन तक नहीं पहूँच सकते । तुम्हें तो केवल माला तैयार करनी है । माला तैयार होते ही उसमें मालिक की गर्दन आपों-आप आ जायेगी । लेकिन तुम बडे बेईमान हो, अभी तो तुम माला तैयार करने में लगे हुए हो ।
प्रभु के प्रभाव और संतों की संभावना को प्रणाम
तो प्रभु के चरणों में बैठकर प्रभु-भक्ति मॉंगो । प्रीु के चरणों में बैठने का सुख, उनके चरणों में भक्ती का आनंद अद्‌भूत है । प्रभू से मांगना है तो सत्संग मांगना, प्रभु-भक्ती मांगना । अभी तो तुम उससे धन-सम्पत्ति मांगते हो, संसार का वैभव मॉंगते हो, इधर-उधर का कूडा-करकट मांगते हो । अरे, वह तो भाग्य का विषय है जो मिलना है वह तो मिलना ही है । ना मांगो तब भी मिलना है । कितना मिलना है- यह तो जन्म से पूर्व ही जन्म की पुस्तिका में लिख दिया जाता है । जो मिलने ही वाला है, उसे क्या मांगना ? अगर तुम्हारा पैसा बैंक के खाते में जमा है तो तुम्हारा दुश्मन भी काउंटर पर बैठा हो तो उसे भी देना पडेगा, और यदि खाते में कुछ भी जमा नहीं है तथा तुम्हारा अपना ही लडका काउंटर पर बैठा हो, तो वह भी नहीं दे पायेगा ।
प्रभु के चरणों में बैठकर इतनी ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु ! तू मुझे हमेशा अपने चरणों में रखना । भगवान से चरण मांगना, उनका आचरण मांगना, उन जैसा समाधि-मरण मांगना, उन जैसा परम जागरण मांगना, क्योंकि जीवन की सब समृद्धि भगवान के श्रीचरणों में ही बसती है । भगवान से कहना- प्रभु ! तूने जो हजारों- लाखों रुपये दिए हैं उसमें से कुछ लाख, कुछ हजार कम करना है तो कर लेना, जो सैकडों रिश्तेदार दिए हैं उनमे से कुछ कम करना है तो कर लेना, जो धन-वैभव, सुख-सुविधा दी है उसमें कुछ कटौती करनी है तो कर लेना, जो बडा भारी मकान व लम्बा-चौडा व्यापार दिया है थोडा बहुत कम करना है तो कर लेना लेकिन मेरे भगवन्‌ ! मेरी श्रद्धा को, मेरी भक्ती को, मेरी पूजाको कभी कम मत करना । मेश्री श्रद्धा-भक्ति को हमेशा बढाते रहना । श्रद्धा बढेगी तो सुख भी बढेगा क्योंकि श्रद्धा सुख का द्वार है ।

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