Thursday, May 5, 2011

प्रभु का होकर तो देख

प्रभु का होकर तो देख
राग, भय और क्रोध से अपने चित्त को बचाते रहो । राग आपको बांधता है, भय आपकी शक्तियाँ कुंठित कर देता है और क्रोध आपको तपाता है । अपने बच्चे-बच्चियों को अधिक रोक-टोक कर उनको मानसिक दुश्मन मत बनाओ । चौदह साल से ऊपर के बच्चे-बच्चियों से मित्रवत व्यवहार करो, नहीं तो भीतर से वे तुम्हारे शत्रु हो जाऐंगें तो तुम्हारी अच्छी बात भी उनके गले नहीं उतरेंगी । उनमें हजार-हजार कमियां हो सकती हैं लेकिन कोई एक सद्गुण होगा बच्चे में-बच्ची में, आप उसके सद्गुणों को प्रोत्साहित करें और जो आप सद्गुण डालना चाहते उस सद्गुण की थोड़ी महिमा करें । जो दूसरे सुख देंगें; इस भाव से काम करते हैं उसके काम बंधनकारी हो जाते हैं, दुःख देने वाले हो जाते हैं । अपना कर्तव्य निभाने के लिए बेटे को, बेटी को, पत्नि को,पति को अपनी सेवा करके संतुष्ट कर दो । महान परमात्मा से ही जुड़े रहने में तेरी महानता है । परमेश्वर के नाते आप मिलो । परमेश्वर के नाते पति की, पत्नि की, मित्रों की, साधक की, संत की, गृहस्थ की सेवा कर लो बस; तो आपको विश्रांति मिलेगी, विश्रांति आपकी माँग है । परमात्मा में विश्रांति से आपका स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन, स्वभाविक हो जाएगा । जो मौत के बाद भी तेरा साथ नहीं छोड़ेगा; उसको छोड़कर मूर्ख तू किसको आश्रय बनाता है मरने वालों को, मिटने वालों को आश्रय बनाता है । अमिट का आश्रय छोड़कर मिटने वालों को कब तक आश्रय बनाएगा भैया ! सुधर । शाश्वत को छोड़कर नश्वर की शरण कब तक जाएगा? ये मेरे काम आएगा, वो मेरे काम आएगा ना........ ना....... ये शरीर के काम आऐंगें तो अहंकार बढ़ेगा; नहीं काम आऐंगें तो अशांति बढ़ेगी । तेरे काम तो तेरा पिया आएगा । राग को हटाते जा लाला । डर क्यूँ लगता है ? शरीर को मैं मानता है, वस्तुओं को सच्ची मानता है, इसलिए तू डरता है,विकारों को पोसता है, इसलिए तू डरता है । कपट रखता है, इसलिए तू डरता है । तू सच्चाई की शरण ले । क्रोध क्यों होता है? वासना की पूर्ति में कोई विघ्न डालता है, मान्यता में कोई विघ्न डालता है तो क्रोध होता है छोटे पर, भय होता है बड़े से, द्वेष होता है बराबरी वालों पे । तू वासना को महत्व ना दे, तू परमात्मा की प्रीति को महत्व दे । आज ये तीन चीजें बहा दो बस ! भय, क्रोध और राग तू जा । प्रीति,नम्रता और प्रभु आस्था तू मेरे दिल में आ । भय, क्रोध और राग तू जा । ना जा तो पड़ा रह, मेरा क्या जाता है, मैं तो प्रभु का, प्रभु मेरा......। भय, राग और क्रोध से लड़ने की भी जरूरत नहीं । मैं आपको क्या बताऊँ मैं एक आसाराम नहीं, हजार आसाराम और एक आसाराम की हजार जीभें हों फिर भी उसने जो दिया है, मैं ब्यान नहीं कर सकता हूँ, आपको सच बोलता हूँ । आप उसका आश्रय लो बस । हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ । जो सभी का आश्रय है आपका भी सचमुच में वही आश्रय है । लेकिन आप कपट का आश्रय लेकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं । आप काम का आश्रय लेकर अपने को नोचते हैं । आप द्वेष का आश्रय लेकर अपने को सताते हैं । आप लोभ का आश्रय लेकर अपने को डुबाते हैं । आप उसी का आश्रय लीजिए जो ब्रह्मांडों का आश्रय दाता है । इतने समर्थ का आश्रय छोड़कर तुम कहाँ भटकोगे भैया?कब तक भटकोगे भैया? आश्रय भी भगवान का, और प्रीति भी भगवान की, आपका तो काम बन जाएगा, आपकी मीठी निगाहें पड़ेंगी उसका भी मंगल होने लगेगा । ये तुम्हारे शरीर गुड्डे-गुड्डी जैसा है, जरा-सा चमड़े की ऊपर की लीरी हटाओ तो क्या भरा है? जरा-सा सोच लो फिर भी सुंदर लगता है, तो सौंदर्य उसका है ना । बुद्धिमानी लगती है तो उसकी है ना, चतुराई लगती है तो उसकी है ना । आप रोज उसकी शरण में जाइए, उसमें विश्रांति पाइए । आपके दोष दूर होने लगेंगें । उसकी करुणा-कृपा के आगे,आपकी मुसीबत की, निगुड़ी मुसीबत की क्या ताकत है उसकी दया के आगे? वे लोग बहुत धोखे में हैं,जो संसार में सुखी होना चाहते हैं । भगवान श्रीराम के पिता भी संसार में सुखी नहीं हुए,कृष्ण के पिता भी सुखी नहीं हुए तो तुम उससे भी बड़े हो गए क्या, संसार तुमको सुख दे देगा । आप प्रेम बढ़ाते जाइए । भगवान की शरण होते जाइए । परमात्मा के नाते पुत्र की, परिवार की सेवा करो, लेकिन बदले में उनसे सुख की लालच या कृपा ना चाहिए । कृपा तो वही दे रहा है और सत्संग, एकांत । एकांत अपने लिए, सेवा समाज के लिए और प्रीति परमात्मा के लिए । एक तो भगवान को प्रेम करते जाओ; दूसरा जिस किसी से मिलो बदले की भावना में ना, सेवा भाव से करो, फिर देखो क्या होता है, चमत्कार । आप उद्देश्य बनाऐंगें तो उद्देश्य की पूर्ति के लिए रोज अपने को याद कराऐंगें कि मेरा उद्देश्य क्या है? मुझे इसी जन्म में परमेश्वर को पाना है । मुझे इसी जन्म में सुख-दुःख से पार होना है । मुझे, इस जन्म के पहले जो मेरे साथ था, और मरने के बाद भी जो मेरे साथ रहेगा, उस प्यारे को, उस पिया को मिलना है ।तीसरी बात सत्संग ना छोड़ो । चौथी बात एकांत में प्रतिदिन थोड़ा समय बढ़ाते जाओ ।

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