एक बार एक बंजारा (व्यापारी)व बंजारी हाथी पर बैठे जंगल से चले जा रहे थे | बंजारे की बालद आगे जा चुकी थी | जंगल में एक गडरिया भेड़ बकरियां चरा रहा था उसे प्यास लगी तो वह पास ही बह रहे नाले पर गया और झुक कर पानी में मुंह डूबा कर ऐसे पानी पीने लगा जैसे जानवर पीते है | उसके इस तरह पानी पीते दृश्य पर बंजारे की नजर अचानक पड़ी, बंजारे ने गडरिये के पानी पीने के तरीके को देख बंजारन से कहा -
" ये देखो ! जन्म से ही जानवर है |"
बंजारन बोली -" जन्म से कोई जानवर नहीं होता | यह तो संगत का असर है,यह बेचारा पुरे दिन भेड़ बकरियों व जानवरों के साथ रहता है उनकी देखा देखी यह भी जानवरों की तरह पानी पीना सीख गया | जानवर की तरह इसका पानी पीना सिर्फ संगत का असर है |"
पर बंजारा बंजारन की बात से सहमत नहीं हुआ बोला- " यह जानवर ही है ,जानवरों के साथ जानवर ही रहेगा | इसकी बुद्धि भी जानवर जैसी हो गयी है |"
बंजारी बोली - " इन्सान के गर्भ से पैदा हुआ कोई जानवर कैसे हो सकता है | यदि कोई इसे पढाये,लिखाये,सिखाये,इसे होशियार करे तो यह भी वे सभी कार्य कर सकता है जो आप कर रहे है | यह भी आपकी तरह व्यापर कर सकता |"
इस बात पर दोनों में तगड़ी बहस शुरू हो गयी | बंजारा मान कर राजी नहीं कि- ये गंवार व्यापार कर सकता है | बंजारी कहे -" ये व्यापार ही नहीं,यदि अच्छी संगत में रहकर थोडा पढ़ जाये तो आप पर हकुमत भी कर सकता | इस तरह बहस करते करते बंजारे को बंजारी पर गुस्सा आ गया ,और बंजारी को हाथी से उतारकर बोला-
" तो अब जा | इस जानवर के साथ रह | इसे काबिल बना कर दिखा | मैं भी देखूं तेरी संगत का असर इस गंवार गडरिये पर |"
यह कहकर बंजारा तो चला गया | बेचारी बंजारन जंगल में अकेली रह गयी | उसने निश्चय कर लिया कि वो गडरिये के साथ रहकर उसे शिक्षित करेगी | बंजारन भी बड़ी हिम्मत वाली औरत थी | वह गडरिये के पास गयी,उससे डरते हुए गडरिये को पुचकारा और उसके साथ उसकी झोपड़ी में चली गयी | बंजारन ने सोने के बहुत से गहने पहने थे उनमे से कुछ उतारकर उन्हें बेच बंजारन ने खाने पीने व जरुरत का सामान ख़रीदा | गडरिये को नहलाया धुलाया,अच्छा खाना बनाकर खिलाया, गडरिया को तो मानों मां मिल गयी |
अब बंजारन ने गडरिया को पढ़ाना शुरू किया,उसे नए कपडे पहनाये,उठने बैठने का तरीका समझाया,देश विदेश की कहानियां सुनाकर उसका ज्ञानवर्धन किया | थोड़े दिनों में गडरिया पढना लिखना,ढंग से उठाना बैठना,बोलना चालना सीख गया | बंजारी उसके लिए एक घोड़ा खरीद लायी उसको घुडसवारी सिखाई | गडरिया भी हर बात आसानी से सीखता गया |
अब तो बंजारी ने गडरिये को राजदरबार में भेजना शुरू कर दिया | वहां गडरिया राजनीती व प्रशासन की बातें समझने लगा | बंजारी भी उससे रोज राजदरबार की बाते पूछती,उनका मतलब समझाती | गडरिये की अच्छी बातों की तारीफ़ करती | गलत बात के लिए समझाती | इस तरह गडरिया तो पूरा शिक्षित हो गया |
एक दिन राजा शिकार खेलने गया | गडरिया भी अपना घोड़ा ले राजा के दल के साथ हो लिया | जंगल में शिकार का पीछा करते करते राजा अपने आदमियों से काफी आगे निकल गया, उसके पीछे सिर्फ गडरिया ही रहा बाकी दल के लोग बहुत पीछे रह गए | रात होते ही जंगल में अँधेरा छा गया,राजा को अब न तो रास्ता दिखाई दे रहा न अपने दल के लोग,पीछे सिर्फ गडरिया अपने घोड़े पर सवार आता दिखाई दिया | राजा को अपने सिपहसालारों पर बहुत गुस्सा आया |
गडरिये ने राजा को सलाह दी कि रात हो चुकी है रास्ता दिखाई नहीं दे रहा,जंगल में खतरनाक जानवरों का डर भी है,इसलिए आप यही रुक जाईये | गडरिये ने राजा को घोड़े से उतार एक जगह बिठाया | अपने घोड़े पर छागळ (पानी का पात्र) में बंधा ठंडा पानी पिलाया | और बंजारी द्वारा अपने साथ बांधे चूरमे के लड्डू राजा को खिलाये और राजा को सुला दिया ,खुद नंगी तलवार हाथ में ले पूरी रात राजा की सुरक्षा के लिए पहरा देता रहा |
दिन के उगते ही राजा व गडरिया अपने अपने घोड़ों पर सवार हो घर आ गए | राजा ने गडरिया द्वारा की गयी सेवा से खुश होकर कहा- "जो चाहिए मांग,तुझे इनाम में दूंगा |"
गडरिया बोला- " महाराज ! घर जाकर अपनी मां से पूछकर मांगूगा |"
घर आ गडरिये ने बंजारी को सारी कहानी सुनाई ,बंजारी से सलाह ली | राजा के पास गया और बोला -
" महाराज ! यदि आप खुश है तो मुझे अपने राज का डाणी (कर,चुंगी संग्रहकर्ता) बना दीजिये |"
राजा ने उसे डाणी बना दिया | अब तो गडरिया उधर से आने वाले मोटे मोटे बंजारों (व्यापारियों) से कर वसूली करने लगा | अपना पूरा काम तन्मयता से करता उधर वहां आने वाले सभी बड़े बड़े बंजारे व्यापारी उसके आगे पीछे घूमते,कहीं कर ज्यादा ना लगादे | गडरिया की तो तगड़ी पूछ हो गयी |
एक दिन बंजारी ने उसे समझाया कि -कभी इस शहर में इस नाम का बंजारा आये तो उसका कर आसानी से जमा मत करना और मुझे भी बताना |
कुछ वर्ष गुजरे वही बंजारा अपनी बालद ले उस शहर में माल बेचने आया | शहर में घुसते ही माल पर कर लगता था | बंजारा डाणीजी (गडरिया) के पास कर जमा करने गया पर नाम सुनते ही डाणीजी ने तो बंजारे को इंतजार के लिए कह दिया | बंजारा खूब मिन्नतें करें पर डाणी (गडरिया) उसका "कर" जमा नहीं करे | बंजारा परेशान,यहाँ पड़े पड़े तो मेरा माल ही ख़राब हो जायेगा, इतना महंगा माल, खाने पीने की तो सारी वस्तुएं व फल आदि ख़राब ही हो जायेंगे | कब अपना बेचूंगा और कब इस शहर से नया माल खरीदूंगा ? सोच सोच बंजारा दुखी होए |
शाम हुई डाणी (गडरिया) तो छुट्टी कर अपने घर चलता बना | अब बंजारा भी उसके पीछे उसके घर पहुँच गया | शायद डाणीजी से कुछ ले दे कर मामला सुलझा लिया जाय | घर पर गडरिया तो ऊँचे आसन पर बैठा था सामने बंजारा हाथ जोड़े खड़ा 'कर' जमा करने की मिन्नते कर रहा था | बंजारी खिड़की से यह सब देख रही थी उसने अपने बंजारे को पहचान लिया | नोकर को भेज उसने डाणी (गडरिये) को अन्दर बुलाया, गडरिया घर के अन्दर जाने को जैसे ही उठा | बंजारे ने चापलूसी करने वास्ते उसके जूते उठाकर उसके आगे किये | बंजारे के हाथ में गडरिये के जूते देखते ही बंजारी झट से बंजारे के आगे आ गयी,जूतियाँ बंजारे के हाथ से लेकर बोली - " बस बहुत हो गया |"
बंजारा अपनी बंजारी को देख अवाक रह गया बोला - " अरे बंजारी ! तूं यहाँ ?
" हाँ ! अब देख लिया संगत का असर | ये वही गडरिया है | यह संगत का ही असर है कि आप जैसा बड़ा व्यापारी आज इसकी जूतियाँ लेकर इसके आगे खड़ा |"
बंजारा बहुत शर्मिंदा हुआ पर उसे अपनी बंजारी पर बहुत गर्व भी हुआ |
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