Thursday, March 3, 2011

संसार में परमपिता परमात्मा ही एक ऐसा है जो मनुष्य के साथ हर पल संबंध निभाने के लिए तैयार रहता है। परमात्मा संसार का रचयिता है और निराकार है, उसका भौति

समस्त जगत् में जितने भी प्राणी हैं सबका एक दूसरे से कोई संबंध है। बिना संबंध के हम इस जगत् में खुशहाल जीवन नहीं व्यतीत कर सकते। संबंधों के तार मनुष्य को शक्ति प्रदान करते हैं। लौकिक-अलौकिक वैभव, सुख, शांति, गुणों और शक्तियों का आदान-प्रदान भी सहज होता है। उनसे हमारे संबंध दिव्य और अलौकिक हैं इसलिए हम उनकी श्रेष्ठ क्रियाकलापों का अनुसरण करते हैं। उनको जीवन में उतारने की कोशिश करते है। लौकिक और अलौकिक का भी एक दूसरे से गहरा संबंध है। आत्मा अलौकिक है और शरीर लौकिक है। समस्त जगत लौकिक और अलौकिक के गहरे संबंध से जुडा है। इसके आधार पर यह भूमंडल चल रहा है। मनुष्यों का देवताओं से भी संबंध है क्योंकि वे दैवी गुण वाले हैं, हमारे आराध्य हैं। उनसे हमें शक्ति, वैभव और शांति की प्राप्ति होती है। इसी तरह से आत्मा का परमात्मा से अलौकिक संबंध है। संसार में परमपिता परमात्मा ही एक ऐसा है जो मनुष्य के साथ हर पल संबंध निभाने के लिए तैयार रहता है। परमात्मा संसार का रचयिता है और निराकार है, उसका भौतिक शरीर नहीं है। त्वमेवमाता चपिता त्वमेव,त्वमेवबंधुश्चसखा त्वमेव।त्वमेवविद्या द्रविणंत्वमेव,त्वमेवसर्व मम देवदेव।।परमात्मा के लिए यह क्यों कहा गया है, इसके बारे में संसार के प्रत्येक प्राणी को विचार करना चाहिए। यह जाहिर है कि संसार में जो भी रिश्ते हैं वे सब विनाशी हैं और भौतिक संबंध होने के कारण मनुष्य का लगाव भौतिकता के स्तर से ही होता

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