[15.03.2011]
मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम्हें सद्गति की सबसे न्यारी मत मिली है कि देह के सब धर्म त्याग आत्म अभिमानी भव, मामेकम् याद करो''
प्रश्न: जो परमात्मा को नाम रूप से न्यारा कहते हैं, उनसे तुम कौन सा प्रश्न पूछ सकते हो?
उत्तर: उनसे पूछो - गीता में जो दिखाते हैं अर्जुन को अखण्ड ज्योति स्वरूप का साक्षात्कार हुआ, बोला बस करो हम सहन नहीं कर सकते। तो फिर नाम रूप से न्यारा कैसे कहते हो। बाबा कहते हैं मैं तो तुम्हारा बाप हूँ। बाप का रूप देखकर बच्चा खुश होगा, वह कैसे कहेगा मैं सहन नहीं कर सकता।
गीत:- तेरे द्वार खड़ा भगवान ...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मास्टर ज्ञान सागर बन पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है। बाप ने जो सब शास्त्रों का सार सुनाया है वह बुद्धि में रख सदा हर्षित रहना है।
2) एक बाप की श्रीमत हर पल पालन करना है। देह के सब धर्म त्याग आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है।
वरदान: स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त भव
जो बच्चे स्वमान में स्थित रहते हैं वही बाप के हर फरमान का सहज ही पालन कर सकते हैं। स्वमान भिन्न-भिन्न प्रकार के देह-अभिमान को समाप्त कर देता है। लेकिन जब स्वमान से स्व शब्द भूल जाता है और मान-शान में आ जाते हो तो एक शब्द की गलती से अनेक गलतियां होने लगती हैं इसलिए मेहनत ज्यादा और प्रत्यक्षफल कम मिलता है। लेकिन सदा स्वमान में स्थित रहो तो पुरूषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलता-मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन: तपस्या करनी है तो समय को बचाओ, बहाना नहीं दो।
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