Monday, March 21, 2011

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - याद की यात्रा में रेस करो तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे, स्वर्ग की बादशाही मिल जायेगी''

[16-03-2011]


मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - याद की यात्रा में रेस करो तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे, स्वर्ग की बादशाही मिल जायेगी''
प्रश्न: ब्राह्मण जीवन में अगर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव नहीं होता है तो क्या समझना चाहिए?
उत्तर: जरूर सूक्ष्म में भी कोई न कोई पाप होते हैं। देह-अभिमान में रहने से ही पाप होते हैं, जिस कारण उस सुख की अनुभूति नहीं कर सकते हैं। अपने को गोप गोपियाँ समझते हुए भी अतीन्द्रिय सुख की भासना नहीं आती, जरूर कोई भूल होती है इसलिए बाप को सच बतलाकर श्रीमत लेते रहो।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मंजिल बहुत ऊंची है इसलिए कदम-कदम पर सर्जन से राय लेनी है। श्रीमत पर चलने में ही फायदा है, बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है।
2) देह और देहधारियों से बुद्धि का योग हटाए एक बाप से लगाना है। कर्म करते भी एक बाप की याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।
वरदान: सेकण्ड में सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त कर मर्यादा पुरूषोत्तम बनने वाले सदा स्नेही भव
जैसे स्नेही स्नेह में आकर अपना सब कुछ न्यौछावर वा अर्पण कर देते हैं। स्नेही को कुछ भी समर्पण करने के लिए सोचना नहीं पड़ता। तो जो भी मर्यादायें वा नियम सुनते हो उन्हें प्रैक्टिकल में लाने अथवा सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त करने की सहज युक्ति है - सदा एक बाप के स्नेही बनो। जिसके स्नेही हो, निरन्तर उसके संग में रहो तो रूहानियत का रंग लग जायेगा और एक सेकण्ड में मर्यादा पुरूषोत्तम बन जायेंगे क्योंकि स्नेही को बाप का सहयोग स्वत: मिल जाता है।
स्लोगन: निश्चय का फाउण्डेशन मजबूत है तो सम्पूर्णता तक पहुंचना निश्चित है।

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