Monday, March 21, 2011

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम रूप बसन्त हो, तुम्हारे मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकलने चाहिए, जब भी नया कोई आये तो उसे बाप की पहचान दो''

19-03-2011]


मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम रूप बसन्त हो, तुम्हारे मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकलने चाहिए, जब भी नया कोई आये तो उसे बाप की पहचान दो''
प्रश्न: अपनी अवस्था को एकरस बनाने का साधन कौन सा है?
उत्तर: संग की सम्भाल करो तो अवस्था एकरस बनती जायेगी। हमेशा अच्छे सर्विसएबुल स्टूडेन्ट का संग करना चाहिए। अगर कोई ज्ञान और योग के सिवाए उल्टी बातें करते हैं, मुख से रत्नों के बदले पत्थर निकालते हैं तो उनके संग से हमेशा सावधान रहना चाहिए।
गीत:- रात के राही...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सेन्सीबुल बन सबको बाप का परिचय देना है। मुख से कभी पत्थर निकाल डिससर्विस नहीं करनी है। ज्ञान-योग के सिवाए दूसरी कोई चर्चा नहीं करनी है।
2) जो रूप-बसन्त हैं, सर्विसएबुल हैं उनका ही संग करना है। जो उल्टी-सुल्टी बातें सुनायें उनका संग नहीं करना है।
वरदान: हर शिक्षा को स्वरूप में लाकर सबूत देने वाले सपूत वा साक्षात्कार मूर्त भव
जो बच्चे शिक्षाओं को सिर्फ शिक्षा की रीति से बुद्धि में नहीं रखते, लेकिन उन्हें स्वरूप में लाते हैं वह ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, आनंद स्वरूप स्थिति में स्थित रहते हैं। जो हर प्वाइंट को स्वरूप में लायेंगे वही प्वाइंट रूप में स्थित हो सकेंगे। प्वाइंट का मनन अथवा वर्णन करना सहज है लेकिन स्वरूप बन अन्य आत्माओं को भी स्वरूप का अनुभव कराना - यही है सबूत देना अर्थात् सपूत वा साक्षात्कार मूर्त बनना।
स्लोगन: एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ तो मन-बुद्धि का भटकना बंद हो जायेगा।

No comments:

Post a Comment