'मीठे बच्चे - तुम्हारा वायदा है कि जब आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे, अब बाप आये हैं - तुम्हें वायदा याद दिलाने''
प्रश्न :- किस मुख्य विशेषता के कारण पूज्य सिर्फ देवताओं को ही कह सकते हैं?
उत्तर: देवताओं की ही विशेषता है जो कभी किसी को याद नहीं करते। न बाप को याद करते, न किसी के चित्रों को याद करते, इसलिए उन्हें पूज्य कहेंगे। वहाँ सुख ही सुख रहता है इसलिए किसी को याद करने की दरकार नहीं। अभी तुम एक बाप की याद से ऐसे पूज्य, पावन बने हो जो फिर याद करने की दरकार ही नहीं रहती है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वयं को श्रेष्ठ बनाने के लिए बाप की जो श्रीमत मिलती है, उस पर चलना है, दैवीगुण धारण करने हैं। खान-पान, चलन सब रॉयल रखना है।
2) एक-दो को याद नहीं करना है, लेकिन रिगार्ड जरूर देना है। पावन बनने का पुरुषार्थ करना और कराना है।
वरदान:- रीयल्टी द्वारा हर कर्म वा बोल में रायॅल्टी दिखलाने वाले फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी भव
रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति, जिससे स्थूल सूरत में भी रॉयल्टी नज़र आयेगी। रीयल्टी अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। इस स्मृति से हर कर्म वा बोल में रॉयल्टी दिखाई देगी। जो भी सम्पर्क में आयेगा उन्हें हर कर्म में बाप समान चरित्र अनुभव होंगे, हर बोल में बाप के समान अथॉरिटी और प्राप्ति की अनुभूति होगी। उनका संग रीयल होने के कारण पारस का काम करेगा। ऐसी रीयल्टी वाली रॉयल आत्मायें ही फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी बनती हैं।
स्लोगन: श्रेष्ठ कर्मो का खाता बढ़ाओ तो विकर्मों का खाता समाप्त हो जायेगा।
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