21-12-2010-''मीठे बच्चे - बाप जो है, जैसा है, उसे यथार्थ पहचान कर याद करो, इसके लिए अपनी बुद्धि को विशाल बनाओ''
प्रश्न: बाप को गरीब-निवाज़ क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि इस समय जब सारी दुनिया गरीब अर्थात् दु:खी बन गई है तब बाप आये हैं सबको दु:ख से छुड़ाने। बाकी किस पर तरस खाकर कपड़े दे देना, पैसा दे देना वह कोई कमाल की बात नहीं। इससे वह कोई साहूकार नहीं बन जाते। ऐसे नहीं मैं कोई इन भीलों को पैसा देकर गरीब-निवाज़ कहलाऊंगा। मैं तो गरीब अर्थात् पतितों को, जिनमें ज्ञान नहीं है, उन्हें ज्ञान देकर पावन बनाता हूँ।
गीत:- यही बहार है दुनिया को भूल जाने की.......
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रूप-बसन्त बन मुख से सदा सुखदाई बोल बोलने हैं, दु:खदाई नहीं बनना है। ज्ञान के विचारों में रहना है, मुख से ज्ञान रत्न ही निकालने हैं।
2) निर्मोही बनना है, हर एक से प्यार से काम लेना है, गुस्सा नहीं करना है। अनाथ को सनाथ बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- ज्ञान कलष धारण कर प्यासों की पयास बुझाने वाले अमृत कलषधारी भव
अभी मैजारिटी आत्मायें प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से, आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के लिए बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से, परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से थक गये हैं, निराश हो गये हैं, समझते हैं सत्य कुछ और है, प्राप्ति के प्यासे हैं। ऐसी प्यासी आत्माओं को आत्मिक परिचय, परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी इसलिए ज्ञान कलष धारण कर प्यासें की प्यास बुझाओ। अमृत कलष सदा साथ रहे। अमर बनो और अमर बनाओ।
स्लोगन: एडॅजेस्ट होने की कला को लक्ष्य बना लो तो सहज सम्पूर्ण बन जायेंगे।
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