Monday, December 20, 2010

बल ही जीवन को आनंदप्रद बनाता है।

''बल ही जीवन है, बलहीन जीवन मृत्यु और नर्क के समान है।''
शक्ति को सुख की जननी माना गया है। निर्बलता ही समस्त दुखों का मूल कारण है। शक्ति यानि कि बल की महानता एवं उपयोगिता को हम सभी अपने जीवन में अनुभव करके ही रहते हैं। किंतु बल का मतलब मात्र शारीरिक बल से ही नहीं है। शारीरिक बल ही सर्वश्रेष्ठ होता तो हाथी-घोड़े आज इंसानों पर राज कर रहे होते, जबकि ऐसा नहीं है। बल या शक्ति उस समग्र और सम्मिलित क्षमता को कहते हैं जिसमें तीनों बल यानि धन, ज्ञान और बाहु बल शामिल हो। दुनिया में सर्वाधिक शक्तिशाली वही है जो जिसके पास तीनों बलों का पर्याप्त संचय यानि कि संग्रह हो। मूर्ख धनवान, दरिद्र ज्ञानी तथा हट्टा-कट्टा मूर्ख मजदूर कभी भी वास्तविक सुख शांति प्राप्त नहीं कर पाते। अत: जिसमें जिस बल की ज्यादा कमी हो उसे उस शक्ति से संबंधित मंत्र का विधि पूर्वक जप करना चाहिए।

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