Thursday, January 6, 2011

कहानी

हम सदियों से संत - महात्माओं के अद्भुत किस्से कहानियां सुनते आए हैं. कुछ तो पौराणिक घटनाओं की वजह भी रहें हैं. जैसे एक बार अपने क्रोध के लिए प्रचलित मुनि दुर्वासा कृष्ण की नगरी जाते हैं. कृष्ण और रुक्मणि उनकी सच्चे मन से सेवा करते हैं. उन्हें पूरी नगरी का भ्रमण करवाते हैं.और अंत में उनकी पसंद के मुताबिक खीर सेवन के लिए देते हैं. तभी मुनि दुर्वासा कृष्ण को बुलाते हैं. और उन्हें अपने पूरे शरीर पर खीर मलने को कहते हैं. उनके आदेशनुसार कृष्ण अपने पूरे शरीर खीर मल लेते हैं. लेकिन पंजे छोड़ देते हैं. जब मुनि देखते हैं. तो पूछते हैं. तुमने पंजे क्यों छोड़ दिए. उस पर कृष्ण कहते हैं कि हे मुनि ये तो प्रसाद रूपी खीर थी मैं इसे चरणों पर कैसे लगा सकता था. मुनि कहते है ये तुमने ठीक नहीं किया. ये मात्र खीर नही थी. मेरा वरदान था. इसे मलने से तुम्हारा शरीर वज्र समान हो गया है. जिसे कोई तीर भेद नही सकता, पर तुम्हारे पंजे इस वरदान के फल से वंचित रह गए हैं कि श्री कृष्ण ने स्वेच्छा से अपना शरीर इसलिए त्यागा था क्योंकि उनके पंजों पर तीरों के घाव हो गए थे. जो ठीक नहीं हो सकते थे.

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