Thursday, January 6, 2011

कहानी

एक शेरनी थी कई दिनों से भूखी प्यासी थी. वह शिकार करने में अस्मर्थ थी, क्योंकि उसके पेट में बच्चा था. भूखी प्यासी शिकार की तालाश में घूमते हुए वह जंगली बकरी-बकरों के झुण्ड़ के पास जा पहुँची. शेरनी उन पर हमला करने के लिए तेजी से लपकी, पर असफ़ल रही. बकरी-बकरे इधर उधर भाग गये. उसी समय उसे प्रसव वेदना हुई. बच्चे को जन्म देते ही वह मर गयी. जानवरों ने पास आकर देखा कि शेरनी मरी पड़ी है, और उसका बच्चा जिन्दा असहाय पड़ा है. बकरी-बकरों ने उसे उठा लिया और पाल लिया. अब शेर का बच्चा बकरी-बकरों के साथ रहने लगा, उन्हीं की तरह रहने लगा. उन्ही की तरह मिमियाता और घास चरता. उन्ही की तरह रहने लगा. ऐसा लगने लगा कि मानो वह शेर नही, बकरा है.

शेर का बच्चा दिन-दिन बढ़ने लगा. अचानक एक रात को उनके झुण्ड़ पर एक बड़े शेर ने हमला किया. बकरी-बकरे सब प्राण बचाकर इधर-उधर भाग निकले. शेर का बच्चा वहीं खड़ा रहा. समझ नही पाया की क्या करें? उसने दूसरे शेर को चकित होकर देखा. थोड़ी देर बाद वह धीमे से मिमियाया और फ़िर घास चरने लगा. बूढ़े शेर ने उसकी तरफ़ देखकर कहा - यहाँ बकरी-बकरों के बीच तुम क्या कर रहे हो?

शेर का बच्चा फ़िर मिमियाया. यह देख बूढ़ा शेर चौंका. गरजते हुए बोला - क्यों मिमिया रहे हो ?

शेर का बच्चा जब तक कुछ जवाब देता, उससे पहले ही शेर ने उसे गर्दन से पकड़कर झझकोरा. फ़िर वह उसे घसीटकर एक झरने के किनारे ले गया. चाँद की रोशनी में उसे पानी के भीतर झुका कर कहा ! देखो - मेरा चेहरा देखो, अपना चेहरा देखो. दोनो चेहरे एक से है ना ? तुम्हारा चेहरा मेरी ही तरह है ना ? तुम भी मेरी तरह एक शेर हो. फ़िर क्यों अपने आप को बकरा समझते हो ? क्यों मिमियाते हो? क्यों घास खाते हो ? शेर का बच्चा हैरान होकर सोचने लगा कि बूढ़े शेर की बातों में कुछ दम है.

बूढ़ा शेर, शेर के बच्चे को माँद में घसीट कर ले गया. वहाँ पड़ा हुआ माँस का एक टुकड़ा जबरदस्ती उसके मुँह में ठूँस दिया. पहले तो वह कुछ झिझका, परन्तु धीरे-धीरे उसे उसमे स्वाद आने लगा. उसकी दाड़ में खून लग गया. वह मानो गहरी नींद से जागा. उसने अपने आप को पहचाना. उसने दहाड़ मार कर अपने पंजे फ़ैलाये. अब वह शेर की तरह गरजने लगा. इसी का नाम है आत्मज्ञान. अपने आपको जानना, पहचानना.

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