20-01-2011
मुरली सार:- "मीठे बच्चे- तुम यहाँ आये हो सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति लेने अर्थात दीपक में ज्ञान घृत डालने"
प्रश्न: शिव की बारात का गायन क्यों है?
उत्तर: क्योंकि शिवबाबा जब वापिस जाते हैं तो सभी आत्माओं का झुण्ड उनके पीछे-पीछे भागकर जाता है। मूलवतन में भी आत्माओं का मनारा (छत्ता) लग जाता है। तुम पवित्र बनने वाले बच्चे बाप के साथ जाते हो। साथ के कारण ही बारात का गायन है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मन-वचन-कर्म से पवित्र बन आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज करना है। पक्का ब्राह्मण बनना है।
2) मनमत वा मनुष्य मत छोड़ एक बाप की श्रीमत पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है। सतोप्रधान बन बाप के साथ उड़कर जाना है।
वरदान:- पुरुषार्थ शब्द को यथार्थ रीति से यूज़ कर सदा आगे बढ़ने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव
कई बार पुरुषार्थी शब्द भी हार खाने में वा असफलता प्राप्त होने में अच्छी ढाल बन जाता है, जब कोई भी गलती होती है तो कह देते हो हम तो अभी पुरुषार्थी हैं। लेकिन यथार्थ पुरुषार्थी कभी हार नहीं खा सकते क्योंकि पुरुषार्थ शब्द का यथार्थ अर्थ है स्वयं को पुरूष अर्थात् आत्मा समझकर चलना। ऐसे आत्मिक स्थिति में रहने वाले पुरुषार्थी तो सदैव मंजिल को सामने रखते हुए चलते हैं, वे कभी रुकते नहीं, हिम्मत उल्लास छोड़ते नहीं।
स्लोगन: मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति में रहो, यह स्मृति ही मालिकपन की स्मृति दिलाती है।
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