Thursday, January 20, 2011

परमात्मा के बारे में अनेक मत क्यों ?

परमात्मा के बारे में अनेक मत क्यों ?

ब्रम्हाकुमारी:-

तो परमात्मा के बारे में अनेक मतों का होना यह सिध्द करता है कि लोग अपने आत्मा के पिता को नहीं जानते । तभी तो आज बहुत से लोग कहते हैं कि परमात्मा का कोई रूप ही नहीं है। आप किंचित् विचार कीजिए कि रूप के बिना भला कोई चीज हो कैसे सकती है ? परमात्मा के लिए तो लोग कहते है--''ऍंखिया प्रभु दर्शन की प्यासी' अथवा हे प्रभो? अपने दर्शन दे दो।'' अत: परमात्मा का कोई रूप ही नहीं है, तब तो परमात्मा से मिलन भी नहीं हो सकता? परन्तु सोचिए, क्या हम जिसे अपना परमपिता कहते हैं, उससे मिल भी नहीं सकते ? परमात्मा से जो इतना प्यार करते हैं, उसे इतना पुकारते हैं, उसके लिए इतनी साधनाएँ करते हैं, वे किसलिए ? जिसका कोई रूप ही नहीं है अर्थात् जो चीज ही नहीं है, उसके लिए कोशिश ही क्यों करते हैं ? स्पष्ट है कि परमात्मा का कोई रूप है अवश्य, परन्तु आज मनुष्य के पास ज्ञान-चक्षु के न होने के कारण वह उसे देख नहीं सकता ।

उन्हीं के अनुसार-- मान लीजिए, आप किसी मनुष्य से पूछते हैं कि तुम किस चीज को खोज रहे हो ? तो वह कहता है--''उस वस्तु का कोई रूप नहीं है।'' फिर आप पूछते हैं कि वह वस्तु कहाँ है, वह कैसी है और उसके गुण क्या हैं ? तो वह कहता है कि-- 'वह तो निर्गुण है' तो आप उसे तुरन्त कहेंगे कि-- 'फिर तुम ढूँढ क्या रहे हो, खाक् ? जिसका न नाम है, न रूप है, न गुण है, और न पहचान तो उसके पीछे तुम अपना माथा क्यों खराब कर रहे हो?'

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