एक साधू महात्मा नदी में खड़े हो सूर्य अर्घ्य दे रहे थे. साधू ने ज्यों ही अंजुली में पानी लिया, उन्होनें देखा एक बिच्छू नदी में बहा जा रहा था. साधू ने देखा तो हाथ बढ़ा खींच लिया. बिच्छू ने तुरंत उन्हें ड़ंक मार दिया. इससे साधू महात्मा का हाथ हिला और बिच्छू फ़िर पानी में गिर गया. साधू ने फ़िर हाथ बढ़ाकर उसे खींच लिया. बिच्छू ने फ़िर ड़ंक मार दिया और दुबारा पानी में गिर गया. साधू ने फ़िर उसे उठा लिया, बिच्छू ने फ़िर ढ़ंक मार दिया. साधू ने फ़िर उसे उठा लिया. यह प्रक्रिया काफ़ी देर तक चलती रही. पास खड़े एक आदमी ने पूछा. महात्मन आप यह क्यों कर रहे हैं ? बिच्छू बार - बार आपको काट लेता है. फ़िर भी आप बार - बार उसे उठा लेते हैं. मरने दीजिए इस दुष्ट को. साधू महात्मा बोले - बेटा डंक मारना उसका धर्म है. बचाना मेरा धर्म. वह अपना धर्म नही छोड़ता, तो मैं अपना धर्म क्यों छोड़ दूँ.
वह व्यक्ति हंसकर बोला - महात्मन क्या ऐसे छोटे से प्राणी का भी कोई धर्म होता है.
साधू महात्मा बोले बिल्कुल ! सबका अपना - अपना धर्म होता है.
हर चीज का अपना - अपना धर्म होता है.
हर प्राणी का अपना अपना धर्म होता है.
हर मनुष्य का अपना - अपना धर्म होता है.
ड़ंक मारना बिच्छू का धर्म है, दया करना मनुष्य का.
जलाना आग का काम है, बुझाना पानी का.
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा सबका अपना - अपना धर्म है.
पशु, पक्षी, चर, अचर सबका अपना - अपना धर्म है.
सभी अपने - अपने धर्म का पालन करते हैं. इसलिए हमें भी अपनी मनुष्यता नही छोड़नी चाहिए.
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