मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हारी याद की यात्रा बिल्कुल ही गुप्त है, तुम बच्चे अभी मुक्तिधाम में जाने की यात्रा कर रहे हो''
प्रश्न: स्थूलवतन वासी से सूक्ष्मवतन वासी फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर: सूक्ष्मवतनवासी फरिश्ता बनना है तो रूहानी सर्विस में हड्डी-हड्डी स्वाहा करो। बिना हड्डी स्वाहा किये फरिश्ता नहीं बन सकते क्योंकि फरिश्ते बिगर हड्डी मास के होते हैं। इस बेहद की सेवा में दधीचि ॠषि की तरह हड्डी-हड्डी लगानी है, तभी व्यक्त से अव्यक्त बनेंगे।
गीत:- धीरज धर मनुवा........
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अन्तिम विनाश की सीन देखने के लिए अपनी स्थिति महावीर जैसी निर्भय, अडोल बनानी है। गुप्त याद की यात्रा में रहना है।
2) अव्यक्त वतनवासी फरिश्ता बनने के लिए बेहद सेवा में दधीचि ॠषि की तरह अपनी हड्डी-हड्डी स्वाहा करनी है।
वरदान:- बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर के अन्दर रखने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली भव
जो बच्चे बुद्धि रूपी पांव जरा भी मर्यादा की लकीर से बाहर नहीं निकालते वे लक्की और लवली बन जाते हैं। उन्हें कभी कोई भी विघ्न अथवा तूफान, परेशानी, उदासी आ नहीं सकती। यदि आती है तो समझना चाहिए कि जरूर बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर से बाहर निकाला है। लकीर से बाहर निकलना अर्थात् फकीर बनना इसलिए कभी फकीर अर्थात् मांगने वाले नहीं, सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली बनो।
स्लोगन: जो सदा न्यारे और बाप के प्यारे हैं वह सेफ रहते हैं।
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