Wednesday, May 19, 2010

योग``

योग`` शब्द ही - मनुष्य को अलौकिकता की ओर प्रेरित करता है. आज विश्व में योग विद्या के अभाव के कारण ही बेचौनी, परेशानी व तनाव का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. योग अत्यन्त प्राचीन प्रणाली है. भारत के प्राचीन योग की ख्याति समस्त विश्व तक पहुँची हुई है. इसलिए विश्व के अनेक प्राणियों में योगाभ्यास सीखने की आकांक्षा है

योग की प्रख्याति के कारण समयोपरान्त इसके विविध स्वरुप सामने आये. यद्यपि योग अभ्यास की विधि एक ही है, परन्तु आत्मा और परमात्मा की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं के कारण मनुष्यों ने अनेक प्रकार के योगांे का प्रतिपादन किया. धीरे-धीरे योग अभ्यास मनुष्य के लिए कठिन होता गया और योग का स्थान हटयोग व योग आसनों ने लिया तथा आजकल मनुष्य योग को केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही हितकर मानने लगा. यह सत्य उससे विस्मृत हो गया कि योग पूर्णतया आध्यात्मिक विद्या है. अधिक जानकारी


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राजयोग का लक्ष्य, नियम तथा प्राप्ति
राजयोग ही अविनाश सुख-शान्ति का एकमात्र उपाय है

आज के इस आधुनिक युग में राजयोग सिखने की बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शान्ति की इच्छा रखता है और वह जानता है कि शान्ति केवल भौतिक चरमसीमा तक पहँुच चुकी है परन्तु विदेशी फिर भी भारत में ही योग सीखने आते है. वे जानते है कि योग ही एक मात्र साधन है जिससे मानसिक तनाव होता है तथा तन-मन को सुख-शान्ति और शक्ति की प्राप्ति होती है. लेकिन खेद की बात है कि भारत के आदि, प्राचीन राजयोग के नाम पर आज अनेक प्रकार के हटयोग या केवल शारीरिक आसन ही सिखाये जाते है. इनसे शारीरिक स्तर पर लाभ अवश्य होता है परन्तु मन की गहरी शाक्तियों को जगाने के लिए तो राजयोग से ही पूर्ण सफलता मिलती है. मन को शक्तियाशाली बनाने के लिए तो राजयोग की ही आवश्यकता है. क्योंकि प्रत्येक चीज़ मन से ही आरम्भ होती है. वौसे भी 80 प्रतिशत शारीरकि रोग मानसिक तनाव के कारण ही उत्पन्न होते है. यहाँ जो राजयोग सिखाया जाता है इनमें कोई भी शारीरिक आसन नहीं बताये जाते है लेकिन हरेक बात आध्यात्मिकता तथा मनोवौज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर व्यावहारिक रुप से समझाई जाती है. राजयोग एक ऐसा सहज व विश्व प्रिय योग है जिसका अभ्यास कोई भी व्यक्ति कर सकता है. चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, रंग, उम्र व्यवसाय, देश आदि का हो

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