चार मुख्य धाम
1. बाबा का कमरा
यह परमात्मा के साकार माध्यम पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा बाबा का निवास स्थान था. उसी कमरे को अब योगानुभूति-कक्ष के रुप में प्रयोग किया जाता है. इस छोटे से स्थान पर सृष्टि के सृजनहार ने विश्व नवनिर्माण की सार संकल्पनायें की थी. तभी तो कहा जाता है कि ब्रह्मा ने विश्व नवनिर्माण से सृष्टि रची. यहॉ एकाग्रता से बौठते ही लोगों को ईश्वरीय शक्ति व शान्ति का अनुभव होने लगता है. ईश्वरीय वाणि में इसे `स्नेह का धाम` कहा गया है.
इस कमरे में बौठने वाले को गुणांे का सागर बाबा, गुणों से भरपूर वाले को गुणों का सागर परमात्मा गुणों से भरपूर कर देता है. इस कमरे की उपयोगिता बताते हुए परमात्मा पिता ने कहा है, ़`इस कमरें में जो आता है, बाप समान बननेका संकल्प दृढ हो जाता है`
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2. बाबा की झोपडी.
प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने इसे सन 1959 में निर्मिती करवाया. यहॉही तपस्या कर ब्रह्माबाबा ने रुहानियत में सम्पूर्णता प्राप्त की. त्याग-तपस्या, स्वच्छता और सादगी वाले इस जादुई स्थान पर बौठते ही जिज्ञासुओं के अंतकरण पावन होने लगते है.
नव सृष्टि के सृजन को व्यावहारीक रुप देने हेतू ब्रह्माबाबा यहाँ संगोष्टिया करते, यज्ञ-वत्सों को पत्र लिखते व ज्ञानचर्चा करते थे. बाबा मम्मा द्वारा लगाया हुआ बगीचा भी यहॉ पर है, जिसमें अंगूर की बेल विशेष है, यह सबके मन को आकर्षित करता है. ईश्वरीय महावाक्यों में इसे स्नेह मिलन का धाम कहा जाता है.
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3. शान्ति स्तम्भ
अठारह जनवरी 1969 को जब ब्रह्माबाबा अव्यक्त हुए तब उनके समाधि स्थल पर, सरकारी अधिकारी की सम्मतिसे, शान्ति स्तम्भ का निर्माण किया गया.
यह पिताश्री ब्रह्मा के त्याग व तपस्या की स्मृति में निर्मित यादगार है. इससे निकलने वाले शान्ति, ज्ञान, शक्ति और पवित्रता का प्रकम्पन मानव-मात्र को पवित्र व योगी जीवन जीने की प्रेरणा देता है. इसके समक्ष खड़े होने से एैसी भावना आती है की जौसे आज भी पगड़ी बाँधे हुए ब्रह्मा बाबा सूक्ष्म वतन से विशाल बाहे फैंलाये बच्चों का आवाहन कर रहे है. यहाँ आने वाले सभी लोग इसे चौतन्य मन्दिर की तरह मानते हैं. ब्रह्मा-वत्स इसे `महाधाम` मानते हैं.
परमात्मा पिता ने इसकी विशेषता को यह कहकर वर्णन किया कि यदि शक्तिशाली बनाना हो तो शान्ति-स्तम्भ पहुँच जाना.
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4. हिस्ट्री हॉल -
यह सन 1960 में ब्रह्मा द्वारा बनवया गया. ज्ञान-यज्ञ के आदि रत्नों के चित्र हिस्टी हाल में प्रदर्शित किए गए है. यह बाबा-मम्मा द्वारा बनवाया हुआ ज्ञान-योग का पहला हाल है जो आज भी ब्रह्मा वत्सों का तपस्या कुंड है.
आज भी नव-निर्माण संगोष्ठियाँ यहाँ होती रहती हैं. इसी कक्ष में साकार ब्रह्मामुख कमल से निराकार शिव पिता के जो महावाक्य (मुरली) उच्चारित हुए है, उनको सभी स्थानीय सेवाकेंन्द्रो पर नियमित रुप से सुनाया जाता तथा सभी की आध्यात्मिक शक्तियों से पालना कर, श्रेष्ठ धारणायुक्त जीवन बनाकर सदगुणों से सशक्त बनाया जाता है, ईश्वरीय महावाक्यों में इसे `व्यर्थ संकल्पों से मुक्ति का साधन` कहा गया है. परमात्मा पिता ने इसका महत्व बताते हुए कहा है, `कभी व्यर्थ संकल्प बहुत तेज हों तो हिस्ट्री हॉल में पहुँच जाना.`
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