5000 स्कूलों कॉलेजों में और 800 जेलों कारगृहो में नैतिक मूल्यों का पाठ पढाकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है
Wednesday, May 19, 2010
क्रोध स्वयं में विष और व्याधि है।
क्रोध स्वयं में विष और व्याधि है। क्रोध मानव जीवन की सर्वोपरि पराजय है। क्रोध में अंधकार की विडंबना, अग्नि की ज्वाला और मृत्यु की विभीषिका है। विश्व की आधे से अधिक समस्याएं क्रोध के कारण बनती है। क्रोध के अंधकार को हजार दीपक दूर नहीं कर पाते। क्रोध आने पर मनुष्य दस गुनी अधिक शक्ति की अनुभूति करता है। इसके उतर जाने पर दुर्बलता आ जाती है। क्रोध में वृद्धावस्था जैसी निर्बलता रहती है। क्रोध का दाग हृदय और मस्तिष्क की पूरी चमक फीकी कर देता है। पंद्रह मिनट के क्रोध से शरीर की उतनी शक्ति क्षीण होती है जितनी शक्ति नौ घंटे कड़े श्रम के बाद होती है। क्रोध विवेक, ज्ञान, बुद्धि को नष्ट करता है। क्रोध के समय आंखें बंद होने के साथ ही होंठ खुल जाते है। ध्वंसात्मक भावों में क्रोध स्वास्थ्य दृष्टि से सबसे घातक है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने गंभीर हृदयाघात के बहत्तर घंटे पूर्व सबसे प्रमुख मनोभाव की खोज में क्रोध को ही पाया। क्रोध की अनुभूति शारीरिक या मानसिक पीड़ा, असुविधा के कारण होती है। भूख, अभाव और अन्याय, भेदभाव से क्रोध पनपता है। क्रोध में गलत निर्णय से हानि होती है, सामाजिक प्रतिष्ठा घटती है। क्रोध उत्पन्न होने वाले विचारों, परिस्थितियों से बचना श्रेयस्कर रहता है। जिस मानसिक दशा में कोई रहता है उसी तरह के विचार आते है। विपरीत परिस्थितियां क्रोध का कारण बनती है। असफलता से भी क्रोध आता है। निर्दोष पर दोष मढ़ना भी एक कारण रहता है। स्वार्थपरता, महत्वाकांक्षा के अपूर्ण रहने पर क्रोध का परिवेश बनता है। क्रोध आने पर संयमपूर्वक मूल कारण का विचार करने पर आधा क्रोध कम हो जाता है। आत्मविश्लेषण करके कारणों की खोज करके निवारण के प्रयास से क्रोध कम होता है। ध्यान, मौन से मानसिक संतुलन सम्यक रहने पर क्रोध नहीं आता। त्याग करने वालों से स्वार्थी जब कृतघ्नता करते है तो क्रोध आता है। अयोग्यता जब योग्यता का मूल्यांकन करती है, निर्दोष को दोषी बताने पर क्रोध प्रतीक बन जाता है। असत्य भाषण पर क्रोध आता है। आंखें क्रोधाग्नि में जलकर दूसरों को भस्म करने की क्षमता रखती हैं। आंखें क्रोध का प्रभाव बताती है, क्रोध से बचने के लिए मौन से बड़ी दूसरी जिसमें विकार है वह कभी देवता नहीं हो सकता। जिसमें अभिमान है वह मनुष्य नहीं हो सकता। अभिमानी लोगों का कहीं सम्मान नहीं होता।
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